कुछ तो लोग कहेंगे
आजकल मैं जब भी किसी सामाजिक समारोह में जाती हूं तो वहां मिलने वाले ज्य़ादातर लोगों का यही सवाल होता है कि बेटी की शादी कब कर रही हैं?
By Edited By: Published: Fri, 09 Sep 2016 11:08 AM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 11:08 AM (IST)
परवाह नहीं करती मेरी बेटी इंजीनियर है और एक अच्छी कंपनी में जॉब करती है। हम उसके लिए योग्य वर की तलाश में हैं लेकिन अभी तक कहीं भी बात पक्की नहीं हो पाई। आजकल मैं जब भी किसी सामाजिक समारोह में जाती हूं तो वहां मिलने वाले ज्य़ादातर लोगों का यही सवाल होता है कि बेटी की शादी कब कर रही हैं? कोई लडका पसंद आया? लडकी की शादी में ज्य़ादा देर करना ठीक नहीं...जितने मुंह, उतनी बातें। लगातार यही सब सुन-सुनकर कई बार मेरा मन खिन्न हो जाता है। ऐसे में मेरे पति अकसर मुझे समझाते हैं कि तुम्हें ऐसी बेकार की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वही करो, जो तुम्हें खुद सही लगे। अगर शादी में थोडी देर भी हो जाए तो कोई हर्ज नहीं लेकिन जीवनसाथी लडकी के अनुकूल होना चाहिए ताकि शादी के बाद उसका जीवन खुशहाल बना रहे। अब मैं यह बात समझ गई हूं कि हमें दूसरों के ऐसे नेगटिव कमेंट्स की जरा भी परवाह नहीं करनी चाहिए। अंजलि साबू, ग्वालियर रंग लाई मेहनत हमारे घर से थोडी ही दूरी पर एक मलिन बस्ती है। वहां रहने वाली स्त्रियां लोगों के घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं और उनके बच्चे दिन भर गलियों में यूं ही उछल-कूद मचा रहे होते हैं। उनकी लडकियां जब थोडी बडी हो जाती हैं तो वे भी अपनी मां के साथ काम पर जाना शुरू कर देती हैं। उन बच्चों को देखकर मुझे बहुत दुख होता था क्योंकि वे बुनियादी शिक्षा से वंचित थे। मुझे ऐसा लगता था कि हमारे जैसे लोग उनके लिए रोजाना अपना थोडा सा वक्त निकाल कर उन्हें साक्षर बना सकते हैं। इसलिए मैंने उनके माता-पिता से बात की। शुरुआत में केवल दो-तीन बच्चे ही आते थे। जब मैंने इस काम की शुरुआत की थी तो पास-पडोस के लोग अकसर मेरा मजाक उडाते थे। उनका कहना था कि ऐसी छोटी-छोटी कोशिशों से उन बच्चों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा। जब उनके माता-पिता ही पढाने के बजाय उनसे मजदूरी करवाना चाहते हैं तो इसमें आप उनकी मदद कैसे कर पाएंगी? फिर भी मैं अपने इरादे पर डटी रही। धीरे-धीरे मेरी मेहनत रंग लाने लगी। आजकल रोजाना मेरे पास लगभग 20 बच्चे पढऩे के लिए आते हैं और उनमें से कुछ आगे की पढाई के लिए कॉलेज में भी एडमिशन ले रहे हैं। यह देखकर मुझे सच्ची आत्म-संतुष्टि मिलती है। अब मैं अकसर यही सोचती हूं कि अगर उस वक्त मैंने लोगों की ऐसी निरर्थक बातों पर ध्यान दिया होता तो अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो पाती। माधुरी गुप्ता, गाजियाबाद मनसेजुडेमुहावरे आ बैल मुझे मार खुद ही पड गए मुश्किल में बात उन दिनों की है जब मेरे पति उच्च शिक्षा के लिए फिलिपींस गए थे। विदेश में रहन-सहन का खर्च काफी महंगा होता है। इसलिए उन्होंने अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटा सा फ्लैट किराये पर लिया। मेरे पति को खाना बनाना नहीं आता। लिहाजा उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि तुम लोग मिलजुल कर खाना बना लेना। मैं बर्तन धोने के अलावा दूसरे कार्यों में तुम्हारी मदद कर दूंगा लेकिन इसके बाद उनके दोस्त अपने निजी काम भी उन्हीं पर थोपने लगे। मसलन वे चाय पीने के बाद अपना जूठा कप वहीं टेबल पर छोड देते, किचन से लेकर टॉयलेट तक की सफाई का सीमा सहाय, दिल्ली
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