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शादी के बाद हुआ प्यार: विश्वजीत-सोनालिका

गदर, दाग द फायर जैसी फिल्मों और टीवी सीरियल्स में कई किरदार निभा चुके विश्वजीत बड़े-छोटे पर्दे का जाना-पहचाना चेहरा हैं। इनकी हमसफर सोनालिका फैशन डिजाइनर हैं। दोनों ने शादी के बाद एक-दूसरे को देखा। ये मानते हैं कि टिपिकल अरेंज्ड मैरिज ही इनके वैवाहिक जीवन की सफलता का राज है। मिलते हैं इनसे।

By Edited By: Published: Tue, 01 Apr 2014 05:58 PM (IST)Updated: Tue, 01 Apr 2014 05:58 PM (IST)
शादी के बाद हुआ प्यार: विश्वजीत-सोनालिका

नब्बे के दशक में आई बादल, गदर और दाग द फायर जैसी फिल्मों में खलनायक बन चुके विश्वजीत प्रधान इन दिनों टीवी की दुनिया में सक्रिय है। विश्वजीत की बेटर हॉफ सोनालिका प्रधान फैशन डिजाइनर हैं और इन दिनों दुबई में अपनी क्लोदिंग लाइन लॉन्च कर रही हैं। जानते हैं इन दोनों के सफर के बारे में।

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न बंधन है-न शर्र्ते

विश्वजीत : हमारी शादी को दस साल से ज्यादा हो चुका है। इस दौरान कई दफा हमारे लिए शादी शब्द की परिभाषाएं बदली हैं। मैं और मेरी पत्नी सोनालिका अकसर इस बात का जिक्रकरते हैं कि हमारी शादी में ऐसी क्या खास बात थी, जो हम अब तक निभा सके और आगे भी निभा सकते हैं। मैं इसका पुख्ता जवाब दे सकता हूं- अरेंज्ड मैरिज। अरेंज्ड मैरिज में आज भी सफलता का प्रतिशत लव मैरिज से ज्यादा है। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि ऐसी शादी में कोई ट‌र्म्स नहीं रहते। ट‌र्म्स नहीं होंगे तो कंडीशंस भी नहीं होगी। मैं यह इस वजह से नहीं कह रहा कि मैंने अरेंज्ड मैरिज की है, बल्कि आस-पास के उदाहरणों के आधार पर भी कह सकता हूं।

सोनालिका प्रधान : शादी के बारे में बात करने के लिए व्यक्ति को बहुत सुलझा हुआ होना चाहिए। पता नहीं, आखिरी बार किससे शादी को लेकर बातचीत हुई थी। वैसे आजकल परंपरागत शादी करता कौन है? यहां मुंबई में फिल्म और टीवी की दुनिया में तो मुश्किल से ऐसे लोग मिलते हैं जो कहें कि वे अरेंज्ड मैरिज करने जा रहे हैं। हालांकि अब अरेंज्ड मैरिज का फॉर्म बदला है, लेकिन मैं मानती हूं कि इस तरह की शादी में परिवार सबसे बडा सपोर्ट सिस्टम होता है। जीवन में कभी भी मुश्किल दौर का सामना करना पड सकता है, लेकिन परिवार का सपोर्ट मिला हो तो कई मुश्किलें आसान होती जाती हैं।

न देखा-न बात हुई

विश्वजीत : इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढाई के बाद ही मैं मेरठ छोड कर दिल्ली और फिर मुंबई आ गया था। सोनालिका को नहीं जानता था। शादी से पहले तक न कभी फोन पर बात हुई, न हम कभी मिले थे। लेकिन मेरे और सोनालिका के परिवार के कुछ कॉमन दोस्त थे, जिनके जरिये रिश्ता पक्का हुआ। हमारी शादी जब हुई थी, तब मैं फिल्मों के प्रोजेक्ट में बहुत बिजी था और शादी का कोई इरादा भी नहीं था। आर्टिस्ट की अपनी असुरक्षाएं होती हैं, वे भी थीं। लेकिन घर वाले हर बार शादी की बात करते थे। उत्तर प्रदेश का होने के नाते मैं ऐसी शादी के दबाव को महसूस करता हूं। मैं एक बार मेरठ गया और फिर सोनालिका से शादी का प्रस्ताव स्वीकार करके ही लौटा। उसके बाद कुछ ही दिनों में हमारी शादी हो गई।

सोनालिका प्रधान : यह प्रकरण गदर फिल्म की शूटिंग के दौरान ही हुआ था। अनिल शर्मा की इस फिल्म की लखनऊ में हो रही शूटिंग कुछ दिनों के लिए रोकनी पडी थी तो विश्वजीत मेरठ चले गए। वहां मेरे एक रिश्तेदार ने पिता जी को इनके बारे में बताया। पापा विश्वजीत से मिले। मुझे बताया कि ये वही विश्वजीत हैं, जो फिल्मों में खलनायक बनते हैं। मैंने उनकी तसवीर देखी तो काफी दिनों तक कन्फ्यूजन में रही कि शादी करूं या नहीं। मां ने कहा कि देख लो। मेरी बहन ने भी कहा कि अगर इमेज की परवाह नहीं है तो शादी कर सकती हो। फिर मैंने विश्वजीत की कई फिल्में देखीं और शादी का फैसला ले लिया। हमारी शादी मेरठ में ही हुई। शादी में ही हमने पहली बार एक-दूसरे को देखा।

काम और एडजस्टमेंट

विश्वजीत: मुंबई में बिना काम किए रहना मुश्किल है। फिर सोनालिका के लिए यह नया शहर था। उन्हें यहां एडजस्ट होना था और काम भी करना था। मेरा कोई शेड्यूल नहीं होता है। सुबह, दोपहर, शाम कभी भी शूटिंग हो सकती है। फिर हमने निर्णय लिया कि सोनालिका डिजाइनिंग का काम प्रारंभ करेंगी। धीरे-धीरे हमारे बीच अंडरस्टैंडिंग बनती गई कि कैसे टाइम मैनेज करते हुए एक-दूसरे को भी समय दें।

सोनालिका प्रधान : मुंबई बडा शहर है। कई डिजाइनर्स हैं यहां। छोटे शहर से होने के नाते हमारे पास सिर्फ जज्बा होता है, जो हमें काम करने और आगे बढने को कहता है। मैंने स्टोर खोला और धीरे-धीरे क्लोंिदंग लाइन बढानी प्रारंभ की। विश्वजीत ने भी मेरी मदद की। मैंने काम लिमिटेड ही रखा, क्योंकि मैं बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हूं और मुझे उतना ही काम करना था, जितने में हम मानसिक तौर पर संतुष्ट रह सकें।

लाइफ आजकल

विश्वजीत : अभी मैं एक बूंद इश्क में कलावती का किरदार निभा रहा हूं। यह थोडा अलग कैरेक्टर है। यह पुरुष शरीर में स्त्री की आत्मा है। वह सारे काम स्त्रियों जैसे करना चाहता है, लेकिन समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाता है। घंटों सेट पर बैठ कर मेकअप और साडी को संभालना मुश्किल काम है। इस चरित्र को निभाने के बाद ही मुझे समझ में आया कि औरतों की जिंदगी कितनी कठिन होती है। जिनके घरों में बिजली तक नहीं है, वे कैसे इतने भारी कपडे पहन कर पूरी जिंदगी काट देती हैं।

सोनालिका प्रधान : मैं अब अपने परिवार और करियर दोनों पर ध्यान दे रही हूं। बच्चे थोडे बडे हुए तो मैंने वर्ष 2010 के आसपास काम शुरू किया। हाल ही में मैंने एक फैशन शो के दौरान अपनी क्लोदिंग लाइन दुबई में लॉन्च की। शो में मुझे बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। मुझे लगा कि विदेशों में अच्छा रिस्पॉन्स मिलने के बाद आप अपने देश में और भी बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं। मैं अब अपनी क्लोदिंग लाइन भारत के बाहर कई अन्य देशों में लॉन्च करने के बारे में सोच रही हूं।

बच्चों ने बदली जिंदगी

विश्वजीत: बच्चे आपकी जिंदगी बदल देते हैं, इस बात को मैंने तभी जाना, जब मेरे अपने बच्चे हुए। मेरे अंदर पहले शादी को लेकर जो झिझक थी, वह सोनालिका से मिलने के बाद ख्ात्म हो गई। शादी के बाद धीरे-धीरे मैं निश्चिंत होता गया। मुझे लगा कि शादी दुनिया की सबसे ख्ाूबसूरत चीजों में से एक है। आज जब मैं दो बच्चों का पिता हूं, मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मेरी मां सही कहती थीं कि जब तू बाप बनेगा, तब पता चलेगा कि बाप क्या होता है। पिता बनने के बाद मेरा जीवन ऐसे झटके से बदला, जिसका मुझे एहसास नहीं हुआ। मैं पूरी तरह अनुशासित हो गया और तेजी के साथ काम करना प्रारंभ किया। यही समय था, जब मैंने फैसला लिया कि सिर्फ फिल्मों का इंतजार नहीं करना है। टीवी में भी काम करना है और व्यस्त रहना है। इसलिए मैंने टीवी धारावाहिक करने शुरू किए। फिर लगा कि टीवी बहुत समय ले लेता है। मुंबई में घर से बाहर निकलें तो दो-तीन घंटे यूं ही निकल जाते हैं। इसके बाद 12 घंटे की शिफ्ट मेरे लिए मुश्किल थी। न परिवार को समय दे पाता था, न दोस्तों को। फिर मैंने निर्णय लिया कि कुछ समय तक टीवी नहीं करूंगा, जब तक कि कोई रोचक भूमिका न मिले।

सोनालिका प्रधान : बच्चे छोटे थे तो हमने परस्पर बातचीत के बाद फैसला लिया कि मैं कुछ समय तक काम से ब्रेक लूंगी। अगले दिन ही मैंने अपना स्टोर बंद कर दिया। बच्चों को समय देने लगी। मेरा जीवन बच्चों के इर्द-गिर्द सिमट गया। मैं नहीं चाहती थी कि बच्चों को कभी महसूस हो कि उनके मां-बाप ने दाई के सहारे उन्हें बडा होने के लिए छोड दिया..।

दुर्गेश सिंह


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