रचनात्मकता देती है ऊर्जा
दिन अच्छे हों या बुरे, सृजनधर्मी लोगों का उन्हें देखने का नज़रिया हर हाल में अलग होता है। रचनात्मकता हमें मुश्किल हालात का सामना करना ही नहीं सिखाती, जीवन के लिए नई ऊर्जा भी देती है।
अपने जीवन में हर शख्स को कुछ न कुछ मुश्किलें झेलनी ही पडती हैं और कभी-कभी तो ऐसी स्थिति भी हो जाती है कि मुश्किलों का दौर सा चल पडता है। यह दौर कुछ लोगों पर बहुत भारी पडता है, कुछ पर सिर्फ भारी और कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो इस दौर पर ही भारी पड जाते हैं। वे इसे न केवल मुसकुराते हुए झेल लेते हैं, बल्कि जीत कर दूसरों के लिए मिसाल भी कायम कर देते हैं। अकसर ये वही लोग होते हैं जो अपनी रचनात्मक क्षमता को पहचानते हैं और हर हाल में सृजन की सकारात्मक सोच बनाए रखते हैं। ऐसे लोगों के लिए मुश्किलें सिर्फ मुश्किलें नहीं होतीं, नए सृजन की प्रेरणा भी होती हैं। साहित्य, संगीत और कला की दुनिया में असंख्य उदाहरण इसकी तसदीक करते हैं।
मुश्किलों से ऐसे ही जूझने और उन्हें नए सृजन की प्रेरणा बना लेने की क्षमता दुनिया के हर शख्स में है। जरूरत है अपनी उस क्षमता और मौलिक प्रतिभा को पहचानने और विकसित करने की। आम तौर पर कहा जाता है कि कुछ न कुछ ख्ाूबी हर शख्स में होती है... यह सिर्फ एक कहावत नहीं, सच्चाई है। क्योंकि आपके दुनिया में बने रहने का कारण आपकी ख्ाूबी ही होती है। यह अलग बात है कि कुछ लोग अपनी उस ख्ाूबी को केवल शौक तक सीमित रखते हैं और कुछ उसे ही जूनून बना लेते हैं। किसी की रुचि गाने में होती है तो किसी की गीत लिखने में, किसी की चित्र बनाने में तो किसी की मूर्तियां गढऩे में। ऐसे ही कुछ लोगों को मशीनों से खेलना अच्छा लगता है तो कुछ को आंकडों से। कुछ लोगों की दिलचस्पी जीव-जंतुओं में होती है और कुछ की धरती के ऊपर फैले अंतहीन आकाश में बिखरे सितारों में।
इन रुचियों को कुछ लोग बहुत जल्दी पहचान लेते हैं तो कुछ को इसे पहचानने में देर लग जाती है। जल्दी पहचानने वालों में भी इनकी संभावनाओं को कम लोग जान पाते हैं और जो जानते हैं उनमें उसे करियर बनाने की दिशा में कम लोग ही बढ पाते हैं। वास्तव में यह बहुत हद तक व्यक्तिविशेष की परिस्थितियों और उसके परिवेश पर निर्भर करता है। जिन्हें उचित माहौल और प्रोत्साहन मिलता है, वे अपनी उसी रुचि का परिष्कार करते हुए उसमें पूरी महारत हासिल कर लेते हैं। फिर उसके ही जरिये पैसा और प्रसिद्धि दोनों हासिल कर लेते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते, उनमें कई लोग उसे शौक बना लेते हैं, जो कम से कम अपने परिचितों के बीच उनकी अलग पहचान बनाता है और उन्हें लोकप्रियता दिलाता है। जो इस पर बहुत ध्यान नहीं दे पाते, उनके भीतर मौजूद प्रतिभा कोई ख्ात्म नहीं हो जाती। विकसित वह भले न हो पाए, लेकिन समय-समय पर वह दुनिया के सामने आने का मार्ग तलाशती रहती है। वह फुर्सत के क्षणों में एक बेहतर मनोरंजन होती है और मुश्किल क्षणों में आपका हौसला बनाए रखने का सबब। संगीत हो, या कला, या फिर विज्ञान की ही कोई शाखा... किसी भी क्षेत्र में कुछ नया करने की कोशिश हमेशा नई ऊर्जा देती है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक एरिकमीजेल कहते हैं, 'ऐसे लोगों के लिए कैसी भी मुसीबत सिर्फ एक चुनौती होती है और चुनौती तो होती ही है पार पाए जाने के लिए। रचनात्मकता से मिली ऊर्जा ही उन्हें जीवन में आई कैसी भी चुनौती से निपटने में मददगार होती है। इसलिए इसे सहेजे रखना और समय-समय पर पोषण देना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।
जूझने की शक्ति देता है संगीत
पंडित भजन सोपोरी, संतूरवादक
किसी की रचनात्मकता उसके अस्तित्व से जुडी हुई चीज है, क्योंकि सृजन की हर प्रक्रिया से आशाएं जुडी हुई होती हैं। जब भी आप कुछ रचते हैं तो यह उम्मीद करते हैं कि इसका यह असर होगा। इसीलिए रचनाधर्मी व्यक्ति किसी भी स्थिति में हताश नहीं होता। वह कहीं एक तरफ विफल होता है तो दूसरी तरफ अपने लिए सफलता की नई उम्मीद तलाश लेता है और इस उम्मीद को भी वह अकसर निष्काम भाव से लेता है। उसके लिए रचना की प्रक्रिया ही आनंद का स्रोत हो जाती है। इस बात को हर विचारधारा ने अपने-अपने ढंग से व्यक्त किया है। सृजनधर्मिता वह तत्व है जो मनुष्य को सफलता या बडी उपलब्धियां हासिल करने पर भी आपा नहीं खोने देती, तो मुश्किल हालात में धैर्य भी नहीं खोने देती। यह हमेशा आपको अपने क्षेत्र में और अधिक परफेक्शन हासिल करने के लिए प्रेरित करती रहती है। आपकी कल्पना जितनी परफेक्ट होगी, उपज उतनी श्रेष्ठ होगी। यह समझ आपको जीवन की स्थितियों के प्रति भी अलग नजरिया देती है। मैं अपने जीवन में बहुत तरह की मुश्किलों से गुजरा हूं, लेकिन ऐसे हर समय में संगीत ही मेरे लिए सबसे बडी ताकत रहा है। हर हाल से जूझने और उससे उबरने की शक्ति मुझे संगीत ने दी।
ध्यान के करीब है रचनात्मकता अशोक पुरंग, रंगकर्मी-फिल्मकार
मैं दिल्ली से यूरोपीय समुदाय की नौकरी छोडकर मुंबई गया था। थियेटर आर्टिस्ट था, तो वो संस्कार गहरे जडें जमाए हुए थे। एक जिद थी कि करूंगा तो अपने ढंग का ही काम, वरना ना करना अच्छा। अपनी इस जिद का नतीजा ये हुआ कि तब से लेकर मुझे पहली फिल्म बनाने में ही 18 साल लग गए। बीच-बीच में बहुत तरह के उतार-चढाव आए। थियेटर आर्टिस्ट था ही, तो बीच में कभी वर्कशॉप कर ली तो कभी किसी कॉलेज में पढा लिया... ऐसे चलता रहा। एक बार तो एक मित्र से मेरे बडे गहरे मतभेद हो गए। मैंने इमोशनली अपने को बहुत टूटा हुआ महसूस किया। भयंकर सिरदर्द हुआ। घर पहुंचा और दवा लेकर सो गया। रात में 2 बजे नींद टूटी तो एक रफ कॉपी उठाई और उस पर पूरे 22 एपिसोड की एक कहानी की वनलाइनर थीम लिख डाली। अब वो एक फिल्म का रूप लेने जा रही है। हालांकि उस घटना से वह कहानी बिलकुल भिन्न है, लेकिन वह उपज उस तनाव की ही है। असल में रचनात्मकता आपको अपने जीवन की घटनाओं को ही अपने से अलग होकर देखने की क्षमता देती है। अपने साथ जो कुछ हो रहा है, आप उसके दर्शक मात्र रह जाते हैं। यह ध्यान की अवस्था के बहुत करीब है। यह स्थिति सिर्फ ऊर्जा ही नहीं देती, आपके जीवन को ही नया कर देती है।
आध्यात्मिक शक्ति की तरह है नृत्य
नलिनी, कथक नृत्यांगना
जिंदगी है तो मुश्किलें तो आएंगी ही। मुश्किलों से उबरने के उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा कोई रास्ता नहीं है जिससे उनका आना ही टाल दिया जाए। मेरे लिए चाहे अच्छा समय हो या ख्ाराब, मेरा नृत्य हर हाल में काम आता है। अभ्यास तो नृत्य का मैं नियमित रूप से करती ही हूं और यह भी महसूस करती हूं कि चाहे जैसी स्थिति हो, इससे मुझे हमेशा एक नई शक्ति मिलती है। साधना से जो शक्ति आती है, वही आपको दूसरों से अलग करती है और सभी स्थितियों में सहज बने रहने में मदद भी करती है। मेरे लिए यह आध्यात्मिक शक्ति की तरह है।
दुनिया कैनवास है, हालात रंग
श्रीकांत दुबे, चित्रकार
एक चित्रकार के लिए पूरी दुनिया ही एक कैनवास होती है और जीवन के हालात को वह रंगों के रूप में देखता है। यही तो वह चीज है जो उसे रचना के लिए प्रेरणा देती है। अब अगर किसी कैनवास पर केवल एक ही रंग हो तो उसका सौंदर्य कितना निखर कर सामने आ सकेगा? ठीक वही बात जिंदगी के भी मामले में है। जब भी मेरे सामने कोई विपरीत परिस्थिति आती है, मैं उसे इसी नजरिये से देखता हूं और दूने उत्साह से कला की साधना में लग जाता हूं। मैं मूल रूप से राइट हैंडर हूं। जब मैं नवीं कक्षा में पढता था, तब तक सारे काम दाहिने हाथ से करता था। लेकिन, उन्हीं दिनों एक दुर्घटना में बिजली का करंट लग जाने से मुझे लंबे समय तक अस्पताल में रहना पडा। डॉक्टरों ने कहा कि जिंदगी बचानी है तो दाहिना हाथ काटना पडेगा और आख्िारकार काटना ही पडा। उस दौर में अगर मुझे मेरी कला का सहारा न मिला होता तो मैं डिप्रेशन का शिकार हो गया होता। आज मैं इन बातों पर सोचता हूं तो लगता है कि मेरे लिए कला ही जीवन की ऊर्जा है।
इष्ट देव सांकृत्यायन