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जब किया प्यार का इजहार

कहते हैं, प्यार की कोई जुबां नहीं होती। यह तो खामोशी से हवाओं में बहता रहता है। प्यार धर्म, जाति और सरहद की दीवारों के पार पनपता रहा है, कभी निगाहें तो कभी दिल की धड़कनें इसकी गवाह बनती रही हैं।

By Edited By: Published: Fri, 10 Feb 2017 04:44 PM (IST)Updated: Fri, 10 Feb 2017 04:44 PM (IST)
जब किया प्यार का इजहार

प्यार कब और किससे हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। पहले कोई आंखों को अच्छा लगता है, फिर धीरे-धीरे मन में बस जाता है। इसके बाद शुरू होती है दुविधा कि इजहारे मोहब्बत कैसे किया जाए। कभी लिख कर तो कभी कहकर और कभी-कभी तो आंखों से ही काम चला लिया जाता है।

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प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती। यह किसी भी उम्र में, कहीं भी और किसी से भी हो सकता है। कोई यूं ही दिल को अच्छा लग जाता है। जब यह चाहत गहरी होती है, तब एहसास होता है कि सामने वाला उसकी जिंदगी में कितना मायने रखता है। उसके बिना कोई खुशी, खुशी नहीं लगती। हर वक्त दिल उसको ढूंढता है। ऐसे में इंसान उन चीजों को भी करने में परहेज नहीं करता, जिनके बारे में कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा था। वह कभी मजनूं बन जाता है, कभी किसी फिल्म का हीरो। अपनी हीरोइन के लिए वह चांद-तारे तोड लाने की बातें करता है।

अजीब सी है दास्तां मैं अपने एक दोस्त के साथ एक शादी में गया था। बातों ही बातों में उसने एक लडकी का जिक्र किया। उसने बताया कि परिवार बेहद गरीब है, इस वजह से उनकी बेटी की शादी नहीं हो पा रही है। मुझे यह बात बुरी लगी कि दहेज के नाम पर आज भी लडकियों की शादी मुश्किल हो जाती है। वह लडकी, जो एक समाज का आधार है, उसकी स्थिति कितनी खराब है। मैंने बिना अंजू को देखे उससे शादी करने का फैसला कर लिया। अंजू शादी में आई थी लेकिन मैं तब उससे नहीं मिल सका। बाद में मेरे दोस्त ने मेरी मुलाकात अंजू से करवाई।

मैं तो पहले ही उससे शादी करने का निर्णय कर चुका था लेकिन अंजू को देखकर मेरा यह फैसला और पुख्ता हो गया। अंजू की सादगी पहली ही नजर में मुझे भा गई। मैंने तुरंत अपने माता-पिता को फोन कर अपने फैसले के बारे में बताया। हालांकि अंजू के पिता मेरे इस निर्णय से थोडे परेशान थे लेकिन मैंने उन्हें मना लिया। अगले ही दिन मैंने अंजू से मंदिर में शादी कर ली और उन्हें अपने घर ले आया। मेरे घर पर सब लोगों ने उसका तहे दिल से स्वागत किया। अंजू भले ही एक इत्तेफाक से मेरी जिंदगी में आईं लेकिन वही मेरा पहला प्यार हैं।

एक सी थी सोच शबनम से मेरी पहली मुलाकात सोशल मीडिया पर हुई थी। वह मेरे किसी दोस्त की कॉमन फ्रेंड थीं। उस दोस्त के जरिये ही मैं उनके विचारों को जान पाया, जिसके बाद मैं शबनम की लेखनी का कायल हो गया। उनके विचार मुझे प्रभावित करते थे। वह कुछ हद तक मेरे जैसा ही सोचती थीं। हम दोनों में एक बात कॉमन थी, हम दोनों थोडे शायराना मिजाज के थे। इसी कारण हम दोस्त बने लेकिन सिर्फ एक-दूसरे की पोस्ट को लाइक करने और

पहली नजऱ का प्यार हम एक ही ऑफिस में काम करते थे। मैंने जब पहली बार शैली को देखा था तो मुझे वह बेहद अच्छी लगी थीं। मैंने उन्हें देखते ही सोच लिया था कि इनसे दोस्ती करनी है। कहते हैं न कि जहां चाह हो, वहां राह बन ही जाती है। मैं कुछ दिनों की कोशिश के बाद शैली से दोस्ती करने में कामयाब रहा। हम रोजाना खाली समय में ऑफिस कैंटीन में बैठकर बातें करते। बातें करते-करते हम एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान चुके थे। हम दोनों कुछ हद तक एक जैसे थे। इसी कारण हमारी अच्छी बॉण्डिंग हो गई लेकिन बातों का यह दौर लंबा नहीं चला। इतने दिनों की बातचीत में मुझे पता चल गया था कि शैली मुझे पसंद करती हैं।

मैंने एक दिन हिम्मत करके सीधा उनसे पूछ लिया कि क्या वो मुझसे शादी करेंगी। शैली ने उस दिन कोई जवाब नहीं दिया। अगली मुलाकात में मैंने हिम्मत करके एक बार फिर उनके सामने यह सवाल दोहराया। इस बार उन्होंने कहा कि वह पहले इस बारे में अपने परिवार से बात करेंगी और उनकी राय मिलने के बाद ही कोई फैसला लेंगी। जहां प्यार सच्चा हो, वहां देरी कहां जगह बना पाती है। घरवालों के राजी होने के बाद आखिरकार हम परिणय-सूत्र में बंध गए। कमेंट करने से बात कैसे बनती।

हम दोनों ने मेसेंजर पर बात करना शुरू किया। यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला लेकिन एक दिन मैंने उनसे पर्सनली मुलाकात करने के बारे में बात की। वो मान गईं और हम कई महीनों की बातचीत के बाद पहली बार एक-दूसरे से रूबरू हुए। इस मुलाकात ने दिल में उनसे और मुलाकातों की चाह बढा दी। तभी एक दिन मुझे पता चला कि वह अपनी दोस्तों के साथ कुछ दिनों के लिए पुणे जा रही हैं। मैंने आव देखा न ताव और निकल पडा उनके पीछे उनसे मिलने। वहां तो मैं उन्हें अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पाया लेकिन वहां से लौटते ही एक शेर के जरिये मैंने उन्हें अपना हाल-ए-दिल बताने की कोशिश की। वह शेर कुछ इस तरह था-

मेरे दिल की सब हरारतें, हैं अजब ए जां भी हुई, मुझे उसका जवाब चाहिए, जो बात तुमसे कही नहीं। उस तरफ से शबनम का जवाब आया। खत्म यह इंतजार कर जाओ किसी दिन सूनी शब का चांद बनकर उतर आओ किसी दिन। हम दोनों इस बात को जानते थे कि हम एक दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन इजहार कुछ ऐसे हुआ।

कॉलेज की मस्ती हम एक ही कॉलेज में पढते थे। हमारा बडा सा ग्रुप था, जिसमें मैं ही एकमात्र लडकी थी। उस ग्रुप के सारे लडके समय-समय पर मुझ पर लाइन मारते रहते थे लेकिन मैं इन बातों को हमेशा हंसी-मजाक में उडा दिया करती थी। मैंने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया और वैसे भी हम सब दोस्त थे। संदीप भी कोई मौका नहीं छोडता था मेरी टांग खिंचाई करने का। मुझे शुरुआत में वह बिलकुल पसंद नहीं था। उसकी ये हरकतें मुझे बिलकुल रास नहीं आती थीं। हमारे बीच बहुत नोक-झोंक होती थी।

एक दिन मैंने तंग आकर उससे कह दिया कि अगर वो मुझे लेकर सीरियस है तो कायदे से प्रपोज करे। वह वैलेंटाइन का दिन था। संदीप ने अपने हाथों से एक ग्रीटिंग बनाया और उसमें रोमैंटिक शायरी लिखी और गुलाब के फूल के साथ मुझे प्रपोज कर दिया। मैंने भी तुरंत हां कर दी। कॉलेज खत्म हुआ तो हम करियर की राह में अलग-अलग शहरों में चले गए। इस दौरान हमारे बीच कई बार झगडा हुआ। झगडा ब्रेकअप में बदला लेकिन संदीप का प्यार शायद सच्चा था। वह हर बार कुछ न कुछ करके मुझे मना ही लेता और ब्रेकअप खत्म हो जाता। अंतत: हम शादी के सूत्र में बंध गए।

मीठी सी लव स्टोरी हम दोनों एक ही स्कूल में पढते थे और बेस्ट बडीज थे। हर बात एक-दूसरे से शेयर करना हमारी आदत थी। स्कूल की दोस्ती पर कॉलेज में आकर थोडा ब्रेक भी लगा। हम दोनों ही करियर बनाने के लिए अपनी-अपनी राह पर निकल पडे। लेकिन फोन पर हमेशा टच में रहते थे। हमें नहीं पता कि हमें एक-दूसरे की आदत हो गई थी या यह प्यार था। बस हमें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता था। एक-दूसरे से बातें शेयर किए बिना जैसे हमारा दिन ही नहीं गुजरता था। राजू मेरे बचपन का दोस्त था, सो घर पर भी लोग उसे जानते थे और उन्हें उसके आने-जाने से कोई ऐतराज नहीं था।

धीरे-धीरे हम दोनों ने इस बात को फील किया कि यह दोस्ती नहीं कुछ और है लेकिन पहल कौन करे, यह बडा सवाल था। हम अकसर एक रेस्तरां में मिलते थे, वहां बैठकर घंटों बातें करते थे। एक दिन राजू ने मुझे रेस्तरां की जगह पार्क में आने को कहा। मैं समझ गई कि जगह बदली है तो आज कोई न कोई खास बात ही कहनी होगी। जब मैं पहुंची तो राजू इधर से उधर टहल रहा था। जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ। राजू ने मुझसे गंभीरता से पूछा कि हम दोनों कब तक ऐसे ही मिलते या घूमते रहेंगे? हम शादी कब करेंगे? उस दिन तो मैंने कुछ नहीं कहा और चुपचाप घर लौट आई। अगली मुलाकात में राजू ने नाराजगी भरे लहजे में वही सवाल दोबारा दोहराया तब मैंने उनके प्यार भरे सवाल का जवाब बिना कुछ कहे ही एक मीठी सी चॉकलेट से दे दिया।


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