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हाय रे एक छुट्टी

कुछ लोग वक्त-जरूरत पर छुट्टी लेते हैं तो कुछ मौज-मजे के लिए। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बात-बेबात छुट्टी लेते रहते हैं और कुछ ऐसे भी जो ले ही नहीं पाते। ऐसे लोगों के लिए मुसीबत छुट्टी के आगे-आगे चलती

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 12:49 AM (IST)Updated: Wed, 28 Jan 2015 12:49 AM (IST)
हाय रे एक छुट्टी
कुछ लोग वक्त-जरूरत पर छुट्टी लेते हैं तो कुछ मौज-मजे के लिए। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बात-बेबात छुट्टी लेते रहते हैं और कुछ ऐसे भी जो ले ही नहीं पाते। ऐसे लोगों के लिए मुसीबत छुट्टी के आगे-आगे चलती है।

आपसे क्या बताएं कि इस जमाने में एक छुट्टी कितनी कीमती है! यही नहीं, जब खुद को छुट्टी न मिले, दूसरों को छुट्टी लेकर ऐश करते देख कितनी कोफ्त होती है! छुट्टी से बडी बात है इसे लेने का हुनर। जो जानते हैं, वे चाहे जितनी लें और जो नहीं जानते, उनकी सीएल तक लैप्स हो जाती है। तब तो कोफ्त और बढ जाती है, जब श्रीमती जी बताएं कि कैसे मेहरा जी बची छुट्टियों में संडे जोड सपरिवार सात दिन टूर के बाद आठवें दिन आराम कर नेक्स्ट मंडे ऑफिस गए।

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पटोले के साथ यही हुआ। मेहरा के सुख से वह नितांत दुखी था, तभी एक दिन श्रीमती जी बोलीं, 'सुनो जी, कल की छुट्टी ले लेना। मुझे किटी पार्टी में जाना है।'

पटोले को लगा, हर हाल में उसे छुट्टी मैनेज करनी ही है। सुबह पहुंचते ही उसने बॉस को बडे प्यार से नमस्ते की और काम में जुट गया। थोडी देर में दो चाय मंगा कर एक क्लैरिफिकेशन के बहाने बॉस को अपनी सीट पर बुला लिया। जैसे ही बॉस ने चाय का घूंट भरा, पटोले ने बात छेडी, 'सर कल एक जरूरी काम था। आप कहें तो...'

इससे पहले कि पटोले 'छुट्टी' शब्द भी बोल पाता, बॉस बोला, 'पटोले छुट्टी छोड के कुछ भी मांग लो, मैं दे दूंगा।'

वह समझ तो गया कि बॉस बडा घाघ है और वह ख्ाुद अभी मेहरा की तरह एक्सपर्ट नहीं हुआ। उसे लगा कि वह फंस गया है। छुट्टी न ली तो घर से छुट्टी और ले ली तो बॉस खा जाएगा। उसने सोचा, सांप भी मारना है और लाठी भी नहीं तोडऩी। फैसला कर लिया कि इस बार बीमारी के हिट फॉम्र्युले का प्रयोग करेगा। शाम होते-होते शक्ल पर पूरे बारह बजाते हुए बॉस के आगे बैठ गया। देखते ही बॉस समझ गया। बोला, 'आओ-आओ पटोले क्या हुआ? बडे सुस्त दिख रहे हो।'

'हां सर! तबीयत भारी हो रही है। लगता है, सर्दी लग गई है। सिरदर्द हो रहा है।'

'हां, हो जाता है। मौसम का असर है,' बॉस ने सिंपैथी दिखाई और तुरंत ड्रार से तीन टैब्लेट देते हुए बोला, 'ये रख लो। एक अभी खा लेना, एक रात में और एक कल सुबह खाकर ऑफिस आ जाना।'

उधर घर पहुंचते ही श्रीमती जी ने पूछा, 'क्यों जी, कल की छुट्टी पक्की है ना?'

'अ आं हां,' जैसे कुछ शब्द बोलता पटोले कपडे बदलने चला गया।

'क्या हुआ, तुम साफ बोलते क्यों नहीं? बॉस से कहा ही नहीं होगा तुमने। पता नहीं कहां जाती हैं तुम्हारी छुट्टियां!'

पटोले के बर्दाश्त के बाहर हो गया, 'सुनो कैसा भी पहाड टूटे, मैं ऑफिस नहीं जा रहा। कल मैं बीमार हो रहा हूं, समझी!'

अब श्रीमती जी ने बहुत प्यार से देखा, 'हाय तुम सच में छुट्टी ले आए? मेरी किटी की अहमियत समझी। देखना, कल मिसेज मेहरा को न चिढाया तो कहना! वो क्या समझती है, उसके पति को ही छुट्टी लेनी आती है?'

ख्ौर, रात कटी, सुबह हुई और 11 बजते ही मोबाइल की रिंगटोन घनघना उठी। बॉस का नाम चमक रहा था। पटोले फोन लेकर श्रीमती जी की ओर भागा, 'जरा बॉस को बोल दो कि मैं सो रहा हूं। कल से तेज बुख्ाार है, बदन जल रहा है।'

श्रीमती जी ने नमस्ते के साथ वही वाक्य दुहरा दिए और अपनी तरफ से जोड दिया, 'भाई साहब क्या बताएं, कितना समझाती हूं कि ध्यान रखा करो, पर ये ऑफिस के आगे कुछ सोचते ही नहीं।'

बॉस ने कहा, 'कोई बात नहीं, उन्हें आराम करने दीजिए। उठें तो बात करा दीजिएगा।'

पटोले को तसल्ली मिली कि फॉम्र्युला काम कर गया। श्रीमती जी किटी में चली गईं तो पटोले ने सोचा कि इस दो-तीन घंटे को ख्ाूब मस्ती से जी ले, पर होनी को कुछ और मंजूर था। ख्ाुशी सेलब्रेट भी नहीं कर पाया था कि टोन फिर बजी। मोबाइल उठाया तो बॉस ने छूटते ही बोला, 'तो पटोले तुम आख्िार आज बीमार हो ही गए। क्या हुआ है तुम्हें?'

'अ अ... कुछ नहीं सर, वो कल सर्दी लग गई थी, बुख्ाार आ गया।'

'मैंने कल गोली दी थी, खाई नहीं क्या?'

'सर मैं खाने ही चला कि देखा एक्सपायरी डेट निकल चुकी है। मैं डर गया कहीं रिएक्शन कर गई तो क्या करूंगा?'

सुनते ही बॉस का रंग बदल गया, 'ओह, डोंट वरी, आराम करो और हां ये गली के डॉक्टर का चक्कर छोडो। मैं आ रहा हूं, मल्टीसिटी में दिखा दूंगा तुम्हें।'

'अरे सर, आप क्यों तकलीफ करेंगे?'

'तकलीफ कैसी यार! यह तो हमारा फर्ज है।'

पटोले की सांस अटक गई। इससे अच्छा था साफ बता देता कि छुट्टी नहीं मिली तो शायद आफत न आती। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। श्रीमती जी को मोबाइल लगाया तो उन्होंने उठाया नहीं। तभी कॉलबेल बजी। काम वाली खडी थी। पटोले की आंखें चमक गईं, 'आ जाओ।'

'साहब, आप कैसे? मेम साहिब कहां है?'

'सुन कमला,' पटोले ने हाथ जोडते हुए कहा, 'देख, मेरी एक मदद कर दे और हां जो कह रहा हूं वो करेगी तो तुझे सौ रुपये दूंगा।'

पहले तो उसने शंकित नेत्रों से देखा पर जब पटोले की हवाइयां उडती देखीं तो उसे लगा जरूर मामला सीरियस है। बोली, 'बोलो साहेब, क्या काम करना है?'

'कमला बस थोडी देर के लिए तू ये साडी डाल ले। मेरे साहब आने वाले हैं। तू बस हल्का सा परदा करके ये ट्रे उनके सामने रख कर नमस्ते बोल के चली जाना और हां, जितने लोग हों, उतनी चाय बना देना बस।' पटोले ने सौ का नोट निकाला और हाथ जोड के खडा हो गया। इधर साहब के आने का खटका हुआ, उधर वह कंबल ओढ बेड पर पड गया। कॉलबेल बजते ही कमला ने दरवाजा खोला, नमस्ते किया। पटोले कांखता हुआ बिस्तर से उठा और ड्राइंग रूम में किसी तरह रोनी सूरत लेकर बैठ गया।

बॉस सिर पर हाथ रखते हुए बोला, 'ओह पटोले सचमुच तुम्हें तो हरारत है। कहो तो मल्टीसिटी में दिखा दूं, गाडी है मेरे पास।'

पटोले खांसते हुए बोला, 'थैंक्स सर, ज्य़ादा नहीं है, कुछ आराम लग रहा है। कल तक ठीक हो जाऊंगा।'तभी कमला ने ट्रे में सेट सामान लाकर टेबल पर रख दिया।

'पटोले ख्ायाल रखा करो। ख्ौर, अब तैयार हो जाओ, तुम्हें दिखाने ले चलता हूं।'

'ओह सर, आप कुछ लीजिए तो!'

बॉस के साथ उसका पीए भी था जो फटाफट नमकीन बिस्किट पर हाथ साफ कर रहा था। तभी पटोले को सूझा, 'सर अभी मैं बेहतर फील कर रहा हूं। आज भी आराम नहीं मिला तो कल जरूर दिखाएंगे मल्टीसिटी में।'

'दैट्स गुड, आई वांट टु सी यू फिट,'बॉस ने चाय सुडकते हुए कहा। बॉस को बाय कह कर पटोले कमरे में बैठा ही था कि कॉलबेल फिर बजी। सामने श्रीमती जी खडी थीं। वह चौंका, 'तुम, तुम तो तीन बजे आने वाली थी न, अभी कैसे?'

उनका पारा तुरंत चढ गया, 'मेरा घर है, कभी आऊं, कभी जाऊं। ऐसे क्यों चौंक रहे हो?'तभी पीछे खडी कमला पर नजर पडी, 'अरे कमला तू आज कैसे? तुझे तो मैंने कल ही बताया था कि आज काम नहीं है। मैं घर में नहीं रहूंगी, फिर यहां कैसे?'

'वो मेमसाहिब मैंने सोचा क्या पता आप घर पर हों, तो देख लूं।'

'तुझसे तो बाद में निपट लूंगी। पहले इनसे तो निपट लूं,'श्रीमती जी के तेवर देखते ही पटोले का गला सूख गया।

'वो क्या है कि बॉस का फोन आ गया कि वो पहुंच रहे हैं मुझे देखने तो ...'

'अरे चुप करो, झूठ की भी हद होती है। बॉस को क्या पडी कि तुम्हें देखने आ जाएं?'

'मेम साहिब आप सुनो तो सही...'कमला ने समझाने की कोशिश की, पर श्रीमती जी ने डांट दिया, 'तू चुप कर, तुझसे कुछ नहीं कहना। यहां तो अपना सिक्का ही खोटा है।'

पटोले ने फिर समझाना चाहा, 'तुम बात को गलत डायरेक्शन में ले जा रही हो। भरोसा करो। अभी बॉस यहां से होकर गए हैं।'

'अच्छा जी, मुझे इतना बेवकूफ समझा है कि जो तुम कहोगे मैं आंख बंद करके मान लूंगी और जो दिखाई दे रहा है, वह सब झूठ है।'मामला अंतहीन चलता कि अचानक एक नई रिंगटोन सुनाई दी। पटोले की जान में जान आई, टोन पहचानी हुई थी बॉस के मोबाइल की। वह लपका साहब का मोबाइल बज रह था। पटोले ने उठाया, 'हलो!'

'कौन?'उधर से आवाज आई।

'ओह सर, आपका मोबाइल मेरे घर ही छूट गया है। मैं पटोले बोल रहा हूं।'

'ओह पटोले थैंक्स, अच्छा हुआ मोबाइल तुम्हारे पास छूटा। वरना मुझे लगा कि आज तो मेरा प्यारा मोबाइल गया हाथ से।'

पटोले ने मोबाइल को गले से लगाया। वाकई बहुत लकी मोबाइल है। ये न होता तो आज जाने क्या होता। उसने श्रीमती जी को देखा जैसे अपनी बेगुनाही का सबूत दिखा रहा हो, 'अब तो भरोसा हो गया न मेरा कि बॉस आए थे और यह उनका ही मोबाइल है।'

श्रीमती जी ने गुस्सा कम करते हुए कहा, 'तुम जैसे आदमी पर भरोसा-वरोसा क्या होगा। हां, बॉस का मोबाइल घर पर छूटा है तो ठीक है। संभाल कर रखो। कल वापस कर देना।'

पटोले को लगा कि जान बची और लाखों पाए। ऐसी छुट्टी से तो बेहतर था कि ...

मुरली मनोहर श्रीवास्तव


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