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गरिमा बारात की

विवाह के पक्ष-विपक्ष में तर्क चाहे कितने ही क्यों न कर लिए जाएं, लेकिन है यह जीवन का ध्रुवसत्य। ज्ञानीजन बताते हैं कि इससे बचा नहीं जा सकता और बारात के बगैर इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता। चूंकि बारात की गरिमा ही बारातियों से तय होती है, इसलिए बारातियों

By Edited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 10:41 AM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 10:41 AM (IST)
गरिमा बारात की

विवाह के पक्ष-विपक्ष में तर्क चाहे कितने ही क्यों न कर लिए जाएं, लेकिन है यह जीवन का ध्रुवसत्य। ज्ञानीजन बताते हैं कि इससे बचा नहीं जा सकता और बारात के बगैर इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता। चूंकि बारात की गरिमा ही बारातियों से तय होती है, इसलिए बारातियों की अर्हताएं भी तय होनी चाहिए। जानिए, सच्चे बाराती की अर्हताएं।

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कोई अति क्रांतिकारी शख्स विवाह नामक संस्था में चाहे कितनी भी मीन-मीख निकाल ले, पर इसके कुछ पक्षों की उपयोगिता का लोहा मानना ही पडेगा। विवाह के पक्ष-विपक्ष में चाहे कितने तर्क-वितर्क कर लें, यह न रुका है और न रुकेगा। लोग विवाह करते ही रहेंगे। विवाह और भ्रष्टाचार का विरोध हाथी का दांत होता है। खाने का और, दिखाने का और। विवाह केवल युवक-युवती के भाग्य से नहीं होता। इसमें हलवाई, बैंड पार्टी, घोडीवाले, तंबूवाले, गाडीवाले, दावत वाले का भी भाग्य शामिल होता है।

यह मानने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि विवाह का सबसे सशक्त पक्ष बारात है। हालांकि सर्वाधिक आपत्ति बारात पर ही की जाती है। कुछ लोग तो बारात को बला ही कहते हैं और इसे समस्त वैवाहिक विवादों और मुसीबतों की जड तक मानते हैं। कुछ समाज सुधारक तो बारात की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर ही प्रश्न खडे कर चुके हैं। कुछ तो बैंड बाजा, घोडा, बग्घी, लाइट और सजावट के विरोध में बहुत कुछ बोल जाते हैं और इन्हें उखाड फेंकने का अभियान चला देते हंै। भले मानुष, इनका अस्तित्व न रहा तो फिर आप विवाह किसे कहेंगे? केवल एक जोडी स्त्री-पुरुष एक दूसरे से राजी हो जाएं तो क्या आप इसे विवाह कह देंगे?

दरअसल ऐसे लोगों ने बारात के सकारात्मक पहलू पर गौर फरमाने की जरूरत ही नहीं समझी। विवाह में वर-कन्या का स्तर कुछ भी हो, बारात का इससे लेना-देना नहीं होता। बारात मनुष्य के आत्मविश्वास व महत्ता को बढाती है। बारात जाने से मनुष्य का बाह्य रूप तो सुधरता ही है, आंतरिक कायाकल्प भी हो जाता है। समझदार लोग यह जानते हैं, इसीलिए तमाम विरोधों के बाद भी बारात पर प्रतिबंध नहीं लगा। इनकी चली होती तो बारात का अस्तित्व भी डोली-कहार और पंगत के भोजन की भांति लुप्त हो गया होता।

जिसे जीवन में कभी भी शिखर पर होने का अवसर या अनुभूति नहीं हुई हो, उसे बारात में यह अवसर प्राप्त हो जाता है। बारात मनुष्य में एक जोश और ऊर्जा भर देती है। उत्साह और उमंग हिलोरें मारने लगता है। बढी हुई उम्र में भी किशोरावस्था का भान होता है; युवा तो ख्ौर बारात के लिए बना ही होता है। बाराती का जोश कन्यापक्ष के घर की ओर अग्रसर होने के साथ-साथ बढता है और विज्ञान की भाषा में कहें तो यह कन्यापक्ष की घटती दूरी के उल्टे अनुपात में होता है। अर्थात् जैसे-जैसे कन्या के घर की दूरी घटती है, बाराती का जोश, आत्मसम्मान व नवाबी शान बढती जाती है। बारात जब दरवाजे पर लग जाती है, उस समय बाराती के उपरोक्त गुण चरम पर होते हैं। वह इकलौता शहंशाह होता है, बाकी सभी उसके चरणों की धूल। बारात का सफल समाजवाद यह होता है कि बाराती चाहे जिस स्तर का हो, उसमें नवाबीपन अन्य बारातियों के ठीक बराबर होता है। यहां जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी और सपढ-अपढ के बीच कोई भेदभाव नहीं होता। प्राय: ऐसा भी होता है कि जो कहीं भी बडा नहीं बन पाया, बारात में बन जाता है।

बाराती की भूमिका में आते ही साधारण पुरुष को अपने महापुरुष होने का आभास हो जाता है। जब वह कन्यापक्ष के द्वार पर पहुंचता है तो उसे भान होता है कि वह जिस पुरुष (वर महोदय) के कारण यहां आया है, कन्यापक्ष ने उसे पुरुष मानकर ही इतने पापड बेले हैं। उसे इस द्वार से एक किता कन्या ले जाने योग्य समझा गया है। मैं भी उसी पक्ष का हूं, सो यहां की कन्याओं को दृष्टिविशेष से घूरने और उन पर बदरंग टीका-टिप्पणी करने का मुझे पूरा अधिकार है। आज की तारीख्ा में अपना सर्वोत्तम सूट पहनकर आने से उसकी सुंदरता वैसे ही द्विगुणित हो गई है। आज वह कोटि-कोटि कामदेव की छवि को मात दे रहा है। अब अगर उसे कोई साधारण इंसान समझे तो वह निरे मूर्ख के अलावा कुछ नहीं।

यहां बात केवल अनुभवी बारातियों की हो रही है। बारात संस्था में नया प्रवेश लेने वालों पर ये विशिष्टताएं लागू नहीं होतीं। सच्चे बाराती के दायित्वों को किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता। उसे सिद्ध भी करना होता है कि वह महाप्रतापी, महाबलशाली और महास्वाभिमानी है। बाराती बनते ही उसकी इज्जत दुर्घटना बहुल क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी होती है और जरा सी चूक से इज्जत का चूरमा बन सकता है। शास्त्रीय उपमा उधार लें तो कहा जा सकता है कि उसकी इज्जत कमल के पत्ते पर पडी जल की बूंद के समान होती है। एहतियातन उसे जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलना होता है। अत: कौन सा बाराती कब, किस बात पर अपने सम्मान की सुरक्षा में आक्रामक हो जाए, कहा नहीं जा सकता। उसकी आक्रामकता को गलत नहीं ठहराया जा सकता। जिस सम्मान के लिए वह बारात आया, वही चला जाए तो आने का लाभ क्या?

समस्या यह है कि उसे अपनी इज्जत बचानी ही नहीं, बढानी और जमानी भी है। इसके लिए बडा दिखना जरूरी होता है। बडा यानी कि शक्तिशाली, धनवान व उच्च जीवनशैली जीने वाला। धनवान दिखने के लिए सचमुच का धनवान होना जरूरी नहीं होता। धनवान होने का स्वांग करके भी काम चल सकता है। सूट-टाई के अलावा एक नग सोने की मोटी चेन की दरकार होती है। ध्यान रहे, जैसे भी हो चेन को सूट, सफारी या लकदक फैंसी कुर्ते के ऊपर रखना है। आगे करना यह है कि किसी कमजोर बैरे टाइप कर्मचारी से किसी बहाने भिड जाना है। इससे अच्छी ख्ाासी भीड जमा हो जाएगी और रुतबा बढ जाएगा। आक्रमण एक कमजोर आदमी पर हुआ, इसलिए सभी आपके पक्ष में खडे मिलेंगे और निर्णय यह होगा कि उसे और मारना चाहिए था। अगर आप में वाकई थोडा दम हो तो झगडा कन्यापक्ष के किसी रिश्तेदार से करें। अटेंशन ज्य़ादा मिलेगी।

बाराती को भोजन में फिस्स निकालने का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। वह चाहे तो किसी अंतरराष्ट्रीय शेफ की सीधी निगरानी में बने भोजन की निंदा कर सकता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह उच्च प्रजाति का खवैया है। ये तो इसकी महानता है कि ऐसी छोटी-मोटी शादी में चला आया, वरना बारात ले जाने के लिए लोग इसके तलवे चाटते हैं। इस प्रकार का बाराती जानता है कि कब, कहां और किसमें मीन-मेख निकाली जाए। वह संतोष करके बैठ जाने वाला प्राणी नहीं होता। मेन्यू की सूची कितनी भी लंबी क्यों न हो, स्टालों की संख्या भले ही हजारों में हो, उच्च क्षमतावान बाराती ऐसे व्यंजन का नाम ढूंढ ही लेता है जो वहां उपलब्ध न हो। उस दिन उसे वही व्यंजन की तलब होती है। ऐसे लोग न हों तो कैटरिंग वाले अति आत्मविश्वास के शिकार हो जाएं।

बारात का सामूहिक चरित्र इसके वैयक्तिक चरित्र से कम गरिमामय नहीं होता। बारात ही संभवत: एकमात्र समूह है जिसमें सामाजिक समानता गहराई तक पैठी होती है। बारात को बडे से बडा राजमार्ग घेरकर चलने, यातायात बाधित करने और यातायातियों को भी बलपूर्वक अपना नाच दिखाने का अधिकार है। अभी तक पुलिस की मजाल नहीं कि बारातियों द्वारा लूटा गया राजमार्ग राहगीरों को वापस दिला सके। समूह में शक्ति होती है और यह शक्ति हर बाराती बडी शिद्दत से महसूस करता है। बारातियों के नृत्यमार्ग में कोई बाधा उत्पन्न करे और वह हाथापाई से पुरस्कृत न हो, यह संभव नहीं। ऐसे समय रणबांकुरों के साथ-साथ अवसादग्रस्त बाराती भी दो-चार घूंसे-थप्पड चलाने का सुअवसर प्राप्त कर लेता है। इसे गंभीरतापूर्वक नहीं लेना चाहिए। सुख और दुख एक दूसरे के विलोम हैं, दोनों एक ध्रुव पर रह नहीं सकते। सुख लेने के लिए दुख देना ही पडता है और किसी अजनबी या निरीह को मारकर जो सुख मिलता है, वह बडा ही दुर्लभ होता है।

उत्थान के वास्तविक शीर्ष पर बाराती तब पहुंचता है जब वह सुरापान कर चुका होता है। ऊपर बारातियों में जितने भी गुणों की अनिवार्यता बताई गई है, वे सब दारू पीते ही स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं। पिए बिना 'बारात रस का प्रादुर्भाव ही नहीं हो सकता। 'बारात रस में वीर रस, मदहोश रस, कुदृष्टि रस, उत्पात रस और घमंड रस आदि न जाने कितने रस मिले होते हैं। इन सबकी उत्पत्ति और अभिव्यक्ति सोमपान के बाद सहज रूप से हो जाती है। जिस बारात में दारू की नदियां न बह रही हों, वहां बाराती शिकायत की नदियां बहा देते हैं।

बारात जीवन में खुशियां लेकर आती है और जीवन की एकरसता से मुक्ति दिलाती है। हर प्रकार के आनंद का अवसर प्रदान करती है बारात। बुढापे में बचपन लौटाती है बारात, क्योंकि उद्दंडता के बगैर बचपन आ नहीं सकता और बारात के बिना उद्दंडता नहीं आ सकती। यह वह व्यवस्था है जिसमें लोकतंत्र प्रथा को धता बताते हुए कोई भी चक्रवर्ती सम्राट होने का एहसास पाल सकता है।

क्योंकि विवाह की तात्कालिक व्यवस्था में समय अधिक नहीं मिलता और बाराती को लगभग दो घंटे के संक्षिप्त काल में सिक्का जमाकर घर वापस आना होता है। सो, एक सफल बाराती की पहचान स्थापित करने हेतु जो भी करना हो, जल्दी करना चाहिए। समय जाते देर नहीं लगती। इससे पहले कि वापसी का अवसाद हावी हो और पुंसत्च का जुनून उतर जाए, बाराती होने का प्रमाण दे देना ही ठीक होगा।

हरिशंकर राढी


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