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केवल शरारत नहीं है यह

अकसर लोग शरारती और हाइपरऐक्टिव बच्चों के बीच अंतर नहीं कर पाते। सामान्य बच्चे शरारतें करते समय माहौल का हमेशा ध्यान रखते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 09 Sep 2016 11:28 AM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 11:28 AM (IST)
केवल शरारत नहीं है यह
मेरा 7 वर्षीय बेटा बहुत ज्य़ादा शरारती है। वह दस मिनट के लिए भी एक जगह पर शांति से नहीं बैठ पाता। हमेशा उछल-कूद मचाता रहता है। पढाई में भी उसका ध्यान नहीं टिकता। मैं उसकी वजह से बहुत चिंतित हूं कि कहीं वह हाइपरऐक्टिव तो नहीं है? मीनाक्षी सिंघल, चंडीगढ अकसर लोग शरारती और हाइपरऐक्टिव बच्चों के बीच अंतर नहीं कर पाते। सामान्य बच्चे शरारतें करते समय माहौल का हमेशा ध्यान रखते हैं। बडों की फटकार सुनते ही वे पल भर में शांत हो जाते हैं। जबकि हाइपऐक्टिविटी न्यूरो बायोलॉजिकल समस्या है, जिस पर बच्चे का कोई नियंत्रण नहीं होता। वह जानबूझ कर ऐसा नहीं करता, बल्कि उसका शरीर अपने आप अति सक्रिय रहता है और कोशिश करने के बाद भी वह एक जगह पर शांत नहीं बैठ पाता। बच्चों में ऐसे ही लक्षणों से मिलती-जुलती एक और समस्या होती है, जिसे एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसॉर्डर कहा जाता है। ऐसे बच्चे बाहर से बहुत शांत दिखते हैं पर उनका मन उतना ही चंचल होता है। उनके दिमाग में एक साथ कई विचार चल रहे होते हैं। इसलिए वे किसी एक विचार पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। आमतौर पर बच्चों में हाइपरऐक्टिविटी की समस्या अकेली नहीं होती बल्कि इसके साथ उनमें एडीएचडी के भी कुछ लक्षण पाए जाते हैं, जिनसे वे अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। दूसरी ओर कुछ बच्चों में केवल एडीएचडी की भी समस्या हो सकती है। अब सवाल यह उठता है कि इस बात की पहचान कैसे हो कि कोई बच्चा सामान्य रूप से शरारती है या उसे कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है? इसे जांचने का एक बेहद आसान तरीका है। इसके लिए ए-4 साइज का एक पेपर लें, जिस पर स्पष्ट' दिखाई देने वाले अंग्रेजी वर्णमाला के कुछ अक्षर या शब्द अव्यवस्थित क्रम में लिखे हों और बच्चे से कहें कि वह उनमें से किसी एक खास अक्षर जैसे- A या U को ढूंढ कर उस पर पेंसिल से क्रॉस का निशान बनाए। इसके बाद आप उसके अक्षर काटने के तरीके को ध्यान से देखें। अगर वह हर पंक्ति में सिलसिलेवार ढंग से अक्षरों को ढूंढकर काट रहा है तो समझें उसे ऐसी कोई समस्या नहीं है लेकिन अगर वह अव्यवस्थित ढंग से अक्षरों को काटना शुरू कर दे तो पेरेंट्स को सचेत हो जाना चाहिए और बच्चे को किसी चाइल्ड काउंसलर के पास ले जाना चाहिए। वहां एक बेहद आसान सा टेस्ट लेने के बाद उसका ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है, जिसमें उससे रोजाना एक घंटे के लिए मेंटल ऐक्टिविटी वाली एक्सरसाइज करवाई जाती है। इसके साथ ही बच्चे और पेरेंट्स को काउंसलिंग भी दी जाती है। अगर कोई बच्चा नियमित रूप से काउंसलर के सभी निर्देशों का पालन करता है तो लगभग एक महीने के अंदर उसके व्यवहार में 30 प्रतिशत सुधार आता है और छह महीने के बाद उसके व्यवहार में 70-80 प्रतिशत तक सुधार आ जाता है। बहुत गंभीर स्थिति में बच्चों को थेरेपी के साथ दवाएं भी दी जाती हैं पर दवा का इस्तेमाल हमेशा अंतिम विकल्प के रूप में किया जाता है। यह ऐसी समस्या है, जिसे पूरी तरह दूर करना असंभव है पर थेरेपी और काउंसलिंग की मदद से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। आप भी एक बार किसी विशेषज्ञ से अपने बच्चे की जांच करा लें और चिंतित न हों। ऐसे बच्चे भी बडे होने के बाद सामान्य और सफल जीवन व्यतीत करते हैं। पेरेंटिंग टिप्स ऐसे बच्चे को सख्ती से सुधारने की कोशिश न करें बल्कि उसकी समस्या के बारे में किसी चाइल्ड काउंसलर से सलाह लें। उसकी स्टडी टेबल हमेशा कोने में रखें। अन्यथा पढाई के दौरान उसके मन में एकाग्रता नहीं आएगी। उसे ज्य़ादा चॉकलेट और जंक फूड न दें क्योंकि ऐसी चीजों के सेवन से दिमाग बहुत ज्य़ादा ऐक्टिव हो जाता है, जो उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। उसे विडियो गेम्स से दूर रखें क्योंकि इससे बच्चे का ध्यान भटकता है। गगनदीप कौर चाइल्ड एंड क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट

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