खुशी हो या गम संग रहेंगे हम
नया परिवार, नया परिवेश, नया उत्साह और नई चिंताएं....शादी का पहला साल काफी नाज़्ाुक होता है। बहू के लिए ही नहीं, पति और परिवार के लिए भी पहला साल काफी चुनौतीपूर्ण होता है। कहते हैं, शादी के शुरुआती दौर में थोड़ा धैर्य रखा जाए तो आगे की ज़्िांदगी आसान हो
नया परिवार, नया परिवेश, नया उत्साह और नई चिंताएं....शादी का पहला साल काफी नाज्ाुक होता है। बहू के लिए ही नहीं, पति और परिवार के लिए भी पहला साल काफी चुनौतीपूर्ण होता है। कहते हैं, शादी के शुरुआती दौर में थोडा धैर्य रखा जाए तो आगे की ज्िांदगी आसान हो जाती है। शादी के पहले साल के खट्टे-मीठे अनुभव सुना रही हैं एक सास और उनकी दो बहुएं।
यह सच है कि शादी का पहला साल बेहद नाज्ाुक होता है। नवविवाहित दंपती एक-दूसरे को समझने की प्रक्रिया में होते हैं। इसके साथ ही उन्हें एक-दूसरे के परिवारों के साथ भी एडजस्ट करना होता है। परिवारों के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण दौर होता है। लडकी के माता-पिता बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं तो बेटे के माता-पिता इस दुविधा में रहते हैं कि नई बहू का स्वभाव न जाने कैसा होगा। घर की साज-सज्जा से लेकर रहन-सहन और खानपान तक काफी कुछ बदल जाता है नई बहू के आने के बाद। बदलाव की यह प्रक्रिया रोमांचक तो होती ही है, इसमें कई चिंताएं भी शामिल होती हैं।
कहते हैं कि शादी के शुरुआती दौर में वर-वधू और उनके परिजन धैर्य का परिचय दें और बदलावों के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें तो भविष्य में रिश्तों की बॉण्डिंग बेहतर होती है। जयपुर के एक परिवार की तीन स्त्रियां बांट रही हैं शादी के शुरुआती दौर से जुडे अपने खट्टे-मीठे अनुभव।
बहुएं रौनक लार्ईं घर में
रोली माथुर, जयपुर
मेरे दो बेटे हैं। बडे बेटे की शादी को लगभग दो साल हुए हैं और छोटे बेटे की शादी को एक साल। हमारे परिवार को जॉइंट फेमिली माना जा सकता है। मेरे पति पांच भाई हैं। हम सभी एक ही कंपाउंड में अलग-अलग घरों में रहते हैं, लेकिन सबकी प्राइवेसी मेंटेन रहती है। हम तीज-त्योहार पर एकत्र होते हैं, साथ खाना खाते हैं और एंजॉय करते हैं। कोई भी आयोजन हो, हम 25-30 लोग तो घर के ही होते हैं। मेरे बेटों की शादी से पहले मन में चिंता रहती थी कि पता नहीं कैसी बहुएं आएंगी। मैं चाहती थी कि जान-पहचान के परिवारों में शादी हो जाए। मेरी ख्वाहिश पूरी हुई। सब कुछ के बावजूद काफी ऊहापोह रहती थी कि पता नहीं शादी के बाद बहुएं एडजस्ट कर सकेेंगी कि नहीं। मेरी चिंता ज्य़ादा दिन नहीं रही। बहुएं आईं और एडजस्ट भी हो गईं। छोटी बहू आकांक्षा को तो हम बचपन से जानते हैं। मेरी बेटी नहीं है, लेकिन बहुओं ने बेटी की कमी भी दूर कर दी। हाल ही में मेरी बडी बहू की बेटी हुई है और मैं दादी बन गई हूं। बेटों के सेटल होने के बाद हम पति-पत्नी घर में काफी अकेलापन महसूस करते थे। बहुएं आईं तो घर में रौनक आ गई। छोटी बहू को सुबह जल्दी ऑफिस निकलना होता है। वह जल्दी उठती है तो नाश्ते की तैयारी वह करती है, मैं पहले उठती हूं तो मैं नाश्ता तैयार कर लेती हूं। घर में हेल्पर है, हमें सिर्फ सुपरवाइज्ा करना होता है। धीरे-धीरे बहुएं काम सीख रही हैं। बडी बहू की बच्ची छोटी है। वह उसी में बिज्ाी रहती है। करवाचौथ पर हमारे घर काफी बेटियां और बहुएं जमा थीं। मेरे जेठ की बेटियां भी जयपुर में हैं। मैं संयुक्त परिवार में पली-बढी, मेरी शादी भी संयुक्त परिवार में हुई। आगे भी मेरी कोशिश है कि हमारा पूरा परिवार साथ रहे। मैं दोनों बहुओं को पूरी आज्ाादी देती हूं। उनकी नई शादी हुई है, इसलिए अभी उन्हें बडी ज्िाम्मेदारियों से फ्री रखती हूं, ताकि एक-दो साल वे एंजॉय करें। मैंने भी अपने समय में संयुक्त परिवार में रहते हुए ख्ाूब एंजॉय किया, अब मेरी बहुएं भी कर रही हैं।
थोडा धैर्य तो ज्ारूरी है
अरुणिमा (बडी बहू)
मेरी अरेंज्ड मैरिज है। शादी से पहले मैं वेजटेरियन थी। शादी के बाद पति ने मुझसे कहा कि नॉनवेज बनाना-खाना तो सीखना होगा। मुश्किल तो था, लेकिन फिर सोचा कि निभा कर देखा जाए। इस छोटे से एडजस्टमेंट ने ससुराल में मेरा मान बढा दिया। इस मामले में मैं अपने सास-ससुर की शुक्रगुज्ाार हूं कि उन्होंने मुझे पूरा सहयोग दिया। मम्मी-पापा से भी ज्य़ादा प्यार मुझे यहां मिला। मेरी सास ने मुझे कुकिंग और ख्ाासतौर पर नॉनवेज बनाना सिखाया। अब तो मैं बहुत शौक से नॉनवेज बनाती-खाती भी हूं। मेरे देवर-देवरानी भी बहुत प्यारे हैं। हमारे बीच उम्र का ज्य़ादा फासला नहीं है। हमारी शादी में भी एक साल का ही अंतर है। हम सब दोस्तों की तरह रहते हैं। मेरी देवरानी तो बिलकुल मेरी छोटी बहन जैसी है। शुरू में मैं खुल नहीं पाती थी, थोडा डर भी लगता था। दरअसल दो परिवारों का रहन-सहन, तौर-तरीके और संस्कृतियां अलग-अलग होती हैं तो कई बार डरती थी कि कुछ ग्ालत न कर बैठूं, लेकिन ससुराल में इतना प्यार और सहयोग मिला कि मेरी सारी हिचक दूर हो गई। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं बहू हूं। हमेशा बेटी की तरह रही। मैं होम्योपैथी प्रैक्टिशनर हूं। अभी बेटी छोटी है, इसलिए काम से ब्रेक लिया है। बच्ची को संभालने में भी मुझे मम्मी जी से बहुत मदद मिलती है। मुझे लगता ही नहीं कि शादी को दो साल हो गए हैं। मेरा मानना है कि थोडा धैर्य रखा जाए तो नए माहौल में एडजस्ट करना आसान हो जाता है।
शादी के बाद ज्िाम्मेदार हुई आकांक्षा (छोटी बहू)
मेरी शादी को एक साल हुआ है। पति को बचपन से जानती हूं, मगर शादी के बाद जानना अलग होता है। ज्िाम्मेदारियां बढती हैं। पति-पत्नी के साथ सास-ससुर को भी एडजस्टमेंट करना होता है। इस प्रक्रिया में नोक-झोंक भी हो जाती है। जैसे, मुझे घूमने का मन है और पति को आराम करने का तो झडप होना सामान्य है। जब कभी ऐसा होता है तो मेरी सास समझाती हैं। वह बताती हैं कि शादी के बाद उनका पहला साल और ज्य़ादा बुरा था। वैसे मैं शादी के बाद थोडी ज्िाम्मेदार हुई हूं। मैं ख्ाुशिकस्मत हूं कि मुझे इतना प्यारा परिवार मिला। मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। शादी के तुरंत बाद साडी-सूट के साथ चूडिय़ां पहन कर ऑफिस जाती थी तो कंफर्टेबल नहीं हो पाती थी। मम्मी ने समझाया कि कुछ दिनों की बात है, कर लो। अब तो वेस्टर्न पहनती हूं, वीकेेंड पर देर तक सोती हूं। मम्मी-पापा और भाभी ने पूरा सपोर्ट किया, इसलिए हम ख्ाुश हैं।
मेरी शादी का पहला साल लडते-झगडते निकल गया। मैं सफाई के मामले में परफेक्शनिस्ट हूं, जबकि पति लापरवाह। आधी लडाइयां तो इसी पर होती रहीं। आख्िारकार दोनों ने समझौता कर लिया। शादी के आठ साल बाद वह तो नहीं सुधरे, मैं ही सुधर गई हूं।
मलिका सुधीर, नोएडा
मेरा इकलौता बेटा है। तीन साल पहले उसकी इंटरकास्ट मैरिज हुई। हम चाहते थे कि शादी हमारी पसंद से हो, इसलिए शुरू से मेरा व्यवहार बहू के प्रति थोडा रूखा रहा। लेकिन मेरी बहू ने बहुत धैर्य का परिचय दिया। धीरे-धीरे वह कब और कैसे पूरे परिवार के साथ घुल-मिल गई, हमें भी नहीं पता चला। मुझे बेटी की कमी खलती थी, बहू ने वह कमी पूरी कर दी। आज हम साथ-साथ शॉपिंग करते हैं, जिम और पार्लर जाते हैं। वह मेरी बेटी, दोस्त, बहू सब कुछ है। बीमार पडती हूं तो वह मेरी मां का रोल भी निभाती है।
सीमा मेहता, लखनऊ