यात्रा मैनुअल
हर काम के कुछ नियम होते हैं। ये नियम सिर्फ अपने मन की चलाने की चाहत के नतीजे ही नहीं, कई बार जीवन भर के अनुभव का सार भी होते हैं। अगर इनका खयाल रखा जाए तो मुश्किलों की आशंका बेहद कम और सफलता की संभावना बहुत अधिक हो जाती है। ऐसे ही कुछ नियम यात्राओं के मामले में भी हैं।
अगर मैं महान दार्शनिकों द्वारा स्थापित इस मत क ो नकार भी दूं कि जीवन एक यात्रा है, तब भी आज की यात्राओं की लंबाई और यात्रियों की संख्या अकूत रह जाएगी। उद्यमी लोगों द्वारा परंपरागत उद्योगों से अलग हटकर नए-नए उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं- शिक्षा उद्योग, धर्म उद्योग, प्रवचन उद्योग, रोग उद्योग, फिल्म उद्योग के साथ-साथ पर्यटन उद्योग भी खूब विकसित हुआ है। यात्राओं की भरमार हो गई। यात्रा वृत्तांतों से साहित्य और इंटरनेट भर गया। लेकिन सच यह है कि यात्रा के लिए निहायत जरूरी वस्तुओं तथा सावधानियों का जिक्र आज तक कहीं हुआ ही नहीं, जिसका खमियाजा बार-बार बेचारे अनुभवहीन यात्रियों को भुगतना पडता है।
अत: यात्रियों से निवेदन है कि इस यात्रा मैनुअल को ध्यान से पढ लें और बिना किसी कुतर्क के श्रद्धापूर्वक इसका पालन करें। इससे यात्रा सुखद होने का थोडा-बहुत चांस जरूर पैदा होता है। यों तो यात्रा मैनुअल की शुरुआत मुझे हवाई यात्रा से करनी चाहिए, लेकिन जो नियमित हवाई यात्री हैं, उन्हें सलाह देने की हिमाकत करना अपनी सेहत के लिए ज्यादा मुफीद नहीं होगा। हां, पैसे की कीमत गिरने का एक परिणाम यह जरूर हुआ है कि कुछ ऐसे लोग भी कभी-कभी हवाई यात्रा कर लेने लगे हैं, जिनके लिए हवाई जहाज से चलना वर्जित फल चखने जैसा रहा है। इन नौसिखिया हवाई यात्रियों के लिए एक-दो बातें बताना यहां परमधर्म होगा। कहने की जरूरत नहीं कि हवाई जहाज में खाद्य पदार्थो की कीमत भी पूरी तरह हवाई होती है और जैसे-जैसे हवाई जहाज ऊपर जाता है, कीमतें भी ऊपर चढती जाती हैं। अब जो यात्री हवाई यात्रा का टिकट किसी संगठन, मिशन या सरकारी कमीशन के अनुग्रह से प्राप्त करते हैं, उनके लिए तो ये कीमतें जानलेवा साबित हो सकती हैं। ये इस बात को समझते हैं और कई बार अपने हैंडबैग में मोहल्ले की दुकान के पैकेट ठूंस कर चलते हैं। मगर हवाईयात्रा में यह महापाप है। यदि जहाज के अंदर आपने ये पौष्टिक पदार्थ खोल लिए तो आपका बडप्पन तो गया काम से। लिहाजा, बडा बनने का अवसर मत चूकिए। सत्तर रुपये की पानी की बोतल और एक सौ बीस रुपये की कॉॅफी का आनन्द जरूर लीजिए। एअर हॉस्टेस की नजरों में ऊंचा बनिए और सहयात्रियों में अपना कद बढाइए!
हवाई सफर के अधिकतर नियम रेलवे के प्रथम श्रेणी वातानुकूलित पर भी चिपकते हैं। उसमें चलने वाले जन श्रेष्ठ होने के साथ-साथ प्राय: सरकारी अफसर होते है, जिनकी बुद्धिमत्ता का प्रमाणपत्र लोक सेवा आयोग पहले ही जारी कर चुका होता है।
यह यात्रा मैनुअल द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित से ज्यादा प्रभावी होता है। चूंकि इस क्लास में यात्रा करने वाला स्वयं को प्रथम श्रेणी के तुल्य और समीप पाता है जिससे उसका मनोबल बढता है। दिक्कत तब होती है जब ऊपर वाली बर्थ मिलती है क्योंकि तब उसे लगता है कि उसे केवल छत मिली है और पूरा ग्राउंड फ्लोर लोअर बर्थ वाले का है। अत: यात्री को यह प्रयास करना चाहिए कि येन-केन प्रकारेण उसे नीचे वाली बर्थ ही मिले। इस श्रेणी में भी घर से लाया खाना नहीं खाना चाहिए और रेलवे कैटरिंग द्वारा एल्युमिनियम फॉइल में पैक सुदर्शन खाना जरूर खरीदना चाहिए। पसंद तो नहीं ही आएगा, सो थोडा-बहुत चखकर शिकायत सहित फेंक देने में ही भलाई है। इससे स्वास्थ्य और सम्मान दोनों में वृद्धि होगी।
ए.सी. थर्ड वाले को ध्यान रखना चाहिए कि सेकंड वाला पूरा फॉम्र्युला उसके ऊपर जस का तस लागू होता है। यानी उतना तो उसे हर हाल में याद रखना ही है, चाहे कुछ भी हो। इसके बाद उसे सोचना चाहिए कि वह भी अभिजात वर्ग में शामिल हो गया है, चाहिए हाशिये पर ही सही। एक बार बोगी में घुसकर उसे यह जरूर कहना चाहिए कि रश बहुत है और इस क्लास में सफर करने लायक नहीं है। पर क्या करें रेल के नियमों और अचानक आ पडी जरूरत का, जिसके कारण इस भेडिया धसान में यात्रा करनी पड रही है!
यात्रा का असली मैनुअल स्लीपर क्लास से शुरू होता है। इस क्लास के लिए विशेष तैयारियां करनी पडती हैं। यात्रा से पूर्व शारीरिक और मानसिक क्षमता विकसित किए बिना इसमें यात्रा नहीं की जा सकती। ज्ञानियों और तत्वदर्शियों ने कहा है कि मनुष्य को आने वाली विपत्ति और कष्ट के लिए तैयार रहना चाहिए। तो अब तैयार हो जाइए। न जाने क्या हो जाए? गुनगुनाते रहें- इस पार प्रिये, मधु है, तुम हो; उस पार न जाने क्या होगा! मानसिक रूप से तैयार हो जाने के बाद शरीर यात्रा के अनुकूल बन जाता है। कुछ कमी हो तो योग और ध्यान का अभ्यास कर लें। स्लीपर क्लास में यात्रा के लिए जिन विशिष्ट वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उनकी सूची एक्सक्लूसिवली यहां दी जा रही है। खाना-पानी, बिस्तर-चादर जैसे सामानों का उल्लेख कर मैं यहां मैनुअल का स्तर नहीं गिराना चाहता और मेरे खयाल से आपसे समझदारी की अपेक्षा करके मैं कोई गलती भी नहीं कर रहा हूं। यात्रीगण एक अदद प्लायर, स्क्रू ड्राइवर और मजबूत रस्सी प्राथमिकता के तौर पर अपने साथ रख लें। कौन सी खिडकी की चिटकनी खराब हो, किसका शीशा टूटा हो और कौन सी खिडकी का शटर खुल या बंद न हो रहा हो, इसकी जानकारी संचार साधनों के इतने विकास के बावजूद आपको नहीं मिल पाएगी। बंद खिडकी को खोलने के लिए इन प्राथमिक हथियारों की नितांत आवश्यकता होती है। मान लिया गर्मी का मौसम है और शटर या शीशा ऊपर होकर अटकता ही नहीं, अर्थात वह हमेशा गिरी हुई राजनीति की स्थिति में रहता है तो आप आम आदमी होने के कारण अंदर-अंदर खौल कर रह जाने के सिवा कुछ नहीं कर पाएंगे। टीटी से शिकायत करेंगे तो वे आपको रेल डिब्बा कारखाना कपूरथला रेफर कर देंगे और अगर भूल से भी रेलवे पुलिस से कह दिया तो लेने के देने पड जाएंगे। अत: ऐसी दुर्दशा में आप मजबूत रस्सी से शीशे को ऊपर अटका सकते हैं। पेंचकस के प्रयोग से पंखे की पंखुडी घुमाकर चालू कर सकते हैं या लाइट जला सकते हैं। यदि आपकी यात्रा की श्रेणी साधारण या अनारक्षित है तो आप स्वयं को देश का मूल निवासी समझें। आप ही असली वोट और असली लोकतंत्र हैं। आप में ही भारत बसता है और आपके लिए ही सरकार है। आप वह महत्वपूर्ण प्राणी हैं जिसके लिए देश की सारी योजनाएं बनती हैं। आपकी सुविधा के लिए ही सरकारी थाली की कीमत घटाकर बाईस रुपये कर दी गई है और आपके लिए ही गाडियों से साधारण डिब्बों को हटाकर ए.सी. या स्लीपर के डिब्बे नहीं लगाए गए। किसी प्रकार यदि अनारक्षित डिब्बे में प्रवेश करने में सफल हो गए और आपके अस्तित्व को वहां आधार मिल गया तो आप पहले गिरमिटिया के बराबर हो गए!
यात्रा ही क्या जो सरकारी बस या साझा किराए की टैक्सी से न की जाए। वैसे भी जहां कोई साधन नहीं पहुंचता, वहां अपने देश में साझा किराये की टैक्सियां पहुंचती हैं। इनकी महत्ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जहां ट्रेन समाप्त होती है, वहां से इनकी शुरुआत होती है। यही यात्री को उसके घर तक पहुंचा कर आती हैं। साझा किराए की टैक्सी में यात्रा नहीं की तो समझिए कि पर्यटन के आनंद से वंचित ही रह गए। देश के विषय में जानकारी के मामले में पिछडे रह जाने की ग्लानि हमेशा सताएगी। यह बात अलग है कि ज्यादा जानकारी से दुख के बढ जाने का खतरा होता है। कहते हैं कि ये टैक्सियां पुष्पक विमान होती हैं। सुना था कि पुष्पक विमान में चाहे कितने भी लोग बैठ जाते, उसमें एक सीट हमेशा खाली ही रहती थी। इसीलिए भगवान राम अपनी पूरी बानर सेना के साथ उसी एक विमान से लंका से अयोध्या आ गए थे। यह सिद्धांत साझा टैक्सियों पर लागू होता है। इनमें एक सीट हमेशा खाली रहती है और यात्री स्थान की कमी से निराश होने पाता। ड्राइवर जितने कुशल होते हैं, उतने ही त्यागी। यहां तक कि ड्राइविंग सीट पर भी सवारी बिठाकर और खुद लटककर भी गाडी चला लेते हैं। इस युग में इससे बडा परोपकार और क्या होगा। इसमें बैठकर आप जो भी यात्रा करेंगे, वह आपको अपने अंदर झांकने को मजबूर कर देगी- यहीं से तो आत्मसुधार का रास्ता निकलता है।
मेहनत की कद्र
मुल्ला नसरुद्दीन अपने घर अकेले थे। अत: एक दोस्त ने साथ मिलकर खाना बनाना तय किया। दोनों लोग चावल, मीट और सब्जियां लेकर आ गए। नसरुद्दीन उनके दोस्त ने कहा,ऐसा करो कि तुम चावल बना लो और मैं सब्जियां बना लेता हूं।
असल में, नसरुद्दीन ने कहा, मुझे पता ही तो ऐसा करो कि तुम सब्जियां काट दो, चावल मैं बना देता हूं।
यार सच कहूं तो मुझे सब्जी काटनी भी नहीं आती।
अच्छा चलो, तो तुम तब तक मीट ही साफ कर डालो।
मैं कर तो देता, लेकिन कच्चे मीट की गंध नहीं झेल पाता।
यार स्टोव तो जला सकते हो?
मित्र मुझे बहुत खुशी होती अगर मैं जला पाता, लेकिन मुझे आग से बहुत डर लगता है।
दोस्त समझ गया कि नसरुद्दीन कुछ करना नहीं चाहता। उसने सारा काम खुद किया, फिर मे•ा पर खाना सजाया और कहा, अब तुम खाना खाने के लिए भी कष्ट क्यों उठाओगे? रहने दो मैं अकेले ही खा लेता हूं।
बेशक तुम सही सोचते हो, नसरुद्दीन ने कहा, लेकिन चूंकि मैंने देखा है कि खाना बनाने के लिए तुमने कितनी मेहनत की है, तो अब तुम्हारी मेहनत की कद्र तो करनी होगी।
हरिशंकर राढ़ी