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पंद्रह साल बाद..

इंसान का मन उससे कई खेल खेलता है। कई बार तो अपने ही मन की थाह नहीं ले पाता वह। समझते-बूझते देर हो जाती है, फिर यही कह कर ख़्ाुद को तसल्ली देता है कि जो सामने है-बस वही अपना है। जो नहीं है-दरअसल वह था ही नहीं। स्त्री मन की कई बंद परतें खोलती है यह कहानी।

By Edited By: Published: Sat, 01 Dec 2012 11:04 AM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2012 11:04 AM (IST)
पंद्रह साल बाद..

तीसरी बार डोर बेल बजाने के बाद भी दरवाज्ा न खुला तो मैं चौंकी, क्या बात हो सकती है? कुहू दरवाज्ा  क्यों नहीं खोल रही है? उसी ने तो फोन करके बुलाया था, जूही आज मैं फ्री हूं। उमंग बिज्ानेस टूर पर गए हैं। हम बैठ कर आराम से बातें करेंगे। लंच यहीं करना.., वह फोन पर ही ढेरों बातें करने को आतुर थी।

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आसाम में मेरे परिचित कम हैं। पति के कलीग्स के अलावा बस कुहू ही थी जो मेरी सहेली थी। इंदौर में एक हॉस्टल में हमने तीन साल रूम पार्टनर बन कर बिताए थे। सहेलियां-राज्ादार भी थीं हम। शादी के बाद भी फोन और ख्ातों  के माध्यम से हम जुडे रहे। मेरे पति की पोस्टिंग आसाम हुई तो मुझे तसल्ली हुई कि कुहू यहां है। दरवाज्ा खुला तो कुहू खडी थी। उसके मुस्कराते चेहरे को देख कर मुझे भांपते देर नहीं लगी कि वह बहुत रो चुकी है। उसे देखते ही मैं बोली, कुहू, तुम्हारे पति उमंग सच कहते हैं कि तुम्हारी आंखें रोने के बाद बेहद ख्ाूबसूरत  हो जाती हैं। कुहू की आंखों के कोर भीगे थे। बात बदलती हुई बोली, आओ जूही, देर हो गई। चलो, पहले खाना खाते हैं। मैंने उसका हाथ पकडा, बात क्या है कुहू? अरे कुछ नहीं यार, आज मैंने एक वाइरस को ख्ात्म कर दिया, जो मेरी लाइफ की विंडो को खा रहा था.., बस उसी की पार्टी समझ लो। बात बिंदास  तरीके से शुरू की थी, लेकिन खत्म  करते-करते उसका गला भर आया। मैंने धीरे से पूछा, पराग की बात कर रही हो तुम? उन दोनों के बीच कैसा संबंध था, इससे दोनों ही अनजान थे, लेकिन कुछ ऐसा था, जिसने दोनों को बरसों तक जोडे रखा। कुहू की तो हर बात अनूठी थी। सुंदर नहीं थी, लेकिन ग्ाज्ाब  का चुंबकीय आकर्षण था उसकी बडी-बडी काली आंखों में। जो एक बार देख ले, खो जाए उनमें। शरारती और चंचल थी, बस हंसना-हंसाना...। इसी हंसी-मज्ाक में एक दिन दोपहर में यूं ही फोन घुमाने लगी। एक नंबर लगा तो बोली, हेलो। दूसरी ओर से एक सॉफ्ट  और दिल को छू लेने वाली पुरुष की आवाज्ा  सुनाई दी। (कुहू ने बाद में मुझे उस घटना के बारे में बताया था) कुहू उससे ऐसे बातें करने लगी जैसे पहले से उसे जानती हो। कुछ देर बातें करने के बाद बोली, अच्छा पराग आपसे फिर बातें होंगी। अभी फोन रखती हूं। बाद में वह मेरे पास आई और बोली, यार आज तो मज्ा आ गया। पहली बार किसी लडके से बात की है। तुझे कैसे पता कि वह लडका ही था, तूने शक्ल तो नहीं देखी? मैंने उसे डांट दिया। कुहू बोली, अरे उसने ही तो बताया कि वह वकालत कर रहा है, तो फिर लडका ही हुआ न..।

कुहू पढाई में अच्छी थी, पढती कम थी लेकिन नंबर अच्छे लाती थी। मगर मैं ज्यादा पढने के बाद भी कम मा‌र्क्स लाती थी।

इस घटना के बाद तो पराग से फोन पर बातें करने का सिलसिला ही चल निकला। एक दिन पराग को उसने हॉस्टल बुला लिया। चेहरे पर ख्ाुशी के साथ थोडी घबराहट भी थी। हॉस्टल की आया तारा बाई ने आवाज्ा दी, कुहू मेहता, आपसे कोई मिलने आया है.., सुनते ही वह दौडी और पीछे-पीछे मैं भी भागी कि देखूं तो वह भाग्यशाली है कौन!

पराग भी कुछ घबराया-सकुचाया सा था। गोरा रंग, हलकी भूरी आंखें और घुंघराले बाल..। वह सचमुच सुंदर था। वे दोनों हॉस्टल में एक पेड के नीचे आमने-सामने बैठे थे। पहली मुलाकात थी, दोनों ही नर्वस थे। आख्िार कुहू ने ही चुप्पी तोडी पराग के हाथ पर बने एक बडे से काले निशान के बारे में पूछते हुए, यह निशान कैसा है? ग्रीस लग गया है या जल गया है? पराग के चेहरे पर हलकी सी हंसी आई, यह मेरा बर्थ मार्क है।

पहली मुलाकात औपचारिक ही रही। मैं संगीत की शौकीन थी, लेकिन कुहू को ख्ास दिलचस्पी नहीं थी संगीत में। एक दिन वह दोपहर की नींद ले रही थी कि तारा बाई ने फिर आवाज्ा लगाई, कुहू मेहता आपके लिए फोन है..। कुहू हडबडी में उठकर भागी। लौटी तो ज्ाोर-ज्ाोर से हंस रही थी। बोली, आज तो पराग ने फोन पर गाना भी सुनाया। आवाज्ा अच्छी है उसकी। साथ में मूवी चलने को कह रहा था। यार अकेले तो मुझे डर लगता है, तू भी चल न साथ में।

ख्ौर मैंने अच्छी सहेली होने का फज्र्ा निभाया। मूवी के बाद मैंने कुहू को छेडा, कुहू, मूवी के दौरान पराग ने तुम्हारा हाथ पकडा कि नहीं..? मेरी बात पर वह हैरानी से बोली, अरे वह रोमैंटिक  मूवी थी, भुतहा  फिल्म नहीं..जो वह डर कर मेरा हाथ पकडता! मुझे उसकी मूर्खता पर हंसी आई। एक दिन कुहू बोली, जूही, यह पराग किसी दिन ज्ारूर बडा गायक बनेगा। आज उसने मुझे फिर से गाना सुनाया। मैंने उसे धीरे से टटोला, कुहू, तुम्हें प्यार-व्यार तो नहीं हो गया है न! मेरी बात पर वह खिलखिलाई, जूही, प्यार का चक्कर अपने बस का नहीं। प्यार है क्या? बस एक केमिकल रिएक्शन  है। अच्छा, चल यार भूख लगी है।

..एग्ज्ौम्स शुरू हुए और धीरे-धीरे ख्ात्म भी हो गए। कुहू के पेपर्स मुझसे पहले ख्ात्म  हुए। वह अगले ही दिन घर जाने की तैयारी करने लगी। अगली सुबह सात बजे उसकी बस थी। मेरे साथ मेरी एक सहेली बिंदू  भी उसे बस स्टैंड तक छोडने पहुंची। वहां पराग भी था। चलते समय उसने बिंदास  तरीके से हम तीनों से हाथ मिलाया और और बस में बैठ गई।

...कुहू बीते दिनों में डूबी हुई मुझसे दिल की बातें शेयर कर रही थी। जूही, एक बात कहूं, मैं उस दिन वहीं उसी बस स्टैंड पर खडी रह गई उसका हाथ थामे। मैं वहां से कभी जा ही नहीं पाई..। पराग से हाथ मिलाते हुए जब मैंने उसके चेहरे को देखा तो उसकी आंखों में मुझे वह दिखा, जिसे शायद आज तक मैं नहीं देख पाई थी। इसके बाद मैंने उसे अपनी सगाई की ख्ाबर दी तो भी उसका चेहरा उतर गया था। तब मुझे लगा कि शायद यह प्यार का कोई एहसास है।

चल चाय पीते हैं जूही.., कुहू चाय बनाने रसोई में चली गई। मैं भी उसके पीछे-पीछे आ गई और पूछा, अच्छा कुहू, इसके बाद तुम कभी मिली पराग से? हां, फेसबुक  पर, वह बताने लगी, हॉस्टल से घर आने के कुछ समय बाद ही मेरी शादी उमंग से हो गई। उमंग जैसा ज्िांदादिल  इंसान पाकर मैं ख्ाुश  थी। उसके जीवन का फलसफा है, जिओ और जीने दो। पार्टी, मौज-मस्ती और घूमने-फिरने का शौकीन है उमंग। लेकिन बिना मेरे कहीं नहीं जाता। हम कई बार विदेश यात्राएं कर चुके हैं। बेटे को हॉस्टल में डाला है ताकि हमारे साथ उसकी पढाई ख्ाराब  न हो..।

मुझे याद है, कुहू से जब भी कभी फोन पर बात होती, वह उमंग की तारीफों के पुल बांध देती। लेकिन उसकी बातों के अंत में एकाएक एक अनजानी सी ख्ामोशी छा जाती और वह फोन रख देती। विवाह के 15 साल बाद भी दोनों का हनीमून ख्ात्म नहीं हुआ था, लेकिन कभी-कभी कुहू की आंखों के आगे एक जोडा भूरी आंखें आ जातीं और वह बात करते-करते कहीं खो जाती। जूही, एक दिन उमंग ने कहा कि मैं फेसबुक पर अकाउंट बना लूं। इससे पुराने दोस्तों से संपर्क हो सकेगा। इस तरह फेसबुक पर अकाउंट बन गया। कुछ दिन बाद ख्ायाल आया कि पराग को सर्च करूं, क्या पता वह भी फेसबुक पर हो। नाम टाइप करते ही असंख्य पराग दिखने लगे। लेकिन एकाएक एक तसवीर पर नज्ार टिक गई। यह तो वही पराग दिख रहा था। फिर मैंने उसका प्रोफाइल चेक किया। शहर, कॉलेज, जन्मतिथि  सब वही..। कुहू ने झट से पराग के मेसेज-बॉक्स में संदेश छोड दिया, क्या मैं तुम्हें याद हूं?

15 दिन बाद पराग का संदेश आया, हां। मेसेज आते ही कुहू ने पराग को अपना मोबाइल नंबर भेज दिया। कुछ देर बाद पराग ऑनलाइन दिखा और चंद पलों में ही दोनों भूल गए कि उनका जीवन 15 साल आगे बढ चुका है। कुहू एक बेटे की मां है और पराग दो बच्चों का पिता। पराग का फोन भी आ गया। उसने पूछा, पराग, तुमने अपने घर पर मेरे बारे में किसी को कुछ बताया है? पराग की मां को पता था कि उनका बेटा कुहू से अकसर फोन पर बातें करता है। इसलिए जब पराग ने अपनी मां को कुहू की सगाई के बारे में बताया तो उन्होंने राहत की ही सांस ली थी। यह बात पराग ने ही कुहू को बताई थी। कुहू के इस सवाल पर पराग हंसा और कहा, मैंने तुम्हारे बारे में पत्नी को नहीं बताया है और बताऊंगा भी नहीं। मां तो अब हैं नहीं और पत्नी इतनी शक्की है कि उसे ज्ारा सा बताया तो बडा सा बखेडा खडा हो जाएगा।

चैटिंग  का सिलसिला चलता रहा। पराग अकसर शिकायत करता कि वह बीच में ही भाग गई। तब एक दिन कुहू ने भी नाराज्ागी  जताते हुए कहा, पराग, तुमने मुझे रोकने की कोशिश की? मैं किसके भरोसे रुकती?

पराग ने लिखा, कुहू, काश हमारे पास कोई टाइम मशीन होती तो हम 15 साल पीछे चले जाते.., कुहू ने तुरंत लिखा, मैं तो अब भी 15  साल पीछे चल रही हूं। पराग ने जवाब में किसी गाने की लाइन लिख दी। अच्छा तो म्यूज्िाक  का भूत उतरा नहीं अभी तुम्हारे दिल से? कुहू ने तुरंत चैट किया।

कुहू जितना पराग के करीब जाती, उसके मन में अपराध-बोध उतना ही बढता जाता। उसे लगता शायद ग्ालती कर रही है। वह विवाहित है और उसे यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए। फिर उसने उमंग को सब कुछ बताने का फैसला किया। डिनर के बाद उसने पति के सामने एक-एक कर सारी बातें बताई और साथ में यह भी कहा कि यह उसी का कसूर है। उसी ने पहले फेसबुक पर पराग को ढूंढा। उमंग भी संजीदा हो गए, लेकिन फिर उन्होंने परिपक्वता दिखाते हुए कहा, कोई बात नहीं कुहू, जीवन ऐसे ही चलता है। जैसा चल रहा है-चलने दो, बहुत टेंशन मत लो।

अगले दिन कुहू ने पराग को सारी बात बताई तो उसे अचंभा हुआ। बोला, िकस्मत वाली हो कुहू जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला। मोनिका ने तो मुझे कैद में जकड रखा है।

एक दिन पराग ने मोनिका की बात फोन पर कुहू से करवाई। उसने कुहू से तो प्यार से बातें की, लेकिन बाद में पराग की जान सांसत में डाल दी। या तो वह जान दे देगी, नहीं तो पराग कुहू को अपनी ज्िांदगी से बाहर करे। अगले दिन पराग का मेसेज आया, सॉरी कुहू मैं अब तुमसे कोई बात नहीं करूंगा। मोनिका को इस पर सख्त  ऐतराज्ा  है। कुहू को रोना आ गया। पराग को फोन मिलाती रही, मगर उसने फोन नहीं उठाया। अंत में उसने मेसेज किया, एक बार तो बात करो पराग। मुझे पता चले कि हुआ क्या है?

थोडी देर में पराग का फोन आया। बोला, मेरे घर में बवाल मच गया है। तुमसे फोन पर मोनिका की बात क्या करवा दी, वह तो मेरे पीछे ही पड गई है। तुमसे हाथ जोड कर प्रार्थना करता हूं कि मुझे माफ कर दो और अपनी ज्िांदगी अपने हिसाब से जिओ। कुहू बोली, कोई बात नहीं पराग, अब मैं तुमसे मिलने के लिए 15 साल और इंतज्ार  कर लूंगी। दूसरी ओर से फोन कट गया।

...कुहू ने फोन से पराग का नंबर डिलीट कर दिया और फेसबुक  पर उसे अनफ्रेंड कर दिया। जूही, नंबर तो डिलीट कर दिया, पर जो नंबर 15 साल से नहीं भूली, उसे अब कैसे भूल जाऊं। शायद कुछ बातें इंसान के बस में नहीं होतीं। जानती हूं, कॉलेज  के दौर में मैं उससे सिर्फ फ्लर्ट कर रही थी, लेकिन बाद में उससे जुडती चली गई। जब पराग को पता था कि उसकी पत्नी इतनी शक्की है तो उसे मुझसे संपर्क आगे नहीं बढाना चाहिए था। पहले ही मुझे बता देता। जब तक उसे सुविधा रही, उसने मुझसे बातें की लेकिन जैसे ही सुविधा ख्ात्म  हुई, उसने संपर्क काट लिया। कुहू रोते हुए दिल का बोझ मुझसे बांट रही थी। मुझे याद आया, एक दिन कुहू ने कहा था, जूही, हम औरतों के दिल में कई चैंबर होते हैं। एक में हमारी गृहस्थी होती है, दूसरे में मायका-सहेलियां। एक तीसरा कोना भी होता है, जिसमें हमारी चंद यादें होती हैं। जब कभी फुर्सत मिलती है, हौले से इन्हें झाड-पोंछ देते हैं और फिर वापस वहीं रख देते हैं। मैं सोचने लगी कि क्या यह वही लडकी है जो प्यार को केमिकल रिएक्शन  मानती थी और दिल को ख्ाून  की सप्लाई का एक साधन!

..कुहू कोई सोलह साल की किशोरी नहीं, परिपक्व स्त्री थी और मैं उसे सिर्फ समझा ही सकती थी। वह भी यह बात जानती थी कि विधि का विधान कोई नहीं बदल सकता। जो सामने है, जो मिला है-बस वही अपना है। जो नहीं मिला, दरअसल कभी था ही नहीं।


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