समय के साथ बदलें सोच भी
जीवन अनिश्चित है। इसमें उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। ऐसे वक्त में परिवार, रिश्तों और समाज के बाद बचत ही काम आती है। फिर भी निवेश को लेकर लोगों के बीच कई तरह की धारणाएं हैं। नया फाइनेंशियल इयर शुरू होने वाला है, इसलिए बचत के अपने संकल्प को आज ही
जीवन अनिश्चित है। इसमें उतार-चढाव होते रहते हैं। ऐसे वक्त में परिवार, रिश्तों और समाज के बाद बचत ही काम आती है। फिर भी निवेश को लेकर लोगों के बीच कई तरह की धारणाएं हैं। नया फाइनेंशियल इयर शुरू होने वाला है, इसलिए बचत के अपने संकल्प को आज ही दोहराएं और शुरुआत करें बेहतर ज्िांदगी की।
पैसे, बचत या निवेश को लेकर लोगों में कई तरह के भ्रम और धारणाएं हैं। कुछ को लगता है, अभी तो उम्र पडी है, निवेश कर लेंगे। कुछ सोचते हैं कि पहले करियर व्यवस्थित कर लें, घर भी ख्ारीद लेंगे। करियर शुरू होने पर लोग सोचते हैं, अब इतनी कम उम्र में हेल्थ स्कीम्स में क्यों इन्वेस्ट करें! सच तो यह है कि बुरा समय कभी बता कर नहीं आता। इसलिए विपरीत स्थितियों के लिए तैयार रहना और बचत करना ज्ारूरी है। जानें पैसे को लेकर कितनी धारणाएं हैं और वे कितनी सही हैं और कितनी ग्ालत।
धारणा 1
इतनी कम उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस की ज्ारूरत क्या है।
सच्चाई : सेहत किसी भी उम्र में बिगड सकती है। युवा होने का अर्थ यह नहीं कि विपरीत स्थितियां नहीं आएंगी। दुआ करें कि हेल्थ को कोई नुकसान न पहुंचे लेकिन कभी हॉस्पिटल में भर्ती होना पडे या सर्जरी की ज्ारूरत पडे तो? ऐसी स्कीम्स क्यों न लें कि कम से कम इलाज में लगने वाले पैसे को लेकर तो निश्चिंत रह सकेें।
धारणा 2
मेरी कंपनी का ग्रुप हेल्थ कवर काफी है
सच्चाई : ग्रुप कवर सचमुच अच्छा है लेकिन इसमें भी कई शर्तें होती हैं, लिहाज्ाा यह काफी नहीं हो सकता। ऑर्गेनाइज्ड़ सेक्टर के ज्य़ादातर कर्मचारी आजकल ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज्ा लेते हैं। ये उपयोगी भी होते हैं, लेकिन इनकी निश्चित सीमा होती है। इसमें यह शर्त भी होती है कि जब तक कंपनी में नौकरी करेंगे, तभी तक इंश्योरेंस कवरेज मिलेगा। अगर कंपनी प्रीमियम नहीं भर पाती तो भी पॉलिसी रद्द हो जाएगी। ऐसे में कर्मचारी के पास कोई उपाय नहीं बचता। इसके अलावा अगर इसमें माता-पिता और बच्चे भी कवर्ड हैं तो ज्य़ादा समस्या हो सकती है। उचित यही है कि निजी तौर पर भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज्ा लें।
धारणा 3
अभी तो करियर शुरू हुआ है, अभी से रिटायरमेंट प्लैनिंग क्यों?
सच्चाई : शुरुआती वर्षों से ही सही प्लैनिंग न की गई तो आगे परेशानियां हो सकती हैं। युवाओं को करियर के शुरुआती दौर में सब कुछ ज्ारूरी लगता है- लेटेस्ट आइफोन, चमचमाती बाइक, कार, महंगे रेस्तरां में खाना या लग्ज्ारी हॉलीडे बिताना...। ब्रैंडेड शट्र्स-शूज्ा में ही हज्ाारों ख्ार्च हो जाते हैं। उस वक्त सेविंग की परवाह नहीं होती। युवा रिटायरमेंट प्लैनिंग के बारे में सोचना भी नहीं चाहते। करियर के 15-20 साल बीतते-बीतते एहसास होने लगता है कि कहीं चूक हो गई है। समय का तकाजा है कि अपने बुढापे के लिए आज से ही प्लैनिंग करें क्योंकि आने वाला समय पहले से ज्य़ादा मुश्किल होता है।
धारणा 4
रिटायरमेंट के बाद ख्ार्च कम हो जाएंगे।
सच्चाई : ख्ार्च कभी कम नहीं होते, मगर कमाई कम हो जाती है। लाइफस्टाइल से जुडे ख्ार्च भले ही थोडे कम हो जाएं लेकिन मेडिकल बिल्स बढ जाते हैं। यह सच है कि बच्चों के आत्मनिर्भर होने के बाद माता-पिता के कई ख्ार्च कम हो जाते हैं, लेकिन उम्र बढऩे के साथ ही मेडिकल बिल्स बढऩे लगते हैं। महंगाई को देखते हुए हर साल सेहत संबंधी ख्ार्चों में 15-20 प्रतिशत तक का इज्ााफा हो जाता है। ऐसे में हेल्थकेयर पॉलिसीज्ा काम आती हैं। समस्या यह है कि अगर 30 की उम्र में 6 लाख रुपये हेल्थ कवर के लिए लगभग पांच हज्ाार रुपये का सालाना प्रीमियम भरना होगा तो 60 की उम्र में इतने ही कवर वाली पॉलिसी का प्रीमियम पांच-छह गुना तक बढ जाता है। इसलिए रिटायरमेंट प्लैनिंग के लिए शुरुआत से ही कदम बढाने ज्ारूरी हैं।
धारणा 5
किराये पर रहने से अच्छा है, घर ख्ारीदें।
सच्चाई : एक सीमा तक यह धारणा सही है। महानगरों में हर साल किराये में 10-11 प्रतिशत की बढोतरी को देखते हुए यह सही लगता है कि जितना किराया देना है, लगभग उतना या उससे कुछ ज्य़ादा किस्त दें और अपने घर में शिफ्ट कर लें। इसमें हर महीने बैंक से लिए गए लोन की किस्तें तो चुकानी होंगी लेकिन हर एक-दो साल में घर बदलने या किराया बढऩे के झंझट से बचा जा सकता है। दूसरी ओर जितनी तेज्ाी से प्रॉपर्टी के रेट्स बढ रहे हैं, उसे देखते हुए कई लोग किराये पर रहना पसंद करने लगे हैं। अगर कोई व्यक्ति पॉश इलाके में तीन कमरे के फ्लैट के लिए 30-35 हज्ाार रुपये प्रति महीने किराया दे रहा है तो उसके लिए यह सही होगा कि रेडी टु मूव फ्लैट ख्ारीद ले और बैंक से लोन लेकर लगभग इतनी ही किस्त बंधवा ले। लेकिन यदि कोई 6-7 हज्ाार रुपये प्रतिमाह किराया दे रहा है तो उसके लिए इतनी बडी किस्त चुकाना मुश्किल हो सकता है। आर्थिक स्थिति, सैलरी और ख्ार्चों का हिसाब लगा कर ही प्रॉपर्टी में निवेश के बारे में सोचना चाहिए। लोन की किस्त व्यक्ति की कुल तनख्वाह का चौथाई हिस्सा हो, तभी टेंशन-फ्री रहा जा सकता है।
धारणा 6
सेविंग के लिए फिक्स्ड डिपॉज्िाट ही बेहतर विकल्प है।
सच्चाई : आज से कुछ वर्ष पहले तक शायद यह विकल्प सही था, लेकिन अब कई बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं। यह सच है कि फिक्स्ड डिपॉज्िाट में रिटन्र्स की गारंटी है, लेकिन इसमें निवेश की सीमा निर्धारित होती है। इसके बाद उसके ब्याज में नॉर्मल टैक्स लगता है और इसमें टैक्स सेविंग भी नहीं हो पाती, जो नौकरीपेशा लोगों के लिए बडा मुद्दा है। सरकार द्वारा जारी टैक्स-फ्री बॉण्ड्स सेफ्टी स्केल पर सही मापे जा सकते हैं। इसके अलावा भी कई अन्य विकल्प हैं, जो फिक्स्ड डिपॉज्िाट की ही तरह सुरक्षित हो सकते हैं।
धारणा 7
टर्म इंश्योरेंस लेना समझदारी नहीं है।
सच्चाई : निवेश का सीधा फंडा यह है कि हम तब तक कोई ख्ार्च नहीं करना चाहते, जब तक कि उस पर रिटर्न न मिले। इसलिए लोगों को टर्म इंश्योरेंस के बारे में समझाना मुश्किल होता है। इसमें पूरी प्रीमियम लाइफ कवर में देनी पडती है और बदले में कुछ नहीं मिलता। लोग मनी बैक वाले निवेश को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इसमें मच्योरिटी लाभ के साथ ही टर्म की समाप्ति पर भी लाभ मिलता है। टर्म इंश्योरेंस एक सिंपल निवेश है। इसकी वजह यह है कि यदि पॉलिसीधारक की मौत हो जाती है तो आश्रितों को एक निश्चित रकम मिलती है और उनका भविष्य सुरक्षित रहता है। लाइफ इंश्योरेंस के अन्य कई विकल्प सेविंग-कम इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स हैं, जो कम कवर देते हैं और भारी प्रीमियम वसूलते हैं। वैसे निवेश की दृष्टि से टर्म प्लैन और पीपीएफ बेहतरीन कॉम्बो है।
कुछ ज्ारूरी बातें
1. सेविंग की आदत करियर के शुरुआत से ही होनी चाहिए। इसके साथ ही एक इमर्जेंसी क्राइसिस फंड ज्ारूर हो। युवा हों या वृद्ध, टर्म इंश्योरेंस सबके लिए बेहतर विकल्प है, क्योंकि परेशानी कभी भी आ सकती है। इसमें ख्ार्च कम है-सुरक्षा ज्य़ादा।
2. गोल्ड में निवेश करें। गोल्ड बॉण्ड, इक्विटी फंड या गोल्ड सिक्कों में निवेश से हमेशा लाभ होता है।
3. घर नहीं ख्ारीदना चाहते तो ज्ामीन में निवेश करें। यह सौदा कभी घाटे का नहीं होता। ज्ामीन के दाम हमेशा बढते हैं।
4. वसीयत का उम्र से कोई संबंध नहीं होता। इसलिए अगर आपकी उम्र 35-40 है और आपके पास प्रॉपर्टी और उसके वारिस हैं तो वसीयत ज्ारूरी है। छोटा परिवार है तो भी वसीयत करें, अन्यथा बाद में परिवार में संपत्ति संबंधी विवाद होने लगते हैं, कोर्ट-कचहरी तक मामले पहुंच जाते हैं। बेस्ट फॉम्र्युला है कि पहले वसीयत बनाएं, उसकी रजिस्ट्री भी कराएं, जिसमें यह लिखना ज्ारूरी है कि यह आपकी अंतिम वसीयत है और इसके अलावा कोई अन्य वसीयत नहीं है और कोई अन्य वसीयत मान्य नहीं होगी जब तक कि वह वैध रूप से रजिस्टर्ड न हो।
इंदिरा राठौर
टैक्स गुरु सीएनबीसी-आवाज्ा सुभाष लखोटिया से बातचीत पर आधारित