घरेलू हिंसा बोलना है जरूरी
भारत में घरेलू हिंसा सुरक्षा कानून वर्ष 2006 से लागू है मगर अभी भी स्त्रियां इसके लाभों से वंचित हैं। ऐसा क्यों है, इस बारे में जानकारी दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन।
By Edited By: Published: Fri, 10 Feb 2017 02:53 PM (IST)Updated: Fri, 10 Feb 2017 02:53 PM (IST)
पूरी दुनिया में स्त्रियां दोयम दर्जे पर रही हैं। उनके लिए कानून बनाने की पहल हाल के वर्षों में ही हुई। भारत में घरेलू हिंसा से स्त्रियों की सुरक्षा कानून वर्ष 2005 में बना, जिसे 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया। अभी भी कई देशों, जैसे सीरिया, अल्जीरिया, ईरान, कीनिया, लेबनान, माली, उजबेकिस्तान, यमन और मिस्र आदि में ऐसा कानून नहीं है। चीन और पाकिस्तान में भी वर्ष 2016 में ही ऐसे कानून बने हैं। चोट जो दिखती नहीं घरेलू हिंसा का अर्थ है- शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक व यौन हिंसा। शारीरिक हिंसा के निशान दिखते हैं मगर मानसिक चोटें नजर नहीं आतीं। अपमान, गालीगलौच, नीचा दिखाना, बच्चा या बेटा न होने पर उलाहने....स्त्रियों को ऐसी कई यातनाओं से गुजरना पडता है। शारीरिक हिंसा में यौन हिंसा भी आती है। अप्राकृतिक संबंध, बीमारी या इच्छा न होने पर जबरन संबंध कायम करना, पत्नी के होते हुए परस्त्री गमन या घर की ही किसी स्त्री से संबंध बनाना भी इसमें आता है। दायरा है बडा इस कानून के अंतर्गत भावनात्मक हिंसा भी घरेलू हिंसा मानी जाती है। इसके अलावा पति द्वारा परिवार के भरण-पोषण हेतु पैसा न देना, देखभाल न करना, पैसे न कमाना, पत्नी को स्त्री धन से वंचित करना, उसके बैंक बैलेंस, गहने, संपत्ति आदि का उपयोग स्वयं करना और उसे इस्तेमाल करने से रोकना जैसे सभी कार्य आर्थिक हिंसा के दायरे में आते हैं। यहां सखी की एक पाठिका के पत्र का उदाहरण देना प्रासंगिक होगा। उनकी शादी 8 वर्ष पहले हुई। दो बच्चे हैं। पति शराब पीते हैं और गालीगलौज-मारपीट के अलावा चरित्रहीनता का आरोप लगाते हैं। मायके से पैसे लाने को कहा जाता है, मना करने पर तलाक की धमकी दी जाती है। पत्नी अलग होने की बात करती हैं तो कहा जाता है कि वे जाएं पर बच्चों को न ले जाएं। फिर कहते हैं कि वह गईं तो उनके माता-पिता को सजा दी जाएगी। पाठिका लिखती हैं कि उनकी मां कैंसर की मरीज हैं। इसलिए वह नहीं चाहतीं कि उनका परिवार डिस्टर्ब हो। इसी कारण ज्यादती सहन कर रही हैं। एक वर्ष की सजा पाठिका को सलाह दी जाती है कि वह जिला अदालत में शिकायत दर्ज कराएं। इससे उन्हें सुरक्षा, घर में रहने का आदेश, बच्चों की कस्टडी और भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है। यदि उनके पति कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करते और हिंसा जारी रखते हैं तो उन्हें एक वर्ष तक की सजा हो सकती है। विदेश में हिंसा मेरे पास ऐसा ही मामला आया है जिसमें भारतीय लडकी की शादी विदेश में बसे एक युवक से हुई। पति ने उसे व उसकी एक वर्ष की बच्ची को बहुत प्रताडित किया। लडकी किसी तरह जान बचाकर लोगों की मदद से भारत लौटी। उसने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया है। हमारे देश में खासतौर पर ग्रामीण स्त्रियां इस कानून का फायदा नहीं उठा पातीं। इसकी बडी वजह अशिक्षा, जागरूकता की कमी और कानूनी जानकारी न होना है। कुछ अन्य वजहें भी हैं। जैसे- गांवों-कसबों में सेवा प्रदाता अधिकारी और सुरक्षा अधिकारी के पद खाली रहना। व्यवस्था में कमी के कारण भी कानून तक स्त्रियों की पहुंच नहीं हो पाती। इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
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