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एक रिश्ता साझेदारी का

हर रिश्ते को मुकम्मल बनाने के लिए उसे थोड़ा वक्त देना पड़ता है। महाभारत के श्रीकृष्ण यानी नीतीश भारद्वाज और स्मिता ने भी रिश्ते को समय दिया, इसीलिए आज वे खुशहाल दंपती हैं।

By Edited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 10:04 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 10:04 AM (IST)
एक रिश्ता साझेदारी का
बी आर चोपडा की 'महाभारत' किसे याद नहीं होगी। जब श्रीकृष्ण अपनी अनोखी मुस्कुराहट के साथ परदे पर आते थे, लोग हाथ जोड टीवी के सामने बैठ जाते थे। नीतीश भारद्वाज ने महाभारत के श्रीकृष्ण को अपने अभिनय के द्वारा ऐसे सजीव किया कि लोगों के मन में बस गए। इसी तरह से उन्होंने अपनी शादीशुदा जिंदगी को प्यार और आपसी भरोसे से संजोया है। एक मुलाकात नीतीश भारद्वाज और उनकी हमसफर स्मिता भारद्वाज से। प्यार का बंधन स्मिता : शादी का मतलब है, एक-दूसरे का खयाल रखना, एक-दूसरे का साथ देना और जरूरत के वक्त एक-दूसरे के लिए खडे रहना। अगर किसी शादी में यह नहीं है तो फिर वह रिश्ता बेहद कमजोर है। नीतीश : शादी में जिम्मेदारी का भाव बहुत जरूरी है। अगर आप एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी महसूस नहीं करते तो आपका रिश्ता कभी लंबी दूरी तय नहींकर पाएगा। दोस्ती है जरूरी स्मिता : शादी में पति-पत्नी बनने से पहले जरूरी है दोस्त बनना। एक दोस्त अपने दोस्त के साथ सारी बातें शेयर करता है, जिसके कारण उनके बीच कभी गलतफहमी नहीं पनपती। इसलिए अगर पति-पत्नी दोस्त हैं, एक-दूसरे के साथ अपनी बातें शेयर करते हैं तो उनके बीच कभी कम्युनिकेशन गैप नहीं आएगा। संवादहीनता किसी भी रिश्ते के लिए अच्छी नहीं होती। नीतीश : हालांकि शादी की शुरुआत में हमारे बीच थोडी नोक-झोंक होती थी लेकिन समय के साथ एक-दूसरे के बीच समझ का विकास होता है। यही समझ पार्टनर के प्रति मन में प्यार और लगाव भी पैदा करती है। मीठी नोक-झोंक स्मिता : शादी में मीठी नोक-झोंक भी जरूरी है। जैसे मुझे बेहद ठंड लगती है और इन्हें गर्मी, जिसे लेकर नोक-झोंक हो जाती है। इन्हें गाडी में बैठते ही एसी बिलकुल कूल चाहिए जबकि मेरा हाल यह है कि शॉल ओढ भी लूं तो नाक जमने लगती है। ऐसे में हमारे बीच कहासुनी हो ही जाती है। नीतीश : हां, ये समस्या है हम लोगों के बीच, जिसका कोई हल अब तक नहीं निकल सका है। कैसे हुई मुलाकात स्मिता : हमारी मुलाकात तो घर के बुजुर्गों ने ही कराई थी। वे चाहते थे कि हम एक-दूसरे से मिलें और इस रिश्ते को आगे बढाएं। नीतीश : जब पहली बार हम मिले थे तो दिमाग में यह खयाल भी नहीं आया था कि कभी हम शादी कर लेंगे। मुलाकातें बढीं तो एक-दूसरे के प्रति लगाव बढऩे लगा और फिर वर्ष 2008 में हमने शादी का फैसला लिया। उसी साल 14 मार्च को हमारी शादी हो गई। जो बात भा गई स्मिता : मुझे इनकी सच्चाई, इनका सेंस ऑफ ह्यूमर भा गया। जो बात दिल में है वही जुबान पर भी...यही नेचर मुझे पसंद आता है। ऐसे लोगों पर विश्वास करना आसान होता है, क्योंकि ये लोग दिल में कुछ भी छुपा कर नहीं रखते। नीतीश : मुझे वे स्त्रियां बेहद अच्छी लगती हैं जो सेल्फमेड होती हैं। स्मिता की यही बात मुझे भा गई। लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप स्मिता : मैं प्रशासनिक सेवा में हूं और मेरा तबादला होता रहता है। फिलहाल मैं इंदौर में काम कर रही हूं। जब इन्हें मौका मिलता है, ये इंदौर आ जाते हैं और जब मुझे थोडी छुट्टी मिलती है, मैं मुंबई चली जाती हूं। हम छुट्टियां साथ प्लैन करते हैं। इसके अलावा व्हॉट्सएप और स्काइप के जरिये भी एक दूसरे के टच में रहते हैं। नीतीश : हां, छोटे-छोटे पल चुराने पडते हैं। इसलिए मुझे जब भी मौका मिलता है, मैं इंदौर पहुंच जाता हूं। हमारा साथ होना बच्चों के लिए भी जरूरी है। असुरक्षा-भाव नहीं स्मिता : मैं शुरू से जानती थी कि ये ग्लैमर इंडस्ट्री से हैं। इसलिए गॉसिप्स को लेकर मैं चिंतित नहींरही। वैसे भी ये मुझसे अपनी सारी बातें शेयर करते हैं। छुपाने जैसा हम लोगों के बीच कुछ भी नहीं है। हम पार्टी में जाते हैं तो इनके फैंस आकर फोटो खिंचवाने लगते हैं। इसे लेकर मैं थोडी कॉन्शस होती हूं मगर फिर खुद ही उन लोगों की फोटो खींच देती हूं। मुझे कभी कोई असुरक्षा नहीं महसूस हुई। नीतीश : मैं भी जब इनकी ऑफिशियल डिनर पार्टीज में जाता हूं तो चुपचाप कोने में बैठा रहता हूं। हम एक-दूसरे के काम और स्पेस का सम्मान करते हैं। कमिटमेंट तो जरूरी है स्मिता : मैं थोडी रूढिवादी हूं। मेरे खयाल से रिलेशनशिप में कमिटमेंट जरूरी है। अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो फिर रिश्ता बनाएं ही क्यों? लिव इन को लेकर मैं जजमेंटल नहीं हूं लेकिन रिश्ते में बच्चों का भविष्य भी छिपा होता है और बिना कमिटमेंट के वह कैसे सुरक्षित होगा? नीतीश : आजकल तलाक काफी बढ रहे हैं। तलाक लेने से अच्छा है लिव-इन में ही अलग हो जाएं। लेकिन हां, अगर आप रिश्ते को परिवार में तब्दील करना चाहते हैं तो उसके लिए शादी करनी होगी, खासतौर पर बच्चों के लिए। हाउस हज्बैंड नीतीश : हाउस हज्बैंड जैसा कुछ नहीं होता। घर पति-पत्नी दोनों के सहयोग से चलता है। हम यह नहींकह सकते कि घर सिर्फ स्त्री को चलाना है या पुरुष को ही बाहर जाकर काम करना है। दोनों को मिलजुल कर जिम्मेदारी उठानी होगी। स्मिता : हाउस हज्बैंड के लिए स्त्रियों की तुलना में ज्य़ादा चुनौतियां हैं। उन्हें समाज को जवाब देना है, उन्हें समझाना है कि वे आखिर घर पर क्यों बैठे हैं। कई लोग परिवार के लिए भी ऐसा करते हैं। पेरेंटिंग फॉम्र्युला स्मिता : शादी के लिए जरूरी है एडजस्ट करना। मैं बहुत ट्रैवल करती हूं। नीतीश इस बीच घर और बच्चों की देखभाल करते हैं। यही नहीं, वह लगातार मुझसे बात करते रहते हैं ताकि जान सकें कि मैं घर कब पहुंच रही हूं। जैसे ही मैं घर पहुंचती हूं, वह गर्मागर्म खाना तैयार रखते हैं। वे बच्चों का भी बहुत खयाल रखते हैं। उन्हें नहलाने से लेकर नई-नई ऐक्टिविटीज में लगाए रखने की सारी जिम्मेदारी नीतीश संभालते हैं। नीतीश : मुझे बच्चों के साथ टाइम बिताना या यूं कहें कि उन्हें बिगाडऩा बहुत अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि यह बच्चों की ग्रोइंग एज है। इसमें उन्हें हमारे साथ की सबसे ज्य़ादा जरूरत है। ऐसे में हम दोनों में से किसी न किसी का उनके साथ होना बेहद जरूरी होता है। अमित कर्ण

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