जब हो एक फीमेल कलीग
बराबरी के दौर में स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं रहना चाहती हैं। वे उन क्षेत्रों में भी अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करवा रहीं हैं जहां कभी पुरुषों का ही एकाधिकार था।
बराबरी के दौर में स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं रहना चाहती हैं। आज वे उन क्षेत्रों में भी अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करवा रहीं हैं जहां कभी पुरुषों का ही एकाधिकार माना जाता था।
किसी-किसी ऑफिस में स्त्रियों की संख्या वहां कार्यरत पुरुषों से बेहद कम होती है। आमतौर पर स्त्रियों को उनके कार्यस्थल पर कई तरह की सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान होता है। जब किसी ऑफिस में कार्यरत स्त्री-पुरुषों के अनुपात में अंतर हो या कई पुरुष कर्मियों के बीच एक स्त्री कर्मी हो तो हर छोटी से बडी बात का ध्यान रखना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। जानते हैं कि ऐसी परिस्थिति में किन बातों का खयाल रखा जाना जरूरी है।
कैसी हों सुविधाएं व माहौल
सभी कंपनियों में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उनके यहां कार्यरत लोगों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसके लिए मैनेजमेंट कोशिश करता है कि वहां का माहौल सबके कार्य करने के अनुकूल हो। जब किसी कॉरपोरेट कंपनी में स्त्रियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले कम हो तो उसके फायदे और नुकसान, दोनों ही होते हैं। ऑफिस के रूल्स सबके लिए बराबर ही होते हैं, उनमें बदलाव लाना तो नामुमकिन होता है, पर कोशिश कर वातावरण को सबके लिए सहज बनाया जा सकता है।
- हो सकता है कि मेल एंप्लॉइज को देर हो जाने पर भी कैब की सुविधा की जरूरत न पडती हो, पर फीमेल एंप्लॉइजके लिए ड्रॉपिंग की व्यवस्था जरूर करवाएं।
- उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करने के बजाय उन्हें समझने की कोशिश करें। किसी भी तरह की परेशानी होने पर उन्हें सहयोग का आश्वासन दें।
-नाइट शिफ्ट का प्रावधान होने पर फीमेल्स की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने की जिम्मेदारी जरूर ली जानी चाहिए। कोशिश की जानी चाहिए कि किसी विश्वसनीय सीनियर की ड्यूटी साथ में हो या गाड्र्स आदि को भी उनका खास खयाल रखने को बोला जा सकता है।
-सिटिंग अरेंजमेंट पर भी ध्यान दिया जा सकता है। उनकी सीट ऐसी जगह पर हो जहां उन्हें सहज महसूस हो।
-उनकी जॉइनिंग पर एक वॉर्म वेलकम देकर सभी कलीग्स से उनका परिचय करवाएं। इससे उन्हें सबके बीच घुलने-मिलने में आसानी होगी। कुछ प्रोजक्ट्स ग्रुप में दें जिससे कि वे काम को जल्दी समझ सकें और खुद को टीम का हिस्सा भी मान सकें।
क्या करें सहकर्मी
अगर कोई डिपार्टमेंट काफी समय तक पुरुष प्रधान रहा होगा तो फीमेल कलीग के साथ सामंजस्य बिठाने में कुछ समय भी लग सकता है। अभी तक जहां वे आपस में बेहिचक हंसी-मजाक करते रहे होंगे, अब उन्हें भी काफी सचेत होना पडेगा। अपने रोज के तौर-तरीकों में बदलाव लाना थोडा मुश्किल तो होता ही है।
-आपस में मजाक एक हद तक व शोभनी य ही करें। ऐसी बातें न करें जिनसे उन्हें अटपटा लगे।
उनके ड्रेसिंग सेंस या मेकअप आदि पर टिप्पणी करने से बचें। तारीफ भी करें तो शालीनता से।
-लंच या रिफ्रेशमेंट पर जाने से पहले उन्हें भी पूछना अपना कर्तव्य समझें। इससे वे अलग सा महसूस नहीं करेंगी। हो सकता है कि शुरुआत में कुछ दिन वे मना करें या शांत रहें, पर धीरे-धीरे एडजस्ट करने लगेंगी।
-अगर किसी दिन ऑफिस में देर तक रुकना पडे या बाहर कहीं मीटिंग हो तो उनके लिए भी आने-जाने की व्यवस्था करवाने की कोशिश करें।
-ओवर-फे्रंड्ली होने से बचें। ऐसा न हो कि वह आपके सामान्य व्यवहार को कुछ और ही समझ ले।
-मीटिंग में उनके विचारों को सुनने की आदत भी डालें। इससे वे आपके बीच जल्द एडजस्ट कर पाएंगी।
-हो सकता है कि कोई शारीरिक या मानसिक तनाव होने पर वे आपसे साझा न कर पाएं, पर अगर आपको वे परेशान लगें तो एक-दो बार उनसे पूछ जरूर लें।
-उन्हें सहज महसूस करवाएं। ऐसा न हो कि वे ऑड वन आउट महसूस करें। इसके लिए उनका परिचय दूसरे डिपार्टमेंट्स के लोगों से भी करवाएं जिनसे आपका काम पडता हो।
-अगर वे आपकी सीनियर के तौर पर आईं हों तो उनका सम्मान करें। न तो मन में कोई हीनभावना रखें और न ही उनकी तरक्की होने का कारण कुछ गलत ही समझें।
-अगर वे आपकी जूनियर के तौर पर आईं हों तो उनके प्रोफेशनल विकास को अपनी जिम्मेदारी समझें। कोई असाइनमेंट देते समय उन्हें उसके बारे में अच्छी तरह से ब्रीफ जरूर करें। साथ ही आश्वासन दें कि कहीं फंसने पर आप उनकी मदद करेंगे।
-वैसे तो ऑफिस एटिकेट्स का पालन सभी करते हैं, पर डिपार्टमेंट में स्त्री सहकर्मी होने पर अपनी मर्यादा का ध्यान रखना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। उनके व्यवहार के अनुसार ही उनसे बात करें, यह जरूर जान लें कि वे इंट्रोवर्ट हैं या एक्स्ट्रोवर्ट।
सहज रहें खुद भी
हो सकता है कि पहले आपने जहां काम किया हो, वहां स्टाफ में आपके अलावा और भी स्त्रियां रहीं हों। ऐसे में पुरुष प्रधान ऑफिस में काम करना आपके लिए बिलकुल अलग सा अनुभव रहेगा। सहकर्मी तो बदलेंगे ही, थोडा आपको भी बदलना होगा।
-गॉसिपिंग की आदत हो तो अब हो सकता है किआपको वह माहौल न मिले। अगर कोई बहुत ज्यादा रुचि दिखाए भी तो पहले कुछ दिन ऑफिस के माहौल को भली-भांति समझ लें।
- हर व्यक्ति एक सा नहीं होता, लोगों को परखना और न कहना सीखें। कोई सीनियर है, बस यह सोचकर ही हर काम के लिए यूं ही हां न कह दें।
-किसी कलीग से कोई समस्या हो तो चुप न रहें। परेशानी ज्यादा होने पर शिकायत करने से न घबराएं। यह न सोचें कि कोई आपका साथ नहीं देगा। अगर आपको वहां नियुक्त किया गया है तो ऑफिस के अंदर आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी पूरी तरह से मैनेजमेंट की ही होगी।
-ऑफिस के हिसाब से अपने डे्रसिंग सेंस और व्यवहार का खयाल रखें। अनावश्यक रूप से लोगों का ध्यान केंद्रित करने से बचें।
-लोगों से घुलने-मिलने की कोशिश करें। ओवर-फ्रेंड्ली न होना चाह रही हों तो इंट्रोवर्ट होने से भी बचें।
-हर किसी को शकभरी नजरों से ही न देखें। अगर कोई बात करने की कोशिश कर रहा हो तो उसे सामान्य तौर पर ही लें। हर बात का अनावश्यक मुद्दा न बनाएं।
-आजकल स्कूल-कॉलेज से ही ऐसी ग्रूमिंग की जाती है कि स्त्रियां खुद को हर स्थिति में आसानी से ढाल लेती हैं। ऐसे वातावरण में काम करने के बारे में सोचकर परेशान होने के बजाय वहां अपनी पोजिशन मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत रहें।
-लोगों का विश्वास अपनी काबिलियत से जीतें, जिसके बलबूते आपको वहां काम करने का सुनहरा अवसर मिला है।
दीपाली पोरवाल