सहयोग चाहिए सहानुभूति नहीं
जब कोई मुश्किल में होता है तो ़करीबी लोग अकसर हमदर्दी जताते हैं, लेकिन केवल अपनत्व भरी बातें किसी का दुख कम करने के लिए का़फी नहीं होतीं। अगर आप सही मायने में किसी के दुख से दुखी हैं तो उससे सहानुभूति जताने के बजाय उसकी मदद करें।
वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, घबराओ मत, सेहत का खयाल रखो, इस मुश्किल घडी में हम तुम्हारे साथ हैं..ऐसे असंख्य सहानुभूतिपूर्ण वाक्यों से लोगों को अकसर रूबरू होना पडता है। जब हमारा कोई अपना दुखी होता है तो हमें भी तकलीफ होती है और हम उसकी व्यथा बांटने की कोशिश करते हैं।
सिर्फ बातों से बात नहीं बनती
यह सच है कि प्यार और सहानुभूति भरे दो शब्द निराश व्यक्ति के लिए किसी मरहम से कम नहीं होते, पर केवल बातों से बात नहीं बनती। लोग सांत्वना दे कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं और मुश्किलों में घिरा इंसान अकेला छूट जाता है। बैंक में कार्यरत कविता (परिवर्तित नाम) एक ऐसे ही प्रसंग का जिक्र करती हैं, तीन साल पहले मेरे पति एक सडक दुघर्टना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वह आइसीयू में भर्ती थे। हमारे कई दोस्त और रिश्तेदार उनका हाल पूछने अस्पताल पहुंचे, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने औपचारिकता निभाने के बजाय हमारे घर पर रुक कर मेरे दोनों बच्चों और बीमार सास की देखभाल की। उन्होंने बातचीत के जरिये मेरे साथ भले ही ज्यादा सहानुभूति नहीं जताई, फिर भी मैं हमेशा उनके प्रति कृतज्ञ रहूंगी। अब मुझे महसूस होता है कि अपनत्व भरी बातों के बजाय व्यवहार की ज्यादा अहमियत होती है।
दर्द न दें हमदर्द
अपनों के साथ हमदर्दी जताते समय हमें इस बात का खयाल जरूर रखना चाहिए कि हमारी हमदर्दी कहीं उन्हें कमजोर तो नहीं बना रही। सॉफ्टवेयर इंजीनियर शशांक शुक्ला इस संदर्भ में कहते हैं, जब मैं स्कूल में पढता था तभी मेरे पिता का निधन हो गया था। वह स्टेशनरी की दुकान चलाते थे। मां ने हम भाई-बहनों की परवरिश की खातिर खुद दुकान संभालने का निर्णय लिया। ऐसे में संयुक्त परिवार के पुरुष सदस्यों ने कहा कि हमारे घर की बहू दुकान पर कैसे बैठेगी? हम लोग मिलकर इसकी जिम्मेदारी उठाएंगे। जहां एक ओर परिवार के सभी सदस्य मां के साथ सहानुभूति दिखा रहे थे, वहीं मेरी दादी ने मां को दुकान संभालने के लिए प्रेरित किया। आज मैं सोचता हूं कि अगर दादी ने मां का हौसला नहीं बढाया होता तो हमें ताउम्र दूसरों की दया पर निर्भर रहना पडता।
मनोविज्ञान सहानुभूति का
सोशल सपोर्ट इंसान के लिए बहुत जरूरी होता है। किसी भी चुनौतीपूर्ण स्थिति में अपनों का साथ ही हमारा मनोबल बढाता है, लेकिन जब हम किसी के प्रति सहानुभूति प्रकट कर रहे होते हैं तो अनजाने में ही सही, पर हम उसे उसकी कमजोरी का एहसास भी दिला रहे होते हैं। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, किसी को सांत्वना देते समय खुद को उससे ज्यादा काबिल समझना सहज मानवीय प्रवृत्ति है। दवा की तरह जरूरत से ज्यादा सहानुभूति भी नुकसानदेह साबित होती है। इसीलिए हमदर्दी जताते समय हमें विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। अगर आपका कोई करीबी व्यक्ति दुखी है तो उससे सकारात्मक बातें करके उसका मनोबल बढाने की कोशिश करें, लेकिन उसके सामने बार-बार उसकी नाकामी का जिक्र करके उसे उसकी कमजोरी का एहसास न दिलाएं।
कुछ लोगों में अहं की भावना इतनी प्रबल होती है कि उन्हें दूसरों की सहानुभूति जरा भी पसंद नहीं आती। इसलिए लोगों के व्यक्तित्वको समझ कर ही उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करनी चाहिए। हो सकता है आपकी भावनाएं बहुत अच्छी हों, लेकिन दूसरा व्यक्ति उन्हें किस रूप में ग्रहण करता है यह बात भी काफी अहमियत रखती है। इसलिए किसी भी संवेदनशील मुद्दे पर बहुत सोच-समझकर कर बोलना चाहिए, वरना सहानुभूति का मरहम किसी के जख्मों को भरने के बजाय उसे बढा भी सकता है।