अपराधबोध से उपजा डिप्रेशन
अगर इंसान से कोई गलती हो जाए तो पश्चात्ताप के साथ उसे सुधार लेना स्वाभाविक है, लेकिन अपने किसी निर्णय पर लंबे समय तक अपराधबोध की भावना से ग्रस्त होना डिप्रेशन की वजह बन सकता है। एक ऐसी ही समस्या को किस तरह सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार
अगर इंसान से कोई गलती हो जाए तो पश्चात्ताप के साथ उसे सुधार लेना स्वाभाविक है, लेकिन अपने किसी निर्णय पर लंबे समय तक अपराधबोध की भावना से ग्रस्त होना डिप्रेशन की वजह बन सकता है। एक ऐसी ही समस्या को किस तरह सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद।
लगभग चार साल पहले की बात है। एक रोज मेरे पास किसी युवक का फोन आया। मैंने उससे अगले दिन आने को कहा, पर वह बेहद परेशान लग रहा था। वह मुझसे उसी दिन मिलने का आग्रह करने लगा तो व्यस्तता के बावजूद मैं उसे मना नहीं कर पाई।
सब कुछ था ठीक
उसकी उम्र तकरीबन 35 वर्ष होगी। उसने बिना कुछ पूछे ही बताना शुरू कर दिया, 'मेरी शादी को दस साल हो चुके हैं। हमारी लव-मैरिज हुई है, पर शादी के बाद दिनोदिन हमारे रिश्ते में कडवाहट बढऩे लगी। मैं मूलत: कोलकाता का रहने वाला हूं और मेरी पत्नी आभा (परिवर्तित नाम) दिल्ली से है। वहां मेरा बिजनेस था। शादी के एक साल बाद मेरे जुडवां बेटों का जन्म हुआ। शुरुआत में सब कुछ ठीक था, पर आभा ज्य़ादातर अपने माता-पिता के साथ दिल्ली ही रहना चाहती थी। मैं उस पर कोई बंदिश नहीं लगाता था क्योंकि तब बच्चों की देखभाल के लिए वाकई उसे मदद की जरूरत थी।
बदल गई तसवीर
इसी बीच मेरी जानकारी के बगैर वह दिल्ली के सरकारी स्कूल में जॉब करने लगी। जब भी मैं उससे कोलकाता वापस आने को कहता तो वह अपनी नौकरी का बहाना लेकर बैठ जाती। समय बीतता गया। उसने बच्चों एडमिशन भी यहीं करा दिया। इस बीच कोलकाता से अपना सारा कारोबार समेट कर मैं भी दिल्ली शिफ्ट हो गया और यहां मैंने स्टेशनरी का बिजनेस शुरू किया। शुरुआती दौर में थोडा नुकसान हुआ तो आभा ने इसी बात को मुद्दा बना लिया और मुझे दिन-रात कोसने लगी। उसने बच्चों को भी मेरे ख्िालाफ भडकाना शुरू कर दिया। जब भी मौका मिलता वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने मेरा मजाक उडाने से नहीं चूकती। उसके माता-पिता का भी ऐसा ही रवैया था। मैं अपनी तरफ से शादी बचाने की पूरी कोशिश करता रहा, पर हालात दिनोदिन बिगडते जा रहे हैं। अब मुझे कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। सच कहूं तो इतना अपमान झेलने के बाद अब मैं भी शांतिपूर्वक अकेले जीना चाहता हूं, पर अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हूं। मैं समझ नहीं पा रहा कि मुझे क्या करना चाहिए? कहते हुए वह व्यक्ति रुआंसा हो उठा। मामले को सही ढंग से समझने के लिए उसकी पत्नी आभा से मिलना बेहद जरूरी था। मैंने उससे कहा कि अगली बार पत्नी को साथ लेकर आना।
पत्नी का असहयोग
अगली सिटिंग में वह आभा के साथ आया। उस युवती ने बताया कि पति और ससुराल के साथ उसकी एडजस्टमेंट नहीं हो पाई। मायका आर्थिक दृष्टि से काफी संपन्न था। उसका कहना था कि उसने जल्दबाजी में शादी का निर्णय लेकर बहुत बडी गलती की है। मैंने उसे बहुत समझाया कि ऐसी जिद से बच्चों पर बहुत बुरा असर पडेगा, पर वह किसी भी हाल में उसके साथ रहने को तैयार नहीं थी। हां, बच्चों के लिए उसने इतना जरूर कहा कि मैं उन्हें उनके पिता से दूर नहीं होने दूंगी, पर उनके साथ मेरा दम घुटता है। इसलिए मैं आपसी सहमति से तलाक चाहती हूं। उस युवती से मिलने के बाद उनके दांपत्य जीवन को फिर से संवारने की उम्मीद ख्ात्म हो गई। मुझे दोबारा उससे बात करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। हां, वह युवक डिप्रेशन का मरीज बन चुका था। शादी टूटने को लेकर उसके मन में गहरा अपराधबोध था और उसे वाकई काउंसलिंग की जरूरत थी।
उम्मीद की नई किरण
मैंने उस युवक से कहा कि अगर आप दोनों दुखी हैं तो शांतिपूर्वक अलग हो जाने में ही भलाई है। लगभग एक साल तक उसकी काउंसलिंग चली और आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया भी शुरू हो गई। मैंने उस व्यक्ति को समझाया कि जो कुछ भी हुआ उसे भूलकर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए। जब वह पहले की तुलना में तनावमुक्त और ख्ाुश दिखने लगा तो मैंने उससे कहा कि अब आपको काउंसलिंग की जरूरत नहीं है। तीन साल बाद एक रोज अचानक वह मुझसे मिलने आया। उसने मुझे बताया कि अब उसका तलाक हो गया है। एक हमउम्र युवती से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई है, पर पुनर्विवाह का निर्णय लेते हुए उसे बहुत ग्लानि महसूस हो रही है। मैंने उसे समझाया कि अगर अब आपके मन में नए सिरे से सेटल होने की इच्छा पैदा हो रही है तो इसमें कोई बुराई नहीं। जहां तक बच्चों का सवाल है तो भावी पत्नी को यह समझा दें कि अपने बच्चों से आपको बेहद लगाव है और उनकी सारी जिम्मेदारी आपको ही उठानी है। अगर वह आपसे सचमुच प्यार करती होगी तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी। कुछ ही दिनों बाद उस व्यक्ति ने पुनर्विवाह कर लिया। उसने मुझे बताया कि छुट्टियों में बच्चे अकसर उसके पास आते हैं और दूसरी पत्नी उनका बहुत ख्ायाल रखती है।
इस पूरे मामले में उस व्यक्ति को कहीं से कोई इमोशनल सपोर्ट नहीं मिला, पर उसकी इच्छाशक्ति डिप्रेशन को दूर करने में बहुत मददगार साबित हुई। स्थितियां चाहे कितनी ही ख्ाराब क्यों न हों, पर हमें अपना मनोबल बनाए रखना चाहिए।