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हम होंगे जिम्मेदार

बच्चे हैं सीख जाएंगे। जब भी बच्चों को जिम्मेदार बनाने की बात आती है तो पेरेंट्स का यही रवैया होता है, पर ऐसा सोचना गलत है। बच्चों में अच्छी आदतों की शुरुआत हमेशा छोटी उम्र से ही होनी चाहिए।

By Edited By: Published: Fri, 29 Apr 2016 04:14 PM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2016 04:14 PM (IST)
हम होंगे जिम्मेदार

बच्चों की अच्छी परवरिश को ज्यादातर पेरेंट्स उनकी पढाई और एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टिविटीज में मिलने वाले पुरस्कारों से जोडकर देखते हैं, पर उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए केवल इतना ही काफी नहीं है। उन्हें जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है। जिम्मेदारी इंसानी खूबियों का एक ऐसा अहम हिस्सा है, जिसकी बुनियाद छोटी उम्र में ही पड जानी चाहिए।

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क्यों है जरूरी

आपने कुछ ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो अपना हर कार्य पूरे परफेक्शन के साथ सही समय पर पूरा करते हैं। उनके हर निर्णय में समझदारी नजर आती है। इसके विपरीत कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो हमेशा अव्यवस्थित और परेशान रहते हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा अब तक किए गए अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि जिन्हें छोटी उम्र से ही जिम्मेदारी की सीख दी जाती है, बडे होने के बाद उन्हें व्यवस्थित और वक्त का पाबंद होने में कोई कठिनाई नहीं होती क्योंकि बचपन से ही ये बातें उनकी आदतों में शुमार होती हैं। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास करने की ज्ारूरत नहीं होती। जिम्मेदार लोग अपने सभी पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को भी बेहतर ढंग से निभाने में सक्षम होते हैं। इसके विपरीत जिनकी परवरिश बेहद संरक्षण भरे माहौल में होती है, ऐसा लोगों मेंआत्मविश्वास की कमी होती है और वे कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते।

मौका खुद निर्णय लेने का

बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए सबसे जरूरी यह है कि छोटी उम्र से ही उन्हें खुद निर्णय लेना सिखाया जाए। इसका सबसे आसान तरीका यह है कि बच्चे के सामने दो विकल्प रखकर उससे किसी एक का चुनाव करने को कहें। मसलन आप उससे पूछें कि तुम्हें चॉकलेट चाहिए या आइसक्रीम? तुम होमवर्क अभी पूरा करोगे या शाम को? शॉपिंग के लिए उसे भी अपने साथ ले जाएं और उसे अपनी जरूरत से जुडी चीजें खुद ही चुनने दें। हो सकता है कि बाद में उसका कोई एक निर्णय गलत साबित हो, पर इससे चिंतित न हों, बल्कि उसे खुद अपनी गलतियों से सीखने का मौका दें।

शुरुआत खेल-खेल में

दो-ढाई साल की उम्र में आमतौर पर बच्चे बडों के निर्देशों को समझना शुरू कर देते हैं। उन्हें जिम्मेदारी सिखाने की कोशिश इसी उम्र से शुरू कर देनी चाहिए। खेलने के बाद उनसे कहें कि वे अपने सभी खिलौने समेट कर अपने टॉय बास्केट में रखें। इतनी छोटी उम्र के बच्चों को सिखाने का तरीका भी रोचक होना चाहिए। खिलौने समेटने की प्रक्रिया को भी खेल का ही एक हिस्सा बना दें। खुद अपने इस निर्देश को गाने की तरह गाते हुए उसके साथ मिलकर खिलौनों को एक-एक करके बास्केट में रखें। आपको देखकर वह भी बडे उत्साह के साथ अपने खिलौने समेटने की कोशिश करेगा। रोजाना यही प्रक्रिया दोहराएं। इससे कुछ ही दिनों में वह अपनी चीजें सही जगह पर रखना सीख जाएगा। इसी तरह रोजाना रात को सोने से पहले आप उसे अपने साथ वॉश बेसिन के सामने ले जाएं। उसके हाथों में टूथब्रश पकडाकर उससे खुद अपने दांत साफ करने को कहें। कुछ पेरेंट्स सिर्फ इसी वजह से बच्चों को खुद खाने से रोकते हैं कि उनके हाथों से खाना गिर जाता है। ऐसा कभी न करें। बच्चे को अपने साथ बिठा कर उससे खुद खाने को कहें। इसी तरह चार से पांच साल की उम्र के बाद बच्चों को अपने शूज, स्कूल बैग और किताबें सही जगह पर रखना सिखाएं। ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के जरिये धीरे-धीरे वह व्यवस्थित होना सीख जाएगा। अगर संभव हो तो अपनी किचन के फ्लोर पर ही एक छोटा सा शेल्फ बनवाएं। उस पर बच्चे के लिए अनब्रेकेबल फाइबर से बने ग्लास, कप और प्लेट जैसी चीजें रखें, ताकि वह खुद अपनी जरूरत की चीजें वहां से उठा सके। इससे उसे भी बहुत अच्छा महसूस होगा कि वह अपने काम खुद कर सकता है। उसकी पढाई और होमवर्क का एक निश्चित समय निर्धारित करें। इस बात का ध्यान रखें कि वह अपना हर कार्य सही समय पर पूरा करे।

उम्र के अनुकूल जिम्मेदारियां

छोटी उम्र के बच्चों को बहलाकर खेल-खेल में बहुत कुछ सिखाया जा सकता है, लेकिन दस साल की उम्र के बाद बच्चों को दोस्तों का साथ ज्यादा पसंद आता है। ऐसे में वे घर और घरेलू कार्यों से दूर भागने की कोशिश करते हैं। इससे आप परेशान न हों, बल्कि उम्र के हिसाब से उनकी जिम्मेदारियां निर्धारित करें। मसलन उससे कहें कि वह अपने स्टडी टेबल की सफाई खुद ही करे।

इसी तरह टीनएज में पहुंचने के बाद बच्चों की प्राथमिकताएं और जरूरतें बदलने लगती हैंं। इसलिए अपने बच्चे को प्रतिमाह नियमित रूप से पॉकेटमनी देना शुरू करें। इससे उसे जिम्मेदारी का एहसास होगा और वह सोच-समझकर पैसे खर्च करना सीखेगा। अगर घर में उसका कोई छोटा भाई या बहन है तो उसे समझाएं कि खुद से छोटों का ध्यान रखना भी उसकी जिम्मेदारी है।

ज्ारूरत सजग प्रयास की

इस उम्र के बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि पानी और बिजली जैसे आवश्यक संसाधनों की बर्बादी अनुचित है। बच्चे को यह जिम्मेदारी सौंपें कि वह घर के हर कमरे में जाकर देखे कि कहीं कोई विद्युत उपकरण फालतू तो नहीं चल रहा, अगर ऐसा है तो वह तत्काल उसका स्विच ऑफ कर दे। केवल अपने घर में ही नहीं, बल्कि उसे सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता का भी ध्यान रखने के लिए प्रेरित करें। उम्र के इस नाजुक दौर में उसे खुद के प्रति भी जिम्मेदार होना सिखाएं, ताकि अपनी पढाई के साथ वह सेहत का भी पूरा ध्यान रखे। आपके इस सजग प्रयास से वह निश्चित रूप से जिम्मेदार बनेगा। अंत में सबसे जरूरी बात, बच्चे आखिर बच्चे ही होते हैं। उनसे सब कुछ बहुत जल्द सीख लेने की उम्मीद न रखें। अच्छी परवरिश के लिए पेरेंट्स के पास धैर्य होना बेहद जरूरी है।

यह भी न भूलें

बच्चे बडों का ही अनुसरण करते हैं। इसलिए आपके रोजमर्रा के व्यवहार में भी परिवार के प्रति जिम्मेदारी की भावना झलकनी चाहिए।

बच्चे को कोई भी जिम्मेदारी सौंपते समय उसकी उम्र और क्षमता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

उसे कोई भी ऐसा घरेलू कार्य न सौंपें, जिससे उसे चोट लगने का खतरा हो।

अपने घर में पौधे लगाएं और बच्चे को जिम्मेदारी दें कि वह रोजाना उनमें पानी दे।

अगर संभव हो तो अपने घर में कोई एक पालतू जानवर रखें। पेट्स का साथ बच्चों को केयरिंग और जिम्मेदार बनाने में बहुत मददगार होता है।

उसके हर अच्छे प्रयास की प्रशंसा करें।

विनीता

(चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार से बातचीत पर आधारित )


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