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रिश्तों की कशमकश

किसी भी परिवार में मिडिलएज जेनरेशन पर रिश्तों को संभालने की •िाम्मेदारी होती है। बु•ाुर्गो और बच्चों का समान रूप से ख़्ायाल रखते हुए उनके बीच सही तालमेल बिठाना किसी चुनौती से कम नहीं, लेकिन थोड़ी सी सूझबूझ से काम लिया जाए तो हर रिश्ते को ख़्ाूबसूरती से निभाया जा सकता है।

By Edited By: Published: Mon, 31 Dec 2012 05:21 PM (IST)Updated: Mon, 31 Dec 2012 05:21 PM (IST)
रिश्तों की कशमकश

आपको राजकपूर की पुरानी फिल्म

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कल, आज और कल तो याद होगी..जिसमें एक ही परिवार की तीन पीढियों के आपसी खींचतान को बडी ख्ाूबसूरती से दर्शाया गया था। परिवार के बुजुर्ग सदस्य की अपनी पारंपरिक सोच थी, जिसे बदल पाना मुश्किल था। युवा पीढी जिंदगी को अलग ढंग से एंजॉय करना चाहती थी। ऐसे में मिडिल एज जेनरेशन को अपनी युवा संतान और बुजुर्ग माता-पिता के साथ तालमेल बिठाने में अच्छी-खासी मशक्कत करनी पडती थी। सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इस फिल्म में तीन पीढियों की भूमिका कपूर परिवार के ही सदस्य निभा रहे थे। परिवार के सबसे बुजुर्ग पृथ्वीराज कपूर, उनके बेटे राज कपूर और युवा पीढी की भूमिका में रणधीर कपूर के साथ उनकी पत्नी बबीता थीं। उन सबने बडा जीवंत अभिनय किया था या यूं कहें कि फिल्म के बहाने परदे पर अपनी जिंदगी उतारकर रख दी थी।

ख्ौर, यह तो हुई फिल्म की बात..पर हमारी जिंदगी में भी रिश्तों के बीच ऐसी ही कशमकश चलती रहती है। जहां हर व्यक्ति दूसरे को समझने का दावा तो करता है, पर वास्तव में ऐसा हो नहीं पाता। इसी वजह से परिवार में लोगों के बीच वैचारिक मतभेद होते हैं। आइए देखते हैं कि कौन सी बातें दो पीढियों के बीच टकराव पैदा करती हैं :

हमारे •ामाने में..

हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं था..यह हमारे बुजुर्गो द्वारा बार-बार दुहराया जाने वाला उनका सबसे प्रिय वाक्य है। आज भी उनके भीतर अपने जमाने में जीने की जिद इतनी प्रबल है कि वे किसी भी बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं पाते। बेशक, अपने पोते-पोतियों से उन्हें बेहद प्यार होता है, पर उनकी अजीबोगरीब लाइफस्टाइल दादा-दादी को हैरान-परेशान कर देती है। फटी जींस पहनना भी कोई फैशन है भला! डीयू की छात्रा जूही अपनी दादी की इसी शिकायत से परेशान रहती है। उसने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ। उसे ऐसा लगता है कि दादी को जब नए ट्रेंड के बारे में कुछ मालूम ही नहीं है तो फिर वह मेरे कपडों पर ऐसे कमेंट क्यों करती हैं? बुजुर्गो और युवाओं की इस भिडंत में बीच वाली पीढी की दशा सबसे दयनीय होती है। उसके लिए दोनों को समझा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

सैंडविच सिचुएशन

संयुक्त परिवारों में मिडिल एज लोग इन दोनों पीढियों के बीच बुरी तरह फंसे होते हैं। उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि वे किसे समझाएं? अगर बुजुर्गो के पारंपरिक मूल्य अपनी जगह पर सही हैं तो युवाओं की तेज रफ्तार जीवनशैली भी बदलते वक्त की जरूरत बन चुकी है। यहां जब दोनों के विचारों में टकराव होता है तो बीच की पीढी जिसे भी समझाने की कोशिश करती है, वही उससे पक्षपात की शिकायत करने लगता है। इस संबंध में 45 वर्षीया बैंकर रंजना द्विवेदी कहती हैं, कॉलेज में पढने वाले मेरे दोनों बेटे छुट्टी वाले दिन सुबह नौ बजे तक सोते रहते हैं। उनकी इस आदत से उनके दादा-दादी बहुत नाराज होते हैं। मैंने बच्चों को समझाने की बहुत कोशिश की..पर उनकी यह आदत नहीं सुधरी। उनका कहना है कि उन्हें देर रात तक जागकर पढने (अगर, सच कहा जाए तो चैटिंग और नेट सर्फिग) की आदत है। इसी वजह से सुबह उनकी नींद नहीं खुलती। अपनी जगह पर उनके ग्रैंडपेरेंट्स सही हैं, पर आज के बच्चे अपनी जीवनशैली में मामूली सा बदलाव लाने को भी तैयार नहीं होते। ऐसे में छुट्टी वाले दिन घर का माहौल तनावपूर्ण हो जाता है।

हमें कोई समझता क्यों नहीं

रिश्तों के कशमकश में हर पीढी को यही शिकायत रहती है कि परिवार में कोई हमारी भावनाओं को नहीं समझता। युवाओं को यह शिकायत रहती है कि बडे हर बात पर हमें रोकते-टोकते रहते हैं, उन्हें हमारी छोटी-छोटी बातों से इतनी परेशानी क्यों होती है? बुजुर्गो को युवाओं का पहनावा, खानपान और बातचीत का तरीका बिल्कुल पसंद नहीं आता। उन्हें ऐसा लगता है कि नई पीढी को उनकी पसंद-नापसंद का जरा भी ख्ायाल नहीं है और वे बुजुर्गो को जानबूझ कर तकलीफ पहुंचाते हैं। ऐसे में बीच वाली पीढी को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। उसे समझ नहीं आता कि वह पुराने और नए विचारों वाली दोनों पीढियों के बीच किस तरह तालमेल बिठाए? इस संबंध में 50 वर्षीया होममेकर विभा (परिवर्तित नाम) कहती हैं, हमें समझ नहीं आता कि हम अपने दिल की बातें किससे शेयर करें? घर में बच्चों और बुजुर्गो दोनों को ही हमसे बहुत ज्यादा उम्मीदें होती हैं। हम उनकी हर मांग पूरी करते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि घर में किसी को हमारी परवाह नहीं है। तमाम कोशिशों के बावजूद कोई भी हमसे ख्ाुश नहीं रहता। सास-ससुर और बच्चे दोनों हर बात के लिए मुझे ही दोषी ठहराते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि हमारी पीढी को सबसे ज्यादा मुश्किलें उठानी पडी हैं। बचपन में हम माता-पिता से डरते रहे और अब हमें अपने बच्चों की जिद के आगे झुकना पडता है।

कुल मिलाकर परिवार की हर पीढी के पास एक दूसरे के लिए शिकायतों का बडा सा पुलिंदा है, पर अफसोस..कोई भी उसे खोलने की पहल नहीं करता। याद रखें, रिश्तों की डोर बडी नाजुक होती है। इसे टूटने से बचाने के लिए वक्त रहते हमें अपनी शिकायतें दूर कर लेनी चाहिए।

(गुडगांव स्थित एशिया कोलंबिया हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. ऐन सिमी जॉन से बातचीत पर आधारित)


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