स्कूल में पहला कदम...
परिवार को पहला स्कूल और मां को पहली टीचर कहा जाता है। बच्चे में नैतिक मूल्य और संस्कार सबसे पहले घर से आते हैं। फिर दूसरी जगह होती है स्कूल, इसलिए य
परिवार को पहला स्कूल और मां को पहली टीचर कहा जाता है। बच्चे में नैतिक मूल्य और संस्कार सबसे पहले घर से आते हैं। फिर दूसरी जगह होती है स्कूल, इसलिए यह •ारूरी है कि यहां बच्चे का पहला कदम सकारात्मक पडे। स्कूल में बच्चे का सही विकास हो सके, इसके लिए सखी दे रही है पेरेंटल गाइड।
अप्रैल का महीना है। स्कूल में एडमिशंस का दौर भी शुरू हो चुका है। लगभग तीन साल की उम्र तक बच्चा घर में ही बडों से कई बातें सीखने-समझने की कोशिश कर रहा होता है। इसके बाद स्कूल की शुरुआत होती है। कहते हैं, बच्चे कोरी स्लेट की तरह होते हैं, उन पर जो लिखा जाए, वही अंकित हो जाता है।
स्कूल में बच्चे का पहला दिन न सिर्फ बच्चे के लिए, बल्कि पेरेंट्स के लिए भी बडा टास्क होता है। पहली बार घर से बाहर की दुनिया में जाना, नए परिवेश में अजनबियों के साथ एडजस्ट करना मासूम बच्चे के लिए आसान नहीं होता। इसलिए पेरेंट्स की बेचैनी भी स्वाभाविक होती है। उन्हें बच्चे को इस परिस्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होता है। ऐसे में यदि माता-पिता बच्चे को कुछ महीने पहले से ही इसका अभ्यास कराएंगे तो स्कूल में उसका पहला कदम ख्ाुशनुमा बन सकेगा।
शुरुआती दौर
एडमिशन के बाद से ही बच्चे को कुछ इस तरह ट्रेनिंग दें कि वह स्कूल जाने के लिए प्रेरित हो सके। उससे स्कूल के बारे में सकारात्मक बातें करें, टीचर्स से उसका संपर्क कराएं और बच्चों से दोस्ती कराएं, ताकि बच्चे केमन में स्कूल का डर खत्म हो सके और उसके मस्तिष्क में स्कूल की ख्ाुशनुमा इमेज बन सके। बेहतर होगा कि एडमिशन के बाद उसे शुरुआत में 2-3 घंटे के लिए ही स्कूल ले जाएं और ख्ाुद वहीं इंत•ाार करें। उसके लंचबॉक्स में मनपसंद स्नैक्स रखें। उसके पसंदीदा कार्टून वाला स्कूल बैग और स्टेशनरी•ा दें। अच्छे व्यवहार के लिए उसकी तारीफ करें या कोई अच्छा सा गिफ्ट दें। ऐसी बातों से बच्चा स्कूल जाने को प्रेरित होगा।
अपनी टाइमिंग ठीक करें
बच्चे के स्कूल जाने की टाइमिंग के हिसाब से अपनी टाइमिंंग भी ठीक करें। इसके लिए पेरेंट्स को अपना रूटीन बदलना पडेगा। जैसे अब बच्चे को सुबह उठाने से लेकर उसे नहलाने, बैग और लंच पैक करने तक के सभी कार्य उसकी स्कूल टाइमिंग के हिसाब से मैनेज करने होंगे। बच्चे को स्कूल छोडऩे और घर लाने की जिम्मेदारी भी निभानी होगी। ऐसे में कामकाजी दंपतियों को पूरी प्लैनिंग पहले से करनी होगी ताकि आगे परेशानी न हो। इसके लिए डोमेस्टिक हेल्पर रखने की •ारूरत हो तो वह भी रखें।
बुरी आदतों पर रखें नजर
बच्चा गीली मिट्टी की तरह होता है, उसे जैसा ढालना चाहेंगे वह वैसा ही ढल जाएगा। अगर बच्चा स्कूल से बुरी आदतें सीख रहा है, तो उस पर नजर रखनी होगी और उसे समझाना भी पडेगा। जैसे, बच्चा किसी दूसरे बच्चे की देखा-देखी चीखता-चिल्लाता या रोता है तो उसे प्यार से बैठकर समझाएं न कि डांट-फटकार कर। उसकी नई आदतों के बारे में सतर्क रहें और अगर कोई नकारात्मक बात न•ार आ रही हो तुरंत उस पर ध्यान दें।
डालें टिफिन की आदत
उसे घर से तैयार लंच बॉक्स ले जाने की आदत डालें। इसके लिए कुछ दिन पहले से घर में ही उसे लंच बॉक्स तैयार करके दें, ताकि वह नियत समय पर उसे खोलकर स्वयं खा ले। हो सकता है, इससे पहले बच्चे ने मां के हाथ से ही खाना खाया हो, लेकिन स्कूल जाते ही उसकी सोशल लाइफ शुरू हो जाती है। इसलिए उसे बताएं कि कैसे स्पून से खाना लेना है, चपाती रोल करके खाना है और कैसे टिश्यू पेपर से हाथ साफ करना है। हो सकता है, वह कपडों या टेबल पर खाना गिरा दे, मगर धीरे-धीरे वह सीख जाएगा।
व्यावहारिक बातें
बच्चे को दोस्तों या टीचर से कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह शिक्षा भी उसे देनी चाहिए। उसे बताना चाहिए कि क्यों किसी अजनबी से खाने की ची•ा नहीं लेनी है और उसके साथ नहीं जाना है। अगर बच्चे में डर, घबराहट या असहजता न•ार आ रही हो तो उससे प्यार से इस बारे में पूछें। शुरू से ही उसमें यह आदत विकसित करें कि वह स्कूल से लौटकर दिन भर की गतिविधियां शेयर करे। कुछ बच्चे जल्दी घुल-मिल नहीं पाते, ऐसे में दोस्त बनाने में उनकी मदद करें। उन्हें पार्क या ऐसी जगहों पर ले जाएं जहां उनकी हमउम्र बच्चे हों।
प्रोगे्रस रिपोर्ट लें
पेरेंट्स के लिए दूसरा टास्क प्रोग्रेस रिपोर्ट का होता है, ताकि बच्चे को कहीं कोई समस्या आ रही हो तो उसे समय रहते सुलझा सकें। स्कूलों में रोज डायरी मेंटेन की जाती है, उसे बच्चे के घर आने पर रूटीन से चेक करना न भूलें। रिमार्क या नोट लिखा हो तो उसे देखें और बच्चे से भी इस विषय में पूछें।
टीचर्स से संपर्क
एडमिशन कराने भर से पेरेंट्स की ज्िाम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती, शिक्षकों से बच्चे के विकास के बारे में लगातार जानकारी लेना भी •ारूरी है। कई बार कोई महत्वपूर्ण बात बच्चा बताना भूल जाता है। ऐसे में उसके टीचर्स से संपर्क रहेगा तो पेरेंट्स को •ारूरी बातें पता चलती रहेंगी। इसका अर्थ यह नहीं है कि रो•ा टीचर्स को फोन करें मगर कभी-कभी उनसे मदद लेने में हज्र्ा नहीं।
सिखाएं नए शब्द
रो•ा एक घंटा बच्चे को देना •ारूरी है। इसमें 20-25 मिनट ही सही, लेकिन बच्चे को उसका पाठ्यक्रम रोचक ढंग से पढाना भी •ारूरी है। अच्छा होगा कि बच्चे को रो•ा कोई नया शब्द सिखाएं, उस शब्द का प्रयोग करना सिखाएं और आम बातचीत में उससे जुडे वाक्य बोलें, ताकि बच्चे को भाषा का ज्ञान हो सके। अगले दिन उससे पिछली सिखाई गई ची•ा के बारे में पूछें भी।
स्कूल एक्टिविटीज्ा
वैसे तो स्कूलों में हमेशा कोई न कोई एक्टिविटी•ा होती रहती हैं। पहले यह जान लें कि उसकी रुचि किस एक्टिविटी में है। हो सकता है, उसे साहित्य से ज्य़ादा स्पोट्र्स में रुचि हो, डांस से •यादा ड्रॉइंग में दिलचस्पी हो। उसकी रुचि से जुडी हॉबी•ा में उसका जुडाव होगा तो वह बेहतर रि•ाल्ट दे सकेगा।
शेयरिंग की आदत डालें
बच्चों में शेयरिंग की आदत जरूर डालें। कुछ बच्चे अपनी वस्तुएं शेयर नहीं कर पाते या किसी को देने पर चिल्लाने लगते हैं। ऐसा इसलिए कि उन्हें शेयरिंग की आदत नहीं होती है। इसकी एक वजह न्यूक्लियर फैमिली है, क्योंकि अकेले रहने वाले बच्चे दूसरों के साथ एडजस्टमेंट नहीं सीख पाते। इसलिए शुरुआत से ही बच्चे को शेयरिंग सिखाएं।
कैसे सिखाएं
स्कूल जाने से 15-20 दिन पहले से उसे उस जगह से परिचित करा दें ताकि उसके मन से भय निकल सके।
स्कूल छोडते वक्त बच्चा आपको दूर जाते देख रो सकता है। उसका ध्यान इधर-उधर भटका कर ही वहां से निकलें।
कुछ दिन पहले से ही उसे पेंसिल पकडऩे, अपनी ची•ों संभालने जैसी आदतें डालें।
स्कूल से घर की दूरी का ध्यान रखें।
बच्चे की बातों को गौर से सुनें।
बच्चों के बैग में टाइम टेबल के अनुसार ही बुक्स और नोटबुक्स रखें। द्य
गीतांजलि
(श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट की मनोवैज्ञानिक डॉ. पल्लवी जोशी से बातचीत पर आधारित)