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वक्त ने जीना सिखा दिया

ग्लैमर की दुनिया बाहर से जितनी खूबसूरत दिखती है, वास्तव में वैसी होती नहीं। वहां अपनी जगह बनाने के लिए लोगों को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार बात बनते-बनते बिगड़ जाती है। अभिनेता कुलदीप सरीन यहां बांट रहे हैं, अपने कुछ ऐसे ही अनुभव।

By Edited By: Published: Tue, 02 Jul 2013 02:32 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2013 02:32 PM (IST)
वक्त ने जीना सिखा दिया

सच कहा गया है कि वक्त हमें बहुत कुछ सिखा जाता है। हम उसी की अंगुली थामे कई ऊबड-खाबड रास्तों से गुजरते हैं। गिरते-संभलते हुए हमसे कई गलतियां भी होती हैं, पर हम उन्हीं से बहुत कुछ सीखते हैं। ग्वालियर से पढाई पूरी करने के बाद मैं अभिनय की दुनिया में जाने के लिए प्रयासरत था। तभी एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में एडमिशन के लिए मेरा चुनाव हो गया और मैं वहां से दिल्ली चला आया। इससे मेरे मन में यह उम्मीद जाग गई कि अभिनय की दुनिया में मैं भी आगे बढ सकता हूं। उन्हीं दिनों शेखर कपूर ने अपनी फिल्म बैंडिट क्वीन के लिए एनएसडी से कई कलाकारों को चुना। उस फिल्म के लिए मुझे भी चुना गया था, लेकिन मैंने वह फिल्म नहीं की। छोटे रोल करना मुझे पसंद नहीं था। इसीलिए मैंने काम करने से मना कर दिया। किसी बडी भूमिका के इंतजार में कई अछे प्रस्ताव ठुकराता रहा। इस तरह धीरे-धीरे अभिनय से दूर होता गया।

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वह मुश्किल दौर

एनएसडी से अपना कोर्स कंप्लीट करने के बाद मैं दिल्ली से मुंबई आ गया। वह मेरे जीवन का बेहद मुश्किल दौर था। निर्देशक मुझे कहते कि फिल्मी दुनिया में बडे अभिनेताओं को भी करियर के शुरुआती दिनों में छोटी भूमिकाएं निभानी पडती हैं, लेकिन मुझे इस बात में यकीन नहीं था। मेरे सामने इसके कई उदाहरण थे। मेरे साथ के इरफान खान ने तमाम फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में छोटी भूमिकाएं कीं, पर उनसे उनकी कोई पहचान नहीं बनी। वह अछे अभिनेता तो तब भी थे, लेकिन उन्हें कोई नहीं जानता था। सत्रह साल बाद तिग्मांशु धूलिया की फिल्म हासिल में इरफान को विलेन का बडा सा रोल मिला। फिल्म अछी चली, उनका अभिनय भी जानदार था। उस फिल्म के बाद वे लोगों की नजरों में आ गए और दुनिया उन्हें इरफान खान के रूप में जानने लगी।

अपनों ने दिखाया रास्ता

जब हम किसी मुश्किल में घिरे होते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि काश! इस वक्त कोई अपना हमारे साथ होता। ऐसे ही वक्त में मुझे मेरे सीनियर पंकज कपूर और ओम पुरी मिले। जब बात चली तो उन दोनों ने मुझसे कहा, तुम ऐक्टर अछे हो, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन बहुत जरूरी है कि तुम परदे पर लोगों को दिखाई देते रहो। अपने शुरुआती दौर में हमें किसी फिल्म में बडा रोल मिलता था तो खुश होते थे, लेकिन जब फिल्म देखते तो उसमें हम एक-दो सीन में ही नजर आते। मेरी बात मानो, जो भी काम मिलता है, उसे जरूर करो। चाहे वह एक ही सीन का रोल क्यों न हो। जब तुम दिखोगे तभी तो तुम्हारा काम फिल्ममेकर्स की नजरों में आएगा। बॉलीवुड में जो दिखता है, वही बिकता है।

लोग जानने लगे हैं मुझे

मैंने अब सोच लिया था कि जो भी काम मिलेगा, करूंगा। मेरे परिचितों की कमी नहीं थी मुंबई में। मुझे काम मिलने लगा। भले ही वे छोटे रोल थे, लेकिन इसका फायदा यह हुआ कि धीरे-धीरे मैं आर्थिक परेशानियों से मुक्त होने लगा। मैं लगभग पचास फिल्मों में काम कर चुका हूं। टीवी सीरियल क्राइम पेट्रोल में इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर की भूमिका निभा रहा हूं। ऐड फिल्में भी करता हूं। आजकल सुभाष घई की फिल्म कांची की शूटिंग में व्यस्त हूं। सच कहूं, तो वक्त ने मुझे जीना सिखा दिया है।

रतन


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