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अंतर्मन में हो उजियारा

प्रकाश पर्व दीपावली के अवसर पर हमारे घर का हर कोना दीये की रोशनी से जगमगा उठता है लेकिन खुशी के इस मौके पर हम अपने अंतर्मन को भूल जाते हैं, जो हमारे विचारों और भावनाओं का घर है।

By Edited By: Published: Sun, 16 Oct 2016 02:55 PM (IST)Updated: Sun, 16 Oct 2016 02:55 PM (IST)
अंतर्मन में हो उजियारा
लगभग महीने भर पहले से ही हमारे घरों में दीपावली के स्वागत की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। हम अपने घर के हर कोने की सफाई बडे ध्यान से करते हैं। सभी पुरानी और बेकार चीजों को बाहर निकाल कर घर के लिए बहुत कुछ नया खरीद लाते हैं। हम अपने पूरे घर को साफ-सुथरा और सुंदर बना देने की कोशिश में दिन-रात जुटे रहते हैं। यह त्योहार हमें स्वच्छता के साथ रहने का सलीका सिखाता है। इसके स्वागत में हम अपने घर को व्यवस्थित करके उसे बिलकुल नए जैसा बना देना चाहते हैं पर इस दौरान प्रकाश पर्व दीपावली के असली संदेश को भूल जाते हैं। इस बाहरी घर के अलावा हमारे भीतर भी एक घर होता है, जिसे हम अंतर्मन कहते हैं, जहां हमारे विचारों और भावनाओं का वास होता है। यह त्योहार हमारे अंतर्मन को सुंदर और निर्मल बनाने का संदेश देता है। नकारात्मकता को कहें ना इस बार प्रकाश पर्व दीपावली के अवसर पर खुद से यह वादा करें कि हम अपने मन में छिपे सभी नकारात्मक विचारों को बाहर निकाल फेंकेंगे। इसके लिए सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि आपके भीतर कौन से ऐसे नकारात्मक विचार मौजूद हैं, जो आपके व्यक्तित्व को दीमक की तरह धीरे-धीरे नष्ट करके उसे खोखला और कमजोर बना रहे हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपको छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है, आप बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं या अपने आसपास के किसी व्यक्ति की सफलता देख कर आपके मन में ईष्र्या-द्वेष की भावना पनपने लगती है तो ऐसी नकारात्मक बातों को एक-एक करके अपने मन से ठीक उसी तरह बाहर निकाल कर फेंकें जैसे कि दीपावली के समय अपने घर में पडा कबाड हटाने में जुट जाते हैं। हालांकि यह काम इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए आप चाहे एक ही संकल्प क्यों न लें पर मन में मजबूत इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है। आपके मन में हमेशा यह उत्साह होना चाहिए कि 'हां, मैं हर हाल में अपनी इस गलत आदत को बदल डालूंगा।' आत्म-मूल्यांकन है जरूरी मिसाल के तौर पर अगर आप अपने गुस्से पर काबू पाना चाहते हैं तो रोजाना रात को सोने से पहले स्वयं से यह सवाल जरूर पूछें कि आज दिन भर में आपको कितनी बार गुस्सा आया और उसे नियंत्रित करने के लिए आपकी ओर से क्या कोशिश की गई? अगर ऐसा लगता है कि कोशिश में कोई कमी रह गई है तो बिना किसी पछतावे के अगली बार सचेत ढंग से अपने क्रोध को नियंत्रित करने के प्रयास में जुट जाएं। इसके लिए एंगर मैनेजमेंट डायरी भी बहुत कारगर साबित होगी, जिसमें रोजाना रात को सोने से पहले आप यह नोट करें कि दिन भर में आपको कितनी बार गुस्सा आया और इस नकारात्मक भावना को आपने कैसे नियंत्रित किया। फिर सप्ताह में एक बार अपनी इस डायरी के पन्नों को पलट कर देखें। इससे खुद ही पता चल जाएगा कि इस मिशन में आपको अब तक कितनी कामयाबी मिली है। इसके अलावा जब कभी आपको गुस्सा आए तो शांत हो जाएं, ठंडा पानी पिएं और आंखें बंद करके गहरी सांस लें। जब आप इस सच्ची भावना के साथ अपने नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करने का सतत प्रयास करेंगे तो धीरे-धीरे खुद ही अपने भीतर सकारात्मक बदलाव नजर आएगा। नए के लिए जगह बनाएं जब तक हम अपने घर में पडी पुरानी और बेकार चीजों को नहीं हटाते तब तक हमारे पास नई और उपयोगी वस्तुओं को रखने के लिए जगह नहीं बन पाती। हमारे मन के साथ भी ऐसा ही होता है। अगर उसमें केवल बुरी यादों का वास होगा तो सकारात्मक विचारों के लिए जगह कैसे बनेगी? इसलिए हमें अपने मन में छिपी कडवी यादों को भुलाने की कोशिश करनी चाहिए। मान लीजिए, कभी किसी ने आपके साथ ऐसा बुरा बर्ताव किया, जिससे आपको बहुत दुख पहुंचा हो। आप उसी वक्त यह सोच कर उसके बुरे व्यवहार को नजरअंदाज कर दें कि जिस व्यक्ति के मन में जैसी भावना होगी, वह दूसरों को वही तो देगा। यह भी जरूरी नहीं है कि दूसरों की दी हुई बुरी चीज को आप अपने अंतर्मन में संजो कर रखें, बल्कि आपकी भलाई इसी में है कि ऐसी बुरी बातों को उसी वक्त कूडे की तरह अपने मन से बाहर निकाल दें। ऐसा करने पर आपके मन में बेकार की बातों का संग्रह नहीं होगा। फिर आप हमेशा खुश और तनावमुक्त रहेंगे। शुभ विचारों का स्वागत इस दुनिया के सुख-दुख सभी के लिए एक जैसे ही होते हैं पर कुछ लोग हर हाल में खुश और सक्रिय रहते हैं तो वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं, जो छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी विचलित हो जाते हैं। आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल यह सिर्फ नजरिये का फर्क है। जिस रंग का चश्मा पहनेंगे, आपको यह दुनिया वैसी ही दिखेगी। इसलिए सबसे पहले सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। हमारे आसपास हमेशा सब कुछ बुरा नहीं होता। कई अच्छी बातें और लोग भी हमारी जिंदगी से जुडे होते हैं पर नकारात्मक सोच के कारण वे हमें दिखाई नहीं देते। जिस रोज हम अपना नजरिया बदल लेंगे, हमें दूसरों की अच्छाइयां नजर आने लगेंगी और हमारा व्यवहार भी अपने आप सुधर जाएगा। हमारे आसपास कई ऐसे लोग मौजूद होते हैं, जो उम्र में हम से छोटे या कम पढे-लिखे होते हैं। फिर भी उनके व्यक्तित्व में कई ऐसी अच्छी बातें होती हैं, जिनसे हमें सीख लेनी चाहिए। शुभ विचार चाहे जहां से भी मिलें, उन्हें खुले दिल से ग्रहण करना चाहिए लेकिन अफसोस, हममें से ज्य़ादातर लोग ऐसा नहीं कर पाते। मिटे ईर्ष्या का अंधकार दीपावली की रात अपने घर के बाहर दीपक जलाते वक्त भी लोगों का ध्यान पडोसी के घर पर रहता है कि उसके यहां हमारे घर से ज्य़ादा रोशनी तो नहीं है? अगर कभी ऐसा होता है तो व्यक्ति के मन में ईष्र्या की भावना पैदा हो जाती है, जो उसे लाचार बना देती है। ऐसे में दीपावली का मूल संदेश ही नष्ट हो जाता है। इसलिए क्यों न इस दीपावली हम यह संकल्प लें कि अपने मन में छिपे सभी नकारात्मक विचारों को ज्ञान के झाडू से बाहर हटा देंगे। जिस तरह अगर कोई व्यक्ति रोजाना अपने घर के कोने में रखे कूडेदान की सफाई न करे तो जल्द ही उसके घर में इतना अधिक कूडा जमा हो जाएगा कि उसकी बदबू से घर में रहने वाले लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। ठीक इसी तरह अगर हम अपने मन से नकारात्मक विचारों की सफाई न करें तो यह केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि परिवार और समाज के लिए भी बहुत नुकसानदेह साबित होगा। जरा सोचिए, जब क्रोध, लोभ, घृणा, अहंकार और ईष्र्या-द्वेष जैसी बुरी भावनाएं आपको नापसंद हैं तो आपके भीतर मौजूद ऐसी नकारात्मक बातें दूसरों को कितनी बुरी लगती होंगी। अगर आप अच्छा सोचेंगे तो दूसरों की अच्छाइयां आसानी से नजर आएंगी। सकारात्मक सोच आपको हमेशा लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करेगी। जब आप अपनों के सुख-दुख का खयाल रखेंगे तो निश्चित रूप से सभी के साथ आपके संबंध मधुर बने रहेंगे। इतना ही नहीं, आपको देखकर दूसरे भी सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित होंगे। अगर इस दीपावली के अवसर पर हम अपने अंतर्मन में ज्ञान का दीपक जलाने का संकल्प लें तो इस संसार से समस्त बुराइयों का अंधकार अपने आप दूर हो जाएगा।

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