कंगन
कभी-कभी अपनी गलती छिपाने की खातिर लोग किसी निर्दोष और कमजोर व्यक्ति पर दोष मढ़ देते हैं। उन्हें लगता है, गरीब व्यक्ति पैसे की ताकत के आगे हार जाएगा। गहनों की शौकीन सविता के साथ ऐसा ही हुआ। कर्ज से बचने के लिए उन्होंने जो किया, वह इंसानियत के खिलाफ था..।
पेरिस के एक डिपार्टमेंटल स्टोर में खरीदारी कर रही थी कि किसी ने पुकारा, नलिनी जी.. विदेश में अपना नाम सुन कर मैं चौंक पडी। पलट कर देखा तो अधेड उम्र की एक स्त्री खडी थी।
पहचाना?
पांच सेकंड लगे पहचानने में.., फिर हंसते हुए मैंने कहा, अरे मिनी शेरगिल! सविता मिगलानी की खास फ्रेंड?
बिलकुल सही। तुम यहां कैसे?
मेरे हज्बैंड एक असाइनमेंट पर आए हैं। करीब डेढ साल से यहीं हैं हम। आप पेरिस घूमने आई हैं?
नहीं, हम तो दो साल से यहां हैं। मिस्टर शेरगिल की कंपनी ने भेजा है उन्हें।
अच्छा, मगर सविता जी ने तो कभी बताया ही नहीं कि आप यहां हैं, वर्ना आपसे पहले ही मिल लेती।
तभी उन्होंने घडी देखी, मुझे अभी कहीं पहुंचना है। तुम लोग आओ इस संडे। तभी गपशप करेंगे। उन्होंने पर्स से अपना कार्ड निकाल कर मुझे थमा दिया, मैं इंतजार करूंगी। शाम 6 बजे तक आ जाना। डिनर करेंगे साथ में, फोन कर लेना..।
मैं कुछ कह पाती, उससे पहले ही वह चली गई। कार्ड पर नजर डाली। दो नंबर दिए थे। मिनी शेरगिल से मैं सविता जी के घर पर ही मिली थी। सविता जी और मैं दिल्ली में आमने-सामने रहते थे। उम्र में वह मुझसे बडी थीं। खास दोस्ती नहीं थी, पर पडोसी होने के नाते संबंध ठीक-ठाक थे।
सविता जी के पति निखिल मिगलानी का बिजनेस था मार्बल का। वैसे तो कॉलोनी के सभी घर एक से थे, पर उनका फ्लैट अलग नजर आता था। दीवारों और छत को छोड कर बाकी सब उन्होंने बदलवा दिया था। बाहर सफेद संगमरमर पर रंगीन पत्थरों के डिजाइन थे। अंदर की सजावट शानदार थी। संगमरमर और ग्रेनाइट के फर्श थे, पैटर्न वाली दीवारें, टीक का वुडवर्क..। एंटीक सामानों की भरमार थी। जाने-माने पेंटर्स की ओरिजिनल पेंटिंग्स थीं। सविता जी का एक ही बेटा था। वह सुबह नौकरी पर निकलता तो रात में ही लौटता। मिगलानी साहब भी अकसर टूर पर रहते। घर में ज्यादा काम नहीं था। सविता अपना समय किटी पार्टीज में गुजारतीं। वे तीन किटी पार्टियों की मेंबर थीं। मुझसे भी उन्होंने कई बार मेंबर बनने के लिए कहा, लेकिन मुझे घर से ही फुर्सत नहीं थी। हालांकि जब कभी वे पार्टी देतीं तो मुझे जरूर बुलाती थीं। ताश खेलने बुलातीं, मैं कभी-कभार चली जाती। मैंने देखा कि सविता जी की कार्ड पार्टी में हार-जीत हजारों में चली जाती थी। हमें बचपन में बताया गया था कि ताश करे नाश..और मैं शौकिया भी इस खेल में शामिल न होती।
सविता जी की खास सहेली थीं मिनी शेरगिल। किटी और ताश पार्टियों में आती थीं वह। उनका ज्यूलरी बिजनेस था। किटी पार्टीज की सारी मेंबर्स से उनका लेन-देन चलता था। सविता जी खर्चीली थीं। हीरे व कुंदन की ज्यूलरी उन्हें बहुत पसंद थी।
मिनी से आखिरी बार मैं सविता जी के घर पर न्यू ईयर पार्टी में मिली थी। पार्टी में करीब 30-40 लोग थे। मिगलानी जी के दोस्तों के अलावा सविता जी का पूरा गैंग था। मैं और मेरे पति आलोक भी थे। कैटरिंग एक फाइव रेटिंग होटल से कराई गई थी। ड्रिंक्स व वेस्टर्न म्यूजिक ने समा बांध दिया था। कुछ लोग थिरक रहे थे। रात बारह बजे शेंपेन खोली गई। खाना खाया गया। हम तो पार्टी खत्म होने से पहले ही करीब एक बजे घर आ गए थे।
अगले दिन देर से आंख खुली। सुबह का नौ बज रहा था। बाहर अखबार लेने गई तो देखा कि सविता जी के घर के बाहर पुलिस की जिप्सी खडी थी। मैं दौड कर अंदर आई आलोक को बताने। वे सो रहे थे। उन्हें झकझोरा, उठो, उठो..। देखो तो सविता जी के घर पर पुलिस आई है।
पुलिस? ऐसे ही आई होगी रुटीन पूछताछ के लिए.. कहते हुए उन्होंने करवट बदल ली। मैं फिर बाहर आई। देखा जिप्सी नहीं थी। थोडी देर में काम वाली बाई आई तो मैंने उसे पकडा, वहां पुलिस क्या कर रही थी?
चोरी हो गई कल रात..
कल रात चोरी हो गई? रात एक बजे तक तो हम वहीं थे। बाकी लोग तो दो बजे के बाद ही गए होंगे। फिर चोरी कब हो गई?
पता नहीं, कोई कह रहा था कि मेमसाहब के गहने चोरी हो गए हैं, कहती हुई वह रसोई में चली गई।
गहने चोरी हो गए? समझ में नहीं आया। मैंने सोचा वहीं जाकर पता करूं। सविता जी अपने ड्राइंगरूम में परेशान होकर बैठी थीं। मैं उनके पास जाकर बैठ गई, रात दो बजे तक पार्टी चल रही थी फिर चोरी कब हो गई?
अरे, रामकिशन ने हाथ साफ किया है..
कौन रामकिशन?
वही कपडे इस्तरी करने वाला..
वह रात में कहां से आ गया?
चोरी सुबह हुई। सबके जाने के बाद मैं बहुत थक गई थी। सोने की जल्दी में कंगन उतार कर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिए। सोचा, सुबह अलमारी में रख दूंगी, मगर भूल गई। सुबह दस बजे के आसपास याद आया तो ढूंढना शुरू किया। सब जगह देख लिया, कहीं नहीं मिले कंगन। समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे बेडरूम से कंगन कौन ले जा सकता है। तब खयाल आया कि सुबह रामकिशन आता है कपडे धुलाई और इस्तरी के लिए। उसी की नजर कंगनों पर पडी होगी।
..सविता जी आगे बताने लगीं, रामकिशन को बुलाया था। उससे पूछा, मगर वह साफ मुकर गया। इन्होंने भी पूछा। पहले प्यार से, फिर धमकाया। पुलिस को बुलाने की बात की, पर वह टस से मस नहीं हुआ। एक ही रट लगाए था कि उसने तो कंगन देखे ही नहीं। इन्हें गुस्सा आ गया। ये पुलिस को फोन करने लगे। मैंने बहुत मना किया कि पुलिस का चक्कर छोडो, पर ये नहीं माने। बोले, इसने चोरी की है तो सजा मिलनी ही चाहिए। पुलिस खाल उधेडेगी, तभी यह सच उगलेगा। मेरी बात इन्होंने नहीं सुनी और पुलिस को बुला लिया। पुलिस ले गई उसे।
मुझे थोडा बुरा लगा। बोली, पर रामकिशन तो बहुत सीधा-सादा दिखता है।
अब किसी के माथे पर तो लिखा नहीं होता है। सीधे दिखने वाले भी बडे घाघ होते हैं।
बडा बुरा हुआ। साल शुरू भी नहीं हुआ, मुसीबत पहले आ गई..
घर लौट कर मैंने आलोक को बताया। वे भी बोले, मुझे तो रामकिशन सही लगता है। मेरे पैसे तो उसने वापस कर दिए थे। लेकिन किसी के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
..पिछले महीने की ही बात है। इस्तरी के लिए रामकिशन को कपडे दिए थे। थोडी ही देर में आया और दो हजार रुपये मुझे पकडा दिए, यह कहते हुए कि साहब की जेब में पडे थे..धुल भी गए और सूख भी गए..।
ओह, मैं ही निकालना भूल गई.., मैने रुपये ले लिए।
देख लिया करें मैडम। इंसान हूं, पता नहीं कब नीयत बिगड जाए, वह हंसते हुए बोला।
इस घटना के बाद रामकिशन की चिंता हो गई। असल में वह मेरे ही जिले का था। उससे कुछ लगाव सा हो गया था। उसकी पत्नी मेरे छोटे-मोटे काम कर दिया करती थी। कभी पैसों की जरूरत होती तो मुझसे मांग लेती थी। देर-सबेर लौटा भी देती। बाहर जाकर देखा तो रामकिशन जहां इस्तरी करता था, वहां खोखा बंद था।
शाम को फिर से सविता जी से मिलने गई। मिगलानी साहब भी बैठे थे। मुझे देखते ही बोलीं, रामकिशन तो साफ मुकर गया। पता नहीं, कैसी खाल है उसकी, कबूला ही नहीं। इतनी धुनाई हुई, लेकिन बोलता रहा कि नहीं चुराए हैं। अब कॉलोनी से इसका खोखा हटाना ही होगा..।
अगले दिन रामकिशन कपडे लेने आया। मैं कुछ पूछती, इससे पहले वही बोला, कल का किस्सा तो आपको पता ही होगा।
हां, पुलिस ने छोड दिया तुम्हें?
कल रात ही छोड दिया था..। पूछताछ की, धमकाया और मारा। लेकिन जब मैंने कंगन चुराए ही नहीं तो कैसे कबूल करता। मेरी झुग्गी की तलाशी ली, कुछ नहीं मिला। आसपास लोगों के घर जाकर भी मेरे बारे में पूछताछ की। सभी ने कहा कि अब तक तो रामकिशन ने ऐसा कुछ नहीं किया है। शाम तक थाने में बिठाए रखा। फिर कहा, घर जाओ, जरूरत पडेगी तो बुला लेंगे..।
इतना कहते हुए रामकिशन ने अपनी लाल हथेलियां सामने कीं, जिन पर बेंत के निशान पडे थे। बोला, निशान तो थोडे दिन में ठीक हो जाएंगे मैडम, लेकिन जो बदनामी हुई है, वह कैसे धुलेगी। अच्छा है, यहां कोई मेरे गांव का नहीं है, वर्ना घर वालों के आगे मुंह दिखाने लायक न रहता।
..धीरे-धीरे कंगन चोरी की बात सभी भूल गए। मामला रफा-दफा हो गया। अजीब बात यह थी कि सविता जी भी रामकिशन से कपडे धुलवातीं और प्रेस कराती रहीं..।
खैर इस वाकये के बाद सविता जी के घर पर महीनों तक पार्टी नहीं हुई। इसी बीच आलोक को पेरिस का असाइनमेंट मिला। तब से हम यहीं हैं। मिनी भी नहीं मिली और सविता जी से भी हालचाल न मिला। आज अचानक मिनी से मुलाकात हो गई तो मुझे बडी खुशी हुई। विदेश में अपनी जान-पहचान का कोई मिल जाए तो बडी खुशी होती है।
..हम ठीक समय पर मिनी के घर पहुंच गए। मिनी और शेरगिल साहब दोनों ने गर्मजोशी से स्वागत किया। मिनी कुछ देर हमारे साथ बैठ कर किचन की ओर गई। आलोक और शेरगिल साहब बातें करने लगे। थोडी देर में मिनी ड्रिंक्स और स्नैक्स लेकर आई। बातें शुरू हुई तो मैंने पूछा, आखिरी बार आपसे सविता जी के घर पर न्यू ईयर पार्टी में ही मिली थी। उसके बाद आप दिखी नहीं।
दिखती कैसे? पार्टी के दो दिन बाद ही तो हम यहां आ गए थे।
इसके बाद तो पार्टीज बंद ही हो गई.., मैं बोली।
लेकिन क्यों?
सविता जी ने बताया नहीं आपको? उनके कंगन चोरी हो गए थे पार्टी वाले दिन..।
मेरी बात पूरी होने से पहले ही मिनी बोलीं, कंगन चोरी हो गए?
मैंने सविता जी के कंगन खोने वाला किस्सा मिनी को सुना डाला।
लेकिन कौन से कंगन चोरी हुए?
कुंदन वाले, जो पार्टी में पहनी थीं वह।
वे कंगन? मिनी ने आश्चर्य जताते हुए कहा और तुरंत बेडरूम में चली गई। थोडी देर में लौटीं तो उनके हाथ में ठीक वैसे ही कंगन थे, जो सविता जी ने पार्टी वाली रात पहने थे। बोलीं, आपको तो पता है कि हम हर बुधवार सविता के घर कार्ड खेलते थे। हमारी चालें कई बार हजारों तक पहुंचती थीं। सविता मुझसे हारी थी। उस पर 50-60 हजार का उधार था।
लेकिन कैसे?
सविता मुझसे ज्यूलरी खरीदती थी। एक बार उसने सोने का सेट खरीदा। शुरू में समय पर किस्तें देती थी, फिर मुकरने लगी। दोस्ती के नाते मैं भी जोर नहीं दे सकी। मगर जब यहां आने का समय आया तो मुझे पैसे की जरूरत पडी। मैं ज्यूलर ी बिजनेस समेटने लगी। मुझे दुकानदारों का बकाया पैसा लौटाना था। पैसे वापस कैसे करती सविता, क्योंकि मिगलानी साहब को बता नहीं सकती थी। उन्हें मालूम ही नहीं था कि वह पत्ते खेलती है और किस्तों पर ज्यूलरी खरीदती है। मैंने सविता पर प्रेशर बनाए रखा, ताकि मेरे जाने से पहले वह कुछ पैसा तो लौटा दे। छोड देती तो मुझे वह पैसा कभी न मिलता..। खैर, न्यू इयर पार्टी से पहले मैंने उसे अंतिम चेतावनी दे दी थी कि वह पैसा लौटा दे। पार्टी खत्म भी हो गई, मगर सविता मुझसे कटी-कटी रही। लोगों के जाने के बाद मैंने सविता को पैसे के बारे में याद दिलाया। मैंने सविता से कहा कि मैं इस बारे में मिगलानी जी को बता दूंगी तो वह घबरा गई। उसने तुरंत अपने कंगन उतारे और बोली, अभी ये रख लो, बाद में बाकी पैसे का इंतजाम कर लूंगी..।
मिनी की बातें सुन कर मेरी धडकनें बढ रही थीं..। वह एक रौ में बोल रही थी, खैर, भागते भूत की लंगोटी भली..। मैंने कंगन ले लिए। अगले दिन मैंने सविता को फोन किया, पर उसने उठाया नहीं। यहां आने के बाद भी कई बार उसका नंबर डायल किया, पर बात नहीं हो सकी। ..तो ये कंगन सविता जी के हैं? मेरी आंखें विस्मय से फटी जा रही थीं।
हां, और मुझे तो अभी पता चला है कि सविता ने चोरी की कहानी गढ दी। कमाल कर दिया उसने। मगर वह करती भी क्या? कोई बहाना तो बनाना था..।
..पूरी बातचीत में मेरी आंखों के आगे तो बस रामकिशन का चेहरा घूम रहा था, जिसे झूठे आरोप की खातिर शर्मिदगी उठानी पडी। मेरे मन में उसके प्रति दया उमड आई थी। तभी मिस्टर शेरगिल बोले, अरे छोडिए भी, ऐसी बातों से आप अपनी शाम क्यों खराब कर रही हैं? कंगन चोरी से हमें क्या लेना-देना। चलिए चाय पिलाइए मिनी जी..।
मिनी रसोई में चली गई। लेकिन मेरा मन परेशान हो उठा। जी में आ रहा था कि जोर से चीखूं कि रामकिशन चोर नहीं है। लेकिन बाहर से इतना ही कह पाई, आलोक प्लीज अब घर चलो।
आलोक धीरे से बोले, बस, चलते हैं।
तभी मिनी आ गई। मेरा उतरा चेहरा देख कर बोली, अब मूड ठीक करो और चलो, चाय पी लो। हंसते हुए उन्होंने चाय और कटलेट्स की ट्रे मेरे आगे रख दी। मगर, पता नहीं क्यों मुझे ट्रे में रामकिशन की बेंत की मार से सूजी हुई हथेलियां नजर आ रही थीं..।
रश्मि स्वरूप जौहरी