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स्कूल से क्यों घबराते हैं बच्चे

शुरुआती दिनों में स्कूल जाते समय बच्चे का रोना स्वाभाविक है, लेकिन अगर वह अकसर स्कूल जाने से मना करे तो इसे गंभीरता से लें क्योंकि यह स्कूल रिफ्यूज़ल की भी समस्या हो सकती है। मम्मा आज स्कूल नहीं जाऊंगा, पेट में दर्द है, मुझे दूध भी नहीं पीना, थोड़ा

By Edited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 03:11 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 03:11 PM (IST)
स्कूल से क्यों घबराते हैं बच्चे

शुरुआती दिनों में स्कूल जाते समय बच्चे का रोना स्वाभाविक है, लेकिन अगर वह अकसर स्कूल जाने से मना करे तो इसे गंभीरता से लें क्योंकि यह स्कूल रिफ्यूजल की भी समस्या हो सकती है।

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मम्मा आज स्कूल नहीं जाऊंगा, पेट में दर्द है, मुझे दूध भी नहीं पीना, थोडा और सोने दो न प्लीज...।

जिन घरों में छोटे बच्चे होते हैं, वहां सुबह के वक्त अकसर यही नजारा होता है। नए एडमिशन के बाद शुरुआती एक-दो हफ्तों तक बच्चों का रोना-मचलना स्वाभाविक है, लेकिन बच्चे अकसर ऐसी हरकतें करते हों तो इस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है क्योंकि उनकी यह आदत स्कूल रिफ्यूजल की मनोवैज्ञानिक समस्या भी हो सकती है।

क्या है समस्या

मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि चार से आठ साल की आयु वर्ग वाले बच्चों में यह समस्या सबसे ज्य़ादा नजर आती है। इस उम्र के बच्चों को जब कोई बात नापसंद होती है तो वे रो-चिल्लाकर उसके प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते हैं। कुछ बच्चे जन्मजात रूप से ही बेहद जिद्दी होते हैं, उन्हें अनुशासन के नियमों में बंध कर रहना रास नहीं आता है। इसी वजह से वे बडों की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं होते। शुरुआत से ही थोडी सख्ती के साथ बच्चे के ऐसे व्यवहार को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। कई बच्चे सिर या पेट में दर्द, उल्टी या जी घबराने की शिकायत भी करते हैं। कई बार वे झूठ बोलकर स्कूल न जाने का बहाना बना रहे होते हैं तो कभी-कभी उन्हें सचमुच दर्द, बुख्ाार या उल्टी जैसी समस्याएं होने लगती हैं।

दरअसल यह पूरी तरह मनोवैज्ञानिक समस्या है। जब बच्चे का मन किसी भी हाल में स्कूल जाने को तैयार नहीं होता तो मन का साथ देने के लिए उसके शरीर में अपने आप पेटदर्द, सिरदर्द, उल्टी और बुख्ाार जैसे कन्वजर्न डिसॉर्डर के लक्षण पैदा होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे का मानसिक तनाव शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट होने लगता है। आपने भी इस बात को नोटिस किया होगा कि सुबह स्कूल जाते वक्त कुछ बच्चों को लूज मोशन या वोमिटिंग जैसी समस्याएं होने लगती है, उनके शरीर का तापमान बढ जाता है, लेकिन जैसे ही पेरेंट्स उन्हें स्कूल न भेजने का निर्णय लेते हैं तो थोडी ही देर में ये सारे लक्षण जादुई ढंग से अपने आप गायब हो जाते हैं। बच्चे को देखकर यह यकीन कर पाना मुश्किल होता है कि थोडी देर पहले इसकी तबीयत ख्ाराब थी। इसलिए अगर बच्चे को ऐसी कोई भी समस्या हो तो उसे डांटने-फटकारने के बजाय परेशानी की असली वजह जानने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे जानबूझ कर ऐसा नहीं करते बल्कि उनके अवचेतन मन की सक्रियता की वजह से उनका शरीर अपने आप ही कुछ बीमारियों के लक्षण पैदा कर लेता है।

स्कूल से छुट्टी क्यों

स्कूल में दोस्तों, टीचर्स या केयर टेकर के साथ एडजस्टमेंट न हो पाना आदि इस समस्या की ख्ाास वजहें हैं। कुछ पेंरेंट्स अपने बच्चों को लेकर बहुत ज्य़ादा चिंतित रहते हैं। इससे उनमें भी सेपरेशन एंग्जायटी के लक्षण विकसित हो जाते हैं और वे स्कूल जाना पसंद नहीं करते।

अगर किसी बीमारी की वजह से बच्चे को लंबे समय तक स्कूल से छुट्टी लेनी पडती है तो उसे हमेशा घर पर रहने की आदत पड जाती है। कई बार दोस्तों का बुरा व्यवहार भी बच्चे को स्कूल जाने से रोकता है। दिल्ली की नेहा गर्ग प्ले स्कूल जाने वाले चार वर्षीय बच्चे की मां हैं। वह बताती हैं, 'मेरा बेटा आशु बहुत ख्ाुश होकर स्कूल जाता था, पर मैंने यह नोटिस किया कि पिछले कुछ दिनों से सुबह जब भी मैं उसे तैयार करा रही होती तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर स्कूल जाने से मना करता था। अगर मैं उसे बहला कर भेजने की कोशिश करती तो वह बुरी तरह रोने लगता और स्कूल न जाने की कोई वजह भी नहीं बताता था। मुझे ऐसा लग रहा था कि जरूर उसे स्कूल के माहौल से कोई समस्या है। एक रोज रात को सोने से पहले मैं उसे अपने बचपन की बातें बता रही थी। मैंने जानबूझ कर उसके सामने अपने एक शरारती दोस्त का जिक्र किया, जो अकसर दूसरे बच्चों को धक्का देकर गिरा देता था। यह सुनते ही मेरे बेटे की आंखें चमक उठीं और वह कहने लगा, जानती हैं मम्मा, मेरी बगल वाली सीट पर बैठने वाला हर्ष भी मुझसे मेरी चीजें छीन लेता है और वापस मांगने पर मारता है। यह सुनते ही मुझे असली समस्या का अंदाजा हो गया। फिर पेरेंट्स टीचर मीटिंग में मैंने उसकी क्लास टीचर से बात की, तब जाकर मेरे बेटे की समस्या का समाधान हुआ।

कैसे होगी दोस्ती

लंबे समय तक स्कूल से नाराजगी बच्चे के लिए बहुत नुकसानदेह हो सकती है। इसलिए अगर सुबह के वक्त उसे बुख्ाार, पेटदर्द या उल्टी जैसी समस्या हो तो एक दिन के लिए बेशक उसे स्कूल न भेजें, पर उसे खेलने या टीवी देखने की भी इजाजत न दें। एक-दो बार यही तरीका अपनाने से धीरे-धीरे उसकी यह आदत अपने आप छूट जाएगी।

कन्वजर्न डिसॉर्डर की स्थिति में बच्चे का शरीर हर बार अलग बीमारियों के लक्षण प्रकट कर रहा होता है। ऐसे में पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे इन लक्षणों को सही ढंग से पहचान कर उन्हें दूर करने की कोशिश करें। कई बार पेरेंट्स अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते, ऐसी स्थिति में माता-पिता का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भी बच्चे ऐसी हरकतें करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चे के साथ प्यार भरी बातें करने और खेलने के लिए नियमित रूप से समय निकालें।

बेहतर तो यही होगा कि एडमिशन के एक-दो महीने पहले से ही बच्चे को स्कूल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार करें। सुबह स्कूल जाते हुए बच्चों को दिखाकर उसे समझाएं कि कुछ दिनों बाद तुम भी इसी तरह नया स्कूल बैग और वॉटर बॉटल लेकर स्कूल जाओगे। जहां तुम्हारे साथ खेलने के लिए ढेर सारे दोस्त होंगे, नई बुक्स मिलेंगी और टीचर्स तुम्हें बहुत प्यार करेंगी। अगर संभव हो तो एडमिशन से पहले भी एक-दो बार उसे यूं ही स्कूल दिखाने जरूर ले जाएं। इससे उसका डर दूर हो जाएगा और वहां के नए माहौल से उसेे कोई परेशानी नहीं होगी। जैसे बच्चे को ओवर प्रोटेक्शन देना गलत है, उसी तरह ज्य़ादा सख्ती से भी बात बिगड सकती है। इसलिए अगर बच्चे के साथ संतुलित व्यवहार रखते हुए उसे अनुशासित किया जाए तो उसकी इस आदत को आसानी से सुधारा जा सकता है। कुछ जरूरी बातें

अगर आपके बच्चे के साथ भी ऐसी ही समस्या है तो उसे दूर करने के लिए इन सुझावों पर अमल जरूर करें :

- अगर स्कूल जाते वक्त बच्चे को बुख्ाार या उल्टी जैसी समस्या हो तो किसी चाइल्ड स्पेशलिस्ट से उसका कंप्लीट हेल्थ चेकअप कराएं। इससे उसे यह मालूम हो जाएगा कि वाकई उसके शारीरिक स्वास्थ्य में गडबडी है या उसे कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है।

- अगर बच्चे को शारीरिक रूप से कोई परेशानी न हो तो उसे किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार के पास काउंसलिंग के लिए ले जाएं, ताकि स्कूल रिफ्यूजल की समस्या का सही समाधान ढूंढा जा सके। काउंसलिंग के बाद दो-तीन महीने में यह समस्या आसानी से दूर हो जाती है।

- अगर दोस्तों, टीचर या स्कूल के किसी केयर टेकर की वजह से बच्चे को कोई परेशानी हो तो इस बारे में उसकी क्लास टीचर से खुलकर बात करें और उनके साथ मिलकर इस समस्या का हल ढूंढने की कोशिश करें।

- शाम को फुर्सत के पलों में बच्चे से उसके स्कूल की एक्टिविटीज, गेम्स और दोस्तों के बारे में बातचीत करें।

- उसके साथ अपने स्कूल के दिनों की रोचक यादें शेयर करें। इससे वह भी निडर होकर आपके साथ अपने दिल की सारी बातें शेयर करेगा।

- अगर बच्चा स्कूल जाने से मना करे तो उसे प्रेरित करने के लिए कभी-कभी उसे उसकी मनपसंद चॉकलेट या टॉयज दे सकती हैं, पर ध्यान रहे कि ये चीजें उसे स्कूल से लौटने के बाद दी जाएं और हमेशा ऐसे प्रलोभन देना ठीक नहीं है।

- बच्चे को अपनी बारी का इंतजार और शेयरिंग जरूर सिखाएं, ताकि वह स्कूल के नए माहौल में दोस्तों के साथ आसानी से एडजस्ट कर सके।

विनीता

(यूनीक साइकोलॉजिकल सर्विसेज की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट गगनदीप कौर से बातचीत पर आधारित)


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