एहसान तुम्हारा
प्रेम में सफलता-विफलता नहीं हुआ करती। प्रेम सफल होकर भी विफल हो सकता है और विफल होकर भी दिल में धड़कता रह सकता है। शायद इसीलिए कुछ प्रेम कहानियां खत्म होकर भी अपना वजूद नहीं खोतीं। उनकी मधुर यादें जीवन के हर कड़वे पल को सहन करने का साहस और जीने का म़कसद देती हैं।
कहीं जा रही हो? इरा को तैयार होते देख अरव ने यूं ही पूछा..।
हां, कल अर्पिता ने एक डॉक्टर के बारे में बताया था..कह रही थी बहुत टैलेंटेड और अनुभवी हैं। डॉ. सेठ के इलाज से तो कोई फायदा दिख नहीं रहा है, इसलिए सोचा आज दूसरे डॉक्टर.. इरा की बात खत्म भी नहीं हुई थी, मग्ार अरव कमरे से जा चुका था..। इरा के भीतर जैसे कुछ ऐंठ गया। एसिडिटी उसे अकसर परेशान करती थी.. यकायक मानो वह बढ गई थी। उसकी सहेली अर्पिता ने कहा भी, इरा तुम्हारी बीमारी शारीरिक नहीं, मानसिक है। तुम शायद डिप्रेशन में हो। सिरदर्द, नींद न आना, भूख न लगना और सुस्ती..ये सब तुम्हारी मानसिक स्थिति के कारण ही है। डॉक्टरों के चक्कर लगाने से अच्छा है अरव के साथ इत्मीनान से बैठ कर बात करो, उससे अपनी समस्याएं और फीलिंग्स शेयर करो..।
मगर जिसके पास एक बात तक सुनने का समय नहीं, उसके सामने कैसे हाल-ए-दिल बयान करे और करके फायदा भी क्या..।
इरा यंत्रवत सी तैयार हो रही थी, पर उसका दिमाग्ा हमेशा की तरह उधेडबुन में था..। अर्पिता ने एक दिन कहा था, तुम जैसी एक्स्ट्रा सपोर्टिव बीवियां खुद अपना बेडा गर्क कर बैठती हैं। शुरू से पतिदेव पर कुछ तो पूछताछ, सवालात, धमकियों और ग्ाुस्से की लगाम रखनी चाहिए। उसे मालूम होना चाहिए कि उसका ज्ारूरत से ज्यादा ऑफिस में रहना, अति-व्यस्तता, बीवी को नज्ारअंदाज्ा करना और समय न देना उसे भारी भी पड सकता है। मगर तुम तो हमेशा जी-हुज्ाूरी करती रही, उसे ढील देती रही और वह तुम्हें फॉरग्रांटेड लेकर अपनी लाइफ में मस्त हो गया।
सुनो, ऑफिस जाते हुए मुझे सिटी हॉस्पिटल छोड देना.., अर्पिता की बात याद कर इरा ने थोडा आदेशात्मक स्वर में कहा।
सॉरी, मैं पहले ही लेट हूं। सिटी हॉस्पिटल जाने में 15-20 मिनट और लग जाएंगे.., कहते हुए अरव घर से बाहर चला गया बिना यह देखे कि इरा का चेहरा कितना तमतमा गया है। 24 घंटे के बिज्ाी शेड्यूल में से उसके नाम पर 15 मिनट भी नही हैं अरव के पास..। इरा की सांसें तेज्ा हो चलीं। कितना इम्यून हो चुका है ये आदमी उससे.., जब वह कहती है कि डॉक्टर के पास जा रही है तो पलट कर यह तक नहीं पूछता कि क्या हुआ है.., जब वह कहती है कि मेरा पार्टी में जाने का मन नहीं, तुम चले जाओ तो भी कभी यह नहीं कहता कि तुम नहीं जाओगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा। यहां तक कि जब वह जानबूझ कर देर रात तक काम में उलझ कर बाहर हॉल के सोफे पर ही सो जाती है तो भी कभी..। इरा ने कोरों से टपकने को तैयार बैठे आंसुओं को बरबस थामा। मन तो किया कि फूट-फूट कर रोए, ज्ाोर-ज्ाोर से चिल्लाए, मग्ार क्या फायदा.., जब न आसपास कोई आंसू पोंछने वाला हो और न चीख सुनने वाला..।
उसने बाहर आकर हॉस्पिटल के लिए टैक्सी ली। टैक्सी सडक नापने लगी। रेडियो पर गाना बज रहा था, पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही.. इरा बेचैन हो उठी। आज रेडियो भी उसके दिल की गहरी परतों में छिपी उस अतृप्त, अदम्य इच्छा को बयान कर रहा है जो पिछले कुछ समय से जब-तब नाग की तरह फन फैलाए उठ खडी होती है और उसे छटपटाहट से भर देती है। यही तो अतृप्त चाह है उसकी कि कोई उसे भी प्यार करे.., कोई हो जो उसके साथ के लिए आतुर हो..जिसे उसके सिवा कुछ और न दिखाई दे, न कुछ सूझे। कोई हो जिसे वह कभी अपनी बांहों में जकड कर तो कभी उसके सीने से लग कर भरपूर प्यार करे, जब वह उठ कर जाने लगे तो एक हाथ उसे जबरन खींच कर अपने पास बैठा ले.. कुछ देर और साथ की गुहार लिए। उसके बालों को सहलाते हुए और माथे को चूम कर पूछे कैसी हो? आज क्या किया दिन भर? मेरी याद आई? प्यार..भरपूर प्यार.., उसे बस प्यार चाहिए ..झूठा ही सही..।
इस बार इरा कीअतृप्त कामना आंसू बन कर गालों पर लुढक आई, जिसे उसने बडी सफाई से पोंछ लिया। शादी के शुरुआती दिनों में इस प्यार की चाह में इरा अरव की ओर ताका करती थी, मगर वहां उसे रुटीन की तरह गुज्ारता प्यार मिला जो उससे होकर गुज्ारा तो ज्ारूर, मगर कभी उसे छू नहीं पाया, जो कब आया-कब गया, कुछ पता ही नहीं चला। रूमानी एहसास व संवेदनाओं से रिक्त खोखला मशीनी प्यार। तब वह अकसर सोचा करती थी कि अच्छा होता अगर उसने तीव्र आवेगी प्यार का स्वाद कभी न चखा होता। वह कभी जान ही न पाती कि प्यार अपने वास्तविक और चरम रूप में कितना बलवान होता है। जब घनघोर बारिश की तरह बरसता है तो डुबो देता है या बहा ले जाता है। हाड-मांस के पत्थरों को भी गला कर उनका अस्तित्व विलीन कर देता है। और वे उफ तक नहीं करते। ऐसा ही प्यार उसे कभी किसी से मिला था जो एक विफल प्रेम कहानी में तब्दील होकर रह गया।
जब भी वह अरव की उदासीनता और बेरुखी से घायल होती, उसकी आंखों के आगे गुज्ारी विफल प्रेम कहानी फिर जीवित हो उठती। उसका दिल बेतरह जलने लगता। कभी उसे प्रेमी पर तो कभी खुद की िकस्मत पर ग्ाुस्सा आता। मगर अतीत को लौटाया नहीं जा सकता, वह कभी वर्तमान नहीं बन सकता।
अस्पताल आ गया मैडम, टैक्सी में लगे ब्रेक और ड्राइवर की आवाज्ा सुन कर भावनात्मक तूफानों में हिचकोले खा रही इरा यकायक यथार्थ में लौट आई और टैक्सी छोड कर अपने डॉक्टर के वेटिंग रिसेप्शन पर बैठ गई। उसका नंबर आने में अभी काफी समय था। घर से कुछ खाकर नहीं निकली थी, सोचा एक कप कॉफी ही पी ले। यही सोचती वह उठ कर हॉस्पिटल की कैंटीन में चली गई। कॉफी लेकर बैठने की जगह तलाश ही रही थी कि एक टेबल पर नज्ारें ठहर गई, अरे! ये तो नीलाभ है..नील, यानी उसके अतीत का सबसे सुनहरा पन्ना, जिसके खयाल उसे बार-बार आकर सताते हैं, उसका पहला प्यार और वही इंसान जिसने उसे प्यार के उन हसीन रंगों से परिचित कराया, जिन्हें वह आज तक खोज रही है। ओह! शायद यह इसी अस्पताल में डॉक्टर है। जिस आदमी के बारे में सोच-सोच कर अब तक उसका खून जलता था, आज वह सामने था तो इरा जैसे अपनी तकलीफ और ग्ाुस्से को ही भूल गई। बल्कि उसे देख कर इरा को अच्छा ही लगा। उसके कदम खुद-ब-खुद नीलाभ की ओर बढ चले।
हेलो नील! बरसों बाद इरा को यों अचानक सामने पाकर नीलाभ सकपका सा गया मानो अंतत: कोई चोर पुलिस के हत्थे चढ गया हो। कैसे हो? क्या मैं यहां बैठ सकती हूं? नीलाभ अभी भी सकते में था, जबकि इरा अप्रत्याशित तौर पर सामान्य दिखने की कोशिश कर रही थी। इतने सालों बाद यहां देख कर अच्छा लग रहा है। तुम थोडा बदल गए हो, लेकिन इतने भी नहीं कि पहचान न सकूं, इरा मुस्कराई। उसके सामान्य व्यवहार को देख कर नीलाभ भी थोडा संयत हुआ, तुम भी थोडा बदल गई हो। पहले कितनी चुलबुली, बेिफक्र सी हंसी दौडती रहती थी तुम्हारे चेहरे पर, मगर अब काफी धीर-गंभीर सी भद्र स्त्री नज्ार आ रही हो।
इस बात पर दोनों ही अचानक मुस्करा पडे। चंद औपचारिक बातों का आदान-प्रदान हुआ। जो अध्याय अचानक बिन कहे-बिन सुने ही समाप्त हो गया था, या यों कहें कि नीलाभ ने जानबूझ कर उसे बंद कर दिया था, उस अध्याय तक पहुंचने में दोनों ही थोडा कतरा रहे थे। मगर कब तक बच पाते उस पल से।
जानती हो इरा, हमेशा से दिल में यह डर बना रहा कि अगर किसी दिन िकस्मत ने तुम्हारा सामना करा दिया तो क्या होगा.. तुम्हें कैसे फेस करूंगा..कैसे नज्ारें मिला पाऊंगा, मैने तुम्हें धोखा दिया, अभी तक यह ग्लानि-बोध मुझे बेचैन करता है।
बुरा न मानो तो पूछ सकती हूं कि मुझमें या मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी जो तुमने यूं अचानक मुंह फेर लिया? या फिर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कुछ था ही नहीं और प्यार के नाम पर एक खेल खेल कर..
इरा की बात को बीच में ही काटता हुआ नील बोला, नहीं नहीं इरा..मेरा प्यार खेल नहीं था। जब तक तुम्हारे साथ था, पूरी तरह समर्पित था, मगर जब मेडिकल में चयन हो गया तो बडे शहर के मेडिकल कॉलेज में उन्मुक्त माहौल मिला और उन रंगीनियों ने मेरा दिमाग्ा खराब कर दिया। ऐसा खोया कि तुम्हारा साथ छोटा लगने लगा। मॉडर्न और खुले स्वभाव वाली लडकियों के आगे तुम पिछडी लगने लगी। मैं बहक गया और उसकी सज्ा आज तक भुगत रहा हूं। क्योंकि जिस भी लडकी के संपर्क में आया, उससे तुम्हारी वफा और समर्पण की उम्मीद की। नतीजा? अब तक उस सच्चे प्यार से महरूम भटक रहा हूं, जो कभी तुमसे मिला था।
नीलाभ के चेहरे पर पछतावे व दर्द की लकीरें उभर आई, मुझे यकीन है कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति सिर्फ ग्ाुस्सा भरा होगा। चाहो तो आज उसे निकाल कर अपना मन हल्का कर सकती हो। पता नहीं यह मौका दोबारा मिले भी या नहीं। नीलाभ का स्वर भीगा हुआ था मानो, बरसों पहले किसी बेशकीमती चीज्ा के खोने की टीस अब तक साल रही हो।
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है नील, बल्कि मैं तो हमेशा तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी। कुछ समय के लिए ही सही, तुमने मुझे जीवन के उस सबसे खूबसूरत एहसास का अनुभव कराया जो हर किसी को नसीब नहीं होता। किसी के प्यार में पूरी तरह डूब कर अपने अस्तित्व को खो देने का एहसास। अगर तुम मेरे जीवन में न आए होते तो मैं यही मान बैठती कि जो कुछ और जितना भी मुझे अपने पति से मिल रहा है, बस वही प्यार है और तब शायद मुझे प्यार से नफरत हो जाती। मगर अब विश्वास है कि एक न एक दिन प्यार अपने वास्तविक रूप में मुझ पर ज्ारूर बरसेगा और यह विश्वास मुझे तुम्हारे कारण मिला है, जो मेरे जीवन का सहारा है।
कुछ क्षणों के मौन के बाद इरा उठ खडी हुई, अच्छा चलती हूं, मेरा अपॉइंटमेंट है। इरा चली गई और नीला भ उसे जाते देखता रह गया, रोक न सका। सच ही तो है, कुछ प्रेम कहानियां विफल होकर भी अपना वजूद नहीं खोतीं।