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जुड़ेगा टूटा रिश्ता धीरे-धीरे

संबंधों का मामला नाज़ुक होता है। बहुत मामूली सी बात भी किसी को ठेस पहुंचा सकती है। भले उसमें कुछ गलत न हो, पर संबंध टूटने का कारण बन सकती है। लेकिन, रिश्ते केवल टूटते ही नहीं, टूटे हुए रिश्ते जुड़ते भी हैं। इसके लिए चाहिए सिर्फ ईमानदार कोशिश और

By Edited By: Published: Mon, 29 Jun 2015 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2015 03:30 PM (IST)
जुड़ेगा टूटा रिश्ता धीरे-धीरे

संबंधों का मामला नाजुक होता है। बहुत मामूली सी बात भी किसी को ठेस पहुंचा सकती है। भले उसमें कुछ गलत न हो, पर संबंध टूटने का कारण बन सकती है। लेकिन, रिश्ते केवल टूटते ही नहीं, टूटे हुए रिश्ते जुडते भी हैं। इसके लिए चाहिए सिर्फ ईमानदार कोशिश और धैर्य।

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श्तों का जुडऩा जितना मुश्किल होता है, उन्हें सहेजना उससे भी ज्य़ादा कठिन। इसके विपरीत तोडऩे के लिए एक झटका ही काफी है। यह झटका कुछ भी हो सकता है - कोई कडवी बात, किसी मसले पर उपेक्षा, कोई मामूली गलती, गलतफहमियां या कुछ और। मुश्किल यह है कि ऐसा जब भी होता है तो इसका पहले से कोई एहसास नहीं होता। पता ही तब चलता है, जब घटना घट चुकी होती है। अगर समय से पता चल जाए कि जो हम कहने या करने जा रहे हैं, वह हमारे संबंधों पर क्या असर डालेगा तो अधिकतर संबंध बिगडऩे ही न पाएं। कई बार ऐसा भी होता भी है कि गलती के बाद तुरंत एहसास हो जाता है। ऐसी स्थिति में समझदार लोग बात को संभालने की कोशिश भी करते हैं। कई बार बात बन भी जाती है, लेकिन कई बार यह कोशिश बेकार साबित होती है। इसीलिए कवि रहीम ने कहा है-

रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाय

टूटे से फिर ना जुडे, जुडे तो गांठ पड जाय।

अकसर देखा जाता है कि ऐसे रिश्तों में जुडऩे के बाद भी कुछ कसक सी रह जाती है। हालांकि आधुनिक मनोविज्ञान का मानना है कि यह मुश्किल ही है, असंभव नहीं। अगर रिश्ते में आई दरार की वजह को समझते हुए ठीक तरह से प्रयास किए जाएं तो उस कसक का मिटना भी असंभव नहीं है। इसके पहले कि किसी टूटे हुए रिश्ते को नए सिरे से सहेजने की कोशिश शुरू की जाए, सबसे जरूरी है कि उसके वास्तविक कारण की तलाश की जाए।

देखें अपनी ओर

यह जरूरी नहीं कि संबंध टूटने के मामले में गलती हर बार आपकी ही हो, पर ऐसे मामले में देखना सबसे पहले अपनी ओर ही चाहिए। अधिकतर होता यह है कि हम स्थितियों को समझे बिना ही दूसरे पक्ष को जिम्मेदार मान लेते हैं। यह सोचे बगैर कि उसने ऐसा कुछ किया भी तो किन हालात में। यह गौर करना चाहिए कि अगले व्यक्ति ने जो कुछ भी किया, उस पर हमारी प्रतिक्रिया क्या थी। हमने जो किया, क्या वह सही था! ऐसा तो नहीं कि हमने उसकी बात को समझे बिना ही प्रतिक्रिया दी और उसका दिल दुखाया! ऐसा कुछ लगे तो अपनी गलती स्वीकार कर, माफी मांग लेने में कोई हर्ज नहीं है। अकसर तो केवल इतने से ही बिगडी बात बन जाती है। अगर यह समस्या आपके साथ बार-बार आती है तो जरूरी है कि अपने व्यवहार पर विचार करें। आवश्यक लगे तो ख्ाुद को सुधारने के लिए भी तैयार रहें।

स्वीकारें दूसरों को

दूसरों में ही गलती ढूंढने का एक कारण यह है कि अधिकतर लोग दूसरे के व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं पाते। हर व्यक्ति दूसरों से अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की उम्मीद करता है। ख्ाासकर रिश्तों के मामले में हर किसी के मन में एक फ्रेम होता है। सभी चाहते हैं कि संबंधित व्यक्ति उसी फ्रेम में फिट बैठे। कुछ लोग किसी का भी इस फ्रेम से बाहर जाना बर्दाश्त नहीं कर पाते। कई बार तो वे ऐसी बातों पर भी टोकने से बाज नहीं आते जो गलत ही नहीं होतीं। हां, यह जरूर हो सकता है कि वह उनकी अपेक्षा के अनुरूप न हो। लेकिन, दुनिया में सब कुछ किसी की अपेक्षा के अनुरूप ही हो, यह कैसे संभव है? हमें यह बात समझनी चाहिए कि हर किसी का अपना व्यक्तित्व है। किसी से अपने जैसा बनने की अपेक्षा या उसे अपने अनुरूप ढालने की कोशिश ख्ातरनाक हो सकती है। बेहतर होगा कि जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें।

व्यक्ति का सम्मान

रिश्ता कोई भी हो, टूटने का कारण अधिकतर अहं का टकराव होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यह होता क्यों है? इसकी एक वजह तो यही होती है कि हम दूसरे के व्यक्तित्व को वैसे ही स्वीकार नहीं कर पाते, जैसा वह है। दूसरी यह कि किसी पर अपने व्यक्तित्व और अपनी अपेक्षाओं को थोपने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अगर दूसरा व्यक्ति हमसे मजबूत हुआ तो वह ख्ाुद को साबित करने में लग जाता है और अगर कमजोर हुआ तो समर्पण जैसी अवस्था में आ जाता है। ये दोनों ही स्थितियां सही नहीं हैं। दोनों ही स्थितियों में अहं का टकराव तय है। अगर आपकी ऐसी किसी प्रवृत्ति के कारण कोई संबंध टूटने की ओर बढ रहा है, सचेत हो जाएं। पहले तो दूसरों पर अपनी अपेक्षाएं और अपना व्यक्तित्व थोपना बंद कर दें। धीरे-धीरे यह एहसास कराएं कि आपने ख्ाुद को बदलना शुरू किया है। आप उससे अब ऐसी कोई अपेक्षा नहीं करते, जिसे वह पूरा न कर सके। समय और मूड देख कर उससे निवेदन करें कि अगर अब भी उसे ऐसा लगता है कि आप उस पर अपनी कोई अपेक्षा या अपना व्यक्तित्व थोप रहे हैं, तो वह साफ बता दे। अपने व्यवहार से उसे यह भरोसा भी दिलाएं कि भविष्य में आप ऐसा नहीं करेंगे।

प्रशंसा है जरूरी

रिश्ते चाहे निजी हों या प्रोफेशनल, सभी पौधों की तरह होते हैं। वे फूलते-फलते रहें, इसके लिए उन्हें सींचना अनिवार्य है और रिश्तों की सिंचाई के लिए अच्छे कार्यों की प्रशंसा से बेहतर जल नहीं हो सकता। कोई जब अच्छा कार्य करता है तो वह प्रशंसा चाहता है। होता अकसर उलटा है। किसी से कोई गलती हो जाने पर तो हम उसे दस बातें सुना देते हैं, लेकिन अच्छे काम को उसका कर्तव्य मान कर टाल देते हैं। यह बात उसमें कुंठा पैदा करती है और जब किसी गलती पर उसकी आलोचना की जाती है तो उसका गुस्सा फूट पडऩा स्वाभाविक है। इसके विपरीत अगर अच्छा काम करने पर किसी की प्रशंसा की जाए तो गलतियों पर टोके जाने से भी उसे पर बुरा नहीं लगता। अच्छे काम की प्रशंसा उसे और अच्छे काम के लिए प्रेरित भी करती है। अगर किसी को प्रशंसा करना मुश्किल लगता है तो वस्तुत: यह उसके व्यक्तित्व की कमजोरी है। इससे उबरने की कोशिश करनी चाहिए।

आभार जताएं

जिस तरह अपेक्षाएं स्वाभाविक हैं, वैसे ही उनके पूरे होने पर आभार जताना भी। कई बार रिश्ते इसीलिए टूट जाते हैं कि हम अपना काम हो जाने के बाद संबंधित व्यक्ति को धन्यवाद तक नहीं बोलते। हां, अगर उसमें कोई कसर रह गई तो शिकायत जरूर करते हैं। हमें जो कुछ मिल हुआ है, उसके प्रति हम ईश्वर तक के प्रति आभार नहीं जताते और जो नहीं मिला है, उसके लिए शिकायतें करते रहते हैं। रिश्ते बने रहें, इसके लिए इस मानसिकता से उबरना बहुत जरूरी है।

जारी रहे संवाद

बेशक कई बार गलती आपकी नहीं होती, दूसरा पक्ष ही गलत होता है और यह बात जाहिर होती है। यदि यह बात बार-बार की है तो स्थिति अलग है, लेकिन अगर पहली-दूसरी बार की बात है तो क्षमा कर देना बेहतर है। ध्यान रहे, ऐसी स्थिति में संवाद नहीं टूटना चाहिए। क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी तत्व है संवाद। संवाद टूट जाने की स्थिति में बने-बनाए रिश्ते भी बेजान होने लगते हैं और टूटे रिश्तों को फिर से जोडऩे में तो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ही संवाद की होती है। इसलिए बातचीत हर हाल में बनाए रखें।

समझें ये संकेत

जिस तरह कोई रिश्ता अचानक जुडता नहीं, ऐसे ही एकाएक टूटता भी नहीं है। संबंधों को टूटने में समय लगता है और इसके पहले कि वे टूट ही जाएं, संकेत भी देते हैं। समझें इन संकेतों को।

चुप्पी : अगर आपका कोई करीबी व्यक्ति, जिससे आपकी अकसर और ख्ाूब बातचीत होती रहती हो, वह अचानक आपके साथ होते हुए चुप्पी ओढऩे लग जाए तो यह समझें कि स्थितियां सामान्य नहीं हैं। हो सकता है, उसे आपकी किसी बात से तकलीफ पहुंची हो।

हर बात मान लेना : हर व्यक्ति की अपनी समझ होती है। किसी की बात को समझ-बूझ कर मानना एक अच्छी बात है, लेकिन चुपचाप मान लेने का मतलब है कि सामने वाला फालतू बहस या टकराव में पडऩा नहीं चाहता। यह संकेत अच्छा नहीं है।

पीठ पीछे आलोचना : अगर आपको किसी करीबी के बारे में यह पता चले कि उसने किसी और के सामने आपके बारे में कोई नकारात्मक टिप्पणी की तो बेहतर होगा कि उससे सीधे विनम्रतापूर्वक बात करें। यह स्थिति तभी आती है जब आप अपनी आलोचना सुनना बर्दाश्त न कर पाते हों।

इष्ट देव सांकृत्यायन

(इनपुट : रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. नीना गुलाबानी)


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