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उम्मीदों से रोशन हो जि़ंदगी

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। दिन और रात की तरह हमारे जीवन में सुख और दुख का भी आना-जाना लगा रहता है। इसलिए हमारे सामने चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं पर हमें उम्मीदों का साथ नहीं छोडऩा चाहिए।

By Edited By: Published: Sat, 04 Feb 2017 03:58 PM (IST)Updated: Sat, 04 Feb 2017 03:58 PM (IST)
उम्मीदों से रोशन हो जि़ंदगी

अक्सर आपके मन में यह सवाल उठता होगा कि दूसरों को आशावादी बने रहने की सलाह देना तो आसान है पर तमाम नाकामियों के बीच कोई इंसान खुश कैसे रह सकता है? ऐसा सोचने वाले लोग इस शाश्वत सत्य को भूल जाते हैं कि समस्याओं के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती और धैर्यपूर्वक उनका हल ढूंढने की कला ही इंसान को कामयाब बनाती है। इसके लिए मन में दृढ इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है।

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खुशियों की राह में बाधक निराशा एक ऐसी नकारात्मक मनोदशा है, जो इंसान की खुशियों की राह में सबसे बडी बाधक है। मन की दुर्बलता शारीरिक कमजोरी से भी ज्यादा नुकसानदेह है। यह व्यक्ति को अंदर से खोखला बना देती है। इसलिए निराशा को दूर करने की कला सीखना बहुत जरूरी है। जब भी व्यक्ति निराश होता है तो बार-बार उसके मन में यही खयाल आता है कि अब क्या होगा? यही वह शुरुआती दौर है, जब निराशा का फंदा उसे जकडऩा प्रारंभ कर देता है। इससे बचने के लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच बदलनी होगी। किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में सब कुछ खत्म हो गया, अब क्या होगा? कहने की बजाय यह सोचें कि अब आगे क्या करना है? जब तक इंसान जिंदा है, उसके लिए सब कुछ कैसे खत्म हो सकता है? हमारी सभी समस्याओं और दुखों की जड आत्मविश्वास की कमी है। कई बार ऐसा भी होता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी किसी समस्या से बाहर निकलने की कोशिश में जुटा होता है लेकिन इस राह में अचानक आने वाली रुकावट से जैसे ही उसके मन में निराशा आती है, वह प्रयास करना छोड देता है।

सफलता के लिए आत्मविश्वास अनिवार्य है लेकिन सकारात्मक सोच का होना भी बहुत जरूरी है। निराश व्यक्ति की मनोदशा उस योद्धा जैसी होती है, जो युद्ध शुरू होने से पहले ही स्वयं को पराजित मान लेता है। ऐसे में उसके लिए रणभूमि तक पहुंचना असंभव हो जाता है। इसलिए मुश्किलों के बारे में सोचकर घबराने के बजाय हमें उनका हल ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए। अपने जीवन के मुरझाए पौधे को आशा और उत्साह के जल से सींच कर ही उसे हरा-भरा बनाया जा सकता है। इससे कामयाबी का मार्ग अपने आप प्रशस्त होता चला जाएगा। जैसे सूर्य के निकलते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, उसी तरह मन में उत्साह के विचार मात्र से निराशा अपने आप दूर हो जाती है।

क्यों हारने लगता है मन लोगों के लिए निराश होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। अत: इस नकारात्मक मनोदशा से बाहर निकलने के लिए सबसे पहले उन कारणों को जानना और उनका विश्लेषण करना जरूरी है। निराशा का एक सबसे प्रमुख कारण है-समस्याओं से जूझने की क्षमता का अभाव। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हर व्यक्ति क्षमतावान होता है लेकिन आत्मविश्वास की कमी के कारण वह अपनी क्षमताओं को पहचान नहीं पाता। इसलिए सबसे पहले हमें खुद पर भरोसा करना सीखना होगा कि हां, मैं यह कार्य अच्छी तरह कर सकता हूं।

इस वाक्य को आप मन ही मन मंत्र की तरह दोहराएं, इससे आपके मन के किसी अंधेरे कोने में उम्मीद की किरणें दिखने लगेंगी और उसकी रोशनी के सहारे आप खुद-ब-खुद प्रयास करने के लिए प्रेरित होंगे। जब आप यह ठान लेंगे कि हां, मैं यह कार्य कर सकता हूं, उसके बाद कोई भी मुश्किल आपका रास्ता रोक नहीं पाएगी। आप उन लोगों की सफलता से जुडी

प्रेरक कहानियां पढें, जिन्होंने शारीरिक अक्षमता और निर्धनता के बावजूद केवल अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कामयाबी हासिल की। जरा सोचिए कि कामयाब लोग भी हमारे-आपके जैसे ही होते हैं तो फिर उनकी सूची में आपका नाम क्यों नहीं शामिल हो सकता? भले आप सूरज की तरह तेजस्वी न बन पाएं पर अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से दीपक बनकर निराशा का अंधकार तो दूर कर ही सकते हैं। यह न भूलें कि हताशा होकर बैठने के बजाय निरंतर प्रयासरत रहना निश्चित रूप से बेहतर विकल्प है। देर से ही सही पर इससे कामयाबी जरूर मिलती है।

अति परफेक्शन से बचें कुछ लोग अपनी क्षमताओं का सही मूल्यांकन नहीं कर पाते और जीवन में सब कुछ सर्वश्रेष्ठ पाना चाहते हैं। ऐसे लोग हालात से समझौता करने को तैयार नहीं होते। नतीजतन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता। ऐसे में उनका कुंठित होना स्वाभाविक है। उनकी यही कुंठा निराशा को जन्म देती है, जिससे व्यक्ति का आत्मविश्वास टूटने लगता है। मन की यह दुर्बलता, शारीरिक कमजोरी से भी ज्यादा नुकसानदेह होती है। अपनी क्षमता के भरपूर इस्तेमाल से अगर किसी व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ के बजाय कुछ अच्छा हासिल हो तो उसमें भी उसकी हार नहीं बल्कि जीत है। सही तरीके से कार्य करते-करते एक दिन परफेक्शन भी आ ही जाता है।

कई लोग जीवन में बहुत कुछ पाना चाहते हैं और उसके कारण जो उपलब्ध है, उसका भी आनंद नहीं उठा पाते। किसी एक बडी खुशी को हासिल करने की धुन में अकसर लोग सामने मौजूद छोटी-छोटी खुशियों को नजरअंदाज कर देते हैं। बेहतर यही होगा कि अति परफेक्शनिस्ट बनने के बजाय हमें केवल अपनी ही नहीं, बल्कि दूसरों की उपलब्धियों पर भी खुश होना चाहिए। संतुष्टि की भावना व्यक्ति को मुश्किल हालात में भी निराशा से बचाती है।

हीनता भी है बाधक हीनता की भावना भी निराशा का ही एक रूप है। हम कई बार अपनी शारीरिक संरचना व रूप-रंग आदि को लेकर भी हीन भावना के शिकार हो जाते हैं। हमें कभी भी अपनी शारीरिक संरचना व रंग-रूप आदि को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। इन बातों का प्रभाव अस्थायी होता है और केवल इसके बल पर जीवन में कामयाबी नहीं मिल सकती। किसी भी इंसान को लोग उसके गुणों की वजह से ही याद रखते हैं। इसीलिए अपने गुणों और कार्य-कुशलता को निखारने के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। अपनी असफलताओं से निराश न हों और न ही स्वयं को दूसरों से कमतर समझें। बल्कि अपनी हार के कारणों का पता लगाएं और उन्हें दूर करने की कोशिश में जुट जाएं।

राह निकल ही आएगी लगातार मिलने वाली नाकामी निराशा का सबसे बडा कारण है। यदि आपको प्रोफेशनल लाइफ में कामयाबी नहीं मिल रही है तो अपनी कोशिशों से खुद को क्षमतावान बनाएं, नई तकनीक सीखें क्योंकि कडी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। अगर किसी वजह से आपके रिश्तों में तनाव है तो आपसी बातचीत के जरिये उसे दूर करने की कोशिश करें। माफी मांगना और माफ करना भी सीखें। इससे बिगडे हुए संबंधों को सुधारना बहुत आसान हो जाएगा। दूसरों की भावनाओं को समझें और उनका सम्मान करें। किसी भी रिश्ते में दूसरों से बहुत ज्य़ादा उम्मीदें रखना भी दुख का बहुत बडा कारण है। इसलिए अपने करीबी लोगों से भी ज्य़ादा अपेक्षाएं न रखें और उन्हें पूरा पर्सनल स्पेस दें। स्टूडेंट्स को हमेशा अपनी रुचि से जुडे करियर का चुनाव करना चाहिए।

अगर आप अभिभावक हैं तो आपका यह फर्ज बनता है कि सही करियर चुनने की दिशा में अपने बच्चों का मार्गदर्शन करें लेकिन उन पर अपनी इच्छाएं न थोपें। अगर गौर से देखें तो हर समस्या का हल भी उसी में छिपा होता है। बस,आपके मन में उसे ढूंढने का हौसला होना चाहिए। नाकामियों से निराश होने की बजाय स्वयं को और बेहतर बनाने की दिशा में अग्रसर हों। अपनी कमियों की वजह से पैदा होने वाली हीन भावना को खुद पर हावी न होने दें। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की बजाय कुछ काम करें। अपनी रुचि से जुडे किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त रहें। हमेशा अच्छा सोचें तो उसका सकारात्मक प्रभाव आपके कार्यों और जीवन पर भी दिखाई देगा। अंत में, यह बात हमेशा याद रखें कि रात्रि का अंधकार चाहे कितना ही गहरा क्यों न हो पर उसके बाद सवेरा अवश्य होता है।


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