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रखें खुद को स्ट्रेस फ्री

'वर्किंग लेडी कॉन्सेप्ट' से हमारे मन में स्त्रियों की एक स्वच्छंद छवि बन जाती है। यह टर्म उन स्त्रियों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है जो कि बेहद कुशलता से घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियां निभा रही हों। ऑफिस, घर, सहकर्मी और परिवार को संभालने वाली स्त्रियों को

By Edited By: Published: Thu, 17 Sep 2015 02:51 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2015 02:51 PM (IST)
रखें खुद  को स्ट्रेस फ्री

'वर्किंग लेडी कॉन्सेप्ट' से हमारे मन में स्त्रियों की एक स्वच्छंद छवि बन जाती है। यह टर्म उन स्त्रियों के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है जो कि बेहद कुशलता से घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियां निभा रही हों।

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ऑफिस, घर, सहकर्मी और परिवार को संभालने वाली स्त्रियों को मल्टीटास्कर कहा जाता है। उनसे जुडे लोगों के लिए वे सुपरवुमन से कम नहीं होती हैं। उनकी परेशानियों को हर कोई समझता भी नहीं है, क्योंकि उन्हें अपनी समस्याएं साझा करने की ज्यादा आदत नहीं होती है। पर कभी-कभी आत्मनिर्भर स्त्रियों को भी दोहरी भूमिका निभाते-निभाते अवसाद होने लगता है। जानते हैं वर्क स्ट्रेस के कारण और उसके निवारण के उपाय।

क्या है स्ट्रेस

स्ट्रेस कोई रातोंरात होने वाली समस्या नहीं है। यह ऐसी स्थिति है जिस तक व्यक्ति धीरे-धीरे पहुंचता है। यह नकारात्मक सोच का परिणाम होने के साथ ही अति जिम्मेदारियों को अपने ऊपर लेने से भी होता है। जरा सी बात पर बेवजह ज्यादा तनाव लेना भी स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है।

स्ट्रेस के प्रमुख कारण

दिनचर्या के हिसाब से ही सबकी स्ट्रेस की वजहें भी अलग होती हैं। कोई घर की समस्याओं से तनावग्रस्त रहता है तो कोई ऑफिस की... उन समस्याओं से निबटने के सबके तरीके भी अलग होते हैं। समय पर उनका निवारण न कर पाने से तनाव अवसाद बन जाता है। ये हैं प्रमुख कारण :

-सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने का दबाव

-ओवरटाइम करने की लत

-घर में कोई सहारा न होना

-किसी तरह की शारीरिक समस्या

-घर, ऑफिस या बिजनेस में कोई तनावपूर्ण स्थिति का होना

-खानपान की गलत आदतें

-ख्ाुद के लिए समय न निकाल पाना

-अपने अनुरूप या सही से समय पर काम न हो पाना

स्ट्रेस के लक्षण

-कमजोरी महसूस होना

-एकाग्रता में कमी आना

-नींद न आना या सोते से जग जाना

-सिर में दर्द रहना

-पेट से जुडी समस्याएं होना

-अकेलापन अच्छा लगना

-एल्कोहॉल या ड्रग्स की लत लगना

-चिडचिडापन होना

ऐसे दूर रखें स्ट्रेस को

सभी का स्ट्रेस से डील करने का अपना ख्ाास

तरीका होता है। कोई कुछ समय बाद ख्ाुद ही ठीक होजाता है, तो कोई काउंसलर की मदद से... किसी के पास परिवार का सहारा होता है, तो किसी के पास दोस्तों का...। कोशिश की जानी चाहिए कि घर या ऑफिस का स्ट्रेस गहरे अवसाद की जड न बन जाए। अपनी दिनचर्या में जरा सा बदलाव करके आप स्ट्रेस को हमेशा अपनी जिंदगी से दूर रख सकती हैं।

वास्तविकता समझें

आपको यह समझना चाहिए कि ऑफिस का काम आपकी जिंदगी का जरा सा हिस्सा मात्र है। अपनी पूरी एनर्जी को उसमें ही डाल देने का नकारात्मक प्रभाव आपके निजी रिश्तों पर पड सकता है। फेमिली और प्रोफेशन में सही संतुलन बना कर चलें।

करें अपने मन की

आपके अति व्यस्त जीवन में आप ख्ाुद को भूलने लगती हैं। कभी-कभी समय निकाल कर अपना विश्लेषण करें। अपनी पसंद-नापसंद, हुनर को समझें और समय दें। पुराने एलबम देखकर भूली-बिसरी यादें भी ताजा कर सकती हैं।

परिवार को भी दें समय

ऑफिस का काम घर पर लेकर न आएं। बचा हुआ सारा समय ख्ाुद को व परिवार को समर्पित कर दें, वर्ना परिजन उपेक्षित महसूस करेंगे। डिनर के बाद सबके साथ टहलने जा सकती हैं या बच्चों का होमवर्क करवाएं।

संतुलन है जरूरी

रोज एक ही दिनचर्या अपनाने से बेहतर है कि बीच-बीच में थोडा बदलाव करती रहें। अपने काम से ब्रेक लेकर अपने परिजनों या दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाएं। एक ही टाइमटेबल पर काम करते रहने से बोरियत होने लगती है, इसलिए कुछ बदलाव जरूरी होता है।

बोझ कम रखें

न न कह पाने की आदत की वजह से अपने ऊपर काम का बोझ न बढाती रहें। काम उतना ही करें, जितना आपके बस में हो। इससे आपका तनाव कम होगा और परिवार के लिए समय भी बचा सकेंगी।

सकारात्मक सोच अपनाएं

नकारात्मक विचारों से भी तनाव बढता है। कोशिश करें कि ऐसे विचारों को दूर ही रखें। परफेक्शन के बजाय अपना बेस्ट देने का हरसंभव प्रयास करें। आप मोटिवेशनल किताबें भी पढ सकती हैं।

वर्कप्लेस पर भी करें एक्सरसाइज

अपनी दिनचर्या ऐसे निर्धारित करें कि उसमें िफजिकल वर्क भी शामिल हो। लिफ्ट के बजाय सीढिय़ों का प्रयोग करें। लंच ब्रेक के दौरान वॉक करने की आदत डालें।

रिलैक्स रहें

आराम करने का मतलब सिर्फ वेकेशन पर जाना नहीं होता है। हर 4 से 5 घंटे में दो मिनट के लिए आंखें बंद कर आप ख्ाुद को रिलैक्स कर सकती हैं। अगर कंप्यूटर पर ज्यादा काम करना पडता हो, तो बीच-बीच में आंखें बंद करके गहरीे सांस लेते रहें।

सोशल नेटवर्क बनाएं

अपनी व्यस्तता के बीच में भी दोस्तों व पडोसियों के लिए समय जरूर निकालें। इससे आपका मूड और माहौल दोनों बदल जाएंगे। उनके साथ घुलने-मिलने से आप रिलैक्स महसूस करेंगी और काम में अपना बेहतर आउटपुट भी दे सकेंगी।

मी टाइम है जरूरी

जब आप वेकेशन पर जाएं, अपने लैपटॉप व फोन से थोडी दूरी बना कर रहें। ख्ाुद के साथ समय बिताने की आदत डालें। सिर्फ परिवार या ऑफिस में ही व्यस्त रहेंगी तो स्ट्रेस बढेगा।

जितना हो सके, ख्ाुश रहें और ख्ाुद के लिए भी वक्त निकालें। ज्य़ादा स्ट्रेस लेने से आप न तो अपने परिवार पर ध्यान दे पाएंगी, न ही ऑफिस के कामों पर। बीच-बीच में रिफ्रेश होते रहने से बैलेंस बना रहेगा।

ध्यान दें

ऑफिस में माहौल तनावपूर्ण न बनने दें। माहौल ऐसा रखें कि सब बिना टेंशन के काम कर सकें। गॉसिप में उलझने के बजाय बेहतर काम करने के तरीकों पर चर्चा करें। अगर आपको लग रहा हो कि किसी के घर में कोई परेशानी है, किसी की तबियत ख्ाराब है या कोई यूं ही टेंशन में है तो उसकी मदद करने की कोशिश करें। फ्री टाइम मिलने पर अपने सहयोगियों से बात जरूर करें। इससे सब एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझेंगे और कोई मुसीबत आने पर साथ भी खडे होंगे। किसी की जिंदगी में बेवजह का दखल न दें। जहां आपकी जरूरत हो, वहीं अपनी बात रखें। दीपाली पोरवाल

(साइकोथेरेपिस्ट सुनीता सनाढ्य से बातचीत पर आधारित)


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