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हां-ना के बीच

सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने के लिए समान डिजायर्स का होना जरूरी है। कई बार ऐसा नहीं हो पाता और रिश्ता प्रभावित होने लगता है। यह लेख आपके लिए उपयोगी हो सकता है।

By Edited By: Published: Wed, 17 Aug 2016 01:16 PM (IST)Updated: Wed, 17 Aug 2016 01:16 PM (IST)
हां-ना के बीच
शारीरिक-मानसिक स्थितियों का भावनाओं और इच्छाओं पर प्रभाव पडता है। हमेशा न कोई उत्साहित रह सकता है, न तनावग्रस्त। मैरिज काउंसलर्स के पास इन दिनों ऐसे कपल्स की संख्या बढ रही है, जो सेक्सुअल डिजायर्स के मिसमैच होने से परेशान हैं। समस्या तब •यादा होती है, जब एक पार्टनर की डिजायर्स दूसरे से ज्यादा होती हैं। आजकल ऐसी समस्याएं शादी के 3-4 साल बाद अधिक दिख रही हैं। कपल्स को समझ नहीं आता कि एकाएक उनकी सेक्स लाइफ में बदलाव क्यों आने लगा है। आम धारणा यह है कि पुरुषों की सेक्स डिजायर्स स्त्रियों की तुलना में ज्यादा होती है मगर आजकल स्त्रियां यह शिकायत ज्यादा कर रही हैं कि उनका पार्टनर लो लिबिडो से ग्रस्त है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं। एक तो यह कि सचमुच ऐसा हो रहा हो और दूसरी यह कि पुरुषों से ज्यादा स्त्रियां इस बात से सशंकित रहती हैं कि कहीं पार्टनर का कोई विवाहेतर संबंध तो नहीं है। समस्या को समझना जरूरी मिसमैच्ड डिजायर्स कई बार रिश्तों में अजीब रस्साकशी पैदा कर देती है। एक पार्टनर अपनी डिजायर्स दूसरे के सामने रखता है, वे पूरी नहीं होतीं तो उसे गुस्सा आता है। कुंठा रिश्तों के अन्य पहलुओं पर उतरने लगती है। कपल्स के बीच झगडे बढऩे लगते हैं। इससे सेक्सुअल स्तर पर भी समस्याएं बढ जाती हैं। लो लिबिडो से ग्रस्त पार्टनर हर उस क्रिया से दूर भागने लगता है, जिनकी परिणति सेक्स में हो सकती हो। एक-दूसरे को स्पर्श करने जैसी क्रियाएं भी उसे बोझिल लगने लगती हैं। समस्या को जल्दी न सुलझाया जाए तो उनके बीच संवादहीनता पनपने लगती है, एक-दूसरे पर भरोसा कम होने लगता है। लंबे समय तक ऐसी स्थिति रहे तो तलाक तक की नौबत आ जाती है। हालांकि पर्सनल एंड सोशल साइकोलॉजी बुलेटिन में प्रकाशित एक स्टडी में टोरंटो यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों का दावा है कि अलगाव के लिए सेक्स की कमी ही एकमात्र कारण नहीं है। लंबे समय तक साथ रहने के बाद सेक्स के आधार पर दंपती अलग नहीं होते लेकिन शुरुआती वर्षों में यह समस्या ज्यादा प्रभावित करती है। रिजेक्शन फीलिंग आज के समय में पति-पत्नी में गैर-बराबरी काफी हद तक कम हो चुकी है। पार्टनर्स में अगर एक भी लो लिबिडो से ग्रस्त है तो दूसरा उस पर दबाव नहीं डालना चाहता क्योंकि इससे रिश्ते को नुकसान हो सकता है और सेक्स क्रिया में भी संतुष्टि का एहसास नहीं होता। वास्तव में लो लिबिडो से ग्रस्त पार्टनर ही रिश्ते को कंट्रोल करने लगता है जबकि उसके पार्टनर में रिजेक्शन का एहसास गहराने लगता है। इसमें गलती किसी की नहीं है, न ही यह पावर स्ट्रगल जैसी समस्या है। यह एक शारीरिक-मानसिक स्थिति है और इससे उबरने में कई बार दवाएं भी कारगर नहीं होतीं। अगर मूड नहीं है और मन तैयार नहीं है तो कोई कैसे सेक्स क्रिया में आनंद ले सकता है! इसलिए पहला काम है, अपने मन और मूड को तैयार करना। स्थितियां अलग-अलग कपल्स के बीच एक वर्ष में 10 से कम बार सेक्स संबंध कायम हों तो इसे सेक्सलेस मैरिज कहा जाता है। यहां यह समझना जरूरी है कि कई शारीरिक स्थितियों में सेक्स क्रिया के न होने का मतलब यह नहीं होता कि पार्टनर्स के बीच सब कुछ खत्म हो चुका है। प्रेग्नेंसी, डिलिवरी, डिप्रेशन या किसी मुश्किल सर्जरी के बाद लो लिबिडो जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं। मेनोपॉज के दौरान भी स्त्रियों में ऐसी समस्याएं देखी जाती हैं। समस्या से निपटने का सबका तरीका अलग होता है क्योंकि समस्या को देखने का सबका नजरिया भी अलग होता है। एक ही समस्या किसी के लिए बडी तो किसी के लिए छोटी होती है। मिसमैच्ड डिजायर्स जैसी समस्या को कई दंपती स्वयं सुलझा लेते हैं। अगर कोई अपने रिश्ते को बचाना चाहता है तो वह समझौता करने को भी तैयार रहता है। दूसरी ओर कुछ मामलों में समस्या बढ जाती है और काउंसलिंग की जरूरत पडऩे लगती है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि पार्टनर से प्यार हो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा क्योंकि केवल प्यार से समस्या नहीं सुलझती। यहां दो बातें जाननी जरूरी हैं। पहली यह कि लो लिबिडो एक गंभीर समस्या है, दूसरी यह कि इसे दृढ इच्छा के बलबूते सुलझाया जा सकता है। सेक्स लाइफ में समस्याएं भी जीवन के अन्य पहलुओं पर पैदा होने वाली समस्याओं की ही तरह हैं। थोडी सी प्रेरणा, कोशिश, सकारात्मक सोच और ढेर सारे समझौते इन समस्याओं को थोडा कम कर देते हैं। प्रयास और समझौते अपनी पुस्तक 'व्हेयर डिड माई लिबिडो गो' में डॉ. रोजी किंग ने बेहतर तरीके से इस समस्या को परिभाषित किया है। हालांकि यह पुस्तक लो लिबिडो से ग्रस्त स्त्रियों के बारे में ज्यादा बताती है लेकिन इससे समस्या को समझने में मदद मिलती है। सप्लीमेंट्स या दवाओं के सेवन से मदद मिलती है, इनसे डिजायर्स को कुछ समय के लिए बढाया भी जा सकता है लेकिन समस्या को खत्म करने के लिए प्रेरणा, प्रयास व समझौता जरूरी है। मनोवैज्ञानिक डॉ. निकिता का कहना है कि इच्छा जगेगी, इसके लिए प्रतीक्षा करने से कुछ नहीं होगा। इच्छा एक निर्णय है, जिसे लेना होगा। समस्या के लिए तुरंत प्रयास करें, तभी समाधान हो सकता है। कई बार स्त्रियां बताती हैं कि मूड न होने के बावजूद पार्टनर की जिद पर वे सेक्स क्रिया में इन्वॉल्व होती हैं तो बाद में उन्हें भी अच्छा लगने लगता है। आखिर कई बार मूड न होते हुए भी स्त्रियां किचन में घुसने, लॉन्ड्री, बच्चों का होमवर्क, पति के दोस्तों को डिनर पर इन्वाइट करने जैसे कई काम करती ही हैं....। सेक्स क्रिया भी ऐसी ही है। इच्छा-अनिच्छा से परे यह एक शारीरिक-भावनात्मक जरूरत है। इसे बोझ न बनाएं बल्कि रिश्तों को संवारने की जरूरी कोशिश के रूप में इसे अपनाएं। जिस तरह वजन कम करने, शेप में रहने और डाइट सुधारने जैसे संकल्प लिए जाते हैं, वैसे ही अपनी सेक्स लाइफ को बेहतरीन बनाने का भी संकल्प लें और उन्हें पूरा करने की कोशिश करें। इंदिरा राठौर

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