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प्यार की सेहत

सेक्स संबंधों को खुशगवार बनाए रखने में हॉर्मोंस का बड़ा योगदान है। जरा सा असंतुलन रिश्तों की सिमिट्री पर बुरा असर डाल सकता है। लिबिडो में क्या है हॉर्मोंस की भूमिका और प्यार की सेहत को कैसे रखें ठीक, इस पर महत्वपूर्ण जानकारियां।

By Edited By: Published: Thu, 02 Apr 2015 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2015 11:00 AM (IST)
प्यार की सेहत

सेक्स संबंधों को खुशगवार बनाए रखने में हॉर्मोंस का बडा योगदान है। जरा सा असंतुलन रिश्तों की सिमिट्री पर बुरा असर डाल सकता है। लिबिडो में क्या है हॉर्मोंस की भूमिका और प्यार की सेहत को कैसे रखें ठीक, इस पर महत्वपूर्ण जानकारियां।

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पुरानी पीढी अनुशासित जीवन पर जोर देती रही है। खानपान, जीवनशैली से लेकर विचारों में अनुशासन बनाए रखने पर जोर दिया जाता है। जीवन के हर पडाव पर कदम रखने के कुछ नियम हैं।

नियमों और अनुशासन का व्यक्ति को स्वस्थ रखने में बडा योगदान है। दांपत्य एवं सेक्स संबंधों में भी नियंत्रण, अनुशासन व संतुलन के नियमों से लाभ उठाया जाना चाहिए।

यह सच है कि दिनचर्या, खानपान, आदतों, भावनाओं और विचारों का सेहत और संबंधों पर गहरा प्रभाव पडता है। इसलिए रिश्ते को सदाबहार बनाए रखने के लिए सेक्सुअल हेल्थ को ठीक रखना जरूरी है।

एक्सपट्र्स का मानना है कि सेक्सुअल हेल्थ व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य का ही हिस्सा है। एलोपैथी से लेकर आयुर्वेद या नेचरोपैथी तक यह बात कही जाती है कि खानपान और व्यायाम का सेक्स लाइफ पर असर पडता है। कुछ खास खाद्य पदार्थ या फल लो लिबिडो की समस्या में फायदा पहुंचाते हैं।

व्यक्ति की सेक्स डिजायर्स बहुत हद तक हॉर्मोंस पर निर्भर करती हैं। लो लिबिडो की प्रॉब्लम हो या इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, हॉर्मोंस अपना खेल खेलते हैं।

आमतौर पर हॉर्मोंस में असुंतलन के कुछ शारीरिक कारण होते हैं। यानी उम्र के अलग-अलग दौर में हॉर्मोंनल बदलाव देखे जाते हैं। लेकिन गलत खानपान और जीवनशैली के कारण समय से पहले भी यह असंतुलन हो सकता है। हाई-शुगर डाइट, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेटेड डाइट, कैफीन से लेकर काम का दबाव और तनाव भी हॉर्मोंस पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। खाद्य पदार्थों में अत्यधिक रासायनिक खादों का प्रयोग, प्लास्टिक और पर्यावरण प्रदूषण का भी शरीर पर घातक असर पडता है। जानें कुछ ऐसे हॉर्मोंस के बारे में, जो सेक्स ड्राइव पर प्रभाव डालते हैं और उन्हें कैसे संतुलित रखा जा सकता है।

इंसुलिन

पैनक्रियाज की बीटा सेल्स से निर्मित होता है इंसुलिन हॉर्मोन। इंसुलिन स्तर बढऩे से सेक्स हॉर्मोंस में समस्याएं पैदा होती हैं और टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन के स्राव पर प्रभाव पडता है। स्त्रियों में अनचाहे बाल (चेहरे पर), एक्ने, जबकि पुरुषों में ब्रेस्ट ग्रोथ, बेली फैट जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इंसुलिन स्तर बढऩे से फटीग, खाने के बाद शुगर क्रेविंग, शुगर में उतार-चढाव या हाइपोग्लीसीमिया, लो एचडीएल, हाई ब्लड प्रेशर, ब्लड क्लॉटिंग जैसी समस्याएं होती हैं। ये समस्याएं लो सेक्स ड्राइव के लिए भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

टेस्टोस्टेरोन

यह ब्रेन-बूस्टिंग हॉर्मोन है, जो स्मरण-क्षमता, एकाग्रता और मूड के अलावा सेक्स ड्राइव को बढाने में कारगर है। यह मेल सेक्स हॉर्मोन है, जो पुरुषों में स्त्रियों से लगभग सात-आठ गुना अधिक होता है, लेकिन फीमेल ओवरीज से भी इसका थोडा सिक्रीशन होता है। इसमें असंतुलन स्त्रियों की सेक्स इच्छा को कम कर सकता है। इससे बॉडी फैट बढता है और स्मरण-क्षमता क्षीण होती है। इसमें असंतुलन से 40 की उम्र तक पहुंचते कई पुरुषों की टमी निकल आती है और स्वास्थ्य समस्याएं शुरू हो जाती हैं।

कॉर्टिसॉल

जब भी व्यक्ति तनावग्रस्त या दबाव महसूस करता है, कॉर्टिसॉल हॉर्मोन का स्राव होता है। अध्ययन बताते हैं कि इसके कारण व्यक्ति अवसाद या तनाव में अधिक खाना खाने लगता है। लैप्टिन हॉर्मोन के प्रति शरीर की संवेदनशीलता कम होने लगती है, जो दिमाग को यह संदेश भेजता है कि पेट भर चुका है। कॉर्टिसॉल से व्यक्ति को खाने और खासतौर पर मीठा खाने की क्रेविंग होती है। दबाव या तनाव लंबे समय तक खिंचे तो इंसुलिन ज्यादा बनने लगता है, जिससे सेक्स ड्राइव में कमी और नपुंसकता जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।

लैप्टिन

लैप्टिन शरीर का मास्टर हॉर्मोन है, जो भूख के एहसास को कंट्रोल करता है। यह मस्तिष्क को पेट भरने और खाना बंद करने का संदेश देता है। इसका सिक्रीशन एडपोज (फैट) टिश्यूज से होता है। लैप्टिन स्तर ज्यादा होने पर दिमाग को भूख खत्म होने का संदेश जाना कम हो जाता है। नतीजा होता है व्यक्ति का ओबीज और ओवरवेट होना। सेक्सुअल हेल्थ से इसका प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, इसलिए लोग यह भी नहीं जानते कि लैप्टिन सेक्सुअल बिहेवियर को भी मॉनिटर करता है। अध्ययन बताते हैं कि उच्च लैप्टिन स्तर वाले लोगों में से अधिकतर का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) ज्यादा होता है, साथ ही इनमें टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होने लगता है, जो सेक्स हॉर्मोन है।

ग्रोथ हॉर्मोन (जीएच)

ग्रोथ हॉर्मोन या जीएच को फाउंटेन ऑफ यूथ हॉर्मोन भी कहा जाता है। इसका स्राव गहरी नींद में होता है। जीएच से मसल्स मास का विकास होता है। यह शरीर के फैट को संतुलित रखने में मदद देता है, साथ ही लिबिडो को बनाए रखने में कारगर है। मांसपेशियों में कमजोरी, पेट पर चर्बी बढऩा, लिबिडो का कम होना जैसे लक्षण बताते हैं कि जीएच हॉर्मोन में कमी आ रही है। शोधों से पता चलता है कि जीएच, इंसुलिन स्तर और सेक्सुअल क्रियाओं के बीच सीधा संबंध है। इंसुलिन का स्राव बढऩे से शरीर में जीएच के उत्पादन में बाधा आती है, साथ ही इससे टेस्टोस्टेरोन का स्राव भी बाधित होता है जो सेक्सुअल डिजायर्स या लिबिडो को बनाए रखने के लिए जरूरी है।

सेक्सुअल हेल्थ टिप्स

सेक्सपट्र्स का मानना है कि ब्लड शुगर और इंसुलिन स्तर को सामान्य रखने से सेक्स ड्राइव को लंबे समय तक बेहतर बनाए रखा जा सकता है, साथ ही इससे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या में भी सुधार होता है। फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग दिल्ली के वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र यादव बता रहे हैं कि सेक्स हॉर्र्मोंस को कैसे संतुलित रखें।

1. संतुलित खानपान

सही खानपान से व्यक्ति की सेहत सही रहती है। जीवनशैली और उम्र के हिसाब से खानपान में सकारात्मक परिवर्तन करने चाहिए। उम्र बढऩे के साथ मीठी चीजों और प्रोसेस्ड फूड का सेवन कम करने से शरीर में फैट नहीं बढता और सेक्स हॉर्मोंस का स्तर संतुलित रहता है।

2. व्यायाम

नियमित आधे घंटे का वर्कआउट सेक्स लाइफ में जादू ला सकता है। स्त्रियों के लिए पेल्विक एक्सरसाइजेज बहुत कारगर हैं। योग में भी कई आसन हैं, जो सेक्स हॉर्र्मोंस को संतुलित रख सकते हैं।

3. विटमिंस-मिनरल्स

पोषक तत्वों की विविधता से सेक्स ड्राइव ठीक रहती है। अगर खानपान से पूरा पोषण न मिल पा रहा हो तो चिकित्सक की सलाह से मल्टीविटमिंस या सप्लीमेंट्स भी लिए जा सकते हैं। विटमिन डी, जिंक, मैग्नीशियम जैसे तत्व टेस्टोस्टेरोन और अन्य सेक्स हॉर्मोंस में संतुलन के लिए जरूरी हैं। तमाम अध्ययनों में यह बात सामने आ रही है कि भारत सहित विश्व में विटमिन डी की कमी से अधिकतर लोग परेशान हैं। इससे स्त्रियों में एस्ट्रोजन स्तर और पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर घटता है, जिससेे सेक्स ड्राइव में कमी आती है।

4. नियंत्रण और अनुशासन

एल्कोहॉल का सेवन अधिक करने वाले व्यक्ति में भले ही तात्कालिक तौर पर सेक्स डिजायर्स अधिक दिखती हों, लेकिन सेक्स के मामले में उनकी परफॉर्मेंस पर एल्कोहॉल का प्रभाव नकारात्मक होता है। एक-दो पैग रेड वाइन मूड बूस्टर का काम करती है, लेकिन पांच-छह पैग मूड बिगाडऩे का काम करेगी। इससे न सिर्फ सेक्स ड्राइव में कमी आती है, बल्कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या भी हो सकती है। इसलिए आदतें सुधारना और इच्छाओं को नियंत्रित रखना जरूरी है। तनाव, दबाव और अवसाद से बचने के लिए सुबह 40-50 मिनट की ब्रिस्क वॉक, जॉगिंग, डांसिंग, योग, ध्यान, स्विमिंग और सायक्लिंग करें।

5. सकारात्मक रहें

रिश्तों के प्रति सकारात्मक रहें। खुश रहें और पार्टनर को खुश रखें। संबंध मधुर रहेंगे, भरोसा मजबूत होगा और आशावादी रहेंगे तो सेक्सुअल हेल्थ भी अच्छी रहेगी।

इंदिरा राठौर


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