रिश्तों पर मजबूत होती पकड़
करियर में कामयाबी हासिल करने के साथ आज की स्त्री अपने पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को भी बेहतर ढंग से निभाना सीख गई है। आइए रूबरू हों उसके इस बदलते नजरिये से।
सच कहा जाए तो स्त्री ही अपने स्नेह से रिश्तों को सींच कर उन्हें जीवंत बनाती है। यकीनन वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है, लेकिन आज की जीवन स्थितियों की तरह रिश्तों में भी जटिलता आ गई है। हालांकि, इस बदलाव का सकारात्मक पहलू यह भी है कि शिक्षा, जागरूकता और भावनात्मक संतुलन की दृष्टि से भारतीय स्त्री कहीं ज्यादा परिपक्व हुई है। इसी वजह से जीवन के हर मोर्चे पर वह अपने सभी रिश्तों को बडी खूबसूरती से संवारती नजर आ रही है।
जिम्मेदार होती बेटियां
पुराने समय में माता-पिता की उम्र ढलने के बाद उनके सामाजिक संबंधों के निर्वाह की जिम्मेदारी बेटे-बहू के कंधों पर होती थी, पर अब ऐसा नहीं है। आज के इस बदलते दौर में बेटियां खुद आगे बढकर पेरेंट्स की सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं। आधुनिक स्त्री मायके और ससुराल के रिश्तों के बीच संतुलन बनाने में पूरी तरह सक्षम है। वह अपने माता-पिता और भाई-बहनों के अलावा मायके के अन्य रिश्तेदारों के साथ भी संपर्क बनाए रखती है।
शिकायत का मौका नहीं देती: सुषमा शर्मा पेशे से शिक्षिका हैं। इस मुद्दे पर उनका कहना है, हम तीन बहनें हैं और तीनों मिलकर माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी उठाते हैं। चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, शादी-विवाह जैसे खास अवसरों पर हम उन्हें उनके रिश्तेदारों के यहां ले जाने के लिए समय जरूर निकालते हैं। कभी-कभी हम उन्हें अपने घर भी बुला लेते हैं। मायके और ससुराल दोनों को एक साथ खुश रखना आसान काम नहीं है, फिर भी हम दोनों परिवारों के बीच संतुलन बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, ताकि किसी को भी शिकायत का मौका न मिले।
दूर हुई गैर बराबरी
दांपत्य जीवन में स्त्री की सक्रिय भागीदारी ने उसकी स्थिति को पहले की तुलना में काफी मजबूत बनाया है। वह शिक्षित, आत्मनिर्भर और जागरूक है। यही ताकत उसे पति के साथ कदम मिलाकर चलने को प्रेरित करती है। आज के पुरुष को यह मालूम है कि उसकी पत्नी घर संभालने के अलावा पति की आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारियां बांटने में भी सक्षम है।
पत्नी ने संवारा जीवन: दिल्ली के श्यामल सरकार को संगीत में गहरी दिलचस्पी थी। जब वह ग्रेजुएशन कर रहे थे, तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। लिहाजा उन्हें बेमन से अनुकंपा के आधार पर मिलने वाली सरकारी नौकरी करनी पडी। वह बताते हैं, मेरी पत्नी आभा बैंक में जॉब करती है। वह मेरी पीडा समझती थी। मेरा ्रगुस्सा झेलने के बावजूद उसने धैर्य नहीं खोया। जब मैं डिप्रेशन का शिकार हो गया तो वह मुझे काउंसलिंग के लिए मनोविश्लेषक के पास ले गई। इतना ही नहीं, उसी के आग्रह पर जॉब छोडकर मैं कला की दुनिया में वापस लौट आया। अब मैं बच्चों के लिए म्यूजिक स्कूल चलाता हूं। यह सब आभा की खुली सोच और समझदारी की वजह से ही संभव हुआ। इस निर्णय पर उसके मायके वाले काफी नाराज हुए, लेकिन लोगों की परवाह किए बगैर जीवन के उस कठिन मोड पर उसने सिर्फ मेरा साथ दिया।
बहू की बदलती छवि
पारंपरिक बहू की स्टीरियो टाइप छवि पूरी तरह बदल चुकी है। भले ही वह वेस्टर्न आउटफिट्स पहनती हो, पर सच्चे दिल से बडों का सम्मान करती है। घर और ऑफिस की सारी जिम्मेदारियां मुस्तैदी से संभालती है। ससुराल के सभी सदस्यों के प्रति उसका व्यवहार बेहद केयरिंग है। आज की बहू हर मुद्दे पर स्पष्ट सोच रखती है। अगर उसे किसी की कोई बात नापसंद हो तो वह असहमति भी जाहिर करती है। आज की स्मार्ट बहू के साथ सास की सोच में भी बदलाव आ रहा है।
समझदारी से संभाले रिश्ते : चार्टर्ड एकाउंटेंट वैशाली शर्मा बडे फख्र से अपनी सास के बारे में बताती हैं, मेरी शादी को चार साल हो चुके हैं। शुरुआती दौर में सास के साथ एडजस्टमेंट में काफी परेशानी हुई क्योंकि वह वक्त के साथ बदलने को तैयार नहीं थीं। उन्हें आज की जीवनशैली में सिर्फ बुराइयां ही नजर आती थीं। लिहाजा अकसर वह पहनावे और खानपान को लेकर मुझे भला-बुरा कहती थीं। मेरे पति इकलौती संतान हैं। मैं यह समझती थी कि सास की सारी जिम्मेदारियां मुझे ही उठानी हैं। उनके साथ बहस करने से बेवजह घर का माहौल खराब होता। इसीलिए मैंने सचेत तरीके से उनके साथ वक्त बिताना शुरू किया। वह हमेशा साडी पहनती थीं और उनकी इच्छा थी कि मैं भी उनका अनुसरण करूं। शुरुआत में मैंने उनकी किसी भी बात का विरोध नहीं किया। एक बार उनकी बर्थडे पर मैंने उन्हें ब्यूटी स्पा का वाउचर गिफ्ट किया। पहले वह पार्लर जाने को तैयार नहीं थीं, लेकिन जब मैंने उन्हें प्यार से मनाया तो मेरे साथ चलने को राजी हो गई। वहां से लौटने के बाद वह बहुत अच्छा महसूस कर रही थीं। कभी मैं उन्हें जॉगिंग पर ले जाती तो कभी शॉपिंग पर।
बाहरी दुनिया से संपर्क में आने के बाद धीरे-धीरे उनकी सोच बदलने लगी। अब तो वह वेस्टर्न ड्रेसेज भी पहन लेती हैं। उनका कहना है कि साडी की तुलना में यह पहनावा ज्यादा आरामदेह है। अब उन्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं है।
दोस्त बनती मां
आज की शिक्षित और समझदार मां की जिम्मेदारियां पहले की तुलना में कई गुना बढ गई हैं। वह अपने बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को बखूबी समझती है। उनके साथ उसका रिश्ता दोस्ताना हो गया है और वे अपनी सभी समस्याओं पर उससे खुलकर बातचीत करते हैं। बच्चों के साथ उसके रिश्ते में सहजता जरूर है, पर वह उन्हें अनुशासित करना भी जानती है।
देती हूं क्वॉलिटी टाइम : श्रुति मित्तल दो टीनएजर बच्चों की मां हैं। अपने बच्चों की परवरिश के बारे में उनकी राय बडी स्पष्ट है। वह कहती हैं, मैं अपने दोनों बेटों को भरपूर प्यार और क्वॉलिटी टाइम देती हूं। उनके साथ मेरा भावनात्मक बंधन इतना मजबूत है कि वे मुझसे झूठ नहीं बोल पाते। अगर वे मेरे सामने अपनी कोई गलती स्वीकारते हैं तो उन्हें डांटने के बजाय प्यार से समझाती हूं क्योंकि आज के बच्चों को सख्ती से अनुशासित नहीं किया जा सकता।
प्रोफेशनल रिश्तों में सुधार
आज की स्त्री न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है, बल्कि कार्यस्थल पर भी उसकी स्थिति पहले की तुलना में ज्यादा मजूबत हुई है। अब उसकी नजरें इतनी पारखी हो गई हैं कि वह सही और गलत की पहचान कर सकती है। चाहे किसी कलीग के साथ अनबन हो या बॉस के व्यवहार से परेशानी। अब वह अपने प्रोफेशनल संबंधों को सुधारना सीख गई है।
अपनाती हूं संतुलित व्यवहार : अमृता एक निजी कंपनी में फाइनेंशियल एग्जिक्यूटिव हैं। वह बताती हैं, मैं पिछले पांच वर्षो से जॉब कर रही हूं। अपने अनुभवों के आधार पर अब मुझे यह बात समझ आ गई है कि कार्यस्थल पर व्यक्ति का व्यवहार हमेशा संतुलित होना चाहिए। नौकरी के शुरुआती दिनों में छोटी-छोटी बातों पर कलीग्स से मेरी अनबन हो जाती थी, पर अब मैं ऐसा नहीं होने देती। अगर कभी कोई विवाद हो भी जाए तो आपसी बातचीत के जरिये उसे दूर कर लेती हूं।
विशेषज्ञ की राय
आज की स्त्री आत्मनिर्भर और आजाद है। इन्हीं वजहों से वह अपने सभी रिश्तों को बहुत अच्छे ढंग से मैनेज कर पाती है। अब उसमें सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत आ गई है। वह अपने सभी निर्णय खुद लेने में सक्षम है। स्त्री के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आया है। समाज भी उसकी इस नई भूमिका को स्वीकारने लगा है और इससे स्त्री का आत्मविश्वास भी बढा है। दांपत्य में भी उसका रिश्ता पूरी तरह बराबरी पर आधारित है। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी है कि आज की आजाद स्त्री अपनी शर्तो पर जीना चाहती है। उसकी सहनशीलता खत्म हो रही है और तलाक के मामले बढ रहे हैं, लेकिन इसके लिए केवल स्त्री को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। समय के साथ यह परिवर्तन स्वाभाविक है और इसी के आधार पर सामाजिक बदलाव की दिशा तय होगी।
डॉ. अशुम गुप्ता, मनोवैज्ञानिक सलाहकार
नोट : (बातचीत में शामिल लोगों के आग्रह पर उनके वास्तविक नाम बदल दिए गए हैं।)
प्रस्तुति : विनीता