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सखी इनबॉक्स

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं और इसका मार्गदर्शन पाकर अब मैं भी लेखिका बन चुकी हूं। पत्रिका की रोचक भाषा-शैली मुझे हमेशा से प्रभावित करती रही है। सखी पढऩे के बाद मैं भी मौलिक लेखन के लिए प्रेरित हुई और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए अपनी रचनाएं भेजने लगी। यह

By Edited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 03:27 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 03:27 PM (IST)
सखी इनबॉक्स

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं और इसका मार्गदर्शन पाकर अब मैं भी लेखिका बन चुकी हूं। पत्रिका की रोचक भाषा-शैली मुझे हमेशा से प्रभावित करती रही है। सखी पढऩे के बाद मैं भी मौलिक लेखन के लिए प्रेरित हुई और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए अपनी रचनाएं भेजने लगी। यह बताते हुए मुझे बेहद ख्ाुशी हो रही है कि अब विभिन्न पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं छपने भी लगी हैं। मेरी इस कामयाबी का सारा श्रेयं सखी को जाता है। थैंक्यू सखी।

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रुचि चौरसिया बरेली

नए साल की शुरुआत में सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण सखी का जनवरी अंक अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की वजह से संग्रहणीय बन पडा था। घरेलू कार्यों की व्यस्तता की वजह से मैं अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पा रही थी, ऐसे में लेख 'रखें अपना ख्ायाल पढऩे के बाद मैंने यह तय कर लिया कि अब मैं साल में एक बार अपना रुटीन हेल्थ चेकअप जरूर करवाऊंगी। स्थायी स्तंभ भी बेहद रोचक थे।

रंजना पांडे, हरिद्वार

सखी का जनवरी अंक मेरे लिए नए साल का बेहतरीन उपहार साबित हुआ। कवर स्टोरी 'छोटी सी आशा ने मेरे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। लेख 'फन और फिटनेस की जुगलबंदी पढकर बहुत अच्छी जानकारी मिली। 'घर की थाली में दी गई रेसिपीज भी लाजवाब थीं। 'टिप्स ऑफ द मंथ के माध्यम से सर्दियों में त्वचा की देखभाल के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी गई थी।

स्नेहा गौड, रोहतक

सखी के जनवरी अंक की जितनी भी प्रश्ंासा की जाए, वह कम है। इसकी वैविध्यपूर्ण रचनाएं मेरे पूरे परिवार के लिए बहुत उपयोगी साबित हुईं। 'आस्था और 'अध्यात्म मेरी सासू मां को बेहद पसंद आया। मेरी टीनएजर बिटिया को 'विंटर मेकअप ने ख्ाुश कर दिया। 'हेल्थ वॉच मेरे पतिदेव का प्रिय कॉलम है। उसमें दी गई जानकारियां उपयोगी होती हैं। पत्रिका के जनवरी अंक में 'जायका के अंतर्गत प्रकाशित सर्दियों की हेल्दी रेसिपीज लाजवाब थीं।

मृदुला जैन, कोटा

मैं एमबीए की स्टूडेंट हूं। मेरे घर में नियमित रूप से सखी आती है और मैं भी इसकी नियमित पाठिका हूं। पत्रिका का जनवरी अंक हमेशा की तरह लाजवाब था। 'एक्सेसरीज कॉर्नर में हेड गियर्स के बारे में दी गई जानकारियां मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुईं। इलियाना डी क्रूज मेरी प्रिय अभिनेत्री हैं और उनका इंटरव्यू मुझे ख्ाास तौर से पसंद आया। 'फिल्म ऐसे बनी के अंतर्गत 'दिलवाले की मेकिंग के बारे में जानना एक दिलचस्प अनुभव था।

प्रियंका सिंह, दिल्ली

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं। पत्रिका के जनवरी अंक में आकर्षक साज-सज्जा और उत्कृष्ट रचनाओं का बहुत सुंदर समन्वय देखने को मिला। लेख 'ख्ाूबसूरत हो आपकी जिंदगी में दी गई सलाह ने मेरी आंखें खोल दीं। अब तक मैं केवल अपने परिवार का ही ख्ायाल रखती थी, पर यह लेख पढऩे के बाद अपनी व्यस्त दिनचर्या में से अपने लिए भी थोडा वक्त जरूर निकालती हूं। लेख 'इन 23 आदतों से दूर रहें में दिए गए सुझावों पर सभी को अमल करना चाहिए।

आभा सिन्हा, पटना

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं। पत्रिका का जनवरी अंक मुझे ख्ाास तौर पर पसंद आया। मेरे पति को भी यह पत्रिका बेहद पसंद है। उन्हें बिना सोचे-समझे ख्ार्च करने की आदत है। इस वजह से कई बार उन्हें नुकसान उठाना पडता है। लेख 'छोटी बचत बडी शुरुआत पढऩे के बाद वह अपनी इस आदत में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेख 'सर्दियों में बैलकनी रहे हरी-भरी में दी गईं जानकारियां मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुईं। हमेशा की तरह 'मिसाल भी प्रेरक था। 'बदलें डिश का फ्लेवर पढऩे के बाद अब मैं हर डिश को नए अंदाज में सर्व करती हूं। 'बहानेबाज कैसे-कैसे ने हंसने पर मजबूर कर दिया।

नम्रता मिश्रा, लखनऊ

मैं सखी की बुजुर्ग पाठिका हूं। जब मेरे बेटे-बहू दोनों ऑफिस चले जाते हैं तो ऐसे में यह पत्रिका ही मेरा साथ निभाती है। सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण इसकी रचनाएं मुझे पल भर के लिए भी उदास नहीं होने देतीं। पत्रिका का जनवरी अंक भी शानदार था। 'अध्यात्म हमेशा की तरह प्रेरक था। 'घर की थाली के अंतर्गत दी गई रेसिपीज मुझे ख्ाास तौर पर पसंद आईं। कहानी 'विदाई दिल को छू गई।

सुनीता निगम, भोपाल

मैं पिछले दस वर्षों से सखी की नियमित पाठिका हूंं। यह देखकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता होती है कि अपनी सखी दिनोंदिन निखरती जा रही है। पत्रिका के जनवरी अंक में प्रकाशित सभी रचनाएं लाजवाब थीं। लेख 'अपनों से शेयर करें कुछ जरूरी बातें पढऩे के बाद मैंने अपने सभी जरूरी कागजात को नए ढंग से व्यवस्थित किया और अपने पति को भी इसके बारे में बताया।

सरिता सक्सेना, आगरा

मुझे पत्र-पत्रिकाएं पढऩा बेहद पसंद है। मेरे घर पर कई पत्रिकाएं आती हैं, पर उनके बीच सखी की अलग ही पहचान है। इस पत्रिका में आधुनिकता और परंपराओं का बहुत सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। लेख 'रहने दो...तुम नहीं समझोगी में बेहद प्रासंगिक मुद्दे को उठाया गया है, जिसकी ओर आम तौर पर लोगों का ध्यान नहीं जाता। इस लेख में बिलकुल सही कहा गया है कि स्त्रियों के प्रति पुरुषों का नजरिया बेहद संकुचित है। वे पहले से ही यह मानकर चलते हैं कि क्रिकेट, साइंस, टेक्नोलॉजी और बैंकिंग आदि के बारे में स्त्रियों को कोई जानकारी नहीं होती। लेख 'बच्चों को चाहिए आपका साथ में बिलकुल सही कहा गया है कि हमें बच्चों को अच्छी आदतें सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अन्य रचनाएं भी पठनीय थीं।

नम्रता सिंह, जयपुर

सखी का जनवरी अंक देख कर ऐसा लगा कि जब नए साल की शुरुआत इतनी अच्छी रचनाओं से हुई है तो आगे भी हमें पत्रिका का बेहतरीन रूप नजर आएगा। लेख 'ताकि सेहत को मिले भरपूर फायदा में फल-सब्जियों की शेल्फ लाइफ के बारे में बहुत अच्छी जानकारियां दी गई थीं। सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण कवर स्टोरी 'छोटी सी आशा बेहद प्रेरक थी। लेख 'अब नहीं चलेगा कोई बहाना पढऩे के बाद अब मैं भी सपरिवार कहीं घूमने जाने की तैयारी में जुट गई हूं।

रचना भार्गव, इंदौर

सखी का जनवरी अंक रंग-बिरंगे फूलों से सजे सुंदर गुलदस्ते की तरह था। पत्रिका के इस अंक में वैसे तो सभी रचनाएं पठनीय थीं, लेकिन लेख 'बच्चे को चाहिए आपका साथ मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। कवर स्टोरी 'छोटी सी आशा में बिलकुल सही कहा गया था कि अगर हम आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं तो हर मुश्किल का सामना आसानी से किया जा सकता है। 'मिसाल के अंतर्गत कोलकाता की देबाश्री भट्टाचार्य के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी बेहद प्रेरक थी।

अनुजा मिश्रा, देहरादून

सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण सखी का जनवरी अंक सराहनीय था। लेख 'संवारें अपना प्रोफेशनल व्यक्तित्व में दिए गए सुझाव बहुत अच्छे थे। हाल ही में मेरी मैटरनिटी लीव ख्ात्म हुई है। मुझे अपने नन्हे बच्चे को घर पर छोड कर काम पर लौटना है। ऐसे में लेख 'काम पर लौटने से पहले मेरे लिए उपयोगी साबित हुआ। लेख 'बाकी न रहें निशान में स्ट्रेच माक्र्स दूर करने के संबंध में अच्छी जानकारियां दी गई थीं। कहानियां भी मर्मस्पर्शी थीं। आशा है पत्रिका के आने वाले अंकों में भी ऐसी ही स्तरीय रचनाएं पढऩे को मिलेंगी।

कविता दास, जबलपुर


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