उन्हें चाहिए खुला आसमान
अपने नवविवाहित बेटे या बेटी की नई जिंदगी और रिश्तों को लेकर माता-पिता की चिंता स्वाभाविक है, लेकिन इस मामले में उनका हस्तक्षेप नवदंपती के जीवन को तनावपूर्ण बना सकता है। इसलिए उन्हें ऐसी आदतों से बचने की कोशिश करनी चाहिए। नवदंपतियों के माता-पिता के लिए सखी के कुछ सुझाव।
पलक झपकते ही वक्त बीत गया। यकीन नहीं होता कि कल तक किचन सेट से खेलने वाली नन्ही गुडिया की विदाई की घडी इतनी जल्दी करीब आ गई। माता-पिता यह सोचकर परेशान हैं कि नन्ही सी जान कैसे संभाल पाएगी नई गृहस्थी की ढेर सारी जिम्मेदारियां।
आपकी यह चिंता स्वाभाविक है, नई जिंदगी की शुरुआत में उसके सामने कुछ चुनौतियां तो होंगी ही। लेकिन, अगर आपने शुरुआत से ही अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दिए हैं तो फिर घबराना कैसा? समय के साथ वह भी ससुराल के नए माहौल में उसी तरह एडजस्ट हो जाएगी, जैसे किवर्षो पहले आप एक नए परिवार में आकर घुल-मिल गई थीं।
बदलाव के साइड इफेक्ट
आज के माता-पिता अपनी बेटी के दांपत्य जीवन को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित होने लगे हैं। दरअसल भारतीय समाज में आने वाले बदलाव का असर पारिवारिक संबंधों पर भी दिखाई देने लगा है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले दो-तीन दशकों में लडकियों के प्रति लोगों के नजरिये में सकारात्मक बदलाव आया है। पहले लोग बेटी को पराया धन मानते थे। बेटी की परवरिश का आधार यही एक सूत्र वाक्य होता था- शादी के बाद इसे पराये घर जाना है। इसी वजह से पहले लोग लडकियों को सख्त अनुशासन में रखते हुए उन्हें सहनशील बनाने की कोशिश करते थे, ताकि ससुराल के नए माहौल के साथ एडजस्ट करने में उन्हें कोई परेशानी न हो, लेकिन अब ऐसा नहीं है। समाज तेजी से बदल रहा है। आज के शिक्षित मध्यवर्गीय परिवारों में बेटे-बेटी के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता। अब पेरेंट्स अपनी बेटी को भी बेहद लाड-प्यार के साथ पालते हैं। पढाई और करियर के मामले में भाई के साथ उसे भी बराबरी का मौका देते हैं। जाहिर है बेटे की तरह बेटी के साथ भी उनका गहरा भावनात्मक जुडाव होता है। इसी वजह से शादी के बाद भी वे अपनी बेटी की ओर से पूरी तरह बेफिक्र नहीं हो पाते। कई बार न चाहते हुए भी उनकी यही चिंता बेटी के वैवाहिक जीवन के लिए तनाव का कारण बन जाती है।
असुरक्षा की भावना
माता-पिता का हस्तक्षेप नवदंपती के जीवन में दरार का बहुत बडा कारण है। आजकल यह हस्तक्षेप लडकी के माता-पिता की ओर से ज्यादा होता है। मनोवैज्ञानिकों के पास काउंसलिंग के लिए आने वाले ज्यादातर युवा दंपतियों के आपसी संबंध इसी वजह से तनावपूर्ण हो जाते हैं। लडकी अपने घर से एक नए माहौल में जाती है। लिहाजा उसके माता-पिता हमेशा इस बात को लेकर सशंकित रहते हैं कि ससुराल में कहीं उनकी बेटी को कोई तकलीफ तो नहीं है? वे चाहते हैं कि ससुराल पहुंचते ही उनकी बेटी वहां अपनी मजबूत स्थिति बना ले। इसलिए कई बार वे अपनी बेटी को कुछ ऐसी गलत नसीहतें देते हैं, जिनसे उसका जीवन संवरने के बजाय बिगड जाता है।
चाहिए थोडा समय
किसी भी नए रिश्ते के साथ तालमेल बैठाने के लिए थोडे समय की जरूरत होती है। जब कोई लडकी पहली बार ससुराल जाती है तो यह बहुत जरूरी है कि उसके नए जीवन में कोई हस्तक्षेप न हो। इसलिए हर लडकी के माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि बेटी की शादी के बाद वे उसे ससुराल के नए माहौल में सहजता के साथ एडजस्ट होने दें। इसके लिए उन्हें इन बातों का खयाल जरूर रखना चाहिए :
-अपनी बेटी को ससुराल वालों के साथ अच्छा व्यवहार करने की सीख दें। इससे उसके लिए नए माहौल के साथ सामंजस्य स्थापित करना आसान हो जाएगा।
-हर परिवार की जीवनशैली दूसरे से अलग होती है। आपकी बेटी जिस परिवार में गई है, उसे वहीं के तौर-तरीके अपनाने दें। उससे वहां की आमदनी-खर्च या लोगों की फूड हैबिट के बारे में ज्यादा पूछताछ न करें।
-छोटी-छोटी बातों को लेकर अपने परिवार से बेटी की ससुराल की तुलना न करें।
-अगर आपको वहां की कोई बात पसंद नहीं आती तो भी बेटी के सामने उसकी ससुराल की बुराई कभी न करें।
-नवविवाहिता बेटी के ससुराल वालों के साथ व्यवहार में पूरी शालीनता बरतें।
-अकसर बेटी के विदा होते ही उसके मायके वाले हर घंटे पर फोन करके उससे उसका हाल पूछने लगते हैं। ऐसा करना ठीक नहीं। उसे नए माहौल में घुलने-मिलने के लिए थोडा समय दें।
-यह सच है कि बेटी के विदा होने के बाद घर के माहौल में सूनापन आ जाता है, लेकिन शादी के बाद उसकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। उसे पति सहित सास-ससुर की जरूरतों और इच्छाओं का भी खयाल रखना पडता है। इसलिए अगर वह आपसे मिलने के लिए समय न निकाल पाए तो इस बात को लेकर उससे शिकायत न करें।
-बिना मांगे उसे कोई सलाह न दें। अगर वह अपनी ससुराल के बारे में आपसे कोई सलाह मांगती भी है तो किसी छोटे से फायदे के लिए उसे कोई ऐसी गलत सीख न दें, जो भविष्य में उसके रिश्ते के लिए नुकसानदेह साबित हो।
-आज की लडकियां शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं। वे अपना भला-बुरा खुद समझ सकती हैं। इसलिए शादी के बाद अपनी बेटी को उसके जीवन से जुडे सभी महत्वपूर्ण निर्णय स्वयं लेने दें।
भावनात्मक संकट का दौर
ऐसा नहीं है कि विवाह के समय केवल लडकी के माता-पिता को ही चिंता होती है। लडके के पेरेंट्स भी खुद को काफी असुरक्षित महसूस करते हैं। खास तौर पर मां को बेटे से बहुत ज्यादा लगाव होता है। इसलिए बेटे की शादी के वक्त वह एक तरह के इमोशनल क्राइसिस से गुजर रही होती है। उसके मन में बार-बार यही खयाल आता है कि बहू के आने के बाद उसके साथ बेटे का प्यार बंट जाएगा। नए रिश्ते में बंधने के बाद उसकी जिम्मेदारियां बढ जाएंगी। अब शायद वह पहले की तरह मां के लिए समय न निकाल पाए। इस दौर में भावी सास को धैर्य से काम लेते हुए सचेत तरीके से नई बहू के साथ अपने संबंध मधुर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए लडके की मां को इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए :
-यह सच है कि मां के दिल में अपने बेटे लिए अथाह प्रेम होता है, लेकिन शादी के बाद वह नए रिश्ते के साथ जुड जाता है। जिसमें प्यार के साथ ढेर सारी जिम्मेदारियां भी होती हैं। इसलिए शादी के बाद बेटे को पूरा पर्सनल स्पेस दें, ताकि वह अपने नए रिश्ते को बेहतर ढंग से समझ सके।
-शादी के बाद अचानक आने वाली जिम्मेदारियों की वजह से कई बार लडके घबरा जाते हैं। उनके मन में हमेशा ऊहापोह की स्थिति बनी रहती है कि मां और पत्नी दोनों को एक साथ खुश कैसे रखा जाए? ऐसे में बेटे के लिए आपका सहयोग बहुत मायने रखता है। जब उसके साथ आपका व्यवहार सहज होगा तो वह पति और बेटे के रूप में अपनी दोनों जिम्मेदारियां ज्यादा अच्छी तरह निभा पाएगा।
-यह न भूलें कि अब बेटे के साथ उसकी जीवनसंगिनी भी है। अगर आप बहू को भी बेटी की तरह प्यार देंगी तो इससे बेटे के दिल में आपकी इज्जत और बढ जाएगी।
-आज की युवा पीढी आजाद खयालों की है। बहू को अपने ढंग से जीने की पूरी आजादी दें। इससे ससुराल में वह सहज महसूस करेगी और नए माहौल के साथ एडजस्टमेंट में उसे कोई परेशानी नहीं होगी।
-बहू को आप भले ही बेटी तरह प्यार करें, पर छोटी-छोटी बातों पर बेटी से उसकी तुलना और रोक-टोक न करें। क्योंकि हर इंसान का व्यक्तित्व दूसरे से अलग होता है।
-किसी भी रिश्ते की मजबूती का आधार यही है कि उसे उसकी खूबियों-खामियों के साथ सहर्ष स्वीकारा जाए। इसलिए नई बहू को खुल दिल से अपनाएं।
नवदंपतियों के ऊपर नया घर-संसार बसाने की जिम्मेदारी होती है। इसलिए माता-पिता उन्हें अपने पूर्वाग्रहों के पिंजरे में कैद न करें, बल्कि उनकी भावात्मक जरूरतें समझते हुए उन्हें अपने ढंग से जीने की आजादी दें। तभी वे नए रिश्ते की अहमियत समझ पाएंगे।
(रिलेशनशिप एक्सपर्ट अनु गोयल से बातचीत पर आधारित)
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