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समझौतों से नही प्यार से बनता है रिश्ता

गदर जैसी ब्लॉक-बस्टर फिल्म बनाने वाले अनिल शर्मा हिंदी फिल्म जगत के सफल निर्देशकों में हैं। ग्लैमर की दुनिया में होने के बावजूद उसकी चमक-दमक से दूर हैं। उनकी जीवनसंगिनी हैं सुमन। दोनों के रिश्ते सहज, प्यार भरे और सम्मानजनक हैं। पिछले बीस बर्ष से दोनों साथ हैं और हर पल को एंजॉय कर रहे हैं। मिलते हैं इस बार इनसे।

By Edited By: Published: Thu, 01 Nov 2012 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2012 02:49 PM (IST)
समझौतों से नही प्यार से बनता है रिश्ता

निर्देशक अनिल शर्मा ने सुमन से पहली मुलाकात में ही ठान लिया था कि उन्हीं से शादी करेंगे। शादी को 20 साल हो चुके हैं। पारिवारिक मूल्यों एवं संस्कारों का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे के साथ रचनात्मक शेयरिंग में यकीन रखते हैं। मीठी नोकझोंक होती है, लेकिन झगडा नहीं होता इनके बीच। कैसे संवारा है अपने दांपत्य को इन्होंने, जानते हैं।

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शादी क्या है? कैसे परिभाषित करेंगे इसे?

सुमन : शादी न तो इंस्टीट्यूशन है-न बंधन। यह सहजता से जीवन जीने का ज्ारिया है। दो व्यक्ति साथ हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं तो शादी से बेहतर अन्य कोई रिश्ता नहीं हो सकता। इसमें न समझौता होता है और न सामंजस्य बिठाने की जद्दोज्ाहद। यह विश्वास, प्रेम, समझदारी की परिणति है।

अनिल : यह मन का रिश्ता है। जिससे आप प्यार करते हैं, उसके साथ रहने की कानूनी-सामाजिक अनुमति है। जो इसे बंधन कहते हैं, उनसे मैं सहमत नहीं हूं। प्यार जताने और करने का यह बेहतरीन ज्ारिया है।

भविष्य में शादी का स्वरूप कैसा रहेगा?

सुमन : लोग पैसे और करियर को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। शादी की गरिमा कम हो रही है। यह ख्ातरनाक स्थिति है। समय रहते न जागे तो शादी का अस्तित्व ख्ात्म हो जाएगा। रिश्ते रोज्ा बदलेंगे, हम नए की तलाश में भटकते रहेंगे। बडे शहरों में तो शादी का मखौल उडाया जा रहा है। महत्वाकांक्षाएं बहुत हैं। वक्त नहीं है किसी के पास, रिश्ते ज्ारूरत की तरह बन-बिगड रहे हैं। वैसे आज भी सच्चा प्रेम करने वाले लोग हैं। जब तक वे हैं, शादी बची रहेगी।

अनिल : वक्त के साथ हर चीज्ा बदलती है। शादी भी बदल रही है। संभव है, इसका स्वरूप बदल जाए, लेकिन यह बनी रहेगी। हालांकि इसे एडजस्टमेंट या करार कहने के दूरगामी परिणाम भयानक हो सकते हैं। फिर तो प्यार के लिए जगह ही नहीं रहेगी, ज्ारूरत हर चीज्ा पर हावी हो जाएगी। रिश्तों को कोई कितना भी नज्ारअंदाज्ा करे, अंतत: एहसास होगा कि उन्होंने भूल की।

भरोसा कितना ज्ारूरी है जीवनसाथी पर?

सुमन : पहली मुलाकात में किसी को पूरी तरह जानना संभव नहीं है। कई बार तो शादी के 10 साल बाद पता लगता है कि साथ रहने वाला व्यक्ति मेरे लिए नहीं बना। शादी एक विश्वास है और जिस भी दिन इस भरोसे की नींव हिली, समझ लें कि रिश्ते के कुछ ही दिन बचे हैं।

अनिल : बहुत कुछ पहली मुलाकात में ही पता चल जाता है। ऐसा कोई मंत्र नहीं है, क्योंकि एक-दूसरे के प्रति ऐसी कोई वाइब्स नहीं मिलेगी। यह एक घटना है, जो होती है या नहीं होती। जैसे इत्र की ख्ाुशबू आती है या नहीं आती। इंसान का एक माइंड-सेट होता है कि जिससे मैं प्यार करूं, वह भी मुझे उतना ही प्यार करे। पहली मुलाकात को देखकर ही लव एट फ‌र्स्ट साइट वाला मुहावरा बना होगा। हालांकि यह आइडियल सिचुएशन है। आमतौर पर रिश्ता हैसियत और अन्य बातों के आधार पर तय होता है। इससे बुनियाद ही ग्ालत पड जाती है।

पहली मुलाकात कैसे हुई?

सुमन : कॉमन रिश्तेदार के घर पर। मैं कोलकाता की हूं। मेरे रिश्तेदार हमारी शादी करवाना चाहते थे। मुंबई के प्रभा देवी स्थित उनके घर पर हम मिले। ये मुझे सच्चे, समझदार लगे। देखिए, इंसान अकेले पूर्ण नहीं होता, वह हमेशा किसी ऐसे को ढूंढता है, जो उसे पूरा कर दे।

अनिल : मैंने इन्हें पहली बार देखते ही निर्णय ले लिया कि ताउम्र ही नहीं, जन्म-जन्मांतर तक इनके साथ रह सकता हूं। इनसे अच्छी जमेगी। दोनों की वेवलेंथ बराबर है। मुझे लगा, यही राइट चॉइस हैं। मैंने ऐसी कसम नहीं खाई थी कि इंडस्ट्री में शादी करूंगा या बाहर करूंगा। मगर इनसे मिला तो ये मुझे जंच गई। फिर न का सवाल कैसे उठता!

महत्वाकांक्षाओं का रिश्ते पर असर कैसा होता है?

सुमन : लोग सपने पूरे करने के लिए रिश्तों को भी छोड देते हैं। शादी तो दूर, ऐसे लोगों के बाकी रिश्ते भी नहीं टिकते। महत्वाकांक्षाएं बुरी नहीं हैं, मगर करियर के साथ रिश्तों को भी तो सहेजें! मेरी आवाज्ा अच्छी है। अनिल ने कई बार मुझसे कहा कि इसे प्रोफेशन बनाऊं लेकिन परिवार व बच्चे मेरी पहली प्राथमिकता हैं।

अनिल : देखिए, अगर आप पहले से जानते हैं कि आपका साथी महत्वाकांक्षी है तो बाद में शिकायत का कोई अर्थ नहीं है। लेकिन अंत में यह महत्वपूर्ण है कि रिश्ते को कायम रखने की कोशिश की जाए।

आप दोनों में कितनी समानता है और कितनी असमानता?

सुमन : हम दोनों को अपने परिवार से लगाव है। हम माता-पिता, भाई-बहन और बच्चों से गहराई से जुडे हैं। दोनों क्रिएटिव हैं। ऐसा न होता तो हमारा दांपत्य 20 सालों से इतना मधुर न रहता। संबंधों में कुछ कॉमन चीज्ों डेवलप करें, वर्ना लाइफ बोरिंग हो जाएगी और दोनों घर के बाहर मधुरता ढूंढने लगेंगे। आर्ट, किताबों, म्यूज्िाक व कहानी पर बात करना हमें अच्छा लगता है।

अनिल : कभी सोचा नहीं इस पर। हिसाब-किताब लगाकर रिश्ते नहीं बनते। पहली बार मिला, तभी सोच लिया कि इन्हें अपना बनाना है। पति-पत्नी दोनों एक नोट के हिस्से हों, तभी दांपत्य सफल है। नोट दो हिस्सों में बंट जाए तो भी आसानी से मिलाया जा सकता है।

..सुमन आपको अनिल की कौन सी फिल्में अच्छी लगी हैं?

सुमन : हर फिल्म। ये पब्लिक की पसंद-नापसंद जानते हैं। पब्लिक को फिल्म अच्छी-बुरी लग सकती है। पत्नी को सब पसंद आता है।

ग्ाुस्सा आता है कभी? इसका रिश्ते पर कैसा असर पडता है?

सुमन : कभी नहीं। कभी-कभी ड्रामा ज्ारूर कर लेती हूं कि मैंने अच्छी साडी पहनी है तो देख कर तारीफ तो किया करो, ये क्या कि अपनी ही दुनिया में खोए रहते हो। एक बार मैं कहीं गई थी। फोन पर्स में रह गया। इनका फोन आता रहा पर मैं उठा नहीं सकी। घर पहुंची तो इन्होंने ग्ाुस्सा करते हुए इतना ही कहा कि तुम फोन क्यों नहीं उठा रही थी? यह सुनकर अच्छा ही लगा कि चलो कोई मिस तो कर रहा है?

अनिल : सही कहा सुमन ने। मुझे ग्ाुस्सा आए भी तो ज्ारा सी देर में शांत हो जाता है। 10.10 बजे ग्ाुस्सा किया और 10.11 पर शांत भी हो गया। हैरानी होती है कि धारावाहिकों में इतना झगडा कैसे दिखा दिया जाता है! मैं यकीन नहीं कर पाता झगडों पर। मैंने कभी ऐसी फिल्म नहीं बनाई, जिसमें मियां-बीवी की तू-तू, मैं-मैं दिखे। शादी से पहले भी आशििकयां रहीं, मगर कभी पार्टनर से झगडा नहीं किया।

शादी में एडजस्टमेंट की कितनी अहमियत है?

सुमन : मुझे एडजस्टमेंट की ज्ारूरत नहीं पडी। मैं जैसी भी हूं, इन्होंने मुझे वैसे ही स्वीकार किया है। शायद हर कोई इतना ख्ाुशिकस्मत नहीं होता। इन्होंने न कभी शिकायत की, न शिकायत का मौका दिया।

अनिल: सुमन बहुत समझदार हैं। शूट के चलते कई बार इन्हें वक्त नहीं दे पाता, लेकिन छुट्टी के दिन हम पूरा वक्त साथ बिताते हैं। मैंने इसके लिए नायाब तरीका ढूंढा है। ऑफिस घर में है। 24 घंटे इन्हीं के सामने रहता हूं। प्यार के लिए एक-दूसरे को स्पेस देना भी ज्ारूरी है।


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