क्यों झूठ बोलते हैं बच्चे
अपनों का बुरा व्यवहार व्यक्ति को मनोरोगी बना सकता है। यहां एक ऐसी ही समस्या को कैसे सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद।
जब मैं पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग के लिए अपने 8 वर्षीय बेटे के स्कूल गई तो मुझे मालूम हुआ कि मैथ्स के क्लास टेस्ट में वह फेल हो गया है। उसे घर पर दिखाने के लिए टेस्ट-पेपर दिया गया था पर उसने मुझसे कहा कि पिछले सप्ताह मैम छुट्टी पर थीं, इसलिए मैथ्स का टेस्ट नहीं हो पाया। इससे पहले भी वह मुझसे कई बार झूठ बोल चुका है। मैं जानना चाहती हूं कि वह ऐसा क्यों करता है?
पल्लवी जैन, भोपाल
बच्चों की ऐसी आदतों के लिए कहीं न कहीं उनके पेरेंट्स ही जिम्मेदार होते हैं। जब वह अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो उसके मन में यह डर बना रहता है कि अगर यह बात मम्मी-पापा को मालूम हो गई तो वे मुझसे बहुत नाराज होंगे। फिर सजा और डांट से बचने के लिए बच्चे झूठ बोलते हैं। ज्यादातर परिवारों में गुड ब्वॉय या गुड गर्ल के लिए कुछ खास तरह के मानक निर्धारित किए जाते हैं। मसलन परीक्षा में हमेशा 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक लाना, अपनी चीजें व्यवस्थित रखना और पेरेंट्स की हर बात मानना आदि। जो ब'चे किसी वजह से ऐसा नहीं कर पाते, उन्हें अयोग्य और असफल करार दिया जाता है। ऐसे ब'चे बडों की प्रशंसा, शाबाशी और पुरस्कार से वंचित रखे जाते हैं। केवल अपने परिवार में ही नहीं, बल्कि स्कूल और समाज में भी उन्हें निरंतर तिरस्कार झेलना पडता है। पेरेंट्स कभी भी बच्चों की इस समस्या को गहराई से समझने की कोशिश नहीं करते कि आखिर उनका बच्चा झूठ बोलने पर मजबूर क्यों होता है? आज कडी प्रतियोगिता के इस दौर में ब'चे खुद को रिजेक्ट किए जाने के भय से त्रस्त हैं। उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि अगर वे परीक्षा में अ'छे अंक नहीं लाएंगे तो क्लास में दूसरे ब'चे और टीचर्स उनका मजाक उडाएंगे। घर में भी डांट पडेगी। ऐसे में अगर किसी वजह से ब'चे को अ'छे माक्र्स नहीं आते तो अपमानित होने के भय से उसे मजबूरन झूठ का सहारा लेना पडता है। अगर हम अपने ब'चे को झूठ बोलने की आदत से बचाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसकी कमियों को देखना, समझना और स्वीकारना जरूरी है। यहां मूल समस्या यह है कि आज के पेरेंट्स हार को स्वीकारना नहीं चाहते और उन्हें देखकर उनके ब'चे भी यही सीखते हैं। चाहे खेल हो या पढाई, बच्चों को उसकी प्रक्रिया में जरा भी दिलचस्पी नहीं होती, वे सिर्फ अ'छा रिजल्ट चाहते हैं।
ऐसे में पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों के मन में कार्यों के प्रति स्वाभाविक दिलचस्पी पैदा करें। उन्हें नंबर लाने के बजाय सीखने को प्रेरित करें। उनके हर अ'छे प्रयास की प्रशंसा करें। उन्हें जीत की तरह, हार को भी सहजता से स्वीकारना सिखाएं। अपने ब"ो को उसकी खूबियों और खामियों के साथ स्वीकारें। उससे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं न रखें। अगर कभी उससे कोई गलती हो भी जाए तो उसे डांटने के बजाय प्यार से समझाएं। आपके इन प्रयासों से धीरे-धीरे उसकी यह आदत अपने आप छूट जाएगी।
पेरेंटिंग टिप्स
-अगर आपका बच्चा झूठ बोल रहा हो तब भी उसकी पूरी बात ध्यान से सुनें। फिर उसे डांटने के बजाय प्यार से सच्चाई जानने की कोशिश करें।
- अगर वह अपनी गलती स्वीकारता है तो उसे कभी न डांटें, इससे वह यही समझेगा कि सच बोलने से डांट पडती है तो वह झूठ बोलना शुरू कर देगा।
-उसे समझाएं कि अगर तुम इसी तरह झूठ बोलते रहे तो लोग तुम पर भरोसा करना छोड देंगे।
-उसके मन में अपने प्रति सच्चा विश्वास पैदा करें और उसे समझाएं कि गलती हर इंसान से होती है, पर उसे छिपाना या झूठ बोलना उससे भी ज्यादा बडी गलती है।
-अगर कभी आपसे भी कोई गलती हो जाए तो उसे बच्चों के समाने स्वीकारने में संकोच न बरतें।
गगनदीप कौर