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थोड़ी दूरी भी है जरूरी

किसी भी रिश्ते की गर्मजोशी बरकरार रखने के लिए केवल अच्छा व्यवहार ही काफी नहीं होता, बल्कि हर इंसान की निजता का सम्मान करते हुए एक-दूसरे को दिया जाने वाला पर्सनल स्पेस भी रिश्ते को मजबूती देता है।

By Edited By: Published: Fri, 01 Feb 2013 12:33 AM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2013 12:33 AM (IST)
थोड़ी दूरी भी है जरूरी

अपनों का खयाल  रखना अच्छी बात है। हम सब यही चाहते हैं कि हमारे अपने हमेशा खुश  रहें। इसीलिए हम उनकी जिंदगी से जुडी हर छोटी-बडी बाते जानने की कोशिश करते हैं। हर मुश्किल में उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं, पर दिक्कत तब आती है जब ऐसे नेक इरादे रिश्तों में खलल पैदा करने लगते हैं। इसलिए चाहे रिश्ता कोई भी हो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर हमारेअतिशय  अपनत्व भरे व्यवहार से किसी को असुविधा होती है तो हमें सचेत तरीके से अपने ऐसे व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए। आइए देखते हैं कि रिश्तों में एक-दूसरे को स्पेस  न देने की वजह से किस तरह की दिक्कतें आती हैं : 

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दांपत्य में दूरी

वैसे तो पति-पत्नी का रिश्ता सबसे करीबी माना जाता है। दोनों एक-दूसरे पर अपना पूरा हक जमाते हैं। इसी वजह से लोग अपने लाइफ पार्टनर को लेकर बहुत पजेसिव  होते हैं। लोग यही चाहते हैं कि उनका लाइफ पार्टनर हमेशा उनके साथ रहे। अपने साथी से उनकी यही उम्मीद होती है कि वह उनसे अपने दिल की हर बात शेयर करे। अगर पति थोडा वक्त  अपने दोस्तों के साथ बिताना चाहे या पत्नी कोई छोटी सी बात पति को बताना भूल जाए तो इसे लेकर दोनों एक-दूसरे से नाराज हो जाते हैं। अगर तार्किक ढंग से देखा जाए तो इसमें नाराजगी जैसी कोई बात नहीं है। पति या पत्नी होने के अलावा हर इंसान का निजी वजूद भी होता है। दांपत्य से जुडी जिम्मेदारियां निभाने के अलावा उनके मन में भी यह इच्छा होती है कि वे थोडा वक्त  अपने ढंग से बिताएं, जिसमें वे सिर्फ अपनी पसंद और रुचियों से जुडे कार्य कर सकें। इस संबंध में मैरिज काउंसलर  डॉ. अनु गोयल कहती हैं, हर पल एक-दूसरे के साथ परछाई की तरह रहने की पारंपरिक धारणा अब पुरानी पड चुकी है। अब लोग पर्सनल स्पेस के महत्व को समझने लगे हैं। वे अपने लाइफ पार्टनर की पसंद-नापसंद के मामले में दखलंदाजी नहीं करते और उसे रोजाना कुछ घंटे अपने ढंग से गुजारने की पूरी छूट देते हैं।

बच्चों का अपना कोना

आजकल परिवार में केवल बडों ही नहीं, बल्कि बच्चों को भी पर्सनल स्पेस की जरूरत महसूस होती है। इस संबंध में 39  वर्षीया शिक्षिका लतिका शर्मा कहती हैं, छठी क्लास में पढने वाला मेरा बेटा घर पर आने वाले दोस्तों को ड्राइंगरूम में बिठाने के बजाय उन्हें सीधा अपने कमरे में ले जाता है। उसका कहना है कि सभी के सामने दोस्तों से बातें करते हुए वह सहज नहीं रह पाता। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, अब तो कई अध्ययनों से यह बात समाने आ चुकी है कि ओवर प्रोटेक्शन देने वाले पेरेंट्स  को उनके बच्चे नापसंद करते हैं और इससे उन बच्चों के व्यवहार में या तो चिडचिडापन आ जाता है या फिर वे बेहद दब्बू बन जाते हैं।

बुजुर्गो की अपनी दुनिया अब तक ऐसा माना जाता था कि केवल युवाओं को ही आजादी पसंद होती है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अगर हम अपने सामाजिक परिवेश पर गौर करें तो अब हमारे बुजुर्ग अपनी निजता को लेकर अति संवेदनशील हो गए हैं। अगर बेटा-बहू किसी वजह से उनके साथ नहीं रह पाते तो उन्हें भी अपनी गृहस्थी छोडकर बेटे-बहू के साथ रहना गवारा नहीं है। इस संबंध में 70  वर्षीया होम मेकर प्रमिला पराशर  कहती हैं, मेरे तीनों बेटे अपने परिवार के साथ खुशहाल  जिंदगी जी रहे हैं, पर हम पुरानी दिल्ली के अपने पुश्तैनी मकान में ही रहते हैं। उन्होंने कई बार हमसे अपने साथ चलने का आग्रह किया, लेकिन वहां हमारा मन नहीं लगता। हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से बेटे-बहू को कोई असुविधा हो। हमारी और उनकी लाइफस्टाल में काफी फर्क है। हालांकि, वे हमारा बहुत खयाल  रखते हैं, पर वहां के माहौल में हम खुद को एडजस्ट नहीं कर पाते। इसलिए कभी-कभी बच्चों से मिलने जरूर जाते हैं, पर रहने के लिए अपना घर सबसे अच्छा लगता है। यहां हम पूरी तरह से अपनी मर्जी के मालिक होते हैं और अपने सभी शौक पूरे करते हैं। यह एक सकारात्मक सामाजिक बदलाव है। हमें इस बात का खयाल रखना चाहिए कि अगर हमारे बुजुर्ग शारीरिक रूप से दुर्बल हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने ढंग से जीने अधिकार नहीं है। हमें भी उनकी आजादी का सम्मान करना चाहिए।

करीबी रिश्तेदार और दोस्त

अकसर आपने बसों के पीछे लिखा देखा होगा कि कृपया दूरी बनाए रखें। चाहे गाडियां हों या रिश्ते, संभावित दुर्घटनाओं से बचने के लिए उनके बीच थोडी दूरी जरूरी है। सगे भाई-बहनों के अलावा कुछ रिश्तेदार भी आपके बेहद करीबी होते हैं। ऐसे रिश्तों में आप अपनों का खयाल  जरूर रखें, पर उनकी निजी जिंदगी में बहुत ज्यादा ताक-झंाक न करें। कहते हैं दोस्ती में कोई दुराव-छिपाव नहीं होता, यह रिश्ता सबसे करीबी होता है। इसलिए दोस्त से अपने दिल की हर बात शेयर करनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि आपको अपने दोस्त की पर्सनल लाइफ से जुडी हर बात जानने का हक है या आप हर बात पर उसे बिना मांगे सलाह देते रहें। ठीक इसी तरह आपको भी अपनी पर्सनल लाइफ और दोस्ती में घालमेल नहीं करना चाहिए। दोस्ती पूरी ईमानदारी से निभाएं, पर इसके लिए दोस्त को हर फेमिली सीक्रेट बताना जरूरी नहीं है। कुछ बातें ऐसी भी होती हैं, जिन्हें सिर्फ अपने तक सीमित रखना ही अच्छा रहता है। फिर ऐसी बातों को बताने या न बताने से दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पडता। इसलिए अपने दोस्तों को पूरा पर्सनल स्पेस दें। तभी उन्हें आपका साथ अच्छा लगेगा, वरना बहुत ज्यादा  करीबी से दोस्तों का भी दम घुटने लगता है।

ाुझे ऐसा लगता है कि मैरिड लाइफ की सफलता के लिए जीवनसाथी की भावनाओं का सम्मान करने के साथ एक-दूसरे को पर्सनल स्पेस देना भी जरूरी है। हम दोनों एक-दूसरे को पूरा स्पेस देते हैं। मेरी जीवनसंगिनी शशि शूटिंग के दौरान मुझे कभी भी फोन नहीं करतीं। उन्हें मालूम होता है कि इससे मेरे काम में बाधा पहुंचेगी।

सतीश कौशिक, निर्माता-निर्देशक

शादी के बाद शुरुआत में कुछ वर्षो तक मेरी बहू श्वेता हमारे साथ रही। फिर मुझे ऐसा लगा कि बेटे-बहू को पर्सनल स्पेस मिलना चाहिए। लिहाजा वे दूसरी जगह शिफ्ट हो गए। फिर भी हमारी यही कोशिश होती है कि सप्ताह में एक बार हम लंच या डिनर एक साथ करें। मुझे ऐसा लगता है कि थोडी सी दूरी प्यार को कम करने के बजाय और बढा देती है।

रितु नंदा, एंटरप्रेन्योर

तुषार मुझसे चार साल छोटा है और मेरा बेहद लाडला भाई है। प्रोफेशनल स्तर पर भी हम साथ काम करते हैं। जहां उसे मेरे सहयोग की जरूरत होती है, मैं उसकी मदद जरूर करती हूं। पर मेरी कोशिश यही होती है कि वह अपने निर्णय खुद ले और इसीलिए मैं उसके मामलों में दखलंदाजी नहीं करती।

एकता कपूर, टीवी धारावाहिक निर्माता

मैं विशाल के साथ पिछले दस वर्षो से काम कर रहा हूं। मेरा मानना है कि जिस रिश्ते में थोडी बहस और मतभेद न हो वह रिश्ता बेहद नीरस हो जाता है। ऐसे रिश्तों को प्यार से निभाने के बजाय उन्हें मजबूरी में ढोना पडता है। संगीत के क्षेत्र में आज हमारी मजबूत जोडी बन गई है। हमारी कामयाबी राज यही है कि हम एक-दूसरे को पूरी आजादी देते हैं।

शेखर, संगीतकार


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