क्या खा रहे हैं आप
पैसा खर्च करने के बाद भी यदि पता चले कि हम जो खा रहे हैं वह शुद्ध नहीं है तो कैसा लगेगा? आज ऐसा ही हो रहा है। खाने के साथ हानिकारक और विषैले केमिकल्स भी पेट में जा रहे हैं। किचन दूषित होती जा रही है। ऐसे में ऑर्गेनिक
पैसा खर्च करने के बाद भी यदि पता चले कि हम जो खा रहे हैं वह शुद्ध नहीं है तो कैसा लगेगा? आज ऐसा ही हो रहा है। खाने के साथ हानिकारक और विषैले केमिकल्स भी पेट में जा रहे हैं। किचन दूषित होती जा रही है। ऐसे में ऑर्गेनिक फूड के रूप में एक विकल्प खुलता है, मगर यह थोडा महंगा है। ऑर्गेनिक फूड क्या है और क्यों ज्ारूरी है? क्या हैं प्राकृतिक खेती के नियम? जानें इस लेख में।
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कहते हैं, हर चमकने वाली चीज्ा सोना नहीं होती। मॉल्स या सुपर मार्केट्स में ख्ाूबसूरत पैकिंग्स में लिपटे रंग-बिरंगे खाद्य पदार्थ सबको आकर्षित करते हैं। वे दिखने में जितने ख्ाूबसूरत होते हैं, क्या सेहत के लिए भी उतने ही सुंदर हैं? अपने खेतों में प्राकृतिक खाद और शुद्ध पानी का प्रयोग करके अनाज-सब्ज्िायां और फल उगाना अब सपना हो चुका है। स्वस्थ रहना आज के दौर में एक चुनौती है।
स्वस्थ खानपान की दिशा में एक कदम है ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थ। पिछले साल आमिर ख्ाान के टीवी शो 'सत्यमेव जयते के एक एपिसोड में कीटनाशकों और उर्वरकों के बारे में मिली जानकारियां लोगों के लिए आंख खोलने वाला अनुभव थीं। इस शो ने लोगों को जागरूक किया कि स्वस्थ रहना है तो प्रकृति में छिपे स्वास्थ्य के ख्ाज्ाानों को संजोना होगा और खेती के तरीकों में बदलाव लाने होंगे।
ऑर्गेनिक है क्या
यह कृषि का एक तरीका है, जिसमें फसल और ज्ामीन को शुद्ध बनाए रखने के लिए कई टेक्नीक्स का इस्तेमाल होता है। जैसे क्रॉप रोटेशन यानी फसलों को अदल-बदल कर लगाना, बायोलॉजिकल पेस्ट कंट्रोल और हरी या वानस्पतिक खाद का प्रयोग। भारत सरकार के नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग के अनुसार, ऑर्गेनिक खेती वास्तव में खेती का ऐसा मैनेजमेंट सिस्टम है, जो पर्यावरण और कृषि दोनों की सेहत के लिए अच्छा है। इसमें किसी भी सिंथेटिक संसाधनों का प्रयोग वर्जित है।
देहरादून (उत्तराखंड) के पर्यावरणविद अनिल जोशी कहते हैं, 'ऑर्गेनिक का अर्थ है, कृत्रिम उपायों के बिना की गई खेती। सौ फीसद ऑर्गेनिक कुछ भी नहीं है। लेकिन पहाडों के दूरदराज के सीमांत गांवों में होने वाली खेती को ऑर्गेनिक कहा जा सकता है। इसकी वजह यह है कि वहां के ग्ारीब किसानों के पास महंगे केमिकल फर्टिलाइज्ार्स ख्ारीदने के संसाधन नहीं हैं। वहां की उपज बिना खाद वाली होती है जो मॉनसून के पानी पर निर्भर करती है। यानी यहां की फसल काफी हद तक हानिकारक तत्वों से आज्ााद रहती है। कई लोग कहते हैं कि वे सिंचाई के लिए गंगा के पानी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन गंगा का पानी भी तो स्वच्छ नहीं है। उसमें भी केमिकल्स हैं। मिट्टी में खाद न डालें, लेकिन पानी शुद्ध कहां से लाएं! सच कहा जाए तो प्राकृतिक तौर-तरीकों से लगाई गई फसल में भी 90 फीसद ही ऑर्गेनिक है। हम गांवों में जो कुछ उगा रहे हैं, उसमें स्थानीय संसाधनों का प्रयोग करते हैं। जैसे नीम की पत्तियों की खाद, मॉनसून का पानी या अन्य प्राकृतिक चीज्ाों का प्रयोग। इससे काफी हद तक हानिकारक प्रभावों से बचा जा सकता है।
ऑर्गेनिक फूड आज की ज्ारूरत
दिल्ली स्थित न्यूट्री हेल्थ सिस्टम्स की फाउंडर, हेल्थ और वेलनेस एक्सपर्ट डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं, 'आज से 60-70 पहले जब आबादी कम थी, फर्टिलाइज्ार इंडस्ट्री शुरुआती चरण में ही थी, तब पूरी खेती ऑर्गेनिक थी। उस समय ज्ामीन में अगर एक साल गेहूं उगाया जाता तो अगले साल उसमें कोई दूसरी फसल बोई जाती थी या कई किसान खेत को बंजर छोड देते थे। इससे ज्ामीन शुद्ध रहती थी और उसकी उर्वरा क्षमता बढती थी। धीरे-धीरे आबादी बढी तो थोक उत्पादन बढऩे लगा और कई कंपनियां इस फील्ड में आ गईं, जिन्हें हर कीमत पर अधिक उत्पादन चाहिए। खेती के लिए कुछ नियम निर्धारित हो गए। जैसे एक हज्ाार हैक्टेयर में गेहूं उगाना है तो एक हज्ाार हैक्टेयर में कोई दूसरी फसल। पहले लोग फसल के साथ बीच-बीच में प्राकृतिक पेड-पौधे या हब्र्स उगाते थे। जैसे नीम के पेड, जिनकी पत्तियां और जडें मिट्टी को शुद्ध करती थीं। धीरे-धीरे खेती के परंपरागत तरीके खो गए और केमिकल्स, हानिकारक खादों और कीटनाशकों से ज्ामीन ख्ाराब होने लगी। तब यही उपाय बचता था कि या तो कुछ साल ज्ामीन को बंजर छोड दें या फिर उसमें प्राकृतिक चीज्ाों का प्रयोग करें। इसी ज्ारूरत ने ऑर्गेनिक खेती को बढावा दिया।
प्राकृतिक खेती के नियम
बढती आबादी और अधिक उत्पादन की ज्ारूरत ने 'हरित क्रांति को जन्म दिया, लेकिन इसके कुछ ही वर्षों बाद वैज्ञानिकों को समझ आ गया कि सिंथेटिक संसाधनों का प्रयोग पर्यावरण और मनुष्य के लिए ख्ातरनाक हो सकता है। शोधों व सर्वेक्षणों में हानिकारक कीटनाशकों और खादों के प्रयोग से होने वाली बीमारियों के बारे में पता चला। तब ज्ारूरत महसूस की गई कि जीवन और संपत्ति को बचाने के लिए प्राकृतिक संतुलन को किसी भी कीमत पर बचाए रखना होगा।
भारत में पहली बार वर्ष 1994 में ऑर्गेनिक खेती को बढावा देने के लिए 'सेवाग्राम घोषणा-पत्र जारी किया गया। पिछले पांच-छह वर्षों में ऑर्गेनिक फूड की मांग बढ गई है। यही कारण है कि ऑर्गेनिक खेती के लिए लोग आगे आने लगे हैं। इनमें दो तरह के लोग हैं। पहले वे, जो परंपरागत तरीके से खेती करके परिवार का पालन कर रहे हैं और दूसरे वे, जो बडे किसान हैं और एक मिशन के तहत ऑर्गेनिक खेती को बढावा दे रहे हैं। तमिलनाडु जैसे कुछ प्रांतों में खेती का यह प्रयोग सफल रहा है। ऑर्गेनिक खेती के कुछ सिद्धांत और लक्ष्य हैं-
1. जिस खेत को ऑर्गेनिक खेती के लिए चुना गया हो, उसके साथ वाले फार्म में भी केमिकल्स इस्तेमाल न हों। ज्ामीन को हर पांच साल बाद ऑर्गेनिक बनाने के प्रयास जारी रहें। केमिकल फ्री सिस्टम और प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से ऐसा संभव है।
2. जो पानी इस्तेमाल हो रहा है, वह केमिकल-फ्री हो और उसमें प्राकृतिक मिनरल्स और गुण मौजूद हों।
3. मिट्टी को उर्वर रखने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग हो।
पहचान ऑर्गेनिक की
1. प्रकृति में कोई भी चीज्ा ऐसी नहीं, जो दूसरे की हमशक्ल हो। ऑर्गेनिक फल या सब्ज्िायां रंग-रूप, आकार-प्रकार में अलग-अलग दिखती हैं। वे बहुत ख्ाूबसूरत या एक समान नहीं दिखतीं।
2. 'वाह यह कितना बडा है! अकसर स्त्रियां कटिंग-चॉपिंग की झंझट से बचने के लिए बडे साइज्ा के आलू, भिंडी, लौकी ख्ारीद लेती हैं। अपनी प्लेट में इन्हें शामिल करने से पहले ज्ारा ठहरें! यह सब खाद का कमाल हो सकता है। वैसे कुछ लोग ऑर्गेनिक खेती में ऐसा कर लेते हैं, लेकिन यह प्रतिशत अभी कम है।
3. किचन में रखी साबुत दालों मूंग, उडद के अलावा आटा, मैदा, चावल में कीडा या घुन लग रहा हो तो यह संकेत है कि किचन काफी हद तक ऑर्गेनिक है। कीडे जानते हैं कि नॉन-ऑर्गेनिक खाना सेहतमंद नहीं है। पालक, सरसों जैसी हरी पत्तेदार सब्ज्िायों में कीडों का होना भी बताता है कि इनमें खाद का प्रयोग कम किया गया है। साफ-सुथरे, बहुत ताज्ो और चमकदार दिखने वाले खाद्य पदार्थों से दूर रहना ही अच्छा है। घुन देख कर दाल-चावल फेंक देते हों तो यह तरीका आज्ामाएं। दाल-चावल को पानी से साफ करें। दो-तीन मिनट तक नमक मिले पानी में भिगोएं और फिर साफ पानी से धो लें।
4. आर्टिफिशियल दिखने में सुंदर हो सकता है, लेकिन प्राकृतिक सब्ज्िायां खाने में स्वादिष्ट होती हैं। इनमें नैचरल फ्लेवर भरपूर होता है, लिहाज्ाा वे बहुत कम मसालों में भी स्वादिष्ट लगती हैं। इसी तरह फलों के स्वाद से पता चल सकता है कि वे ऑर्गेनिक हैं या नहीं।
5. ऑर्गेनिक मसालों की गंध नॉर्मल की तुलना में तेज्ा होती है। अज्ावाइन, लौंग या जीरे को मुंह में रखें, उसकी गंध और स्वाद से ही उसकी शुद्धता का पता चल जाएगा। ऑर्गेनिक सेब घर के वातावरण को महका सकते हैं, जबकि सामान्य फलों की सुगंध तेज्ा नहीं होती।
6. खाद व कीटनाशकयुक्त सब्ज्िायों को पकाने में ज्य़ादा वक्त लगता है, जबकि ऑर्गेनिक सब्ज्िायां जल्दी पक जाती हैं।
7. ऑर्गेनिक के बारे में एक धारणा यह है कि ये जल्दी ख्ाराब हो जाते हैं, क्योंकि इनमें प्रिज्ार्वेटिव्स नहीं होते। सच्चाई यह है कि रेफ्रिजरेटर में इन्हें लंंबे समय तक रखा जा सकता है।
8. कोई भी खाद्य उत्पाद ख्ारीदते हुए उसके लेबल को ध्यान से पढें ताकि उसके इंग्रीडिएंट्स का पता चल सके।
यह सच है कि प्राकृतिक ढंग से उगाए गए खाद्य पदार्थों का सेहत को लाभ ज्ारूर मिलता है। डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं, 'ऑर्गेनिक और नॉर्मल फूड का अंतर एलोपेथ या आयुर्वेद जैसा है। आयुर्वेद के साइड इफेक्ट्स बहुत कम या नहीं हैं। ऑर्गेनिक फूड को भी ऐसा ही माना जा सकता है। आधुनिक लाइफस्टाइल में इसे ज्ारूरी माना जा सकता है।'
इंदिरा राठौर