कविताएं समीक्षा
कुछ लेखकों की लेखनी तनावमुक्त कर देती है। खास स्टाइल में लिखी उनकी कहानियां न सिर्फ पाठकों के होंठों पर मुस्कान लाने में कामयाब होती हैं
By Edited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 12:23 PM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 12:23 PM (IST)
सुनीता अग्रवाल होममेकर हैं। लेखन में कुछ वर्ष पूर्व ही कदम रखा है। शौकिया लेखन पसंद किया जाने लगा तो हिचक खुली और प्रकाशन के लिए रचनाएं भेजने लगीं। इनकी कविताओं में स्त्री की पीडा उभरती है, साथ ही कई सवाल भी खडे किए जाते हैं लेकिन उन्हीं पीडाओं से निखर कर एक मजबूत और आत्मविश्वास से भरी स्त्री भी यहां नजर आती है। अब तक कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। कुछ पुरस्कार भी प्राप्त। संप्रति : लखनऊ (उप्र) में। अनबूझे रिश्ते रिश्ते अपनी परिभाषा स्वयं लिखने चले... घर आहिस्ता से मकानों में तब्दील होने लगे तारे बिखर कर फलक से जमीं पर गिरने लगे हुई रात आधी, टूटे सपने नींद बेचने लगे अनभीगी अनछुई रही बर्फ सी ठंडी हथेली झांकती भयभीत आंखें खोलकर खिडकी अकेली वक्त को दस्तक देते हाथ हाथ मलने लगे... संवादों में छाई उदासी रिसने सी लगी चांदनी संबंधों के तटबंध खुले सूखा आत्मा का पानी होकर लापता खुद से खुद का पता पूछने लगे... रिश्ते अपनी परिभाषा स्वयं लिखने चले... कितनी बची हूं मैं तुम्हें ज्ञात होगा तुम्हारा पता मिला है अज्ञातवास या फिर हो आकाश में चमकता कोई तारा असंख्य जन्म लेकर ढूंढती हूं तुम्हें इस देह में विदेह होने तक पंचतत्व से बनी काया निरर्थक, निस्पंदन आत्मा के नवरूप में ही शायद संभव है मिलन अगर मिट्टी हो तो समाते क्यों नहीं मुझमें जीवन चक्र से परे देकर हृदय का दान मुझे सौंदर्य की अनंत जमीं पर एकाकार रहूं तुम में तुम्हारी खातिर जीने की जिजीविषा में इतनी ही बची हूं मैं तुम्हें ज्ञात तो होगा कितनी बची हूं मैं...। कल किसने देखा... मन की बगिया में हरसिंगार खिला यादों की सौंधी मिट्टी में एक पल महका खुशबू से भरी मैं हुई तनिक हलकी हंस पडे अनायास ही आसपास के विहग सभी उड आया कोई वृंद बैठकर शाखा पर धीरे से चहका, शुरू हुई पुष्पों की सुरभित कानाफूसी संग मेरे जागी पारिजात, चमेली उनींदे सपनों की सजने लगी क्यारी पवित्र चंदन सा यूं अंग बहका सत्य नहीं, झर जाएंगे पर आज तो है यह रूप-गंध-खुशबू वैसे ही मैं भी अंक में भरकर महसूस करूंगी तुम्हें 'आज' में कल किसने देखा? कुछ लेखकों की लेखनी तनावमुक्त कर देती है। खास स्टाइल में लिखी उनकी कहानियां न सिर्फ पाठकों के होंठों पर मुस्कान लाने में कामयाब होती हैं, बल्कि किताब पढकर खत्म होने तक पाठकों को कल्पनालोक की सुखद सैर भी करा देती हैं। इसी श्रेणी में प्रसिद्ध लेखिका व स्क्रिप्ट राइटर अनुजा चौहान हैं। हलकेमूड में उनके लिखे उपन्यास पाठकों को भागदौड की जिंदगी से दूर ले जाकर ऊर्जा से सरोबार कर देते हैं। हाल में ही उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'द जोया फैक्टर' का हिंदी अनुवाद 'जोया' प्रकाशित हुआ है। अनु सिंह चौधरी ने इसका बेहतरीन अनुवाद किया है। इसे पढते ऐसा नहीं लगता कि अनुवाद पढ रहे हैं। अनुजा को एडवर्टाइजिंग क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रहा है। उन्होंने कई पॉपुलर एड कैंपेन पर भी काम किया। कार्यक्षेत्र के अनुभवों को ही अनुजा कहानियों में गूंथती हैं। इसकी कहानी भी यहीं से प्रेरित है। एडवर्टाइजिंग वर्ल्ड में जोया सिंह सोलंकी जाना-पहचाना नाम है। काम के सिलसिले में वह देश-विदेश जाती रहती है। दिल्ली के करोलबाग में रहने वाला उसका परिवार क्रिकेट का दीवाना है। संयुक्त परिवार में जब आपसी लडाइयां होती हैं तो सदस्यों को लगता है कि इसका बुरा प्रभाव क्रिकेट के परिणाम पर पडेगा। इसलिए कोई साथ बैठकर मैच नहीं देखता। संयोगवश जोया की पैदाइश उस समय की है, जिस समय भारत ने 1983 में वल्र्ड कप जीता था। एक ऐड फिल्म के सिलसिले में उसकी मुलाकात भारतीय क्रिकेट टीम से होती है। उन्हें जोया के जन्म का संयोग पता चलता है तो वे हैरान हो जाते हैं। एक दिन जोया उनके साथ नाश्ता करती है तो टीम जीत जाती है। खिलाडी रोज उससे अपने साथ नाश्ता करने का आग्रह करने लगते हैं। एक बार ऐसा नहीं होता तो टीम हार जाती है। उधर टीम का काबिल कप्तान मानता है कि यह सिर्फ एक अंधविश्वास है...। कहानी इतनी मजेदार है कि अंत जाने बिना आप किताब नहीं छोड पाएंगे। स्मिता
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