एक पिता की डायरी
बच्चे को जन्म तो मां देती है लेकिन पिता भी उसकी पीड़ा और खुशी में बराबर का हिस्सेदार होता है।
मुझे कभी नहीं लगता था कि बच्चे के आने से ज्िांदगी कुछ खास बदलती होगी लेकिन जैसा आप सोचते हैं, वैसा होता थोडे ही है। सच कहूं तो पहले मुझे बच्चों के रोने की आवाज्ा से ही इतनी दिक्कत होती थी कि पूछिए मत, मगर अब बच्चे का रोना ऐसा लगता है, मानो कोई सुरीला गाना बज रहा हो। पहले मैं बच्चों को गोद में नहीं ले पाता था। ले भी लेता था तो डर लगा रहता था कि कहीं वह गिर न जाए। अब आलम यह है कि एक हाथ से बच्चे को गोद में लिए रहता हूं और गैस पर चाय भी बना लेता हूं।
पहले सबसे ज्यादा कोफ्त मुझे सिनेमाघरों में होती थी। सोचता था कि लोग बच्चों को क्यों ले आते हैं, बच्चे रोते हैं और बाकी सारे दर्शक भी सामने पर्दे के बजाय बच्चे की दिशा में देखने लगते हैं। जब से पापा बना हूं, मुझे उन सारे माता-पिता से सहानुभूति होती है जो नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ फिल्म देखने आते हैं।
पापा बनने के बाद एक और फायदा हुआ है मुझे। पहले कभी कहीं जाने के लिए फ्लाइट लेता था तो एयर होस्टेस ध्यान भी नहीं देती थीं। अब गोद में बच्चे को देखते ही तुरंत मदद को तैयार हो जाती हैं।
बच्चा होने के बाद से सबसे बडा परिवर्तन यह आया है कि मैं रिश्तों को लेकर गंभीर हुआ हूं। पहले मैं बहुत कैज्ाुअल था, मगर अब यह लगता है कि मैं न केवल बेहतर पिता बनूं बल्कि जो कुछ भी करूं, वह अपने आप में सर्वश्रेष्ठ हो ताकि मेरे बेटे को मुझसे कभी यह शिकायत न रहे कि मैं और बेहतर कर सकता था। वैसे एक ज्ारूरी बात बताता चलूं कि एक पुरुष के भीतर पिता बनने की प्रक्रिया बहुत पहले से शुरू हो जाती है। बच्चा पैदा होने के बाद ही वह पिता नहीं बनता, बल्कि जबसे डॉक्टर बताता है कि 'अब आप पापा बनने वाले हैं, तभी से धीरे-धीरे व्यक्ति के भीतर मौाूद पिता अपनी ज्िाम्मेदारियां समझने लगता है। असल में पिता होना भी अपने आप में कोई कमाल नहीं है, बल्कि हमारा कोई हिस्सा जिस पल मां जैसी ममता से भर जाता है, सही मायनों में पिता हम तभी बनते हैं।
मैंने अपने दादा जी को कभी नहीं देखा। कई बार जब साथ के बच्चों को उनके दादा जी के साथ खेलते देखता तो बचपन का कोई हिस्सा अधूरा सा लगता। घर में दादा जी की एक तसवीर थी, जो धुंधली हो चुकी थी। इस बारे में दादी से पूछता तो वह रोने लगतीं...।
बेटे के जन्म के बाद अजीब सी बात हुई। जब वह मेरे पिता यानी अपने दादा जी की गोद में बैठा हुआ शरारत करता है तो मुझे अपने पापा में अपने दादा जी नज्ार आते हैं। सालों पुरानी दादाजी की धुंधली तसवीर जैसे साफ हो गई है। अपनी शक्ल ध्यान से देखता हूं तो अपने ही पापा का अक्स दिखाई देने लगता है और बेटे को प्यार से देखता हूं तो पाता हूं कि मैं ही फिर से दुनिया में पैदा हो गया हूं।
मुझे लगता है कि शुरू से दुनिया के सारे पिता और बच्चे वही हैं, बस हर पीढी के साथ उनकी शक्लें बदलती रहती हैं। मेरे पापा ने हमेशा यही कहा कि 'तुम अच्छा बनना या खराब बनना, इससे फर्क नहीं पडता, बस वही करना, जो मन को ठीक लगे।
मेरे बेटे ने मुझे मौका दिया है कि मैं पापा की हर फीलिंग समझ सकूं। मुझे उम्मीद है कि मेरा बेटा मुझसे भी अच्छा भाई, दोस्त, प्रेमी, पति, पिता बनेगा। वह बेहतर इंसान बनेगा। मेरे बचपन का अधूरा हिस्सा लौटाने के लिए मैं अपने बेटे का शुक्रिया करता हूं।