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भ्रम

कई बार भ्रम इतना बढ़ता है कि वह सच साबित होने लगता है, लेकिन कभी-कभी इसका उल्टा भी होता है। हम सच को स्वीकारने की हालत में नहीं होते और सोचते हैं कि काश वह भ्रम साबित हो। हकीका तो एक दिन सामने आती ही है और जब भ्रम के बादल छंटते हैं तो..!

By Edited By: Published: Tue, 26 Jun 2012 02:41 PM (IST)Updated: Tue, 26 Jun 2012 02:41 PM (IST)
भ्रम

हां रख दिया वो पीतल का जालीदार डिब्बा? इस सफेद कांजीवरम पर मां का दिया रानीहार कितना फबेगा! लॉकेट पर लगे छोटे-छोटे नग साडी के बॉर्डर से खूब मेल खाएंगे। अभी इंदौर जाते समय ही तो मैंने उस डिब्बे में से अपने हीरे के टॉप्स और पेंडेंट निकाले थे। तभी हडबडी में कहीं रख दिया होगा ।

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अब कहां ढूंढूं..? सारी अलमारी छान मारी। एक बार लकडी का संदूक भी देख लूं। उस दिन जाते समय वेद जी के लिए चेन और अंगूठी इसी में से निकाली थी। हाय राम! ये नीला मखमली डिब्बा खाली कैसे है? इसमें तो मेरा पोल्की का सेट था। क्या मैंने उस दिन इस संदूक से भी जेवर निकाले थे?

अब कितनी देर लगेगी तुम्हें तैयार होने में? हमें देर हो रही है राधा। मैं कार निकालता हूं, तुम फटाफट ताला लगाओ, कह कर वेद जी कार की चाभी लेकर चले गए। मैंने झट अलमारी से हैदराबादी मोती का सेट निकाला और ताला लगा कर बाहर आ गई। पूरे समारोह में मैं बस तन से ही उपस्थित रही, मन तो पीतल के जालीदार डिब्बे में ही रमा था। आखिर कहां रख दिया मैंने? कल वेद जी के ऑफिस जाने के बाद सबसे पहले अपनी अलमारी ठीक करूंगी। जल्दबाजी में सामान इधर-उधर रख दिया जाता है फिर मिलता नहीं है। अभी इन्हें बताना भी ठीक नहीं होगा, व्यर्थ ही मन आशंकाओं से भर जाता है।

समारोह से लौटते-लौटते काफी रात बीत चुकी थी। नींद कहां आनी थी। अगले दिन भी तलाश शुरू हुई। अलमारी, लकडी का संदूक, रसोई में दालों के डिब्बे.., सब छान मारे, पर खोज खत्म न हुई। घर की हर उस जगह से चोर वाकिफ था, जहां मैं असली और कीमती गहने रखती थी। नजदीक ही रखे नकली गहने जस के तस धरे थे। मैं बेहद सदमे की स्थिति में थी। उस वक्त कैसे, क्या और कब जैसी बातें सोचना मेरे बस में नहीं था। घर का बहुत सारा कीमती सामान मुझे नहीं मिल रहा था या फिर वह अपने स्थान से नदारद था। कितना सामान तो ऐसा था जो नजरों के सामने रहते हुए भी नहीं दिखाई दे रहा था। मैं पूरे घर में बदहवास घूम रही थी। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरा दिल चोरी की आशंका को जैसे सिरे से नकार रहा था। ऐसे कैसे हो सकता है? कहीं कोई उथल-पुथल नहीं, कोई बिखराव नहीं, घर का सारा सामान अपनी जगह सुव्यवस्थित रखा हुआ। सिर्फ कुछ चीजें अपनी जगह से नदारद हों तो उसे चोरी कैसे कह सकते हैं भला? लेकिन इससे तो शक अपने ऊपर ही जाएगा न? भला चोर ने इतनी आसानी से सिर्फ गहने ही कैसे चुरा लिए, जिन्हें मैंने हिफाजत से सुरक्षित स्थान पर रखा था!

आशंकाओं को परे रखते हुए मैंने वेद जी को फोन लगाया। स्वर पर नियंत्रण पाना बेहद कठिन, लेकिन जरूरी था।

क्या आज आप जल्दी घर आ सकते हैं?

क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है न घर में?

सब ठीक है, कई दिन से लॉन में साथ बैठ कर चाय नहीं पी, सोचा आज साथ बैठते हैं।

हां-हां, क्यों नहीं, वैसे भी आज जल्दी घर आने का मन हो रहा है। घंटे भर में आता हूं। वेद जी ने फोन रख दिया था। ये वार्तालाप मन के तपते रेगिस्तान में शीतल फुहारों सा लगा। नई आशाओं के अंकुर फूटने लगे। सारे देवी-देवताओं से बार-बार मनाती कि हे भगवान! आज का दिन भ्रम साबित हो। सारी चीजें किसी भी तरह मिल जाएं।

ऐसी स्थिति में हम अकसर कबूतर की तरह आंख बंद कर बैठना पसंद करते हैं। ये जानते हुए भी कि घर में चोरी हो चुकी है, मैं उसे स्वीकार कर पाने की स्थिति में नहीं थी। दरअसल वेद जी के आने के बाद ही मुझे होश आया। जिसे मैं अब तक नकारने की कोशिश कर रही थी, वही दानव सच का रूप लेकर मेरे सामने खडा था। मेरे कीमती गहनों के साथ ही वह नीला पर्स भी गायब था जिसमें पिछले महीने तुडाई गई एफ.डी. की रकम रखी थी। यहां तक कि रोजमर्रा के खर्च वाला पर्स भी गायब था। चार दिन बाद दिवाली आने वाली है। हम दोनों के लिए तो यह काफी खर्चीला त्योहार होता है। चारों बेटी-दामाद आते हैं। कितने शौक से उनके आने की तैयारियां कर रही थी। छोटी की शादी के बाद पहली बार सारा परिवार इकट्ठा होने वाला है। कितने दिनों से बच्चों की किलकारी और कहकहों की गूंज सुनने को मन तरस रहा है। इन पलों को मुट्ठी में बांध लूंगी, यही सोच कर जरूरत से ज्यादा पैसे निकाल लाई थी बैंक से। एफ.डी. की रकम दिवाली के अवसर पर हम चारों बेटियों में बांटना चाहते थे। लेकिन किसी के नापाक इरादों ने हमारी रोशन उम्मीदों पर अमावस्या की कालिख पोत दी।

अब सिर्फ एक ही सवाल हमारे दिमाग में, इको पॉइंट से बार-बार लौटती आवाजों की तरह आ रहा था कि आखिर कौन हो सकता है यह शख्स? घर का कोई सामान गायब नहीं था, न बिखेरा गया था, चोरों ने अधिकतर सामान को तो छुआ भी नहीं था। यदि वह अजनबी था तो उसे घर के असली ठिकानों के बारे में कैसे पता चला? वर्षो पुरानी वफादार, बूढी कामवाली बाई से वफादारी का तमगा छीनना हमारी शालीनता के दायरे से बाहर था। चारों बेटियों की शादियों में मेरे कंधे से कंधा मिला कर मेरी जिम्मेदारियां बांटी थीं बारुबाई ने। मेरी बेटियों को सदा दाई मां का सा स्नेह दिया उसने। बेटियों ने भी उसकी इज्जत में कभी कोई कमी नहीं रखी। उनके आने की खबर सुन कर वह भावविह्वल हो रही थी। ऐसे में उस पर चोरी का भयानक आरोप भला हम कैसे लगा सकते थे? ये काम बारुबाई का था ही नहीं। इसलिए सोच का दायरा आगे बढाया गया। इस वक्त सबसे जरूरी था कि किसे कितना बताया जाए? बेटियां, उनकी ससुराल वाले, रिश्तेदार, पडोसी, मित्र, रोज मिलने-जुलने वाले लोग, नौकर वर्ग और पुलिस। वेद जी पहले अपने स्तर पर पूरी तहकीकात कर लेना चाहते थे। इसलिए सारी रात बैठ कर हमने नदारद गहनों की लिस्ट बनाई, पैसों की रकम जोडी। सारा खाका तैयार करते-करते मेरी आंखों से गंगा-जमुना बहने लगी।

किसी का क्या बिगाडा था हमने? शांति से जीवनयापन करते हुए जीवन के ढेरों बसंत पार कर लिए थे। चारों बेटियों को पढा-लिखा कर, भले घरों में उनकी शादी कर दी थी। दो साल पहले की ही बात है, तीसरे नंबर के दामाद राजेश्वर को व्यापार में अचानक नुकसान झेलना पडा। नताशा और राजेश्वर की हालत सडक पर आने जैसी हो गई। पर उन्होंने इसका पता भी न लगने दिया। वह तो भला हो किरण चाची का, जो महाकाल के दर्शन के लिए मेरे घर आ टिकीं। वह नताशा की शादी में आ नहीं पाई थीं सो दर्शन के बाद जिद पकड ली कि नताशा से मिल कर ही जाएंगी। चाची को लेकर जब हम नताशा से मिलने गए, तब असलियत का पता चला। उनकी हालत देख कर हाथ अनायास ही बच्चों की बहादुरी को सलाम करने उठ गए। उस वक्त राजेश्वर को दोबारा व्यापार शुरू करने के लिए हमने कोई कसर नहीं की। हालांकि मैं कभी-कभी हाथ खींचने की कोशिश भी करती, लेकिन वेद जी यह कह कर संभाल लेते, परेशान क्यों होती हो? क्या नताशा की खुशियों से बढ कर हमारे लिए कुछ और है?

ऐसी कोई बात नहीं है जी, लेकिन हमारी छोटी बेटी भी है, हम उसकी जिम्मेदारियों से हाथ नहीं खींच सकते। उसकी भी शादी करनी है..। मेरे स्वर की तल्खी वेद जी से छुप न पाती। इससे पहले कि वे कुछ कहें, चाय की टेबल छोडते हुए मुंह से अनायास निकला, एक के लिए हम बाकी तीनों को परे नहीं रख सकते। हमें अपना बुढापा भी तो संभालना है। ऐसे ही लुटाते रहे तो वे दिन दूर नहीं, जब हमें बुढापा बेटियों के सहारे गुजारना होगा।

मैं राजेश्वर को दामाद कम, बेटा ज्यादा मानता हूं। इसलिए उसके लिए कुछ भी करने में मुझे खुशी मिलती है। ये भी मत भूलो श्रीमतीजी कि अभी मुझे रिटायर होने में पूरे चार साल बाकी हैं। चिंता मत करो, छोटी की शादी में तुम्हारा हाथ नहीं रोकूंगा। एक बात और, बुढापे की चिंता करके उसे डरावना न बनाएं। ये सब आप मुझ पर छोड दें। घर का फाइनेंस मिनिस्टर तो मैं ही हूं। आप तो बस अपनी बागवानी और संगीत पर ध्यान दें। क्या कमाल गाती हैं आप, वाह! वेद जी की आंखों में शरारत उतर आती।

कितना गलत नाम है आपका! दरअसल आपका नाम मक्खनलाल होना चाहिए था। सारा गुस्सा हवा हो जाता और मैं मुस्कराती हुई निश्चिंत हो जाती।

..धीरे-धीरे समय बीतता गया।

कुछ ही महीनों बाद छोटी की भी शादी हो गई। चारों बेटियों के जाने के बाद हमारी जिंदगी ढर्रे पर चलने लगी। लेकिन अब इस सेंधमारी ने हमें हिला कर रख दिया। रात के तीन बज रहे थे लेकिन हमारी बूढी आंखों में नींद का दूर-दूर तक पता न था। इतना तय हो चुका था कि ये काम किसी जानकार का ही है। उसे पता था कि कौन सा गहना कितनी कीमत का है, गणपति की विशाल मूर्ति के नीचे बडे यत्न से छिपाई गिन्नियों की मटमैली पोटली, मां का दिया चांदी का टी सेट, एफ.डी. की रकम वाला बटुआ। ये वे चीजें थीं जिनके ठिकाने सिर्फ मैं और वेद जी ही जानते थे। पर अब किसी और को भी इनकी जानकारी थी। चोर को जानकारी सिर्फ सामान ही नहीं, सामान तक पहुंचने की भी थी। लकडी के संदूक की चाबी मैं हमेशा आटे के कनस्तर के नीचे रखती हूं और अलमारी की चाबी भगवान के मंदिर की दराज में रहती है। यह क्रम पिछले पचास साल से नहीं टूटा।

अब एक और चाबी रहती है घर के मेन डोर की। जब कभी हम घर से बाहर जाते हैं, एक चाबी मेरे पर्स में रहती है और डुप्लीकेट चाबी बरामदे में रखे गमलों में से तीसरे गमले के नीचे रहती थी। वर्षो पूर्व इस चाबी के खो जाने से हमें ताला तुडवाना पडा था। तभी से इन दो चाबियों का क्रम चला आ रहा है। इनके बारे में हमारी चारों बेटियां जानती हैं लेकिन किसी और को इनके बारे में नहीं पता है। आश्चर्य की बात यही है कि तीन दिन पहले ही गमले का क्रम बदला गया था। फिर आखिर ऐसा कौन था जो हमारे घर पर इतनी बारीकी से नजर रखे हुए था!

क्या तुमने किसी से गमले के क्रम के बारे में जिक्र किया था?

नहीं तो! मेरी तो इस मामले में किसी से कोई बात ही नहीं हुई। कहीं आपने तो किसी से.. अरे कैसी बातें करती हो? जिस बात पर इतने साल पर्दा डाले रहा, वह बात अनायास जुबान पर कैसे आ सकती है भला? खैर, चलो जाने दो, मैंने निश्चय कर लिया है कि हम सिर्फ अपनी बेटियों को ही ये बात बताएंगे। किसी और को कुछ बताने की जरूरत नहीं, खास तौर पर पुलिस को तो बिल्कुल ही नहीं..।

मैं प्रश्नवाचक निगाहों से वेद जी को देखने लगी तो वह बोले, देखो, मुझे पता है कि चोर घर का ही है और मैं नहीं चाहता कि पुलिस आए और पूछताछ करे। सबके सामने अपने ही बेटी-दामादों की छीछालेदार करने से क्या मेरी इज्जत में चार चांद लग जाएंगे? वैसे भी, हमारे बाद ये सब इन्हीं बच्चों का है। समय रहते सही दावेदारों के पास पहुंच गया। तुम दिल छोटा मत करो, लक्ष्मी तो सदा चंचला है। आज चली गई तो क्या.. कल फिर आएगी। तुम बस दिवाली की तैयारियों में कोई कमी मत रखना। अच्छा, अब उठो और एक कप बढिया चाय पिलाओ..।

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था। एक-एक करके भ्रम टूट रहे थे। एक गहरे निश्वास के साथ मैं उठ गई..।


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