Move to Jagran APP

मेरा न तुम्हारा वक्त है हमारा

जिस समाज में रिश्तों के लिए भी वक्त न हो,उसकी समस्याओं की कल्पना की जा सकती है।आज के ज्य़ादातर कपल्स इसी पीड़ा से जूझ रहे हैं।एक्सपर्ट के जरिये इस सवाल को समझने और सुलझाने की कोशिश।

By Edited By: Published: Tue, 05 Jul 2016 11:03 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2016 11:03 AM (IST)
मेरा न तुम्हारा वक्त है हमारा
दिल्ली की पल्लवी साधारण मिडिल क्लास फैमिली से आती है। हर लडकी की तरह शादी से पहले उसकी जिंदगी मौज-मस्ती से भरपूर थी। वह ऑफिस से लौटकर एक घंटे टेनिस खेलती थी, कई बार दोस्तों के साथ डिनर पर जाती थी। संडे तो फन डे होता था। फैमिली और फ्रेंड्स के साथ मूवी, शॉपिंग, डिनर...। शादी क्या हुई कि जिंदगी मानो घर-ऑफिस तक सिमट गई। पल्लवी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर शादी के बाद लडकी की जिंदगी में इतने बदलाव कैसे आ जाते हैं? एक व्यक्ति से जुडते ही उसकी गतिविधियां सीमित हो गईं। इसके बाद भी रजत (पति) को शिकायत है कि वह पहले जैसी नहीं रही। समाधान न मिला तो पल्लवी काउंसलर से मिली। दो-तीन सिटिंग्स के बाद उसे अपने सेल्फ-डिफीटिंग पैटर्न के बारे में पता चला। उसे समझ आया कि वह मी टाइम और वी टाइम के बीच संतुलन नहीं बिठा पा रही है। मी टाइम है जरूरी समय नहीं है... आज के ज्य़ादातर नौकरीपेशा दंपतियों का यही रोना है। यही कारण है कि रिश्तों में मी और वी टाइम को लेकर खूब बातें की जाने लगी हैं। हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह खुद को खुश रखे। अगर वह स्वयं प्रसन्न नहीं रहेगा तो दूसरों को खुश कैसे रख सकता है! समस्या तब पैदा होती है, जब हम अपनी खुशी और समय के लिए दूसरे पर निर्भर होने लगते हैं। यदि कपल में कोई एक फिटनेस फ्रीक है और मॉर्निंग वॉक या एक्सरसाइज उसकी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा है तो जरूरी नहीं कि उसका पार्टनर भी ऐसा ही होगा। एक को सुबह जागना अच्छा लगता है और दूसरे को सोना तो क्या उनका जीवन झगडते हुए बीतेगा? या फिर एक की खातिर दूसरा अपनी खुशियों को कुर्बान कर देगा? दोनों ही स्थितियां कुंठा और अवसाद को जन्म देंगी और रिश्ते में ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसे मिला समाधान रिश्ता प्रेम और भरोसे की पटरी पर संतुलित ढंग से चल सके, इसके लिए पल्लवी और रजत ने पूरी कोशिशें कीं। एक-दूसरे की पसंद-नापसंद के साथ संतुलन बिठाया। वे अब साथ खेलते हैं, मूवी देखते हैं और हफ्ते में एक बार बाहर खाने भी जाते हैं। यानी एक-दूसरे के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताते हैं। रजत को शॉपिंग पसंद नहीं और पल्लवी ने इस बात को स्वीकार कर लिया है। अब वह अपनी दोस्तों या कलीग्स के साथ शॉपिंग पर चली जाती है। उसी तरह रजत भी दोस्तों के साथ लाइव मैच देखता है। दोनों ने अपने व्यवहार, आदतों और जीवनशैली में थोडा परिवर्तन किया और अपने एकांत को भी सुरक्षित किया। वे एक-दूसरे से अव्यावहारिक अपेक्षाएं नहीं रखते। यही नहीं, रजत ऑफिस से जल्दी आ जाता है तो शाम की चाय वही बनाता है और साथ में डिनर की तैयारी भी कर लेता है, ताकि पल्लवी को अपने लिए थोडा समय मिल सके। दोनों अलग-अलग अपने शौक पूरे करते हैं और साथ में अच्छा वक्त भी बिताते हैं। मेहमान आते हैं तो मिल-जुलकर काम करते हैं या एक टाइम का खाना बाहर से मंगवा लेते हैं, ताकि किसी पर दबाव न पडे। इसके लिए खास कोशिश नहीं की उन्होंने लेकिन काउंसलिंग ने उन्हें इतनी समझदारी जरूर दी कि अब वे अपनी और दूसरे की जरूरतों का खयाल रखने लगे हैं। मैं-तुम और हम अलग-अलग परिवेश से आकर स्त्री-पुरुष पति-पत्नी बनते हैं। शादी के बाद उन्हें हर समय एक-दूसरे के साथ रहना होता है। एडजस्टमेंट में थोडा समय लगता है। पहले ही दिन से संतुलन बिठा लेंगे, ऐसी अपेक्षा अव्यावहारिक है। परेशान या कुंठित होने के बजाय आगे बढ कर समस्याओं को सुलझाने के बारे में सोचें तो समाधान मिल सकता है। थोडी कोशिश, त्याग और धैर्य से स्थितियां बदल सकती हैं। इसके लिए दोनों को ही थोडा-थोडा झुकना होगा। दिल्ली की रिलेशनशिप एक्सपर्ट-काउंसलर भावना मोंगा कहती हैं,'प्राथमिकताएं तय करें और जिंदगी के साथ चलें। परिवार व दोस्तों को समय देना जरूरी है लेकिन खुद के लिए वक्त निकालना भी जरूरी है, तभी कुछ नया सीखेंगे और विकास कर सकेंगे। जो लोग कहते हैं कि उनके पास संबंधों के लिए समय नहीं है, वे ईमानदार नहीं हैं। यह महज एक पलायनवादी सोच है। अगर वाकई लगता है कि समय नहीं है तो खुद से पूछें कि क्या सचमुच ऐसा है? सही कारणों की खोज करें। कहते हैं, जहां चाह है-वहां राह है। रिश्तों को समय देना व्यक्ति के हाथ में है। कोई भी रिश्ता जो स्वीकार्यता और समर्पण पर टिका होता है, वह सही ढंग से आगे बढता है। संवाद, पारदर्शिता और समझदारी रिश्तों के लिए जरूरी है। सुखी दांपत्य का कोई फॉम्र्युला नहीं है। हर व्यक्ति अलग है,उसकी समस्याएं अलग हैं और उन्हें देखने-समझने और सुलझाने का तरीका भी अलग है। एक समस्या किसी के लिए छोटी होती है तो दूसरे के लिए वही बडी हो जाती है। रिश्तों की गर्माहट बनाए रखनी है तो कंफर्ट जोन से बाहर निकलें, एक-दूसरे के लिए कुछ ऐसा करें जिससे दोनों को खुशी मिले। पार्टनर को ट्रैकिंग पसंद है तो उसके लिए खुद ट्रैकिंग करके देखें। उसे स्विमिंग पसंद है तो स्विमिंग क्लासेज जॉइन कर लें। शौक पैदा करें और उन्हें साथ पूरा करने की हिम्मत रखें। अपने लिए जो चाहते हैं, वह दूसरे को देना सीख लें तो आधी समस्याएं दूर हो जाएंगी। साथ चलने के नियम ज्य़ादातर नौकरीपेशा दंपती 12-13 घंटे ही घर में बिताते हैं। अगर करियर और परिवार की जरूरतों में सामंजस्य न बिठाया जाए तो समस्याएं खडी हो सकती हैं। यूएस में आज लगभग 48 प्रतिशत कपल्स नौकरीपेशा हैं। केनेडा में 70 फीसदी लोग नौकरी करते हैं जबकि यूके में दो तिहाई कपल्स बाहर काम करते हैं। ऐसे में घर-बाहर के बीच तालमेल न बिठाया जाए तो रिश्तों में समस्याएं पैदा हो जाती हैं। कुछ व्यावहारिक बातों का ध्यान रखें तो रिश्ते खुशहाल बने रह सकते हैं। 1. अव्यावहारिक अपेक्षाएं निराशा पैदा करती हैं। इसलिए अपेक्षाओं को मैनेज करना सीखें। घर और बाहर की ढेरों जिम्मेदारियों के बीच भी सही तालमेल बिठाने के लिए यह जरूरी है कि दूसरे से उतनी ही अपेक्षा रखें, जिसे वह पूरा कर सकता हो। 2. अपनी रुचियों, पसंद-नापसंद और दिनचर्या को पूरी तरह दूसरे के हिसाब से तय करना मुश्किल होता है। खुद को न बदलें लेकिन दूसरे की खुशी के लिए कभी-कभी उसके हिसाब से भी चल कर देखें तो अच्छा लगेगा और दूसरा भी इसके लिए कृतज्ञता व्यक्त करेगा। 3. ऑफिस को समय देना जरूरी है लेकिन थोडा समय परिवार के लिए चुराना भी जरूरी है। कभी-कभी ऑफिस से हाफ डे करें या फिर किसी रेस्तरां में लंच प्लैन कर पार्टनर को सरप्राइज करें। साथ समय बिताने के लिए ऐसे छोटे-छोटे पल बडे काम के होते हैं। 4. आजकल कई कंपनियां वर्क फ्रॉम होम का विकल्प दे रही हैं। घरेलू जिम्मेदारियां ज्य़ादा हों तो इस विकल्प पर सोचा जा सकता है। 5. ऑफिस में डेडलाइंस, मीटिंग्स, रिव्यूज, असाइनमेंट्स के अलावा फोन कॉल्स और ईमेल्स के लिए भी एक शेड्यूल बना होता है। जरा सोचें, क्या रिश्तों के लिए भी ऐसा ही कोई शेड्यूल नहीं बनाना चाहिए? अपने वी टाइम का शेड्यूल बनाएं। साल या छह महीने में एक बार छुट्टी पर जरूर जाएं। 6. अपने लिए मी टाइम निकालना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी रिश्तों के लिए वी टाइम भी है। कई बार घरेलू जिम्मेदारियों और कार्यस्थल के कार्यों के कारण कपल्स को अपने लिए समय नहीं मिल पाता लेकिन एक बार सोच लें और निर्णय ले लें तो फिर कोई भी कारण इतना बडा नहीं हो सकता कि रिश्ते के आडे आए, बशर्ते दिल में साथ बिताने की इच्छा हो और रिश्तों के प्रति ईमानदारी हो। इंदिरा राठौर

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.