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थोड़ा ऑफलाइन हो जाएं...

इंटरनेट और मोबाइल जैसे साधनों का ईजाद अपनों को करीब लाने के लिए किया गया था, पर इनके इस्तेमाल में नासमझी की वजह से रिश्तों में दूरियां बढऩे लगी हैं। संबंधों की सहजता बरकरार रखने के लिए ऐसी टेक्नोलॉजी से थोड़ी दूरी भी जरूरी है।

By Edited By: Published: Tue, 28 Apr 2015 03:37 PM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2015 03:37 PM (IST)
थोड़ा ऑफलाइन हो जाएं...

इंटरनेट और मोबाइल जैसे साधनों का ईजाद अपनों को करीब लाने के लिए किया गया था, पर इनके इस्तेमाल में नासमझी की वजह से रिश्तों में दूरियां बढऩे लगी हैं। संबंधों की सहजता बरकरार रखने के लिए ऐसी टेक्नोलॉजी से थोडी दूरी भी जरूरी है।

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विदाई के कुछ ही मिनट बाद दुलहन दौडती हुई घर वापस आ गई तो मां ने घबरा कर पूछा, 'क्या हो गया?' लडकी ने जल्दबाजी में कहा, 'मेरे मोबाइल का चार्जर यहीं छूट गया था, वही लेने आई हूं।' हो सकता है यह वायरल जोक किसी ने आपको भी फॉरवर्ड किया हो, पर यह मजाक नहीं हकीकत है। आज के जमाने में लोग मोबाइल और इंटरनेट जैसी चीजों से पल भर के लिए भी अलग नहीं रह पाते। अमेरिका स्थित यूनियन कॉलेज के शोधकर्ताओं ने लगभग 600 लोगों के बीच उनकी सोशल साइट्स के इस्तेमाल संबंधी आदतों और उनके करीबी रिश्तों के बारे में गहन अध्ययन किया। इस शोध में शामिल सहायक प्रोफेसर जोशुआ जे. हार्ट के अनुसार, 'ज्य़ादा तनावग्रस्त और अपने रिश्तों के प्रति उदासीन रहने वाले लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अधिक सक्रिय रहते हैं। यहां दूसरों का फीडबैक पाकर उन्हें अच्छा महसूस होता है।'

नजदीकियों में बढती दूरी

सोशल नेटवर्किंग साइट्स और स्मार्ट फोन के कई नए एप्लीकेशंस, जो लोगों को सस्ती दरों पर चैटिंग की सुविधाएं देते हैं, अब समाज के हर वर्ग की पहली पसंद बन चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसी टेक्नोलॉजी के माध्यम से दूर बैठे लोगों से संपर्क साधना बेहद आसान हो गया है। अब हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से जब चाहें तब बातें कर सकते हैं। बचपन के बिछडे दोस्तों को ढूंढ कर उनके साथ दोबारा संपर्क बना सकते हैं, पर अफसोस यह है कि इतने अच्छे साधन के गलत इस्तेमाल की वजह से लोगों के अंतरंग रिश्ते में सबसे ज्य़ादा खटास आ रही है। चाहे पति-पत्नी हों या प्रेमी-प्रेमिका। ज्य़ादातर कपल्स के बीच झगडे की बडी वजह इंटरनेट और मोबाइल है। लोगों के पास अजनबियों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने और उनके पोस्ट पर कमेंट्स लिखने का तो समय है, पर अपने ही घर में पत्नी से उसका हाल पूछने की फुर्सत नहीं। शाम को सही वक्त पर घर लौटने के बाद भी पति लैपटॉप खोल कर बैठ जाते हैं। पत्नी और बच्चे किसी न किसी काम के बहाने उनसे बातचीत करना चाहते हैं, पर आभासी दुनिया में खोए उस अनमने व्यक्ति के आगे उनकी हर कोशिश नाकाम हो जाती है। यह तो कुछ भी नहीं। कई बार तो घरों में पिन ड्रॉप साइलेंस होता है। मम्मी-पापा अपने-अपने लैपटॉप पर चैटिंग में व्यस्त होते हैं। बच्चा बीच में परेशान न करे, इसलिए उसे अपना आइफोन पकडा देते हैं। घरों में सन्नाटा है और सारी चहल-पहल सोशल साइट्स पर नजर आती है। कुछ लोगों को सौ-दो सौ लाइक्स के बिना रात को नींद नहीं आती। एक ही छत के नीचे साथ रहने वाला लाइफ पार्टनर उन्हें लाइक कर रहा/रही है या नहीं, इससे ऐसे लोगों को कोई फर्क नहीं पडता। कई बार दूरी इतनी बढ जाती है कि मामला ब्रेकअप और तलाक तक पहुंच जाता है।

शक से उठते सवाल

'तुमने अपने मोबाइल में पासवर्ड क्यों लगा रखा है....अमुक साइट पर यह तुम्हारा नया दोस्त कौन है? तुम्हारे फोटो पर ऐसी कमेंट करने की हिम्मत कैसे हुई उसकी? तुम्हारी कलीग की टाइमलाइन पर जाकर ऑफिस पार्टी की पिक्स देखी हैं मैंने। आजकल लडकियों के साथ ज्य़ादा ही सेल्फी लेने लगे हो। ये सुगंधा कौन है, तुम जिसके इतने करीब खडे थे।... यह किसी भी दंपती के आपसी वार्तालाप की छोटी सी झलक हो सकती है, पर इसमें बातें नहीं सवाल हैं, जो शक की वजह से उठाए जात रहे हैं। शक के बीज से पनपने वाला जहरीला पौधा रिश्तों की मजबूत बुनियाद को भी खोखला बना देता है। गलत इस्तेमाल की वजह से सोशल नेटवर्किंग साइट्स और मोबाइल जैसे माध्यम लोगों के मन में एक दूसरे के लिए बेवजह शक पैदा कर रहे हैं।

अच्छी नहीं है इतनी शेयरिंग

आजकल लोगों में अकेलापन इस तेजी से बढ गया है कि वे निजी जीवन से जुडी हर छोटी-बडी बात ऐसी साइट्स के माध्यम से न केवल लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं, बल्कि उत्साहजनक कमेंट्स के माध्यम से दूसरों की प्रतिक्रिया जानने के लिए इतने आतुर होते हैं कि वे अपनी टाइमलाइन पर एक ही स्टेटस को कई-कई बार पोस्ट करते हैं। आप मॉल में शॉपिंग करने गए या आपके गार्डन में बहुत सुंदर गुलाब खिला है...तो यह जरूरी नहीं है कि ये बातें जानने में सभी की समान रूप से दिलचस्पी हो। फिर भी लोग अपनी हर बात सार्वजनिक करना चाहते हैं। व्यावहारिक जीवन में भले ही लोग एक-दूसरे को अपनी बातें न बताएं, पर सोशल साइट्स पर उनकी ऐसी उदारता देखकर इस बात पर यकीन करना थोडा मुश्किल लगता है कि हमारा समाज आत्मकेंद्रित हो रहा है। ऐसी जबरिया शेयरिंग लोगों के बीच मनमुटाव पैदा करने की वजह बनती जा रही है। कोई इसलिए नाराज है कि किसी ने उसके फोटो को लाइक नहीं किया तो कोई दूसरों द्वारा टैग किए जाने से परेशान है।

कभी तो अकेला छोड दो

जब सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जी भर गया तो लोगों ने स्मार्टफोन के नए एप्लीकेशंस का दामन थाम लिया, जिन पर पडोसियों से लेकर, कलीग्स और रिश्तेदारों के कई ग्रुप बन गए। एक-दूसरे तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए यह किफायती माध्यम निश्चित रूप से बेहद उपयोगी है। व्यावसायिक या प्रोफेशनल जरूरतों के लिए इसका बहुत अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यहां भी वही हाल है। अलग-अलग ग्रुप्स से हर दो मिनट बाद महंगाई और भ्रष्टाचार पर अनर्गल प्रलाप, जोक्स, वायरल विडियो या किसी सुविचार के रूप में कोई न कोई मेसेज आ रहा होता है, जिसे देखने और डिलीट करने में अच्छा-ख्ाासा वक्त बर्बाद हो जाता है।

बच्चों में एडिक्शन

इंटरनेट की आभासी दुनिया टीनएजर्स को सबसे ज्य़ादा आकर्षित कर रही है। कहने को 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कानूनन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपनी प्रोफाइल बनाने का अधिकार नहीं है, लेकिन सभी को यह मालूम है कि व्यावहारिक जीवन में आजकल बारह-तेरह साल की उम्र से ही बच्चे गलत जानकारियां देकर ऐसी साइट्स पर एक्टिव नजर आते हैं। उनमें अच्छे-बुरे की समझ नहीं होती। ऐसी साइट्स पर कई बार आपराधिक प्रवृत्ति के लोग फर्जी प्रोफाइल बनाकर अजनबियों को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते हैं। कई बार टीनएजर्स ऐसे लोगों की कथित दोस्ती के शिकार हो जाते हैं, जिसके बुरे अंजाम से हम सब वािकफ हैं। इसलिए पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि जहां तक संभव हो वे अपने बच्चों को ऐसा करने से रोकें और उनकी ऐसी ऐक्टिविटीज पर निगरानी रखते हुए उनका सही मार्गदर्शन करें।

कुछ जरूरी बातें

चाहे सोशल मीडिया हो या मोबाइल के नए एप्लीकेशंस, कोई भी टेक्नोलॉजी बुरी नहीं होती। इनका उद्देश्य लोगों के जीवन को आसान बनाना है और इससे काफी हद तक लोगों के जीवन में सुगमता आ गई है। एक अच्छी बात यह भी है कि इन तकनीकों में सीनियर सिटिजंस की दिलचस्पी बढ रही है और इनकी मदद से बुजुर्गों के लिए अपना अकेलापन दूर करना आसान हो गया है। फिर भी ऐसी टेक्नोलॉजी पर बढती निर्भरता और इसके दुरुपयोग की वजह से कई परेशानियां पैदा होती हैं। अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो तनावमुक्त होकर ऐसी सुविधाओं का पूरा लुत्फ उठाया जा सकता है :

-परिवार के साथ बिताए जाने वाले क्वॉलिटी टाइम की कीमत समझते हुए, उसके साथ कोई समझौता न करें। डिनर के वक्त अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर रखें।

-इंटरनेट पर ऑनलाइन रहने की समय सीमा निर्धारित करें और निश्चित समय के बाद अपना कंप्यूटर शट डाउन कर दें।

-छुट्टी वाले दिन सोशल साइट्स पर एक घंटे से ज्य़ादा वक्त न बिताएं। इस दिन सपरिवार कहीं घूमने निकल जाएं। बच्चों के साथ कोई आउटडोर गेम खेलें या बागवानी करें।

-अपने लाइफ पार्टनर के साथ रिश्ते में पूरी पारदर्शिता रखें। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर परिवार से संबंधित कोई भी तसवीर या निजी जानकारी पोस्ट करने से पहले अपने लाइफ पार्टनर की सलाह जरूर लें और उसकी सहमति-असहमति का हमेशा ख्ायाल रखें।

-अगर घर में टीनएजर्स हों तो उन्हें इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल से होने वाले नुकसान के बारे में समझाएं। उनके साथ अपने कंप्यूटर का पासवर्ड शेयर न करें। जब वे ऑनलाइन हों तो उनके आसपास रहने की कोशिश करें।

-उन्हें स्मार्ट फोन दिलाने की जल्दबाजी न करें। अगर बहुत जरूरी हो तो उन्हें सामान्य फीचर वाला मोबाइल दिलाएं, जिसमें पोस्टपेड के बजाय प्रीपेड कनेक्शन हो।

- टीनएजर्स को सोशल साइट्स पर प्रोफाइल बनाने की इजाजत इसी शर्त पर दें कि वे पेरेंट्स को भी फ्रेंड लिस्ट में शामिल करेंगे।

-अगर पर्सनल लाइफ और साइबर वल्र्ड के बीच संतुलन बनाए रखा जाए तो यह सुविधा लोगों के लिए वरदान साबित होगी।

विनीता

(डॉ. समीर पारेख, डायरेक्टर

मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज डिपार्टमेंट, फोर्टिस हेल्थ केयर दिल्ली से बातचीत पर आधारित)


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