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श्रीहरि को प्रिय है माघ मास

व्रत, पर्व और उत्सव हमारी लौकिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के सशक्त माध्यम हैं। स्नान-दान, पूजन-हवन, जप और ध्यान जैसे कार्य भी एक प्रकार के व्रत हैं। सनातन संस्कृति में प्रत्येक मास एक विशेष धार्मिक कृत्य से जुड़ा हुआ है। इसी तरह माघ मास का भी विशेष महत्व है।

By Edited By: Published: Tue, 10 Jan 2017 04:18 PM (IST)Updated: Tue, 10 Jan 2017 04:18 PM (IST)
श्रीहरि को प्रिय है माघ मास
व्रत, पर्व और उत्सव हमारी लौकिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के सशक्त माध्यम हैं। स्नान-दान, पूजन-हवन, जप और ध्यान जैसे कार्य भी एक प्रकार के व्रत हैं। सनातन संस्कृति में प्रत्येक मास एक विशेष धार्मिक कृत्य से जुडा हुआ है। इसी तरह माघ मास का भी विशेष महत्व है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इसका नाम माघ पडा। माघ मास में स्नान का प्रारंभ पौष मास की पूर्णिमा से शुरू हो जाता है। इस दौरान प्रयागराज में स्नान-दान, भगवान विष्णु के पूजन और हरिकीर्तन का विशेष महत्व है। दान की महत्ता रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसका अद्भुत वर्णन किया है, पद्य पुराण के उत्तराखण्ड में माघ स्नान का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस मास की पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवत्र्त पुराण का दान करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है-माघ मास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। इस मास में उत्तम व्रत का पालन करते हुए प्रयाग में स्नान-दान और भगवान श्रीकृष्ण के पूजन को विशेष शुभ फलदायी माना गया है। इसी महीने में मकर संक्रांति के दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। उस दिन प्रात:काल अपने हाथों में तिल, जल, पुष्प और कुश लेकर भगवान मधुसूदन (श्रीकृष्ण) से अपने समस्त दुखों के विनाश के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। माघ-स्नान से आयु, धन और पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस महीने में कडाके की सर्दी पडती है। माघ के महीने में नियम-संयम करने वाले लोग ठंड की परवाह किए बगैर इलाहाबाद में संगम के तट पर छोटी सी कुटिया बनाकर महीने भर कल्प वास करते हैं। इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है लेकिन कल्पवास के पुण्य फल की प्राप्ति के लिए मन की शुद्धि अनिवार्य है। मौसम में उपलब्ध फलों के अलावा घी, तिल-चावल, कुम्हडा और खिचडी के दान की भी परंपरा है। इसके अलावा लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार ठंड दूर करने वाली सभी वस्तुएं जैसे-कंबल, लकडी, ऊनी वस्त्र और भोजन का दान करना चाहिए, ताकि हमारे आसपास रहने वाले किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को ठंड की वजह से कोई कष्ट न हो। प्रचलित कथा पद्मपुराण की एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा तट पर सुव्रत नामक एक ब्राह्मण निवास करते थे, जो समस्त वेद-पुराणों और शास्त्रों के ज्ञाता थे लेकिन उन्होंने अपनी विद्याओं का उपयोग परमार्थ के बजाय धनोपार्जन में किया। वृद्धावस्था में पहुंचने के बाद उनके मन में यह विचार आया कि मैंने अपना सारा जीवन धन कमाने में गंवा दिया और कोई सत्कर्म नहीं किया। अब मेरा उद्धार कैसे होगा? इस प्रकार वे पश्चाताप की अग्नि में जलते रहे। इसी व्याकुल अवस्था में वे अपने जर्जर शरीर से उद्धार का उपाय सोच रहे थे कि उन्हें किसी श्लोक का आधा हिस्सा स्मरण में आया, जिसका अर्थ था कि माघ मास में किसी भी नदी में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। उसी समय उन्होंने माघ-स्नान का संकल्प लिया और नर्मदा तट पर प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करने लगे। इस सत्कर्म के फलस्वरूप मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई। इस प्रकार माघ मास में स्नान की अपूर्व महिमा है। इसकी प्रत्येक तिथि पुण्यदायी है। कोई व्यक्ति यदि पूरे मास स्नान-दान के नियमों का पालन न कर पाए तो शास्त्रों में यह भी कहा गया है वह केवल तीन या एक दिन माघ-स्नान व्रत का पालन करे। ऐसा करने वाले लोग अनंत पुण्य के भागी बनते हैं। कुश के आसन को पवित्र क्यों माना जाता हैं? धार्मिक अनुष्ठानों में कुश नामक घास से निर्मित आसन बिछाया जाता है ताकि पूजा-पाठ आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के भीतर जमा आध्यात्मिक शक्ति-पुंज का संचय पृथ्वी में न समा जाए। कुश का आसन विद्युत के कुचालक का कार्य करता है। इससे शरीर में मौजूद विद्युत प्रवाह पैरों के माध्यम से बाहर नहीं निकल पाता। कुश से बने आसन पर बैठकर जाप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। वेदों के अनुसार कुश दूषित वातावरण को भी पवित्र बना देता है। कर्म-कांड विधि से की जाने वाली पूजा में कुश की अंगूठी अनामिका उंगली में पहनने का विधान है क्योंकि इसी उंगली के मूल में सूर्य का स्थान होता है, जिससे हमें तेज और यश प्राप्त होता है और इसी सकारात्मक ऊर्जा को सुरक्षित रखने के लिए पूजा के दौरान लोग अनामिका में कुश की अंगूठी पहनते हैं।

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