कड़ी मेहनत से मिली मंजिल
फिल्म आशिकी-2 से अपनी पहचान बनाने वाले संगीतकार और गायक अंकित तिवारी को यह म़काम हासिल करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। यहां वह अपने अनुभव बांट रहे हैं सखी के साथ।
अपने सपनों को सच होते देखना बेहद खूबसूरत एहसास है। आजकल मैं इसी अनुभव से गुजर रहा हूं। जब कभी मैं लोगों को आशिकी-2 का गीत सुन रहा है न तू.. गुनगुनाते हुए सुनता हूं तो मुझे जो खुशी मिलती है, मेरे लिए उसे शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन किसी भी इंसान को इतनी आसानी से कामयाबी नहीं मिलती। इसके लिए मुझे काफी संघर्ष करना पडा।
आसान नहीं था सफर
मैं मूलत: कानपुर का रहने वाला हूं और वहां के डीबीएस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। बचपन से ही मुझे संगीत से बेहद लगाव था और मेरे माता-पिता ने मुझे इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। कानपुर से संगीत की तालीम हासिल करने के बाद अपने साथ ढेरों सपने लेकर मैं मुंबई चला आया। मैं यहां म्यूजिक इंडस्ट्री में पहचान बनाना चाहता था। जाहिर सी बात है कि यहां आने के बाद दूसरे कलाकारों की तरह मुझे भी लंबे समय तक संघर्ष करना पडा।
बडे धोखे हैं इस राह में
अपने संघर्ष के दिनों में मुझे एक ऐसा कटु अनुभव हुआ, जिसे मैं आज तक भूल नहीं पाया। करियर के शुरुआती दिनों में मुझे एक बडे बैनर की फिल्म मिली थी। मैं उस प्रोडक्शन हाउस या निर्माता का नाम नहीं लेना चाहूंगा। उस फिल्म के लिए मैं कुछ बडे संगीतकारों के साथ मिलकर काम कर रहा था। उनके साथ कामकाज के तरीके को लेकर मेरे कुछ मतभेद थे। फिर भी मैंने पूरी लगन के साथ उस फिल्म के लिए धुनें तैयार कीं और फिल्म पूरी होने के बाद अपनी मर्जी से उनका साथ छोड दिया। जब फिल्म रिलीज हुई तो यह देखकर मैं दंग रह गया कि उसकी कास्टिंग में से मेरा नाम ही गायब था। उस समय मेरे दिल पर क्या बीती होगी। इसका आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। मैं उस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित था। मैंने अपने घर पर भी सभी को बता दिया था कि अमुक फिल्म में मेरा दिया हुआ संगीत है। उस फिल्म के बाद मेरा दिल टूट गया और मैं बोरिया-बिस्तर बांधकर कानपुर वापस लौटने की तैयारी करने लगा।
संभल गई जिंदगी
जीवन के उस मुश्किल दौर में अगर मेरे बडे भाई अंकुर तिवारी ने मेरा साथ न दिया होता तो मैं आज आपके सामने नहीं होता। उन्होंने मुझसे कहा, मुझे तुम्हारी काबिलीयत और मेहनत पर पूरा भरोसा है। ऐसी छोटी-छोटी बातों से निराश होने की कोई जरूरत नहीं है। उसके बाद भइया ने मेरे साथ मिलकर काम शुरू किया। उन्होंने मुझसे कहा कि अब तुम सब कुछ भूलकर केवल संगीत पर ध्यान दो, बाकी सब मैं देख लूंगा। इसके बाद मैं नए उत्साह के साथ दोबारा काम में जुट गया और कुछ नई धुनें बनाने लगा। भइया ने मैनेजमेंट का काम संभाल लिया। उन्होंने कुछ फिल्म निर्देशकों और प्रोडक्शन हाउस से जुडे लोगों का फोन नंबर ढूंढा और मुझे काम दिलाने के लिए हर जगह खुद फोन किया। उन्होंने मेरी खातिर फिल्म इंडस्ट्री के वैसे नामचीन लोगों को भी फोन किया, जिन्हें वह पर्सनली नहीं जानते थे। इसी दौरान मेरी मुलाकात गीतकार संदीपनाथ से हुई। मैंने उनसे गीत लिखने का आग्रह किया और उन गीतों को कंपोज किया। मेरे लिए उनका साथ अच्छा साबित हुआ। उसी दौरान तिग्मांशू धूलिया से मेरा परिचय हुआ और मुझे उनकी फिल्म साहब, बीवी और गैंगस्टर का टाइटल सॉन्ग गाने का मौका मिला, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। इसी तरह मुझे आशिकी-2 के लिए भी धुनें बनाने और गाने का मौका मिला। लगातार छह वर्षो के लंबे संघर्ष के बाद अब लोग मुझे जानने लगे हैं, पर अभी मेरा संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। अब मैं सैटर डे नाइट और इसक फिल्म के लिए भी गा रहा हूं। मुझे ऐसा लगता है कि मुंबई मेहनती और ईमानदार लोगों की कद्र करती है। मैं सभी से यही कहता हूं कि अगर आपको खुद पर विश्वास है और आप सच्ची लगन के साथ मेहनत करते हैं तो एक न एक दिन आपके सपने जरूर सच होंगे।
रतन