दूर हुई दांपत्य की दरार
अहं की भावना दीमक की तरह दांपत्य जीवन को खोखला कर देती है और इसका खमियाजा बेकसूर बच्चों को भुगतना पड़ता है। एक ऐसी ही समस्या को कैसे सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद।ॅ
लगभग तीन साल पहले की बात है। एक रोज किसी इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र मुझसे मिलने आया। वह काफी परेशान लग रहा था। उसकी उम्र तकरीबन 21 वर्ष रही होगी। उसने मुझे बताया कि वह ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर) की समस्या से ग्रस्त है। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति का अपनी सोच और व्यवहार पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। इसलिए वह एक ही कार्य को बार-बार दोहराता है। बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि आपसी झगडे की वजह से उसके माता-पिता अलग रहते थे।मैंने उससे कहा कि अगली बार तुम पेरेंट्स को भी साथ लाना। यह सुनकर उसने कहा कि यह असंभव है। तब मैंने उसे समझाया कि समस्या की जडें तुम्हारे माता-पिता के तनावपूर्ण संबंधों में छिपी हैं। इसलिए उनसे मिलना बहुत जरूरी है। काफी समझाने के बाद उसने कहा, मैं कोशिश करूंगा।
शक से हुई शुरुआत
दूसरी बार वह लडका अपनी मां के साथ आया। जब मैंने उनसे परेशानी का कारण पूछा तो वह कहने लगीं, हमारी शादी को 23 साल हो चुके हैं। अपनी तलाकशुदा कलीग के साथ मेरे पति की नजदीकियां बढती जा रही हैं। एक रोज मैंने उनके मोबाइल में उसका मेसेज भी देखा। जब मैंने उनसे इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने साफ तौर पर इंकार कर दिया। अगर वह अपनी गलती मान लेते तो मुझे कोई दुख नहीं होता और बात वहीं खत्म हो जाती। वह मुझसे सच्चाई छिपा रहे हैं, मुझे इसी बात का दुख है। मैं हाउसवाइफ हूं। मेरे पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। इसलिए वह प्रतिमाह घर खर्च के लिए मेरे अकाउंट में रुपये ट्रांस्फर कर देते हैं। तीन लोगों का छोटा सा परिवार.. लेकिन तीनों अकेले और उदास हैं। उन्होंने गहरी सांस भरते हुए कहा। मैंने उनके बेटे से कहा कि अगली बार तुम पापा को भी साथ लेकर आना। यह सुनते ही उसकी मां बुरी तरह नाराज हो गई और कहने लगीं, अगर वो आएंगे तो मैं यहां नहीं आऊंगी। फिर मैंने उन्हें प्यार से समझाया कि कोई बात नहीं, उस दिन मैं आपको नहीं बुलाऊंगी। दांपत्य संबंधी मामलों में हमें अच्छी तरह मालूम होता है कि दोनों ओर से कहां गलतियां हो रही हैं, लेकिन रिश्ते को टूटने से बचाना हमारी पहली प्राथमिकता होती है। इसलिए हम उन्हें किसी बात के लिए ब्लेम नहीं करते।
तसवीर का दूसरा रुख
जब वह लडका अपने पिता को साथ लेकर आया तो थोडी देर तक उसकी पढाई से जुडी समस्याओं पर बातें होती रहीं। उसके बाद लडके को बाहर भेजकर मैंने उसके पिता से अकेले में बात की। मैंने उनसे कहा कि आपके तनावपूर्ण संबंधों की वजह से ही बेटे को ओसीडी की समस्या हो रही है। यह सुनकर उन्होंने कहा, जब मेरी कोई गलती है ही नहीं तो मैं पत्नी से माफी क्यों मांगूं? उस कलीग के साथ मेरी सिर्फ जान-पहचान थी और उसने मुझे दीपावली का बधाई संदेश भेजा था। अब वह जॉब छोडकर जा चुकी है और मेरा उससे कोई संपर्क नहीं है।
ऐसे हुआ समाधान
इसके बाद मैंने दो बार पति-पत्नी को अलग-अलग बुलाया और उन दोनों से यही कहा कि थोडी के लिए आप अपने अहं को भूल कर सिर्फ इतना सोचें कि इस झगडे से आखिर किसका भला होगा? फिर मैंने उनसे आग्रह किया कि वे अगली बार एक साथ मिलने आएं। इसके बाद दो सिटिंग्स में पूरा परिवार एक साथ आया। मैंने पत्नी को समझाया कि अलग रहने के बावजूद आपके पति अपनी सारी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। ऐसे में आपको भी थोडी कोशिश करनी चाहिए। इस उम्र में ही लाइफ पार्टनर की जरूरत सबसे ज्यादा महसूस होती है। खैर, वह व्यक्ति पत्नी के पास वापस लौटने को तैयार हो गया। इसके बाद मैं उस दंपती को प्रतिमाह बुलाने लगी। धीरे-धीरे उन दोनों की शिकायतें कम होने लगीं तो मैंने उन्हें बुलाना बंद कर दिया, लेकिन इस बीच उनका बेटा लगातार मेरे संपर्क में था। मैंने उसे समझाया कि अब तुम्हें खुद अपना भविष्य संवारना है। घर के झगडों को इग्नोर करके खुश रहने की कोशिश करो और पढाई में मन लगाओ। लडके ने इन बातों पर अमल किया और छह महीने के भीतर उसमें ओसीडी के लक्षण दिखने बंद हो गए।
यह बेहद पेचीदा मामला था। यहां तीन लोगों की समस्याएं एक-दृसरे से जुडी हुई थीं। इसके लिए डेढ साल के भीतर मुझे लगभग 14 सिटिंग्स लेनी पडीं। यहां लडके का प्रयास सराहनीय था। उसकी जागरूकता की वजह से ही उसके माता-पिता की टूटी-बिखरी जिंदगी संवर गई।