शादी एक दिलचस्प अनुभव है: अंकुश-स्मिता
धारावाहिक बालिका वधू की सुमित्रा यानी स्मिता बंसल और डायरेक्टर अंकुश मौला की शादी को 12 साल हो गए हैं। इनकी दो नन्ही बेटियां हैं। अलग-अलग स्वभाव के बावजूद इनकी सोच एक जैसी है। दोनों शादी को दिलचस्प अनुभव मानते हैं और कहते हैं कि यह एक जिम्मेदार संस्था है। मिलते हैं टीवी की दुनिया से जुड़े इस दंपती से।
टीवी से करियर का आगाज किया अंकुश मौला और स्मिता बंसल ने। अंकुश टीवी डायरेक्टर हैं। इन दिनों अनामिका नामक सीरियल डायरेक्ट कर रहे हैं जबकि स्मिता बालिका वधू में सुमित्रा के रूप में घर-घर में मशहूर हैं। दोनों 12 साल पहले मुंबई में मिले और फिर शादी कर ली।
शादी एक जिम्मेदारी है
अंकुश : सकारात्मक मायनों में एक जिम्मेदारी का नाम है शादी। समाज को बेहतर रूप देने में इसकी भूमिका अहम है। इसका संस्थागत स्वरूप हजारों सालों से रहा है। स्त्री-पुरुष के रिश्ते की सामाजिक स्वीकृति है शादी। इससे अच्छे वक्त में ख्ाुशियां दुगनी हो जाती हैं और बुरे वक्त में गम आधे।
स्मिता : मेरे लिए यह ऐसा रिश्ता है, जो पलायनवादी होने से बचाता है। जीवनसाथी सही हो तो जिंदगी का सफर आसान और ख्ाुशनुमा हो जाता है। शादी उम्र भर का रिश्ता है। हालांकि कुछ लोगों ने इसे मजाक बना दिया है। अकसर शादी टूटने और तलाक होने की ख्ाबरें मिलती हैं।
साथ रहने के लिए जरूरी है धैर्य
अंकुश : साथ रहने से ही बेहतर समझदारी कायम होती है। मेरे ख्ायाल से पहली मुलाकात में किसी को सही-सही पहचानना मुश्किल है, ख्ासतौर पर अरेंज्ड मैरिज में। शादी से पहले जब लडका-लडकी मिलते हैं तो उनके दिमाग में क्या चल रहा है, इसे पहचान पाना मुश्किल होता है। जरूरी नहीं कि डेटिंग पीरियड में हमसफर का असल रूप देखने को मिले। आमतौर पर इस दौरान लडका-लडकी अपना बेस्ट सामने रखते हैं। असल चेहरा शादी के बाद पता चलता है। इंसान को धैर्य भी चाहिए। साथ रहने के बाद लोग एक-दूसरे को समझने लगते हैं। उन्हें साथ भाने लगता है। हर रिश्ते में त्याग, सामंजस्य, जिम्मेदारी जरूरी है। इसी से रिश्ता फलता-फूलता-संवरता और स्थायी होता है। शादी कैसी भी हो, संतुलन जरूरी है।
स्मिता : पहली मुलाकात से किसी के बारे में अच्छी-बुरी राय बनाना मुश्किल है। वैसे मैं यश चोपडा की थ्योरी में यकीन रखती हूं। यही कहूंगी कि करेक्ट आदमी को देख कर मन में घंटी बजती है। लेकिन इसके लिए ईमानदार होना पडता है। 12-13 साल पहले अंकुश से भी हलकी जान-पहचान थी, लेकिन सिक्स्थ सेंस काम करता है और टेलीपैथी भी होती है। शादी के बाद एक-दूसरे का ख्ायाल रखना पडता है। अंकुश को क्रिकेट पसंद है तो मुझे फिल्में। अंकुश मेरी भावनाओं का ख्ायाल रखते हैं तो मैं भी एडजस्ट करती हूं।
बात बनेगी, ये एहसास था
अंकुश : इन्हें पहली बार देखते ही महसूस हुआ था कि ये मेरी जीवनसंगिनी बनेंगी। मैं वैष्णो देवी यात्रा पर गया था। देवी मां की इच्छा कह लें कि मेरे मन में इनके प्रति भावनाएं जगीं और अगली सुबह पांच बजे मैंने इन्हें फोन करके प्रपोज कर दिया। सिक्स्थ सेंस कहता था कि बात बनेगी।
स्मिता : इन्हें एहसास हुआ कि मेरे बिना नहीं जी सकते। इन्होंने मुझे मुंबई में फोन किया। इन्हें यकीन था कि मना नहीं करूंगी।
शादी का अलग आनंद है
अंकुश : मैंने लव मैरिज की है। लेकिन मेरा मानना है कि शादी जैसी भी हो, उसका अपना आनंद है। लव मैरिज अच्छी है या अरेंज्ड मैरिज, मैं इस विवाद में नहीं पडना चाहता। मेरे कई दोस्तों ने अपनी पसंद से शादी की, लेकिन सफल नहीं हुई। अरेंज्ड मैरिज में थोडी आसानी इसलिए होती है कि इसमें अपेक्षाएं कम होती हैं। इसके अलावा दो परिवारों की आपसी सहमति भी होती है। शादी के बाद अगर कोई समस्या हो तो वे मध्यस्थता करते हैं। लेकिन लव मैरिज में अकेले झेलना पडता है, कोई साथ नहीं देता।
स्मिता : लव मैरिज का सबसे बडा फायदा यह है कि जीवनसाथी के बारे में पहले से सब पता होता है। हां, समस्या होने पर दूसरे पर ब्लेम नहीं कर सकते। फैसला ले लिया तो नतीजे भुगतने के लिए भी तैयार रहते हैं। शादी मेरा निजी फैसला था, इसके जो भी नतीजे होते, मुझे मंजूर होते। अरेंज्ड मैरिज में दूसरों पर आरोप थोपा जा सकता है, लेकिन लव मैरिज में यह नहीं कर सकते। अरेंज्ड मैरिज में शादी के बाद एक-दूसरे को डिस्कवर करते हैं, जबकि लव मैरिज में पहले से परिचय होता है, अपेक्षाएं भी बढ जाती हैं।
लिव-इन में भरोसा नहीं
अंकुश : ऐसे लोग कमिटमेंट व जिम्मेदारी से बचते हैं। जबकि रिश्ते में जिम्मेदारी जरूरी है, यह मेरी निजी राय है। मेरा अनुभव कहता है कि जो लोग करियर या आर्थिक स्थिति के कारण लिव-इन में रहते हैं, उन्हें बाद में मुश्किलों से जूझना पडता है। जबकि शादी में दूसरे को छोड कर भागना आसान नहीं है।
स्मिता : मुझे भी लिव-इन का कॉन्सेप्ट नहीं जंचता। यह सहूलियत के लिए बनाया गया रिश्ता है, जिसमें बाहर निकलने के कई रास्ते हैं। लगता है मानो एक-दूसरे को परख रहे हैं। यही वजह है कि समाज भी ऐसे रिश्तों को मान्यता नहीं देता।
कुछ अलग भी हैं बातें
अंकुश : मैं शांत किस्म का हूं। स्मिता की जिंदादिली मुझे पसंद है, लेकिन कई बार ये अति-उत्साही हो जाती हैं, जिससे खीझ होती है। बहस भी करती हैं। मेरा मानना है कि बात करो और जल्दी मामला सुलझा लो।
स्मिता : इन्हें क्रिकेट पसंद है। ये गैजेट्स के दीवाने हैं। मुझे इनमें दिलचस्पी नहीं है। कई बार ये लोगों पर इतना प्यार लुटा देते हैं कि वे फायदा उठाने लगते हैं। ये लाइफ को लेकर कूल हैं, मैं समय की बहुत कद्र करती हूं। मुझे लगता है काम समय पर हो।
परिवार और करियर
अंकुश : पंजाबी हूं, लेकिन पैदाइश मुंबई में हुई। पापा मदन मौला फिल्म प्रोड्यूसर हैं। लगभग डेढ दशक से टीवी की दुनिया में हूं। एक बडा भाई और छोटी बहन है। मैंने 1000 से ज्यादा एपिसोड डायरेक्ट किए हैं। पहला शो वो था। आफताब और बिपाशा बसु को लेकर फिल्म जाने होगा क्या बनाई थी। इन दिनों सोनी टीवी पर अनामिका सीरियल डायरेक्ट कर रहा हूं। एक फिल्म श्रेयस तलपडे के साथ बना रहा हूं।
स्मिता : मैं जयपुर की हूं। पापा बिजनेस मैन हैं। छोटा भाई लंदन में सेटल्ड है। मैं 15 साल पहले मुंबई आई थी। पहला सीरियल इतिहास डीडी पर आता था। फिर इनसे शादी करके चार साल का ब्रेक लिया। वापसी हुई बालिका वधू से। अभी वही कर रही हूं, कुछ और नहीं करूंगी।
सपने, उम्मीद और लक्ष्य
अंकुश : चाहता हूं कि अच्छी फिल्में बनाऊं और लोगों को एंटरटेन करूं। मुझे राजकुमार हीरानी, आमिर ख्ान की तरह काम करना है।
स्मिता : मैं भविष्य के बारे में नहीं सोचती। जो सही लगता है-वह करती हूं। अंकुश से 21 फरवरी 2001 में मिली, 9 दिसंबर को शादी कर ली। ग्लैमर इंडस्ट्री में भी अचानक आई। एमबीबीएस कर रही थी। फिर ऐक्टिंग सूझी और पढाई छोड कर यहां आ गई। बस यही चाहती हूं कि अच्छा इंसान बन सकूं।
तारीफ और तोहफे
अंकुश : मैं ज्यादा एक्सप्रेसिव नहीं हूं। तारीफ और तोहफे कम ही देता हूं।
स्मिता : मैं तोहफे लेने में यकीन करती हूं। ख्ाुद ही इनसे पूछ कर अपनी तारीफ करवा लेती हूं कि अच्छी लग रही हूं न!
आकर्षण की वजह
अंकुश : हमारी सोच एक सी है, लेकिन स्वभाव विपरीत। मैं शांत हूं मगर स्मिता चुलबुली। ख्ाूब बोलती हैं। मैं इनकी जिंदादिली पर ही फिदा हो गया। स्मिता केयरफ्री हैं लेकिन केयरलेस नहीं हैं। हम दोनों को अपने परिवार से बहुत लगाव है। जीवन के प्रति नजरिया समान है, लेकिन जीने का तरीका भिन्न है। मुझे जो चीज गलत लगती है, वह इन्हें भी लगती है।
स्मिता : पहली बार इनसे मुलाकात एक सीरियल के दौरान हुई। अकुंश उस हॉरर शो को डायरेक्ट कर रहे थे, मैं उसमें भूमिका निभा रही थी। मुझे भूतनी का रोल तो नहीं मिला, लेकिन इसके बाद मैं इनकी जिंदगी में भूतनी बन कर आ गई। मुझे इनका शांत स्वभाव बहुत भाया। मैंने सेट पर इन्हें कभी जूनियर्स पर चिल्लाते नहीं देखा, न पॉलिटिक्स करते देखा। ये अपने काम से काम रखते हैं। इनकी यही बात मुझे पसंद आई।