Move to Jagran APP

अच्छी कहानियों की कमी है टीवी में

पिछले 25-30 वर्षों में टीवी की दुनिया बहुत बदली है। कंपिटीशन बढ़ा है। इसका तकनीकी पक्ष सुधरा है मगर कंटेंट के स्तर पर गिरावट आ रही है। बहुचर्चित धारावाहिक 'हम लोगÓ से ऐक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले आसिफ शेख़्ा पिछले तीन दशक से बड़े-छोटे पर्दे पर सक्रिय हैं।

By Edited By: Published: Wed, 24 Dec 2014 03:32 PM (IST)Updated: Wed, 24 Dec 2014 03:32 PM (IST)
अच्छी कहानियों की कमी है टीवी में

पिछले 25-30 वर्षों में टीवी की दुनिया बहुत बदली है। कंपिटीशन बढा है। इसका तकनीकी पक्ष सुधरा है मगर कंटेंट के स्तर पर गिरावट आ रही है। बहुचर्चित धारावाहिक 'हम लोग से ऐक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले आसिफ शेख्ा पिछले तीन दशक से बडे-छोटे पर्दे पर सक्रिय हैं। इन वर्षों में क्या-क्या बदलाव आए हैं छोटे पर्दे पर और इस फील्ड में चुनौतियां कितनी बढी हैं, बता रहे हैं वह।

loksabha election banner

यह उस समय की बात है जब घरों में नया-नया टीवी आया था। वर्ष 1984 में धारावाहिक 'हम लोग आया। 158 एपिसोड वाला यह धारावाहिक आज भी लोगों के मन-मस्तिष्क पर अंकित है। इसमें एक किरदार था प्रिंस अजय सिंह का, जिसे निभाया था आसिफ शेख्ा ने। तब से अब तक छोटे-बडे पर्दे पर सैकडों किरदार निभा चुके हैं आसिफ। िफलहाल वह सोनी पल के नए धारावाहिक 'तुम साथ हो जब अपने में नज्ार आ रहे हैं। लगभग 30 वर्षों के ऐक्टिंग करियर में इन्होंने टीवी के साथ ही सिनेमा किया और थिएटर में लगातार सक्रिय रहे। इतने वर्षों में इडियट बॉक्स का चेहरा कितना बदला है, बता रहे हैं आसिफ।

बदला है छोटा पर्दा

'हम लोग शुरू हुआ था तो टीवी नया-नया आया था। मगर सभी लोग इसे देखते थे क्योंकि इसमें क्वॉलिटी थी। इसकी कहानी आम लोगों से जुडी थी। टीवी सिनेमाई दुनिया से अलग माध्यम है। पहले साप्ताहिक शोज्ा होते थे तो क्वॉलिटी बनी रहती थी। अब सोप ओपेरा का ज्ामाना है। एक ही व्यक्ति लगातार 25 दिन 12-12 घंटे काम करेगा तो वह क्वॉलिटी कहां से देगा। तेज्ा गति रचनात्मकता को प्रभावित करती है। टेक्निकल तौर पर टीवी आगे बढा है, लेकिन गुणवत्ता में वह बहुत पीछे है। इसके कंटेंट में लगातार गिरावट आ रही है।

क्या हैं मुश्किलें

टीवी में अच्छे लेखक नहीं आ रहे हैं, इसलिए कहानियां भी अच्छी नहीं आ रहीं। आधे घंटे का एपिसोड रोज्ा होता है, जिसे लगभग महीने भर चलाना होता है। ऐसे में रचनात्मकता प्रभावित होती है। कहानी में दम नहीं रह जाता। इसकी आत्मा मर जाती है और कलाकार थक जाता है। टीआरपी ज्य़ादा ग्रामीण इलाकों से आती है। धीरे-धीरे लोगों की पसंद बदलनी होगी। ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे, जो आम लोगों का संघर्ष दिखाएं।

कोशिशें जारी हैं

सकारात्मक बात यह है कि अच्छे धारावाहिक भी आ रहे हैं। मैं कई साल बाद टीवी शो 'तुम साथ हो जब अपने इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि इसकी कहानी ने मुझे छुआ। इसमें मैं ग्रे शेड की भूमिका निभा रहा हूं। यह टीनएज लडकी की कहानी है जो टेनिस प्लेयर बनना चाहती है, मगर उसकी राह में कई चुनौतियां आती हैं। कोई भी शख्स पूरी तरह विलेन नहीं होता। बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छाई होती है तो अच्छे शख्स में भी कुछ अवगुण होते हैं। मैं भी ऐसा ही किरदार निभा रहा हूं, जो थोडा दकियानूसी है, मगर उसे लगता है कि वह जो कर रहा है, वह सही है।

कलाकार का द्वंद्व

मैं फिल्में भी कर रहा हूं। अभी मेरी फिल्म '21 तोपों की सलामी रिलीज्ा हुई है। मुझे लगता है कि सिनेमा ज्य़ादा डिमांडिंग है और टीवी के साथ इसे करना मुश्किल होता है। फिर भी साल में दो फिल्में कर लेता हूं। मन के संतोष के लिए मुझे थिएटर भाता है। थिएटर ग्रुप 'इप्टा से जुडा हूं। कलाकार के कई द्वंद्व होते हैं। जटिल किरदार को करते हुए द्वंद्व बढ जाता है। कई दफा ऐसा हुआ है कि शॉट के लिए खडा हुआ और ऐक्टिंग नहीं कर सका। 7-8 दिन ऐसे ही निकल गए और लगा कि ऐक्टिंग कर ही नहीं पाऊंगा या बहुत बुरा कलाकार हूं। हर कलाकार को समझना होता है कि जटिलता किस स्तर की है, उसे भूमिका में डूबना है, फिर उससे ख्ाुद को अलग भी करना होता है। यह बडी मुश्किल प्रक्रिया होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.