18 संकल्प स्त्रियों के लिए
एक स्त्री दूसरी स्त्री की दोस्त नहीं हो सकती...अब इस धारणा को बदलने का समय आ चुका है। यह वक्त स्त्रियों को एकजुट करने, मिल-जुल कर नकारात्मक स्थितियों का सामना करने का है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ संकल्प लें और दोस्ती की नई मिसाल पेश करें।
एक स्त्री दूसरी स्त्री की दोस्त नहीं हो सकती...अब इस धारणा को बदलने का समय आ चुका है। यह वक्त स्त्रियों को एकजुट करने, मिल-जुल कर नकारात्मक स्थितियों का सामना करने का है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ संकल्प लें और दोस्ती की नई मिसाल पेश करें।
हम स्त्रियां हैं। हमारे भीतर भी सहज मानवीय भावनाएं हैं। हम एक-दूसरे की दोस्त हैं। हम बहुत बातूनी हैं, घंटों चैटिंग कर सकती हैं और हमारी बातों का कोई अंत नहीं होता, मगर आपस में प्रतिस्पर्धा भी करती हैं। हम प्रेम करती हैं तो ईष्र्या से ग्रस्त भी होती हैं। ग्ाुस्सा आता है तो बेटी, बहन, सहेली, कलीग या बहू पर उतार देती हैं या फिर अकेले में रो लेती हैं। हमारे बीच नोकझोंक चलती रहती है, लेकिन हम लंबे समय तक नाराज्ा नहीं रह पातीं। यूं तो इंसानी दोषों से हम भी मुक्त नहीं हैं, लेकिन प्रकृति ने हमें कोमल स्वभाव दिया है, जिसके कारण हम किसी की पीडा से जल्दी द्रवित हो जाती हैं। हमारी भावुकता पर लोग हंसते हैं, मगर यही भावुकता हमें दूसरों की मदद को प्रेरित करती है।
तो क्या एक स्त्री दूसरी स्त्री की शत्रु हो सकती है, जैसा कि हमेशा प्रचारित किया जाता है? सच यह है कि स्त्री ही स्त्री की सच्ची दोस्त बन सकती है। यदि कुछ बातों से दूर रहें और कुछ नियमों का पालन करें तो दोस्ती का यह फूल हमेशा खिला रह सकता है। इस महिला दिवस पर कुछ संकल्प लें-
ृ1. कभी किसी दूसरी स्त्री की योग्यता, क्षमता, आदतों, स्वभाव या व्यवहार को लेकर सार्वजनिक तौर पर टिप्पणियां नहीं करेंगे। निंदा-रस से दूर रहें। न तो किसी स्त्री की बुराई करें और न किसी को करने दें।
2. हर स्त्री को अपनी ज्िांदगी अपने हिसाब से जीने का अधिकार है, चाहे वह हमारी दोस्त हो या संबंधी। यदि हमें लगता है कि आज्ाादी का दुरुपयोग हो रहा है और सचमुच हमें उसकी परवाह है तो उसका मार्गदर्शन करें, मगर उसकी बुराई या अन्य लोगों के समक्ष उसे अपमानित न करें।
3. अपनी बेटी की उडान को बाधित न होने दें। समाज के पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए उसकी पढाई-लिखाई या करियर के सपने को अधूरा न रहने दें। मां होने के नाते उसे प्रेरित और प्रोत्साहित करें।
4. हर इंसान दूसरे से भिन्न है। इंसान की पहचान उसके रूप-रंग से नहीं, काम से होती है। शारीरिक बनावट के आधार पर किसी दूसरी स्त्री की आलोचना न करें।
5. कई बार दोस्ती में ग्ालतफहमियां पैदा होती हैं, बातचीत बंद हो जाती है। यह दो लोगों के बीच की बात है। इसे लेकर किसी तीसरे से बात न करें। दोस्त की गोपनीय बातें किसी से न शेयर करें। याद रखें, आपकी सहेली ने आपको इतना सम्मान दिया कि अपने राज्ा भी आपसे शेयर किए। दोस्ती रहे या न रहे, मगर इस सम्मान को बनाए रखें।
6. 'हर वक्त घूमती थी, इतने अच्छे माक्र्स कैसे आ गए? 'इसे हमेशा प्रमोशन कैसे मिल जाता है...? किसी भी दूसरी स्त्री के बारे में ऐसी बातें करने से बचें। जीवन में ईष्र्या नहीं, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ज्ारूरी है। स्त्री होने के नाते दूसरी स्त्री की सफलता पर ख्ाुश हों, उससे प्रेरणा लें और आगे बढें।
7. सोशल मीडिया को व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के लिए इस्तेमाल न करें। निजी लडाइयों को सार्वजनिक न बनाएं, न अपनी पोस्ट में दूसरी स्त्रियों के बारे में टिप्पणियां करें। इससे दूसरे का नहीं, स्वयं का ही नुकसान होता है।
8. दोस्ती में न तो पज्ोसिव रहें, न अत्यधिक निर्भर। सहेली हमारी प्रॉपर्टी नहीं है। उससे उसका पर्सनल स्पेस न छीनें। हो सकता है, पहले वह ज्य़ादा वक्त देती हो और बाद में किसी व्यस्तता के कारण वक्त न दे सके। इस आधार पर उसे ताने न मारें। इन छोटी-छोटी बातों से दोस्ती में दरार नहीं पडऩी चाहिए। दोस्त की व्यस्तता को समझें, उसके अन्य रिश्तों को भी वैसा ही महत्व और सम्मान दें, जितना अपने रिश्तों को देती हैं।
9. किसी करीबी दोस्त या रिश्तेदार से ग्ालतफहमी है तो झूठा अहं छोड कर उससे सीधे बात करें। ग्ालतफहमियां नाराज्ा रहने से नहीं, संवाद से कम होती हैं। अपनी ओर से पहल करें, बातचीत का कोई सिरा पकडें और फिर उन मुद्दों पर बात करें, जिन्हें लेकर बातचीत बंद हुई थी।
10. आत्मनिर्भर बनें और अपनी बेटी या करीबी स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनने में मदद दें। अगर आपके भीतर कोई योग्यता, क्षमता या प्रतिभा है तो उसका इस्तेमाल दूसरी स्त्रियों को शिक्षित करने में करें।
11. अच्छाई की शुरुआत अपने घर से होती है। अपने घर में लडकियों को महत्व दें। मां, बेटी, बहू, भाभी, ननद की राय को भी उतना ही महत्व दें, जितना घर के पुरुष सदस्यों की राय को देती हैं। जितना प्यार अपने पति या बेटे से करती हैं, उतना ही स्नेह-भाव बेटी और बहू के प्रति भी रखें।
12. स्त्रियां परंपराओं और संस्कृति को आगे बढाती हैं। मगर असुविधाजनक परंपराओं को मानने के लिए नई पीढी पर दबाव न डालें। ज्ारूरी नहीं कि जो परंपराएं या मूल्य आपके लिए ज्ारूरी हैं, वह आपकी बेटी या बहू के लिए भी उतने ज्ारूरी हों। उन्हें न अपनाने से यदि कोई नुकसान नहीं है तो इसके लिए अपने घर की स्त्रियों को बाध्य न करें। उन्हें अपने ढंग से रहने की स्वतंत्रता अवश्य दें।
13. पुरानी और नई पीढी की स्त्रियों की जीवनशैली में बहुत-कुछ समान नहीं होता। ऐसे में कई बार टकराव भी हो जाता है। लेकिन यहीं पर परिपक्वता, समझदारी और व्यापक दृष्टिकोण की ज्ारूरत भी होती है। संतुलित रहते हुए हर बदलाव को देखें, समझें और उससे तालमेल बिठाएं।
14. किसी स्त्री का रिश्ता टूटे, तलाक हो या ससुराल पक्ष से समस्या आए तो इसके लिए लडकी को ज्िाम्मेदार ठहरा दिया जाता है। बिना जाने-समझे ऐसी बातों का हिस्सा न बनें। यदि हम किसी की मदद नहीं कर सकते तो कम से कम उसे उसके हाल पर तो छोड ही सकते हैं।
15. छल-प्रपंच, साज्िाश, ताने, व्यंग्य, उलाहने... इन्हें टीवी धारावाहिकों तक ही सीमित रहने दें। आस-पडोस, समाज, संबंधों या ऑफिस में इन टेक्नीक्स का इस्तेमाल करने से बचें।
16. स्त्री के ख्िालाफ रोज्ा हो रही घटनाओं से सभी आहत होते हैं। ऐसी घटनाओं के ख्िालाफ आवाज्ा उठाएं, इनका विरोध करें। न तो अन्याय करें, न अन्याय सहें और न किसी के प्रति ऐसा होने दें।
17. हर स्त्री को शिक्षा हासिल करने और आगे बढऩे का अधिकार है। यदि हमारे आसपास कोई लडकी इससे वंचित है तो पहलकदमी लें और उसे आगे बढऩे को प्रेरित करें। अपनी ओर से हरसंभव मदद दें।
18. कभी किसी की ख्ाराब स्थितियों या मजबूरियों का मज्ााक न बनाएं, न उसका फायदा उठाएं। परिवार या समाज में यदि कोई स्त्री संघर्षरत है तो उसे मदद दें। याद रखें, लोगों को हमारी दया नहीं, मदद व सहयोग की ज्ारूरत है। दया से निरीह होने का बोध होता है।
इंदिरा राठौर