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संगम 5 पर्र्वों का

दीपावली का त्योहार सही मायने में हमारी संस्कृति का आईना है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक चलने वाले पांच दिनों का यह महापर्व आरोग्य, समद्धि, सौंदर्य, पर्यावरण संरक्षण और भाई-बहन के स्नेहपूर्ण रिश्ते की मिठास से सराबोर है। प्रस्तुत है इस त्योहार की एक मनोहारी झलक। आरोग्य और समृद्धि

By Edited By: Published: Wed, 28 Oct 2015 04:08 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2015 04:08 PM (IST)
संगम 5 पर्र्वों का

दीपावली का त्योहार सही मायने में हमारी संस्कृति का आईना है। धनतेरस से लेकर भैया दूज तक चलने वाले पांच दिनों का यह महापर्व आरोग्य, समद्धि, सौंदर्य, पर्यावरण संरक्षण और भाई-बहन के स्नेहपूर्ण रिश्ते की मिठास से सराबोर है। प्रस्तुत है इस त्योहार की एक मनोहारी झलक।

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आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक धनतेरस

र्तिक मास की त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन के उपरांत ऋषि धन्वंतरि हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। वस्तुत: धन्वंतरि ऋषि आयुर्वेद के प्रणेता माने जाते हैं। इसलिए उनके जन्म दिवस के अवसर पर स्वस्थ जीवन की प्रार्थना के साथ उनका पूजन किया जाता है। धन्वंतरि के साथ इस दिन धन के देवता कुबेर व मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि है कि इस दिन यमराज को दीप व नैवेद्य समर्पित करने से व्यक्ति अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।

पारंपरिक कथा

प्राचीनकाल में हेम नामक राजा को जब पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उसकी जन्म कुंडली देखकर राज ज्योतिषी चिंतित हो गए। उन्होंने कहा, इस बालक की जन्म कुंडली में विवाह के ठीक चार दिनों बाद मृत्यु का योग है। यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुए और उन्होंने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां उस पर किसी स्त्री की छाया भी न पडे। दैवयोग से किसी रोज एक राजकुमारी उधर से गुज्ारी। दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के ठीक चार दिन दिनों बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे, तब उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। एक यमदूत ने यम देवता से प्रार्थना की, 'हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है, जिससे यह युवक अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। यह सुनकर यम देवता ने कहा, 'हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, पर इससे मुक्तिका एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं। धनतेरस की रात जो व्यक्ति दक्षिण दिशा में मुझे दीपक भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाते हैं।

त्योहार से जुडी मान्यताएं

धनतेरस के संबंध में ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोने-चांदी के आभूषण या बर्तन ख्ारीदने से पूरे वर्ष घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार इस दिन हम जो कुछ भी ख्ारीदते हैं, उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है। धनतेरस के अवसर पर किसी भी धातु से बनी वस्तु को ख्ारीदना शुभ माना जाता है और जहां तक संभव हो, त्योहार की ख्ारीदारी सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण से जुडी है

नरक चतुर्दशी

नतेरस के अगले दिन मनाए जाने वाले त्योहार को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस संबंध में यह कथा प्रचलित है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और उसके द्वारा बंदी बनाई गई सोलह हज्ाार कन्याओं को मुक्त करा के, उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान दिया था। इसके बाद उन कन्याओं ने भगवान के शरण को छोडकर अपने पिता के घर वापस जाने से इंकार कर दिया। अत: भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी कन्याओं से विवाह करके उन्हें संरक्षण प्रदान किया।

रूप चौदस भी है यह

नरक चतुदर्शी को रूप चौदस भी कहा जाता है। इस संबंध में प्रचलित एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यगर्भ नामक नगर में एक योगीराज ने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। उन्होंने अन्न-जल त्याग कर समाधि लगा ली। इससे उनका पूरा शरीर जीर्ण-शीर्ण और मलिन हो गया। तभी वहां नारद जी पहुंचे। उन्हें देखकर योगी राज ने कहा, 'हे! देवऋषि मैं तो भगवान के चिंतन में लीन रहना चाहता था, परंतु मेरी ऐसी दशा क्यों हो गई? तब नारद जी ने कहा कि योगीराज आप चिंतन करना तो जानते हैं, पर अपने देह-आचार के नियमों का पालन करना नहीं जानते। इसी वजह से आपकी यह दशा हुई है। इसके लिए आपको कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को प्रात:काल अच्छी तरह स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिए। इससे आपका शरीर पहले की तरह स्वच्छ और कोमल हो जाएगा। योगीराज ने नारदमुनि द्वारा बताए गए नियमों का पालन किया तो जल्द ही उनका शरीर पहले की तरह स्वस्थ और सुंदर हो गया। इसी वजह से इस दिन को रूप चौदस भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि यदि इस दिन प्रात:काल आटे-हल्दी के उबटन और तेल की मालिश के बाद स्नान किया जाए तो व्यक्ति के रूप-सौंदर्य में वृद्धि होती है।

ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से भी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन वाराणसी और उज्जैन सहित कई प्रमुख सिद्ध स्थलों पर तंत्र-मंत्रों की सिद्धि की जाती है। पश्चिम बंगाल सहित कुछ अन्य प्रांतों में इस दिन काली माता की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।

दक्षिण भारत में श्रीकृष्ण का स्वागत

गीता चंद्रन, भरतनाट्यम नृत्यांगना

मैं मूलत: तमिलनाडु की रहने वाली हूं। मुझे आज भी याद है कि बचपन में हमारी दादी हमें सुबह चार बजे ही जगा देतीं। फिर तिल या नारियल के तेल से मालिश के बाद हमें नहलाती थीं। इस रस्म के पीछे यह मान्यता छिपी है कि राक्षस नरकासुर का वध करके भगवान श्रीकृष्ण जब गोकुल लौटे थे तो उनके शरीर पर लगे रक्त के निशान सूख गए थे, जिन्हें साफ करने के लिए गोपियों ने पहले उन्हें तेल से स्नान करवाया था। उसी घटना की याद में वहां आज भी प्रात:काल कुमकुम लगे नींबू को पैरों से कुचल कर प्रतीकात्मक रूप से नरकासुर का वध करने के बाद तैल-स्नान की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इससे पूरे वर्ष व्यक्ति का शरीर निरोग रहता है। स्नान के बाद भगवान के गोकुल वापस लौटने की ख्ाुशी में प्रात:काल सूर्योदय से पहले घरों के बाहर दीये जलाए जाते हैं और बच्चे आतिशबाजी चला कर अपनी ख्ाुशी का इजहार करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के स्वागत में जांगरी (जलेबी), मैसूर पाक, मूरुक्कु और तेंगोयल (चावल के आटे और तिल से बना नमकीन) जैसे कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। फिर इन सभी पदार्थों से भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा की जाती है। इस त्योहार की सबसे बडी ख्ाासियत यह है कि जहां पूरे उत्तर भारत में शाम के समय छोटी दीपावली की रौनक होती है, वहीं दक्षिण भारत में नरक चतुर्दशी का त्योहार प्रात:काल सूर्योदय से पहले मनाया जाता है।

अंधेरे पर प्रकाश के विजय का पर्व

दीपावली

र्तिक मास की अमावस्या दीपावली के नाम से विख्यात है। प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीराम रावण का वध करके अयोध्या वापस आए थे। उनके आगमन की ख्ाुशी में पूरी अयोध्या नगरी अमावस्या की काली रात में घी के दीयों के प्रकाश से जगमगा उठी थी। ऐसी मान्यता है कि इस रोज भगवान गणेश के साथ लक्ष्मी और सरस्वती माता का पूजन पूरे वर्ष के लिए मंगलकारी सिद्ध होता है।

कमला जयंती भी है यह

तंत्र शास्त्र में वर्णित देवी कमला मूलत: भगवती लक्ष्मी ही हैं। तंत्र ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही देवी कमला प्रकट हुई थीं। कमल के पुष्प पर आसीन होने के कारण लक्ष्मी माता कमलालया भी कहलाती हैं। यह देवी चतुर्भुजा हैं। यह ऊपर के दोनों हाथों में कमल पुष्प धारण किए हुए हैं। नीचे दाहिने हाथ से अभयदान तथा बायें हाथ से वरदान दे रही हैं। चार बडे गजराज अपनी सूंड में अमृत कलश लेकर इनका अभिषेक कर रहे हैं। शास्त्रों में देवी के इसी रूप का ध्यान करने का निर्देश मिलता है। कार्तिक मास की अमावस्या मूलत: कमला के रूप में देवी लक्ष्मी का ही जन्म दिवस है, जिसके उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर दीपावली की रात जागते हुए लक्ष्मी के इस रूप की अर्चना की जाए तो वह अपने चंचल स्वभाव को त्याग कर भक्त के घर में स्थिर होकर वास करती हैं।

लक्ष्मी पूजन की विधि

देवी लक्ष्मी को स्वच्छता अति प्रिय है। इसलिए इनके पूजन से पहले घर के हर कोने को अच्छी तरह स्वच्छ करें। चाहे स्थान की हो या आचरण की, गंदगी किसी भी रूप में देवी लक्ष्मी को पसंद नहीं है। इनके पूजन के दौरान कमल के बीज से बनी माला से लक्ष्मी मंत्र का जप करना पुण्य फलदायी होता है। लक्ष्मी माता की उपासना के समय श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए। अगर उत्तर दिशा की ओर मुख करके देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाए तो वह शीघ्र प्रसन्न होती हैं। लक्ष्मी माता के पूजन के दौरान शंखनाद करें, पर घंट-घडिय़ाल आदि न बजाएं क्योंकि उन्हें शोरगुल जरा भी पसंद नहीं है। सुगंध देवी लक्ष्मी को बहुत आकर्षित करती है। इसलिए इनके पूजन में धूप और सुगंधित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। इस दिन लक्ष्मी जी को लाल रंग के कमल का फूल चढाना विशेष रूप से शुभ फलदायी होता है। इस दिन दक्षिणावर्ती शंख का पूजन अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन से इस शंख की उत्पत्ति हुई है। इसके पूजन से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। इस दिन शंख पर अनामिका अंगुली से पीला चंदन लगाकर पीले पुष्प अर्पित करके इसी रंग के नैवेद्य का भोग लगाना चाहिए। इससे परिवार में समृद्धि बनी रहती है।

नहीं भूलती बचपन की दीवाली

दीपिका पादुकोण

मैं अपने बचपन की दीवाली को बहुत मिस करती हूं। तब मम्मी मेरे लिए कुछ ख्ाास दक्षिण भारतीय मिठाइयां बनाती थीं। आज भी मेरी यही कोशिश होती है कि त्योहार वाले दिन मैं अपने मम्मी-पापा के साथ रहूं।

गऊ और गोपाल से संबद्ध

गोवर्धन पूजा

रतीय संस्कृति में गऊ को माता कहने परंपरा रही है और गउओं के रक्षक स्वयं गोपाल अर्थात भगवान श्रीकृष्ण हैं। दीपावली के दूसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है।

प्रचलित कथा

ब्रज मंडल गोवर्धन पर्वत की तराई में बसा हुआ है। अपने बाल्यकाल में भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ मिलकर इसी पर्वत की तलहटी में अपनी गउएं चराते थे। पहले वहां कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को देवराज इंद्र की पूजा की जाती थी। एक बार भगवान गोपाल के मन में यह विचार आया कि जब गोवर्धन पर्वत प्रहरी की तरह ब्रज मंडल की रक्षा करते हैं तो क्यों न हमें इंद्र के बजाय इन्हीं की पूजा करनी चाहिए। जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्देश दिया तो इससे रुष्ट होकर देवराज इंद्र ने ब्रज मंडल में घोर वर्षा शुरू कर दी। तब मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में भगवान कृष्ण ने अपने दाहिने हाथ की छोटी उंगली पर सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया और उसकी छांव तले समस्त गोकुलवासी अपनी गउओं सहित सुरक्षित हो गए। गिरिधर गोपाल की इस अद्भुत लीला को देखकर इंद्रदेव का अहंकार टूट गया और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगते हुए वर्षा बंद कर दी। उसी दिन से ब्रज मंडल में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाने लगा। इस दिन पूजन में भगवान के लिए विशेष भोग तैयार किया जाता है, जिसे अन्नकूट कहा जाता है। इसीलिए कुछ जगहों पर इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। ब्रज मंडल में इस दिन 56 प्रकार के पकवानों से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग भी अर्पित किया जाता है।

गौ धन का सम्मान

बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के कुछ हिस्सों में गायों को विशेष रूप से अलंकृत करके उनकी पूजा की जाती है। गौ माता के प्रति आभार प्रकट करते हुए उस दिन का दूध सिर्फ बछडे के लिए छोड दिया जाता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजन के उत्सव में हमारी कृषि प्रधान संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, जिसमें हमें पशुओं के प्रति दया भाव रखना सिखाया जाता है।

अन्नकूट भोग की विधि

गोवर्धन पूजा के अवसर पर मथुरा में विशेष प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे अन्नकूट कहा जाता है। आइए जानते हैं, अन्नकूट भोग तैयार करने की विधि।

सामग्री : 4 आलू, 2 बैंगन, 1 छोटी फूलगोभी, मुट्ठी भर बींस, 100 ग्राम मूली की फलियां, 2 गाजर, 1 मूली, 2 टिंडे, 2 अरबी, 5 भिंडी, 2 परवल, 1 शिमला मिर्च, आधी लौकी, 1 टुकडा पीला कद्दू, 1 कच्चा केला और 4 टमाटर, चाहें तो कुछ अन्य सब्जियां भी शामिल कर सकती हैं।

मसाले के लिए सामग्री : 2 इंच अदरक का टुकडा, 2 हरी मिर्च, 1 कटोरी हरी मेथी बारीक कटी हुई, 3 टेबलस्पून देसी घी, चुटकी भर हींग, 1 टीस्पून साबुत जीरा, 1 टीस्पून हल्दी पाउडर, 2 टीस्पून धनिया पाउडर, 1/2 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर, 1/2 टीस्पून अमचूर, 30 ग्राम हरा धनिया बारीक कटा हुआ, नमक स्वादानुसार।

विधि : सारी सब्जियों को धो-छील कर मध्यम आकार में काट लें। टमाटर, हरी मिर्च बारीक काट लें, अदरक छीलकर घिस लें। कडाही में तेल डालकर हींग-जीरा चटकाएं और फिर सारे मसाले, हरी मिर्च, अदरक डालकर एक मिनट तक भूनें। अब इसमें सारी कटी सब्जियां और एक कप पानी डालकर 15 मिनट तक पकाएं। फिर कटे टमाटर डालकर उसे नरम होने तक धीमी आंच पर रखें। अमचूर पाउडर और हरा धनिया मिला कर आंच बंद कर दें। अब अन्नकूट का प्रसाद तैयार है। पूडी के साथ भोग लगाने के बाद इसे वितरित करें।

नेह भरे नाते का त्योहार भैया-दूज

पावली के दो दिनों बाद आने वाला भैया दूज का त्योहार भाई-बहन के स्नेह भरे रिश्ते की याद दिलाता है।

प्रचलित कथा

ऐसा कहा जाता है कि भैया दूज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना जी के घर आए थे और उन्होंने अपने भाई को स्वयं भोजन बनाकर खिलाया था। यमराज ने प्रसन्न होकर यमुना से कहा था कि आज के दिन जो भाई, अपनी बहन के घर आकर भोजन करेगा, वह यम के भय से मुक्त हो जाएगा। इस रोज्ा यमुना ने भी अपने भाई यमराज से यह वचन लिया था कि जिस तरह आज यम देवता अपनी बहन के घर आए हैं, उसी तरह हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से परंपरा चल पडी है कि इस दिन सभी भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते हैं। यमराज ने यह भी कहा था कि अगर इस दिन भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना जी में डुबकी लगाएंगे तो मृत्यु के बाद उन्हें यमलोक की यातना से मुक्ति मिल जाएगी। इसी वजह से भैया दूज के दिन असंख्य श्रद्धालु देश के अलग-अलग हिस्सों से यमुना जी में स्नान करने यमुना तटों पर एकत्र होते हैं।

त्योहार से जुडी विधि

इस दिन बहनें चावल के आटे का घोल बनाकर उससे चौक पूरती (अल्पना जैसी चौकोर आकृति) हैं। फिर उसके बीच में पीढा रखकर भाई को बिठाती हैं। भाई की दोनों हथेलियों में चावल का घोल और रोली लगाकर, उस पर पान-फूल, सुपारी और एक सिक्का रखकर भाई की हथेलियों की पूजा करके कलश से धीरे-धीरे जल गिराते हुए यह मंत्र बुदबुदाती हैं, 'गंगा-यमुना में नीर बहे, मेरे भैया की आयु बढे। इसके बाद भाई बहनों को उपहार देता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से भाई की आयु के साथ बहन का सौभाग्य भी बढता है। कायस्थ समाज के लोग इस दिन अपने पूर्वज भगवान चित्रगुप्त का पूजन करते हैं।

लव-कुश हैं मेरे बेस्ट फ्रेंड

सोनाक्षी सिन्हा, अभिनेत्री

अपने दोनों भाइयों लव-कुश के साथ मेरा बेहद दोस्ताना रिश्ता है। बचपन में छोटी-छोटी बातों को लेकर अकसर हमारे बीच प्यार भरी नोकझोंक चलती रहती थी, पर अब व्यस्तता इतनी बढ गई है कि हम बडी मुश्किल से एक-दूसरे के लिए समय निकाल पाते हैं। फिर भी जब हम तीनों साथ होते हैं तो बचपन की शरारतों को याद करके ख्ाूब हंसते हैं। चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, भैया दूज वाले दिन मैं अपने भाइयों के साथ घर पर रहती हूं।

बहुत पिटता था बहनों से

गुंजन उटरेदा, टीवी आर्टिस्ट

मेरी दो बहनें हैं-कावेरी और गायत्री। अब तो उनकी शादी हो गई है, लेकिन जब मैं सात-आठ साल का था तो वे मेरी बहुत पिटाई करती थीं। दरअसल मम्मी-पापा ने मुझे बहनों पर हाथ उठाने से मना किया था तो वे इसका ख्ाूब फायदा उठाती थीं। मुझे ऐसा लगता है कि त्योहार के अवसर पर सिर्फ रस्म अदायगी काफी नहीं है। रिश्ते की मजबूती के लिए हमारे दिलों में एक-दूसरे के प्रति प्यार भी होना चाहिए।

विशेष सहयोग : संध्या टंडन


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