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कोई भी चीज से परिवार से बढ़ कर नहीं अश्विनी-संगीता

टीवी और फिल्मों में पिछले कई वर्षो से सफल पारी खेल रहे हैं अश्विनी धीर। हाल ही में इन्होंने सौ करोड़ का बिजनेस करने वाली फिल्म सन ऑफ सरदार निर्देशित की। इनकी पत्नी हैं संगीता। शादी के 18 साल हो गए हैं। इनका मानना है कि कोई भी चीज परिवार से बढ़ कर नहीं है। यही वह मंत्र है, जो शादी को बेहतर बनाए रखने में मददगार है। मिलते हैं इस अनुभवी दंपती से।

By Edited By: Published: Tue, 02 Jul 2013 02:33 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2013 02:33 PM (IST)
कोई भी चीज से परिवार से बढ़ कर नहीं अश्विनी-संगीता

डायरेक्टर अश्विनी धीर और उनकी पत्नी की कानपुर से मुंबई यात्रा कई उतार-चढावों से भरी रही है। लेकिन इन्हीं के साथ वे परिपक्व भी हुए हैं। शादी को 18 साल हो गए हैं और दो बच्चों के साथ मुंबई में ये छोटी सी अपनी दुनिया में मस्त हैं। इस दिलचस्प सफर के बारे में बता रहे हैं वे।

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इसमें कोई बंधन नहीं

संगीता : शादी हसीन सफर है, जो अपने राहगीर को हमेशा छांव प्रदान करती है। जिंदगी में ठहराव लाने का परफेक्ट जरिया है। मैं खुश हूं। शादी सबको करनी चाहिए। इससे भागना गलत है। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बंधन है और है भी तो यह सुंदर है। यह खयाल कि आप अकेले नहीं हैं, कोई है साथ, एक खूबसूरत एहसास है।

अश्विनी : एक कहावत है कि शादी का अपना कोई मॉरल नहीं होता, लेकिन यह आपको इम्मॉरल होने से बचाती है। मेरे विचार में शादी ख्ाुशी देने वाला टूल है। इससे संयम आता है जीवन में। शादी से जुडी जिम्मेदारियों को निभाने में मजा आता है, नतीजा यह होता है कि आप काम करते हैं, मेहनत करते हैं और तरक्की फिर खुद होती जाती है।

शादी में चुनौतियां

संगीता : आज के समय में पति-पत्नी दोनों काम कर रहे हैं, एक-दूसरे को समय नहीं दे पाते। जिस रिश्ते को समय न दिया जाए, उसका क्या हाल होगा, समझा जा सकता है।

अश्विनी : समस्या रिश्तों में है। हम रिश्तों को धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं। मैं फिल्मी दुनिया से जुडा हूं। भाई-बहन के प्यार वाली जो अंतिम फिल्म देखी थी, वह थी हरे रामा हरे कृष्णा, इसमें गाना था एक हजारों में मेरी बहना है..। उसके बाद ऐसे कितने गाने आए? यही हाल शादी का भी है। उसे भी कुछ खास समस्याओं से जूझना पड रहा है। मिडिल क्लास की आकांक्षाएं भी इतनी हैं कि उन्हें पूरा करने में ही उनकी जिंदगी खप रही है। शादी पर भी इसका असर दिखता है।

अश्विनी : ..आगे चुनौतियां बढती जाएंगी। छोटी-छोटी चीजें हैं। आप पत्नी के साथ हैं और बातें मोबाइल पर किसी और से चल रही हैं। परिवार के साथ डिनर एंजॉय कर रहे हैं कि मेसेज आता है और आप उसे जवाब देने लगते हैं। जो सामने है, उसे वक्त न देकर दुनिया को वक्त दे रहे हैं। घर में घुसते ही टीवी ऑन हो जाता है। क्या पत्नी आपको एंटरटेनिंग नहीं लग रही? देखिए कोई भी रिश्ता हो, बात करना जरूरी है।

संगीता : शादी में धैर्य व संयम का बडा महत्व है, जो अब कम हो गया है। अगर इन्हें गुस्सा आता है तो मैं शांत हो जाती हूं। जब मुझे गुस्सा आता है तो ये शांत रहते हैं। अब संवाद और दोस्ती की कमी हो गई है। त्याग एक ही पक्ष करता है। मां-बेटे के रिश्ते में मां त्याग करती है, पति-पत्नी के रिश्ते में ज्यादातर पत्नी। मगर अब लोग सोचते हैं, मैं क्यों करूं त्याग? शादी हमारा के बजाय मैं और मेरा में बदल रही है।

ईएमआई और रिश्ते

अश्विनी : पहली चीज तो अपनी जरूरतों को बांधें। संघर्ष के दिनों में हम वन रूम सेट में रहते थे। पैसे आने लगे तो सोचा कि टू बीएचके लें। वह मिला तो ख्वाहिश हुई कि बंग्लो साइज घर हो। हमारे पापा हमेशा कहते थे रिटायर होने के बाद घर बनाएंगे। ईएमआई की व्यवस्था ने हमारी या भावी पीढी का काम तो आसान कर दिया है, पर उसने हमें उलझाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोडी।

संगीता : नई जेनरेशन के साथ सबसे बडी समस्या है समय। पति-पत्नी दोनों पैसे बनाने की मशीन बन जा रहे हैं। वे एक-दूसरे को वक्त नहीं दे पाते। इसके चलते कई बार संवादहीनता और गलतफहमियां पैदा होती हैं और रिश्तों में गतिरोध उत्पन्न होता है। मेरे खयाल से रोज मुमकिन न हो तो हफ्ते में छुट्टी वाले दिन एक-दूसरे से जरूर बातें करनी चाहिए। इच्छाएं सिर्फ लडकों की नहीं, लडकियों की भी बहुत बढ गई हैं। उन्हें उस पर लगाम कसनी होगी।

गुस्सा आता है-टिकता नहीं

अश्विनी : संगीता मेरा इतना ख्याल रखती हैं कि गुस्से की नौबत ही नहीं आती। सुबह दफ्तर जाने से पहले नाश्ता टेबल पर रहता है। रात घर आते ही इनका मुस्कराता चेहरा दिखता है। हां, कभी-कभार सब्जी में ज्यादा या कम नमक गुस्से का सबब बनता है, जो बस जरा सी देर का होता है। इन्हें चीजें व्यवस्थित करने की आदत है। मेरे कागज ये समेट देती हैं तो गुस्सा आता है। वजह यह है कि बिखरे हुए कागजों पर लिखी कहानी को मैं ही सिलसिलेवार कर सकता हूं, लेकिन इनकी सफाई के चलते मेरा काम बिगड जाता है। वैसे अब यह आदत कम हो गई है।

संगीता: हमारी अंडरस्टैंडिंग ऐसी है कि सुबह झगडा होता है तो शाम तक सुलह हो जाती है। हम जानते हैं कि आज हुए झगडे को अगले दिन तक नहीं ले जाना है। इसलिए दूरी लंबे समय तक नहीं बनी रहती। सिंपल सी बात है गुस्से का यह अर्थ तो नहीं है कि आप एक-दूसरे से नफरत करते हैं। कई बार माफी अश्विनी मांगते हैं, हालांकि कई बार मुझे भी सॉरी कहना होता है।

अश्विनी: जी हां। लडके का तो फर्ज ही है लडकी को मनाना। इसलिए जब संगीता रूठती हैं तो मैं मना लेता हूं। सॉरी शब्द हर रिश्ते को सहज बना देता है। मुझे लगता है, जो लोग सॉरी कहने के बाद भी नहीं मानते, उन्हें उनके हाल पर छोड देना चाहिए। मेरा गुस्सा बुलबुले की तरह है, यह बात इन्हें पता है। मैंने इनसे कह रखा है कि आप सिर्फ उस क्षण को संभाल लो, बाकी तो मैं संभल जाऊंगा। गुस्से के समय ये मुझे अकेला छोड देती हैं और रिएक्ट नहीं करतीं।

दोस्ती से हमसफर तक

संगीता: हम दोनों कानपुर में एक मोहल्ले में रहते थे। बचपन से एक-दूसरे को जानते थे। ग्रेजुएशन के बाद इन्होंने फिल्मों व टीवी के लिए मुंबई आना-जाना शुरू किया। मुझे याद है आज भी, उस दिन लाइट नहीं थी। हम अंधेरे में बैठे थे कि अचानक इन्होंने मुझे प्रपोज किया। लेकिन मैंने तुरंत इन्हें जवाब नहीं दिया और कहा कि सोच कर बताती हूं। इसके एक वर्ष बाद मैंने इन्हें हां कहा।

अश्विनी : उस दौरान मैं मुंबई में रहता था। इनके लगभग नकारात्मक जवाब से मुझे बुरा लगा। मैंने जल्दी से माफी मांग ली और कहा कि मुझसे गलती हो गई है।

संगीता : ये तो मुझे चिट्ठियां लिखा करते थे, मेरी दोस्त के घर पर। वह लाल बंगले इलाके में रहती थी।

अश्विनी : हमारा फेमिली रिलेशन था। बचपन से मिलना-जुलना था। ग्रेजुएशन के बाद मैं मुंबई आया तो इन्हें मिस करने लगा। मुझे इनकी आदत सी हो गई थी। तब मुझे एहसास हुआ कि हमारे बीच सिर्फ लगाव नहीं, प्यार है। इनकी मां मुझे पसंद नहीं करती थीं, इसलिए दोस्त के घर पर चिट्ठियां भेजनी पडती थीं। इनके यहां खत लिखता तो इनकी मां दौडा लेतीं मुझे। उन्हें लगता था कि पता नहीं लडका मुंबई में क्या करता है। स्ट्रगल कर रहा है तो खाएगा क्या-खिलाएगा क्या?

परिवार की रजामंदी

संगीता : और फिर ये मेरे घर आ गए कि मेरे साथ ही शादी करनी है। मेरी मां तो इनकी शक्ल ही देखती रह गई..।

अश्विनी : मेरी मां नहीं थीं और पापा को लगता था कि लडकी मैं कैसे पसंद कर सकता हूं, यह काम तो घर वालों को ही करना होगा। अगर लडके ने खुद लडकी पसंद की है तो घर वालों को लगता है यह चयन गलत ही होगा। खैर मेरी जिद के आगे सभी हार गए। आखिरकार हमारी सगाई हुई और फिर 18 जनवरी 1995 को शादी हो गई।

कोई असुरक्षा नहीं

संगीता : हां, कई लोगों ने बरगलाने की कोशिशें कीं। कई बार मुझसे कहा गया कि अश्विनी का किसी लडकी से चक्कर चल रहा है। लेकिन मैं इन्हें जानती थी, मैंने कभी उन बातों को गंभीरता से नहीं लिया। कभी कोई बात चुभती भी तो हम सामने बैठ कर उसे सुलझाने की कोशिश करते।

अश्विनी: हमारा फील्ड ही ऐसा है कि कई तरह के लोग टकराते हैं। कई तरह की बातें होती हैं, लेकिन एक बात का मैंने हमेशा ध्यान रखा कि कोई भी चीज परिवार से बढ कर नहीं है। इस खयाल ने मुझे बचाए रखा। मेरे कदम कभी गलत दिशा में नहीं बढे।

शादी तब होगी कामयाब

संगीता : एक-दूसरे की इज्जत करना, दूसरे के जज्बातों की कद्र करना, ऐसा कुछ न बोलना कि पार्टनर को ठेस पहुंचे। बुरे वक्त में भी एक-दूसरे का साथ देना। आखिरी बात है, एक-दूसरे को स्पेस देना।

अश्विनी : स्पष्टता, समझदारी, साझेदारी और संवाद.., ये चार चीजें दांपत्य जीवन में जरूरी हैं। अहं बीच में नहीं आना चाहिए। संवाद बना रहना चाहिए। झगडे की स्थिति बनने न दी जाए।

अमित कर्ण


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