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जुडवां बच्चे इन्हें दें खास देखभाल

वेल वुमन क्लिनिक गुडग़ांव की डायरेक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नूपुर गुप्ता बता रही हैं कि ट्विन प्रेग्नेंसी में अपना और बच्चे का ध्यान कैसे रखें, साथ ही मांओं के वास्तविक अनुभव भी।

By Edited By: Published: Sat, 04 Jun 2016 04:02 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jun 2016 04:02 PM (IST)
जुडवां बच्चे इन्हें दें खास देखभाल

प्रेग्नेंसी किसी भी स्त्री के जीवन में ढेर सारी खुशियां लेकर आती है लेकिन यह अपने साथ कई जटिलताएं भी लाती है। अगर गर्भ में जुडवां बच्चे हों तो स्थिति और भी मुश्किल होती है। ऐसे में ज्ारूरी होता है कि गर्भावस्था के दौरान खानपान का ध्यान रखा जाए, नियमित जांच कराई जाए और डॉक्टर के सुझाव पूरी तरह माने जाएं, ताकि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ और खुश रहें।

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जब हो ट्विन प्रेग्नेंसी

गर्भाशय का आकार सामान्य से बडा हो और एक से अधिक गर्भ की हार्टबीट्स सुनाई दे रही हों तो डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं। इसी से पता लगता है कि यह ट्विन प्रेग्नेंसी है या नहीं। जैसे ही ट्विन प्रेग्नेंसी का पता चले, अपने और होने वाले बच्चे की बेहतरी के लिए कुछ ारूरी कदम उठाएं। ट्विन प्रेग्नेंसी की जटिलताएं सिंगल प्रेग्नेंसी से अलग होती हैं। इस दौरान कुछ खास परेशानियां हो सकती हैं-

1. ट्विन प्रेग्नेंसी में गैस्टेशनल डायबिटीज्ा होने का खतरा बढ जाता है।

2. प्रेग्नेंसी के दौरान हाइपर टेंशन और एनीमिया की आशंका बढ जाती है।

3. इस दौरान कमज्ाोरी अधिक हो सकती है। प्रसव के बाद ब्लीडिंग का खतरा भी ज्यादा रहता है।

4. ट्विन प्रेग्नेंसी के अधिकतर मामलों में डिलिवरी के लिए सी-सेक्शन की ज्ारूरत पडती है।

5. प्रीमच्योर बर्थ की आशंका अधिक होती है। इसके अलावा गर्भ पर अधिक भार के कारण शरीर में दर्द हो सकता है।

6. गर्भ में दो बच्चों के होने पर अबॉर्शन का खतरा भी ज्यादा रहता है।

ताकि प्रेग्नेंसी रहे सुखद

ट्विन प्रेग्नेंसी में एक से अधिक बार चेकअप की ज्ारूरत होती है, ताकि मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर लगातार नज्ार रखी जा सके। इसमें सबसे बडी समस्या यह आती है कि कई बार एक बच्चा कमज्ाोर होता है और दूसरा स्वस्थ।

ट्विन प्रेग्नेंसी में हर चौथे सप्ताह में चेकअप अवश्य कराएं। जैसे-जैसे प्रसव का समय नज्ादीक आता है, डॉक्टर कुछ टेस्ट्स और अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कह सकते हैं। ट्विन प्रेग्नेंसी में वज्ान अधिक बढ जाता है और यह बच्चे के विकास के लिए ज्ारूरी भी है। अगर गर्भ में जुडवां बच्चे हैं तो प्रसव के समय स्त्री का वज्ान 17 से 25 किलोग्राम तक भी बढ सकता है।

इस दौरान स्वास्थ्य का ध्यान रखें ऐसे-

1. यदि किसी का वज्ान औसत है तो गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन सामान्य से लगभग 600 अतिरिक्त कैलरीज्ा की ज्ारूरत पडती है। कितनी कैलरी लेनी होगी, यह वज्ान, ज्ारूरत और दिनचर्या पर निर्भर करता है।

2. पोषक तत्वों का सेवन करें। फॉलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और दूसरे आवश्यक पोषक पदार्थों का सेवन अवश्य किया जाना चाहिए। संतुलित डाइट लेने के बाद भी डॉक्टर कभी-कभी फॉलिक एसिड और अन्य सप्लीमेंट्स लेने की सलाह दे सकते हैं।

3. गर्भावस्था में पर्याप्त पानी पीना ज्ारूरी है, ताकि शरीर में जल का सही स्तर बना रहे।

4. उपवास या व्रत से बचें और भूखे पेट न रहें। ब्रेकफस्ट, लंच और डिनर के अलावा बीच-बीच में हेल्दी स्नैक्स लें। केला, प्रोटीन शेक, सैलेड लेने से भारी महसूस नहीं होगा और शरीर को ारूरी पोषक तत्व भी मिलेंगे।

5. हो सकता है, इस दौरान डॉक्टर आपकी गतिविधियां सीमित करने पर ज्ाोर दे। बेड रेस्ट की सलाह खास जटिलताएं होने पर ही दी जाती है। आमतौर पर डॉक्टर सामान्य कार्य करने की सलाह देते हैं। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के बेडरेस्ट न करें। अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि बेड रेस्ट से प्रीमच्योर डिलिवरी का खतरा बढता है।

6. अगर वज्ान तेज्ाी से बढ रहा हो या तेज्ा सिरदर्द हो तो डॉक्टर को दिखाएं।

7. वज्ान ज्यादा होने से पैरों में सूजन आती है, इसलिए पैर लटका कर देर तक न बैठें।

8. नमक का सेवन कम करें ताकि ब्लडप्रेशर अधिक न बढे।

9. रात में आठ घंटे की पर्याप्त नींद लें और दोपहर में भी दो घंटे रेस्ट करें। करवट लेकर सोएं और बिस्तर से धीरे-धीरे उठें।

प्रसव के बाद

अगर ऐसे बच्चे प्रीमच्योर हैं तो उन्हें जन्म के बाद विशेष देखभाल की ज्ारूरत होती है। जन्म के तुरंत बाद उन्हें स्पेशल केयर में रखा जा सकता है। कई बार इन्हें थोडे दिनों के लिए नर्सरी में भी रखा जा सकता है। कैसे रखें ध्यान इनका-

1. ऐसे मामलों में परेशानियां प्रसव के बाद ही शुरू होती हैं। ज्यादा आराम करने और फैमिली सपोर्ट लेने के लिए तैयार रहें।

2. समय-पूर्व जन्म से बच्चों को फ्लू हो सकता है, जॉन्डिस या श्वसन तंत्र से जुडी कुछ समस्याएं हो सकती हैं।

3. जुडवां बच्चों को स्तनपान कराना भी चुनौतीपूर्ण काम है। इसके लिए मां को हेल्दी डाइट की ज्ारूरत होती है। इसलिए फीड कराने वाली मां को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

4. जुडवां बच्चों के जन्म के बाद मां की ज्िाम्मेदारियां बहुत बढ जाती हैं। बेहतर है कि अपनी प्राथमिकताएं तय करें और उसी के अनुसार अपनी दिनचर्या निश्चित करें। द्य

बहुत मुश्किल है परवरिश

मैं एक बेटे और बेटी की मां हूं। मेरे ट्विंस आरव और इशिता अब चार महीने के हो गए हैं। शुरुआती दौर में ही अल्ट्रासाउंड से पता चल गया था कि गर्भ में एक बच्चे से ज्यादा हार्टबीट्स सुनाई दे रही हैं। मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढाती हूं। सातवें महीने के अंत तक मैंं विश्वविद्यालय जाती रही। शुरुआत में दो महीने तो मुझे बहुत नींद आती थी लेकिन धीरे-धीरे वान तेाी से बढने लगा और अंतिम ट्राइमेस्टर तक मेरा वान 17-18 किलोग्राम तक बढ गया था। सातवें महीने से ही मुझे परेशानियां शुरू हो गई थीं। नींद नहीं आती थी, फ्रीक्वेंट यूरिनेशन की प्रॉब्लम थी। शरीर में सूजन आ गई थी। आठवां महीना शुरू होते ही मेरी सिजेरियन डिलिवरी हो गई। मेरे बच्चे अंडरवेट थे, इसलिए उन्हें 14 दिन तक नर्सरी में ही रखा गया। मैं वहीं उन्हें फीड कराने जाती थी। वे सर्दियों में पैदा हुए थे, इसलिए घर पर भी इन्हें हीटर लगा कर रखना पडा। एक महीने बाद उनमें कुछ सुधार दिखा। उनका वान बढना शुरू हुआ। सास मेरे साथ रहीं, इसलिए बच्चों की परवरिश ढंग से हो पाई। दोनों साथ सोते-जागते थे। यहां तक कि इन्हें हिचकी भी एक साथ आती थी। अब ये बडे हो गए हैं और इनकी आदतें बदलने लगी हैं। बेटी तो बहुत शरारती है, बेटा सीधा है।

रचना माथुर

बेडरेस्ट पर रहना पडा

प्रेग्नेंसी के एक महीने बाद ही पता चल गया था कि यह ट्विन प्रेग्नेंसी है। मुझे गैस्टेशनल शुगर थी, इस वजह से हर चीा में सावधानी रखनी पडी। मेरा वज्ान ज्यादा नहीं बढा। कंप्लीट बेडरेस्ट पर रहना पडा। इस कारण जॉब से भी ब्रेक लेना पडा। आठवां महीना खत्म होकर नौवां शुरू हुआ था कि डिलिवरी हो गई। मेरी दो बेटियां ईशानी और एलिना हुईं। जन्म के समय इनका वज्ान लगभग 2-2 किलोग्राम था। असल समस्याएं प्रसव के बाद शुरू हुईं। एक रोती थी तो दूसरी भी रोती थी। मेरी सास कुछ समय तक रहीं, फिर भी हम कई बार रात-रात भर जागते रह जाते थे। शुरू में दोनों एक सी दिखती थीं। अब दोनों की शक्ल-सूरत और स्वभाव में फर्क आ गया है। ये 10 महीने की हैं और घुटनों के बल चलने लगी हैं। इनमें सिब्लिंग राइवलरी भी है। एक को गोद में उठाते हैं तो दूसरी भी मचलने लगती है। एक को जो खिलौना चाहिए, दूसरी को भी वही चाहिए। धीरे-धीरे िांदगी सामान्य हो रही है।

अलका

प्रस्तुति : इंदिरा राठौर


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